उत्तर कोरिया में ड्रग, आतंक और हथियारों की कहानी, एक कर्नल की ज़ुबानी

- Author, लॉरा बिकर
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
किम कुक सोंग की पुरानी आदतें गई नहीं हैं. उनसे इंटरव्यू के लिए एक सप्ताह तक बातचीत चली, और वो अभी भी इस बात से परेशान हैं कि उन्हें कौन सुन रहा होगा. कैमरे के सामने उन्होंने काला चश्मा पहना और हमारी पूरी टीम में केवल दो लोगों को लगता है कि उन्हें इनका असली नाम पता है.
बात हो रही है किम कुक-सोंग की जिन्होंने 30 सालों तक उत्तर कोरिया की शक्तिशाली जासूसी एजेंसी में बतौर वरिष्ठ अधिकारी काम किया.
वे कहते हैं, "ये एजेंसी सुप्रीम लीडर की आंख, कान और दिमाग थी."
वो दावा करते हैं कि उन्होंने रहस्यों को छिपाया, आलोचकों की हत्या के लिए हत्यारों को भेजा और ग़ैरक़ानूनी ड्रग्स लैब बनाई ताकि ज़्यादा पैसे कमाए जाएं.
अब पूर्व वरिष्ठ कर्नल किम कुक-सोंग ने तय किया है कि वह अपनी कहानी बीबीसी को बताएंगे. ये पहली बार है कि उत्तर कोरिया के इतने वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने किसी बड़े प्रसारक को इंटरव्यू दिया है. किम कुक-सोंग बताते हैं कि वो 'बेहद चहेते' और ईमानदार कम्यूनिस्ट सेवक थे.

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उत्तर कोरिया की रणनीति
लेकिन पदवी और ईमानदारी उत्तर कोरिया में सुरक्षा की गारंटी नहीं हैं.
साल 2014 में उन्हें अपनी जान बचाकर देश छोड़ना पड़ा और तब से वो राजधानी सोल में रहते हैं और अब दक्षिण कोरिया की इंटेलीजेंस एजेंसी के लिए काम करते हैं.
वह कहते हैं कि उत्तर कोरिया पैसे कमाने के लिए उतावला है और इसके लिए वह ड्रग डील्स से कर मध्य-पूर्व और अफ़्रीका में हथियारों की बिक्री तक हर संभव तरीके अपनाता है.
किम कुक-सोंग ने हमें बताया कि आखिर उत्तर कोरिया फ़ैसलों के पीछे कैसी रणनीति अपनाता है, दक्षिण कोरिया पर हमला कैसे किया गया, और दावा करते हैं कि देश के जासूस और साइबर नेटवर्क दुनिया में कहीं भी पहुंच सकते हैं.
बीबीसी उनके इस दावे की स्वतंत्र जांच नहीं कर पाया है लेकिन हमने उनकी पहचान की पुष्टि ज़रूर की और साथ ही हम उनके कुछ दावों की तस्दीक भी कर पाए.
हमने उत्तर कोरिया के लंदन स्थित दूतावास और न्यूयॉर्क में उनके मिशन से संपर्क किया लेकिन हमें अब तक कोई जवाब नहीं मिला है.

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एक 'टेरर टास्क फ़ोर्स'
उत्तर कोरिया में बतौर वरिष्ठ इंटेलीजेंस अधिकारी किम कुक-सोंग के कार्यकाल के आखिरी के कुछ साल देश के वर्तमान लीडर किम जोंग-उन के शुरुआती करियर की जानकारी देते हैं. वह अपनी बातों से एक ऐसे नौजवान की तस्वीर बुनते हैं जो खुद को 'योद्धा' साबित करने के लिए उत्सुक था.
साल 2009 में उत्तर कोरिया ने एक नई जासूसी एजेंसी बनाई जिसका नाम है- 'रिकॉनिनेंस जनरल ब्यूरो.' उस वक्त किम जोंग-उन को उनके पिता की जगह लेने के लिए तैयार किया जा रहा था जिन्हें स्ट्रोक के दौरे पड़े थे, इसलिए ब्यूरो के चीफ़ थे किम जोंग-चोल, जो उत्तर कोरिया के नेता के सबसे विश्वसनीय सहयोगी माने जाते हैं.
कर्नल बताते हैं कि मई 2009 में ऊपर से आदेश आया कि उत्तर कोरिया के एक पूर्व अधिकारी की हत्या करने के लिए 'टेरर टास्क फोर्स' का गठन किया जाए, वह अधिकारी देश छोड़कर दक्षिण कोरिया में शरण ले चुके थे.
किम कहते हैं, "किम जोंग-उन के लिए ये उनके पिता, सर्वोच्च नेता को संतुष्ट करने का तरीका था. 'टेरर टास्क फ़ोर्स' बनाया गया ताकि ह्वांग जांग-योप की गुपचुप हत्या की जा सके. मैंने व्यक्तिगत तौर पर इस काम के लिए निर्देश दिए."
ह्वांग जांग-योप कभी उत्तर कोरिया के सबसे शक्तिशाली अधिकारी हुआ करते थे. वह उत्तर कोरिया की नीति के प्रमुख शिल्पकार थे. साल 1997 में दक्षिण कोरिया चले जाने के कारण उन्हें कभी माफ नहीं किया गया. एक बार सोल में उन्होंने उत्तर कोरिया के शासन की कड़ी आलोचना की थी, और किम परिवार उसका बदला लेना चाहता था.

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नेता के प्रति वफ़ादारी
लेकिन हत्या के प्रयास में चूक हो गई. उत्तर कोरियाई सेना के दो मेजर अभी भी सोल में साज़िश के लिए 10 साल की जेल की सजा काट रहे हैं. उत्तर कोरिया ने कभी नहीं माना कि वह इसमें शामिल था और दावा किया कि दक्षिण कोरिया ने इसकी पूरी योजना बनाई थी.
किम कुक-सोंग का बयान एक अलग पक्ष सामने लाता है. वह कहते हैं, "उत्तर कोरिया में आतंकवाद एक राजनीतिक टूल है जो किम जोंग-इल और किम जोंग-उन की गरिमा की रक्षा करता है. यह उत्तराधिकारी का अपने महान नेता के प्रति वफ़ादारी दिखाने का एक तरीका था."
ये सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता. एक साल बाद साल 2010 में, दक्षिण कोरियाई नौसेना का जहाज 'चेओनान', एक टारपीडो की चपेट में आकर डूब गया. इस घटना में 46 लोगों की जान चली गई. उत्तर कोरिया ने हमेशा इस घटना में अपनी संलिप्तता से इनकार किया है. फिर, उसी साल नवंबर में दक्षिण कोरिया के द्वीप योंगप्योंग पर दर्जनों उत्तर कोरियाई गोले बरसाए गए, जिसमें दो सैनिक और दो आम नागरिकों की मौत हो गई.
किम कुक-सोंग ने बताया कि वो "चेओनान या योंगप्योंग द्वीप पर हुए हमले में सीधे तौर पर शामिल नहीं थे", लेकिन वे बताते हैं कि ये "जासूसी एजेंसी के अधिकारियों के लिए एक रहस्य नहीं था, इसे गर्व के साथ पेश किया जा रहा था."
"इस तरह के सैन्य ऑपरेशन को किम जोंग-उन के विशेष आदेशों पर डिजाइन और कार्यान्वित किया जाता है. ये एक उपलब्धि की तरह होते हैं."

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'दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति कार्यालय में जासूस'
किम कुक-सोंग कहते हैं कि उनकी जिम्मेदारियों में से एक दक्षिण कोरिया से निपटने के लिए रणनीति विकसित करना था. हमारा उद्देश्य दक्षिण कोरिया की 'राजनीतिक अधीनता' था. इसके लिए हमें ज़मीनी स्तर पर लोगों की ज़रूरत थी.
वह बताते हैं, "ऐसे कई मामले हैं जहां मैंने जासूसों को दक्षिण कोरिया जाने का निर्देश दिया और उनके माध्यम से ऑपरेटिव मिशन किए."
"एक मामला था जहां एक उत्तर कोरियाई एजेंट को भेजा गया और उसने दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति कार्यालय में काम किया और सुरक्षित उत्तर कोरिया लौट आया. ये 90 के दशक की बात है."
"ब्लू हाउस (दक्षिण कोरिया का राष्ट्रपति कार्यालय) के लिए पांच से छह साल तक काम करने के बाद, वह सुरक्षित वापस आ गया और लेबर पार्टी के कार्यालय में काम किया. मैं आपको बता सकता हूं कि उत्तर कोरिया के जासूस विभिन्न नागरिक सामाजिक संगठनों के साथ-साथ दक्षिण कोरिया के महत्वपूर्ण संस्थानों में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं."
इस दावे की जांच बीबीसी नहीं कर सका है.
हैकर्स की फौज
मैं दक्षिण कोरिया में सज़ा काट रहे कई उत्तर कोरियाई जासूसों से मिली हूं, और जैसा कि एनके न्यूज के संस्थापक चैड ओ'करोल ने हाल ही में एक लेख में लिखा, "दक्षिण कोरिया की जेलें कभी दर्जनों उत्तर कोरियाई जासूसों से भरी हुई थीं, जिन्हें कई तरह के जासूसी के कामों के लिए दशकों से गिरफ्तार किया गया था."
ऐसी कई घटनाएं होती रहीं और कम से कम एक मामले में उत्तर कोरिया से सीधे भेजे गए एक जासूस की संलिप्तता की बात सामने आई थी. लेकिन एनके न्यूज़ के आंकड़ों के अनुसार, साल 2017 के बाद दक्षिण कोरिया में जासूसी से जुड़े मामलों में बहुत कम लोगों की गिरफ़्तारी हुई है और इसकी वजह ये है कि उत्तर कोरिया खुफिया जानकारी जुटाने के लिए पुराने तौर-तरीकों के बजाय नई तकनीक का सहारा ले रहा है.
उत्तर कोरिया भले ही दुनिया के सबसे ग़रीब देशों में हो और वो दुनिया के दूसरे देशों से अलग-थलग भी है लेकिन इससे पहले उत्तर कोरिया से भाग कर आए लोग ये चेतावनी दे चुके हैं कि प्योंगयांग ने 6000 तेज़-तर्रार हैकर्स की फौज खड़ी कर रखी है.
किम कुक-सोंग के अनुसार, उत्तर कोरिया के पूर्व नेता किम जोंग-इल ने अस्सी के दशक में 'साइबर युद्ध की तैयारी के लिए' नए लोगों को प्रशिक्षित करने का आदेश दिया था.
वो बताते हैं, "मोरानबोंग यूनिवर्सिटी इसके लिए पूरे देश के सबसे प्रतिभाशाली छात्रों का चयन करती है और उन्हें छह साल की विशेष शिक्षा दी जाती है."
उत्तर कोरिया के जासूस
ब्रितानी खुफिया अधिकारियों का मानना है कि साल 2017 में सरकारी हेल्थ एजेंसी एनएचएस और दुनिया भर के तमाम संगठनों पर जो साइबर हमले हुए थे, उसके पूछे उत्तर कोरिया के लज़ारूस ग्रुप का हाथ था.
माना जाता है कि इसी समूह ने साल 2014 में सोनी पिक्चर्स को भी निशाना बनाया था.
किम कुक-सोंग बताते हैं कि "इस ग्रुप के दफ़्तर को 414, लायज़न ऑफ़िस के नाम से जाना जाता था. हम लोग इसे किम जोंग इल के सूचना विभाग के तौर पर देखते थे."
वो दावा करते हैं कि इस दफ़्तर से उत्तर कोरिया के नेता का सीधा टेलीफ़ोन संपर्क रहता है.
"लोग कहते हैं कि इसके एजेंटे चीन, रूस और दक्षिणपूर्व एशिया के देशों में हैं. लेकिन वे उत्तर कोरिया में भी सक्रिय रहते हैं. ये ऑफ़िस उत्तर कोरिया के जासूसों के आपसी कम्युनिकेशन नेटवर्क को भी सुरक्षा देता है."
डॉलर के बदले ड्रग्स
किम जोंग उन ने हाल ही ये घोषणा की थी कि उत्तर कोरिया एक बार फिर 'संकट' में है. अप्रैल में उन्होंने जनता से 'एक और अकाल' के लिए तैयार रहने की अपील की थी.
नब्बे के दशक में किम जोंग इल के दौर में उत्तर कोरिया एक भयानक अकाल से गुजर चुका है. उस वक्त किम कुक-सोंग उत्तर कोरिया के ऑपरेशन डिपार्टमेंट में कार्यरत थे. उन्हें सुप्रीम लीडर के लिए 'रिवॉल्यूशनरी फंड्स' जुटाने की जिम्मेदारी दी गई.
किम कुक-सोंग बताते हैं कि इसका मतलब नशीले पदार्थों की तस्करी था.
वो कहते हैं, "किम जोंग इल के जमाने में जब अकाल पड़ा तो नशीले पदार्थों का उत्पादन अपने चरम पर पहुंच गया था. उस वक़्त सुप्रीम लीडर के लिए ऑपरेशन डिपार्टमेंट के पास रिवॉल्यूशनरी फंड्स ख़त्म हो गए थे."
"जब मुझे ये जिम्मेदारी दी गई तो मैं विदेश से तीन लोगों को उत्तर कोरिया बुलाया. वर्कर्स पार्टी के लायज़न ऑफ़िस के ट्रेनिंग सेंटर में प्रोडक्शन का काम शुरू किया और वहां पर ड्रग्स तैयार किए गए. वो आईसीई (क्रिस्टल मेथ) था. हम इसे किम जोंग इल को देने के लिए डॉलर में बदल सकते थे."
ड्रग्स को लेकर किम कुक-सोंग जो कहानी बताते हैं, वो काफी हद तक सच्ची मालूम देती है. नशीले पदार्थों के उत्पादन का उत्तर कोरिया का अपना इतिहास रहा है. वो ज़्यादातर हेरोइन और अफ़ीम से डील करता रहा है.
ब्रिटेन में तैनात रहे उत्तर कोरिया के एक पूर्व डिप्लोमैट थाए योंग हो ने बाद में देश छोड़ दिया था. उन्होंने साल 2019 में ओस्लो फ्रीडम फोरम को बताया कि उनका देश सरकारी तौर पर नशीले पदार्थों की तस्करी में शामिल है. देश में बड़े पैमाने पर लोग इसके आदी हो चुके हैं और उत्तर कोरिया घरेलू मोर्चे पर इस चुनौती से जूझ रहा है.
ईरान-उत्तर कोरिया संबंध
मैंने किम कुक-सोंग से पूछा कि ड्रग से आने वाला पैसा कहां जाता था. क्या इसे जनता के लिए खर्च किया जाता था?
वो बताते हैं, "आपको ये बता दूं और इससे आपको समझने में मदद मिलेगी कि उत्तर कोरिया का सारा पैसा उत्तर कोरिया के नेता का है. इस पैसे से वो विला बनवाएं, कार खरीदें, खाने-पीने की चीज़ें खरीदें, कपड़े लें और तमाम तरह की विलासिता का आनंद ले सकते हैं."
माना जाता है कि नब्बे के दशक में उत्तर कोरिया में जो अकाल पड़ा था, उसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे. किम कुक-सोंग के अनुसार, आमदनी का दूसरा जरिया ईरान को हथियारों की अवैध बिक्री थी. इसका प्रबंधन ऑपरेशंस डिपार्टमेंट करता है.
वो कहते हैं, "वो ख़ास तरह की छोटी पनडुब्बियां और सेमी-सबमरीन थीं. उत्तर कोरिया ऐसे अत्याधुनिक उपकरणों को बनाने में बहुत बेहतर था."
ये उत्तर कोरिया का एक प्रोपेगैंडा हो सकता है क्योंकि उसकी पनडुब्बियां शोर करने वाली और डीजल इंजन से चलती हैं.
हालांकि किम कुक-सोंग का दावा है कि ये सौदे इतने कामयाब रहे थे कि ईरान में उत्तर कोरिया के डिप्टी डायरेक्टर कारोबार के लिए ईरानियों को अपने स्वीमिंग पूल में आने की दावत दिया करते थे.
उत्तर कोरिया मामलों के जानेमाने विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर एंद्रेई लांकोव के अनुसार, ईरान के साथ प्योंगयांग के हथियारों की खरीद-बिक्री अस्सी के दशक से ही दुनिया के सामने जाहिर रहे हैं. दोनों मुल्कों के बीच बैलिस्टिक मिसाइलों तक के सौदे हो चुके हैं.
संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी
सख़्त अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों के बावजूद उत्तर कोरिया ने व्यापक जनसंहार की क्षमता वाले हथियारों के विकास का अपना कार्यक्रम लंबे समय से जारी रखा हुआ है.
इसी साल के सितंबर महीने में उत्तर कोरिया ने नए तरह के चार हथियारों का परीक्षण किया जिसमें लंबी दूरी तक मार कर सकने में सक्षम क्रूज़ मिसाइल भी शामिल थी. इसमें चलती ट्रेन से दागी जा सकने वाली बैलिस्टिक मिसाइल, हाइपरसोनिक मिसाइल और एक एंटी एयरक्राफ़्ट मिसाइल शामिल थी.
उत्तर कोरियाई टेक्नॉलॉजी समय के साथ-साथ और परिष्कृत होती जा रही है.
किम कुक-सोंग बताते हैं कि उत्तर कोरिया ने अपने हथियार और टेक्नोलॉजी गृह युद्ध के जूझ रहे देशों को भी बेची हैं. हाल के सालों में संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर कोरिया पर सीरिया, म्यांमार, लीबिया और सूडान को हथियारों की आपूर्ति करने का आरोप लगाया है.
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी चेतावनी में कहा था कि उत्तर कोरिया के विकसित किए हथियार दुनिया के संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में परेशानी और बढ़ा सकते हैं.
'एक वफादार सेवक ने दिया धोखा'
किम कुक-सोंग ने उत्तर कोरिया में विशेष सुविधा संपन्न जीवन का मजा लिया. उनका दावा है कि किम जोंग-उन की आंटी ने उन्हें मर्सिडीज-बेंज कार के उपयोग की अनुमति दी थी.
उन्हें उत्तर कोरिया के नेता के लिए धन जुटाने को स्वतंत्र रूप से विदेश भ्रमण की अनुमति मिली थी. उन्होंने बताया कि किम ने दुर्लभ धातु और कोयले को बेचकर लाखों की नकदी जुटाई, जिसे एक सूटकेस में भरकर उत्तर कोरिया लाया जाता.
एक ऐसे गरीब मुल्क़ में जहां लाखों लोग खाने की तंगी से जूझ रहे हों, वहां ऐसे जीवन की कल्पना ही की जा सकती है. कोई ऐसा जीवन जी ले इसकी तो बात ही छोड़ दीजिए.वो कहते हैं कि शादी के जरिए बने किम के ताक़तवर राजनीतिक संबंधों ने उन्हें विभिन्न खुफ़िया एजेंसियों के बीच आने—जाने की इजाज़त दी. हालांकि उन्हीं संबंधों ने उन्हें और उनके परिवार को ख़तरे में भी डाल दिया.
साल 2011 में राजगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद किम जोंग-उन ने उन लोगों की सफ़ाई करने का फ़ैसला किया, जिन्हें वो और उनके अपने चाचा जंग सोंग-थाइक भी ख़तरे के रूप में देखते थे.
किम जोंग-इल की ख़राब सेहत के चलते लंबे समय तक जंग को उत्तर कोरिया के वास्तविक नेता के तौर पर देखा जाता था.किम कुक-सोंग के अनुसार, जंग सोंग-थाइक का नाम किम जोंग-उन की तुलना में अधिक लोकप्रिय हो गया था.वो कहते हैं, "उसी समय मुझे लगा कि जंग सोंग-थाइक लंबे समय तक टिक नहीं पाएंगे."
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