चीन की अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल क्यों मंडरा रहे हैं?

चीन का स्टॉक मार्केट

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चीन के आर्थिक विकास की गति दशकों से पश्चिमी देशों को हैरान करती रही है. लेकिन हाल के महीनों में ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि चीनी अर्थव्यवस्था में सब कुछ सामान्य नहीं है.

कर्ज़ पर कंपनियों की निर्भरता कम करने के लिए चीनी सरकार ने पिछले साल एक नया क़ानून लागू किया है, जिसका असर देश की दूसरी सबसे बड़ी रियल एस्टेट डेवेलपमेन्ट कंपनी एवरग्रैंड पर हुआ. कंपनी दिवालिया होने की कग़ार पर है और घर खरीदार अपने पैसे वापस मांग रहे हैं.

कंपनी डूबी तो अर्थव्यवस्था लड़खड़ाएगी और असर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर भी होगा. देश के जीडीपी का क़रीब एक चौथाई हिस्सा रियल एस्टेट इंडस्ट्री से आता है.

लेकिन सरकार के सामने फिलहाल एक और बड़ी चुनौती है- कोयले की कमी से पैदा हुए बिजली संकट के कारण उत्पादन कम हो रहा है जो चिंता का विषय है.

इस सप्ताह दुनिया जहान में पड़ताल कर रहे हैं कि क्या चीनी अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं?

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थ्री रेड लाइन्स

सारा सू शंघाई के फुडान युनिवर्सिटी में विज़िटिंग स्कॉलर हैं. वो कहती हैं कि एवरग्रैंड दुनिया की सबसे ज़्यादा कर्ज़ में डूबी रियल एस्टेट कंपनी है. 25 साल पुरानी इस कंपनी के 1,300 से अधिक प्रोजेक्ट्स देश के 280 शहरों में फैले हुए हैं.

वैसे तो कंपनी का प्रमुख काम रियल एस्टेट का है लेकिन इसने इलेक्ट्रिक कार उत्पादन और फूड मैनुफैक्चरिंग में भी निवेश किया है.

सारा बताती हैं, "एवरग्रैंड फेयरीलैंड नाम से कंपनी का अपना अम्यूज़मेन्ट पार्क है. कंपनी देश की सबसे बड़ी फुटबॉट टीमों में से एक गुआंगज़ू क्लब की मालिक है. इसकी संपत्ति चीनी मुद्रा युआन में 2 ट्रिलियन है जो देश के जीडीपी के दो फीसद के बराबर है."

दूसरी कंपनियों की तरह बिज़नेस बढ़ाने के लिए एवरग्रैंड बैंकों और ग़ैर-बैंकिंग संस्थानों से कर्ज़ लेती है. कर्ज़ का बड़ा हिस्सा चुकाने के लिए कंपनी फिर नया कर्ज़ लेती है. तेज़ी से तरक्की करने का ये तरीका कंपनी के लिए कामयाब तो रहा, लेकिन इसकी अपनी दिक्कतें हैं.

एवरग्रैंड अपनी फुटबॉल टीम के लिए एक नया स्टेडियम बना रही है.

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इमेज कैप्शन, एवरग्रैंड अपनी फुटबॉल टीम के लिए एक नया स्टेडियम बना रही है.

आठ साल पहले राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि देश को आर्थिक विकास के अपने स्रोतों को स्थिर और स्थायी बनाने की तरफ ध्यान देना होगा. उन्होंने फाइनेंशियल सेक्टर और मार्केट सुधारों को आर्थिक योजना के केंद्र में रखा.

इसके तहत बीते साल सरकार ने रियल एस्टेट कंपनियों के लिए एक नया क़ानून लागू किया जिसे थ्री रेड लाइन्स कहा जाता है.

सारा कहती हैं, "सरकार चाहती है कि कर्ज़ पर रियल एस्टेट सेक्टर की निर्भरता कम हो. नए क़ानून मे तीन नियम रखे गए. पहला- कंपनियों की देनदारी उनकी कुल संपत्ति का 70 फ़ीसदी से अधिक न हो, दूसरा- कंपनी का कर्ज़ उसके नेटवर्थ यानी कुल पूंजी से अधिक नहीं हो सकता और, तीसरा- कंपनी छोटी अवधि के कर्ज को लिक्विड एसेट से चुका सके."

सरकार की बनाई थ्री रेड लाइन्स टेस्ट में एवरग्रैंड फेल हुई और उसके लिए और कर्ज़ लेना मुश्किल हो गया. कंपनी अपने कई सप्लायर्स का पैसा भी नहीं दे पाई. वो बैंकों से लिए कर्ज़ का ब्याज भी नहीं चुका पाई.

सारा कहती हैं, "कंपनी के पास एक साल गुज़ारे लायक ही पैसा बचा है. ये निवेशकों के लिए चिंता की बात है. कंपनी तय तारीखों पर बॉन्ड भुगतान करने से चूक रही है. उसकी देनदारी 300 अरब डॉलर से अधिक की है जो दूसरी रियल इस्टेट कंपनियों के मुक़ाबले कहीं अधिक है."

घर खरीदने के लिए क़रीब 15 लाख लोगों ने कंपनी को पैसा दिया है जो अब फंस गया है.

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देश की दूसरी रियल एस्टेट कंपनियां भी कर्ज़ चुकाने को लेकर दिक्कतें झेल रही हैं, लेकिन एवरग्रैंड की समस्या ज़्यादा गंभीर है.

लेकिन क्या कंपनी की खस्ताहालत के लिए सरकार की थ्री रेड लाइन्स नीति ज़िम्मेदार है या फिर इसके पीछे कारण कुछ और है.

सारा कहती हैं, "आज एवरग्रैंड जिस मुश्किल स्थिति का सामना कर रही है उसके लिए हालात कई साल पहले से बन रहे थे. पहले कंपनी अपनी कुछ संपत्ति बेच कर कैश इकट्ठा कर लेती थी लेकिन 2018 में वो ऐसा नहीं कर पाई. कंपनी की निर्भरता कर्ज़ पर रही है जो बढ़िया रणनीति नहीं है. दूसरी कंपनियां कर्ज़ के स्रोत को लेकर सतर्क रही हैं इस कारण वो एवरग्रैंड की तरह कर्ज़ के कभी न ख़त्म होने वाले घेरे से बची हुई हैं."

हाल में ख़बर आई कि कैश के लिए एवरग्रैंड 51 फीसदी स्टॉक्स दूसरी कंपनी को बेचने वाली है. इसके बाद चार अक्तूबर को हॉन्ग कॉन्ग स्टॉक एक्सचेंज ने कंपनी के शेयरों की खरीद-फरोख़्त पर रोक लगा दी.

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जीडीपी पर पड़ सकता है असर

माइकल पेटिस पेकिंग युनिवर्सिटी में फाइनेंस के प्रोफ़ेसर हैं. वो कहते हैं कि जो कुछ हो रहा है वो दरअसल एक बड़े और गंभीर मुद्दे का हिस्सा है जो बीते कुछ वक्त से चीनी सरकार की परेशानी का सबब बना हुआ है और रियल एस्टेट सेक्टर पर इसका असर अर्थव्यवस्था को हिला कर रख सकता है.

वो कहते हैं, "चीन में जीडीपी का क़रीब 25 फीसदी हिस्सा सीधे तौर पर रियल एस्टेट सेक्टर से जुड़ा है. दूसरे देशों में ये इसके आधे से भी कम है. अमेरिका में ये आंकड़ा 5 फीसदी तक है. लेकिन चिंता का विषय ये है कि चीन में पारिवारिक संपत्ति का 80 फीसदी घर होते हैं जबकि अमेरिका में ये आंकड़ा 40 फीसदी है और इंग्लैंड, यूरोप में ये इससे भी कम है."

माइकल कहते हैं कि रियल एस्टेट कंपनियां इस भरोसे के साथ कर्ज़ पर कर्ज़ लेती गईं कि मुसीबत आई तो सरकार बचा लेगी.

वो कहते हैं, "मुश्लिक तब होती है जब लोग आपको कर्ज़ लेने की आपकी क्षमता के आधार पर नहीं आंकते बल्कि ये मान लेते हैं कि आपसे कहीं अधिक कोई बड़ा आपकी सुरक्षा करेगा. यानी कोई बड़ी कंपनी मुश्किल में फंसेगी तो चीनी सरकार उसकी मदद करेगी."

जब अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने और कर्ज़ पर निर्भरता ख़त्म करने के लिए सरकार ने थ्री रेड लाइन्स नीति लागू की तो एवरग्रैंड जैसी कंपनियों का स्थिति बिगड़नी शुरू हुई.

अब हालात कुछ ऐसे हैं कि अगर सरकार हस्तक्षेप करती है तो वो कर्ज़ को लेकर बनाए अपने नियमों को तोड़ेगी और नहीं तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं. लेकिन फिलहाल ये ज़रूरी है कि सरकार एवरग्रैंड की आर्थिक परेशानियों से अर्थव्यवस्था को प्रभावित न होने दे.

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माइकल कहते हैं कि एवरग्रैंड की वजह से अर्थव्यवस्था पर शायद व्यापक असर न पड़े लेकिन गहरी चोट ज़रूर लगेगी.

वो कहते हैं, "इसका सबसे ख़तरनाक नतीजा है फाइनेन्शियल डिस्ट्रेस जिसकी उम्मीद नहीं की गई. कैश न मिले तो सप्लायर सामान नहीं देता. लोग निवेश के तरीके बदल लेते हैं और जब तक कंपनी को लेकर सुनिश्चित न हों, पैसे नहीं लगाते. इस कारण बाज़ार में बिक्री कम हो जाती है. इन सबका अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है और ये ख़तरा बना रहा है कि कभी भी स्थिति नियंत्रण से बाहर जा सकती है."

अगर समय से कदम नहीं उठाए गए तो ये संकट दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख सकता है.

माइकल कहते हैं कि चीन में जीडीपी को अर्थव्यवस्था की सेहत के तौर पर कम और राजनीतिक बयान के तौर पर अधिक देखा जाता है.

ऐसे में अगर एवरग्रैंड दिवालिया हो जाती है और इस कारण जीडीपी का आंकड़ा कम होता है तो क्या असल मायनों में ये बुरा होगा?

माइकल कहते हैं, "ये निर्भर करता है, जापान की विकास दर अधिक है. रियल एस्टेट के मामले में भी वो चीन से आगे था. 1980 के दशक में कर्ज़ की मदद से ये बड़ा बिज़नेस बना लेकिन 1990-91 तक हालात बिगड़े और विकास दर गिरने लगी. विकास दर के मामले में जापान पांच विकसित मुल्कों में सबसे ऊपर था लेकिन 1990 के दशक में वो निचले स्तर पर पहुंच गया. लेकिन 12 सालों में जापान की अर्थव्यवस्था इस झटके से उबरी. चीन के मामले में अभी ये स्पष्ट नहीं है कि क्या होगा. हो सकता है कि यहां विकास दर कम रहे लेकिन आम लोगों पर इसका अधिक असर न पड़े."

चीन के केंद्रीय बैंक ने आश्वासन दिया है कि प्रॉपर्टी बाज़ार में निवेश करने वाले आम नागरिकों के हितों की रक्षा की जाएगी.

यहां एवरग्रैंड और दूसरी रियल एस्टेट कंपनियां चर्चा के केंद्र में हैं. लेकिन चीन के सामने ये अकेली चुनौती नहीं.

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नए नियम, नई चुनौतियां

आइरिंस पैंग ग्रेटर चाइना के लिए वित्तीय कंपनी आईएनजी की प्रमुख अर्थशास्त्री हैं. वो कहती हैं कि कम वक्त में देश में कई नई नीतियां लागू की गई हैं और ऐसे वक्त एवरग्रैंड का मामला भी सामने आया है.

वो समझाती हैं, "उदाहरण के तौर पर टेक इंडस्ट्री निजता, अधिक नियंत्रण, नियमों के पालन को लेकर दबाव झेल रहा है. कुछ कंपनियों को सरकार के नियमों के अनुसार कर्मचारियों को अधिक सुविधाएं देनी पड़ रही हैं. व्यवसाय चलाने का खर्च बढ़ रहा है. ये इंडस्ट्री को और मज़बूत बनाने की कवायद है, जो होनी चाहिए थी."

वो कहती हैं कि सालों तक इस सेक्टर में कंपनियों पर कम नियंत्रण रहा है. अब इस कारण जो बड़ी और ताकतवर कंपनियां बनी हैं, उन्हें अधिक नियमों का पालन करना पड़ रहा है.

इसी साल मई में चीन ने बच्चा पैदा करने से जुड़ी नीति बदली और परिवार को तीन तक बच्चे पैदा करने की इजाज़त दी. लेकिन इस अतिरिक्त खर्च के लिए परिवारों को मनाना मुश्किल था. सरकार ने कुछ और नीतियां लागू कीं जिनका अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा.

आइरिस कहती हैं, "सरकार बच्चे पालने का खर्च कम करना चाहती है और इसके लिए ट्यूशन सेंटरों को बंद करने जैसे कदम उठा रही है. ये बात सच है कि माता-पिता अपने बच्चों की बेहतरी के लिए कई कोर्सेस में उनका एडमिशन करवा देते हैं. लेकिन सेंटर बंद होने से कई लोग बेरोज़गार हो गए हैं और ये लोग मध्यवर्ग से हैं. इसका असर परिवार की खर्च पर पड़ना स्वाभाविक है जो बड़ी समस्या है."

एक और नियम के तहत वीडियो गेम नियामक ने 18 साल से कम उम्र के बच्चों पर पाबंदी लगाई है और उनके वीडियो गेम खेलने का वक्त सीमित कर दिया है.

बिजली संकट

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इधर प्रॉपर्टी और फाइनेंस सेक्टर और, टेक और गेमिंग इंडस्ट्री मुश्किलों के घेरे में है, तो उधर एक और बड़ी समस्या मुंह बाये खड़ी है.

आइरिस कहती हैं कि देश बिजली संकट का सामना कर रहा है. इस कारण कहीं-कहीं पर घंटों पावर ब्लैकआउट हो रहा है. इसकी वजह बिजली की बढ़ती मांग, कोयले की कमी और जलवायु परिवर्तन को लेकर प्रतिबद्धता पूरा करने का दवाब है. साथ ही आर्थिक विकास के लिए आपूर्ति सुनिश्चित करने का प्रेशर भी है.

वो कहती हैं, "इस साल के पहले छह महीनों में चीन एनर्जी कंट्रोल का अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाया. इसलिए अब स्थानीय प्रशासन सप्लाई में कटौती कर रहे हैं इसका नतीजा ये है कि फै़क्ट्रियों में कामबंदी हो रही है और रिहाईशी इलाक़े मोमबत्ती पर निर्भर हो रहे हैं. सरकार भी हालात समझ रही है और अब उसने ऊर्जा कंपनियों को दूसरे देशों से कोयला खरीदने की इजाज़त दे दी है ताकि सप्लाई चालू रहे और कीमतें काबू में रहें."

आइरिस मानती हैं कि सरकार नीतियां लागू करने से पीछे नहीं हटना चाहती क्योंकि उसे यकीन है कि लंबे वक्त में ये फायदा पहुंचाएंगी भले ही अर्थव्यवस्था की रफ्तार कुछ वक्त के लिए धीमी पड़े.

वो कहती हैं, "सरकार मानती है कि दूसरे मुल्कों की अर्थव्यवस्थाएं कोविड महामारी के असर से जूझ रही हैं और उनकी विकास दर कम रहेगी. ऐसे में उनके पास नई नीतियां लागू करने का वक्त होगा क्योंकि दूसरों की तुलना में देश की अर्थव्यवस्था अधिक पीछे नहीं जाएगी, बस उसका प्रदर्शन उम्मीद से थोड़ा कम रहेगा."

आइरिस कहती हैं कि लंबे वक्त के फायदों की सोचें तो ये थोड़े वक्त की तकलीफ़ है. लेकिन उन्हें चिंता इस बात की है कि अभी सरकार और कितने नियम लागू करेगी ये किसी को नहीं पता.

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सप्लाई चेन को सबसे बड़ा ख़तरा

कई वैश्विक इंवेस्टमेंट बैंक पहले ही अपने पूर्वानुमानों में चीन की विकास दर कम बता रहे हैं. लेकिन अगर चीन की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाई तो क्या असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा?

ट्रेविस लंडी इंडिपेन्डेंट रीसर्च एनालिस्ट हैं और हॉन्ग कॉन्ग में रहते हैं. वो कहते हैं कि दुनिया को जिस एक विषय की चिंता होनी चाहिए वो है चीन का बिजली संकट.

वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि अब तक इसका असर जितना होना चाहिए था उससे कहीं कम है. बिजली संकट से सबसे ज़्यादा ख़तरा सप्लाई चेन को है और मुझे लगता है कि ये एवरग्रैंड से कहीं अधिक बड़ी समस्या है. इसका व्यापक असर हो सकता है."

ट्रैविस कहते हैं कि पावर ब्लैकआउट का असर पूरी दुनिया पर होगा क्योंकि इससे सप्लायर्स का काम रुक रहा है.

वो कहते हैं, "अगर आपको नहीं पता कि आपकी फैक्ट्री कितनी देर चालू रह सकेगी तो आपको उप्तादन घटाना होगा. ये किसी रियल एस्टेट कंपनी के दिवालिया होने से कहीं अधिक बड़ी समस्या है. पिज़्ज़ा दुकान के डूबने से लोग वो पिज़्ज़ा खाना बंद नहीं करते, वो दूसरी दुकान तलाश लेते हैं. लंबे वक्त में लोग घर खरीदना जारी रखेंगे. लेकिन अगर बिजली संकट के कारण उत्पादन रुका तो चीन के सप्लाई चेन का महत्वपूर्ण हिस्सा बने रहने पर संकट गहराएगा, और परेशानी सभी को होगी."

वीडियो कैप्शन, भारत में कोयले की कमी और बिजली संकट की पूरी कहानी समझिए

ट्रेविस कहते हैं कि इसका अधिक असर ऑस्ट्रेलिया पर पड़ सकता है जो चीन को बड़ी मात्रा में सामान सप्लाई करता है. लेकिन इसका एशिया के दूसरे देश भी इससे अछूते नहीं रहेंगे.

वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि जिस तरह वैश्विक सप्लाई चेन से जुड़ी कंपनियां चीन से दूर जा रही हैं और बांग्लादेश, भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया में अपने विकल्प तलाश रही हैं, पूरी दुनिया अब अलग तरह से सप्लाई व्यवस्था देखेगी."

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लौटते हैं अपने सवाल पर, क्या चीन की अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं?

इसमें संदेह नहीं कि एवरग्रैंड पर आया संकट दशकों तक रियल एस्टेट सेक्टर की कर्ज़ पर निर्भरता का नतीजा है और बिगड़े हालातों का असर आर्थिक विकास पर पड़ेगा.

लेकिन चीन की वित्तीय व्यवस्था कुछ ऐसी है कि इसके व्यापक प्रभाव को टाला जा सकता है. पर, बिजली संकट के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.

2020 में कोविड महामारी से जूझ रह दुनिया में चीन अकेला ऐसा बड़ा मुल्क था जिसकी अर्थव्यवस्था पिछड़ी नहीं.

प्रोफ़ेसर माइकल पेटिस के शब्दों में "मूल मुद्दे अभी भी बरकरार हैं, और अर्थव्यवस्था के लंबे वक्त तक अनसस्टेनेबल मॉडल पर आधारित होने की वजह से जो हालात पैदा हुए हैं उन्हें दुरुस्त करने में वक्त लगेगा."

प्रोड्यूसर - मानसी दाश

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