You’re viewing a text-only version of this website that uses less data. View the main version of the website including all images and videos.
इमरान ख़ान बोले- हालात ऐसे ही रहे तो दोनों परमाणु ताक़तों के टकराने की आशंका
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अमेरिकी न्यूज़ चैनल सीएनएन में 'ग्लोबल पब्लिक स्क्वेयर' प्रोग्राम के होस्ट और भारतीय मूल के मशहूर पत्रकार फ़रीद ज़कारिया को दिए इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने सत्ता में आने के बाद भारत से संबंध सुधारने की कोशिश की थी, लेकिन भारत की कमान जिस विचारधारा के हाथ में है, उस वजह से संभव नहीं हो पाया.
फ़रीद ज़कारिया ने इमरान ख़ान से पूछा कि 'भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं, इसलिए दुनिया भर के लोग दोनों देशों के संबंधों को लेकर चिंतित रहते हैं. क्या आप कोई संभावना देखते हैं कि दोनों देशों में शांतिपूर्ण संबंध कायम होंगे?'
इस सवाल के जवाब में इमरान ख़ान ने कहा, ''मैं उन लोगों में हूँ जो भारत को अच्छी तरह से समझता है. पाकिस्तान में किसी से भी ज़्यादा भारत को जानता हूँ. ऐसा इसलिए है कि वहाँ की मीडिया और नेताओं से मेरे अच्छे संबंध रहे हैं. जब मैं सत्ता में आया तो पहली कोशिश मेरी यही थी कि भारत के साथ संबंध ठीक हों. मैंने कहा कि भारत एक क़दम आगे बढ़ेगा तो मैं संबंध ठीक करने के लिए दो क़दम आगे बढ़ूंगा. हम दोनों के बीच महज़ कश्मीर का मुद्दा है और एक अच्छे पड़ोसी की तरह वार्ता के ज़रिए इसे सुलझा सकते हैं.''
इमरान ख़ान ने कहा, ''लेकिन दुर्भाग्य से आरएसएस की विचारधारा के पास भारत की कमान आ गई. हम सभी जानते हैं कि आरएसएस के संस्थापक कौन थे. वो नाज़ियों से प्रेरणा लेते थे. मैं जो कह रहा हूँ, उसकी आप पुष्टि भी कर सकते हैं. आरएसएस की विचारधारा ने ही महान महात्मा गांधी की हत्या की थी. ऐसे में इस विचारधारा के साथ वार्ता बहुत मुश्किल हो जाती है. मैंने बातचीत की कोशिश बहुत की, लेकिन उनकी विचारधारा मुसलमानों, पाकिस्तान और अल्पसंख्यकों से नफ़रत है.''
इमरान ख़ान ने कहा, ''अभी भारत में जो कुछ भी हो रहा है, उससे ज़्यादा नुक़सान उनका ही है न कि पाकिस्तान का. हमारा संबंध भले ठंडे बस्ते में है, लेकिन भारत में जो कुछ हो रहा है, वो चिंताजनक है.''
टकराव की आशंका
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा कि पुलवामा में हमले के बाद सीधा आरोप भारत ने पाकिस्तान पर लगा दिया.
इमरान ख़ान ने कहा, ''मैंने उनसे स्पष्ट कहा था कि अगर कोई सबूत है तो वे दें और हम कड़ी कार्रवाई करेंगे. लेकिन उन्होंने सबूत देने के बदले आक्रामकता दिखाई. पाकिस्तान ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया और भारत के प्लेन को मार गिराया. उनका पायलट को भी हमने सौंपा. हम किसी भी सूरत में तनाव नहीं चाहते हैं. इसीलिए मैंने राष्ट्रपति ट्रंप से कहा था कि अमेरिका सबसे ताक़तवर देश है और उसे कश्मीर का मसला सुलझाना चाहिए. अगर दोनों परमाणु शक्ति संपन्न मुल्कों में यही स्थिति रही तो इस बात की आशंका है कि दोनों एक दिन आमने-सामने आ जाएं.''
एक वक़्त था जब यही इमरान ख़ान दोनों देशों के बीच शांति वार्ता के लिए नरेंद्र मोदी सरकार में ज़्यादा अवसर देखते थे. इमरान ख़ान ने अप्रैल 2019 में कहा था कि भारत में अगर अगली सरकार कांग्रेस की बनती है तो वह वार्ता को लेकर डरी रहेगी क्योंकि दक्षिणपंथी ताक़तों के कारण वो कश्मीर पर खुलकर सामने नहीं आएगी.
इस्लामाबाद में विदेशी पत्रकारों से बात करते हुए इमरान ख़ान ने कहा था, ''अगर दक्षिणपंथी बीजेपी फिर से जीतकर सत्ता में आती है तो शायद कश्मीर पर कोई समझौता हो सकता है.'' इमरान ख़ान का यह बयान तब पाकिस्तान में काफ़ी विवादित हुआ था और आज तक वहां के पूर्व राजनयिक इस बयान का हवाला देकर आलोचना करते हैं.
भारत का रुख़
इमरान ख़ान भले कह रहे हैं कि उन्होंने भारत से वार्ता को लेकर बहुत सकारात्मक रुख़ दिखाया, लेकिन भारत का आधिकारिक रुख़ रहा है कि 'आतंकवाद और संवाद' एक साथ नहीं चल सकता.
2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री चुने गए तो उन्होंन शपथग्रहण समारोह में सार्क के सभी देशों के प्रधानमंत्रियों को आमंत्रित किया था. इसी आमंत्रण पर पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ भी नई दिल्ली आए थे. नरेंद्र मोदी ने संदेश देने की कोशिश की थी उनकी सरकार पड़ोसियों के साथ मिलकर चलना चाहती है.
यहाँ तक कि 25 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री अफ़ग़ानिस्तान से अचानक पाकिस्तान पहुँच गए थे. इस दौरे को लेकर तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में कहा था, ''प्रधानमंत्री का काबुल से लाहौर जाना असाधारण क़दम था. 25 दिसंबर नवाज़ शरीफ़ का जन्मदिन था. प्रधानमंत्री मोदी ने काबुल से फ़ोन कर बधाई दी तो नवाज़ शरीफ़ ने कहा कि जा रहे हैं तो पाकिस्तान से होते हुए जाइए.''
''रिश्तों की ऊंचाई यहाँ तक थी. प्रधानमंत्री मोदी प्रोटोकॉल तोड़कर गए थे. हमने दोस्ती की पहल नहीं की यह ग़लत बात है. कहानी बदरंग पठानकोट में हमले के बाद भी नहीं हुई क्योंकि पाकिस्तान हर बार हमले के बाद अपनी संलिप्तता से इनकार करता था, लेकिन उसने पहली बार कहा कि वह सहयोग के लिए तैयार है.''
सुषमा स्वाराज ने कहा था, ''कहानी बदरंग तब हुई जब बुरहान वानी का यहाँ एनकाउंटर हुआ और पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ़ ने उसको शहीद के साथ स्वतंत्रता सेनानी कहा. उसके बाद से सारी चीज़ें पटरी से उतरीं.''
चीन पर चुप्पी
फ़रीद ज़कारिया ने इमरान ख़ान से चीन के शिन्जियांग में वीगर मुसलमानों के साथ हो रहे कथित उत्पीड़न को लेकर भी सवाल पूछा. ज़कारिया ने पूछा कि आप कश्मीर में मुसलमानों को लेकर बोलते हैं लेकिन शिन्जियांग को लेकर क्यों नहीं बोलते हैं?
इस सवाल के जवाब में इमरान ख़ान ने कहा, ''कश्मीर में मुसलमानों के साथ जो हो रहा है, उसकी तुलना हम चीन के शिन्जियांग से नहीं कर सकते हैं. शिन्जियांग को लेकर सच जानने का मेरा एक ही स्रोत है और वह है चीन में पाकिस्तान के राजदूत. कश्मीर में जो हो रहा है वह अपराध है. पश्चिम का मीडिया कुछ और कह रहा है जबकि चीन का कुछ और कहना है. ऐसे में हम किस पर भरोसा करें. इसीलिए मैं अपने राजदूत से जानकारी लेता हूँ. मेरे राजदूत पश्चिमी मीडिया की रिपोर्ट से सहमत नहीं हैं.''
अफ़ग़ानिस्तान के सवाल पर इमरान ख़ान ने कहा, ''अमेरिका के जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवाद बहुत कम हो गया है. अभी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का कोई विकल्प नहीं है. ऐसे में पूरी दुनिया को तालिबान के साथ सहयोग करना चाहिए. आज या कल तालिबान को दुनिया मान्यता देगी.''
(कॉपी - रजनीश कुमार)
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)