चीन की कोरोना वायरस वैक्सीन के बारे में कितना जानते हैं हम ?

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पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की एक दौड़ सी जारी है. इसमें चीन बड़ी बाज़ी मारते हुए दिख रहा है क्योंकि दंवा कंपनी साइनोवैक और साइनोफार्म की ओर से बनाई गई उसकी दो वैक्सीन ने काफ़ी नाम कमा लिया है.
लेकिन चीन की इन वैक्सीन के बारे में हम अब तक कितना जान पाए हैं और बाक़ी दुनिया में जो वैक्सीन अब तक बनी हैं, उससे इसकी तुलना कैसे की जा सकती है?
सिनोवैक वैक्सीन कैसे काम करती है?
बीजिंग की दवा निर्माता कंपनी साइनोवैक, कोरोनावैक नामक वैक्सीन का निर्माण कर रही है जो कि एक इनएक्टिवेटेड वैक्सीन है.
यह वायरस के कणों को मार देता है ताकि शरीर का इम्यून सिस्टम वायरस के ख़िलाफ़ काम करना शुरू करे, इसमें गंभीर बीमारी के असर का ख़तरा नहीं होता है.
पश्चिम में बनी मॉडर्ना और फ़ाइज़र वैक्सीन से अगर तुलना की जाए तो ये mRNA वैक्सीन हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि इनमें कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड के हिस्सों को शरीर में डाला जाता है जो कि शरीर में जाकर वायरल प्रोटीन को सक्रिय करते हैं. इसमें पूरा वायरस नहीं होता है सिर्फ़ उतना होता है जो कि प्रतिरक्षा तंत्र यानी इम्यून सिस्टम को हमले के लिए तैयार करता है.
नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर लुओ दहाई बीबीसी से कहते हैं, "कोरोनावैक में इस्तेमाल की गई प्रणाली एक पारंपरिक प्रक्रिया है जिन्हें सफलतापूर्वक रैबीज़ जैसी वैक्सीन में इस्तेमला किया जा चुका है."
वो कहते हैं, "mRNA वैक्सीन एक नई प्रकार की वैक्सीन है और एक बड़ी जनसंख्या पर इसके सफलतापूर्वक इस्तेमाल का उदाहरण अभी तक नहीं है."
अभी तक काग़ज़ों पर जो दावे किए गए हैं उसके तहत कोरोनावैक की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि इसे फ़्रिज के तापमान यानी 2 से 8 डिग्री सेल्सियस पर सुरक्षित रखा जा सकता है कि जैसा कि ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन के साथ है.
मॉडर्ना की वैक्सीन को -20 डिग्री सेल्सियस और फ़ाइज़र की वैक्सीन को -70 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर सुरक्षित रखना होता है.
इसका अर्थ यह हुआ कि साइनोवैक और ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन विकासशील राष्ट्रों के लिए ख़ासी महत्वपूर्ण हो सकती हैं क्योंकि वहां पर कम तापमान पर वैक्सीन सुरक्षित रखने का एक बड़ा तंत्र स्थापित करना संभव नहीं है.
यह कितनी असरदार है?
इस समय यह बता पाना बेहद मुश्किल है लेकिन साइंस जर्नल 'द लैंसेट' में छपे एक चीनी शोध के अनुसार, कोरोनावैक को लेकर चीन में पहले और दूसरे चरण के ट्रायल के बारे में ही जानकारी सार्वजनिक है.
इस शोध के एक लेखक सू फ़ांगसै कहते हैं कि पहले चरण में 144 लोगों पर और दूसरे चरण में 600 लोगों पर इसका ट्रायल हुआ जिसके परिणाम बताते हैं कि यह वैक्सीन 'आपातकालीन इस्तेमाल के लिए उचित है.'
कोरोनावैक का कई देशों में तीसरे चरण का ट्रायल जारी है. ट्रायल के आख़िरी स्तर के आए अंतरिम डाटा में तुर्की में इसे 91.25 फ़ीसदी और इंडोनेशिया में इसे 65.3 फ़ीसदी असरदायक पाया गया है.
ब्राज़ील के शोधकर्ताओं ने क्लीनिकल ट्रायल में इसे 78 फ़ीसदी असरदायक बताया था लेकिन जनवरी 2021 के आख़िर में डाटा में बदलाव करते हुए इसे 50.4 फ़ीसदी लोगों पर असरदायक बताया गया.

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चीन में साइनोवैक को जुलाई में उन लोगों पर आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दी गई थी जो अधिक ख़तरे में हैं.
प्रोफ़ेसर लुओ कहते हैं कि तीसरे चरण के ट्रायल के परिणामों से पहले वैक्सीन के असर के बारे में कोई टिप्पणी करना कठिन है क्योंकि इस समय 'सीमित जानकारी ही मौजूद है.'
वो कहते हैं, "शुरुआती आंकड़ों के आधार पर कोरोनावैक एक लाभदायक वैक्सीन नज़र आती है लेकिन हमें तीसरे चरण के ट्रायल के परिणामों का इंतज़ार करने की आवश्यकता है."
साइनोफार्म वैक्सीन कैसी है?
चीन की सरकारी कंपनी साइनोफार्म दो कोविड-19 वैक्सीन को विकसित करने पर काम कर रही है. यह वैक्सीन भी साइनोवैक की वैक्सीन की तर्ज़ पर बनाई जा रही है जो कि एक इनएक्टिवेटेड वैक्सीन है.
साइनोफ़ार्म ने 30 दिसंबर को अपनी तीसरे चरण के ट्रायल के डाटा की घोषणा करते हुए बताया कि यह 79 फ़ीसदी असरदार है जो कि फ़ाइज़र और मॉडर्ना की वैक्सीन की तुलना में कम असरदार है.
हालांकि, संयुक्त अरब अमीरात ने इस महीने की शुरुआत में साइनोफार्म वैक्सीन के इस्तेमाल की अनुमति दे दी थी और इसे तीसरे चरण के ट्रायल के अंतरिम परिणामों के आधार पर 86 फ़ीसदी असरदार बताया था.

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रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी की एक प्रवक्ता ने विसंगतियों के आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा था कि वो जल्दी ही इसके परिणाम जारी करेंगे.
लेकिन तीसरे चरण के ट्रायल के परिणामों से काफ़ी पहले चीन ने आपातकालीन कार्यक्रम के तहत तक़रीबन 10 लाख लोगों को यह वैक्सीन बांट दी थी.
नैशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर के प्रोफ़ेसर डेल फ़िशर कहते हैं कि वैक्सीन के आख़िरी चरण के ट्रायल के बिना एक वैक्सीन कार्यक्रम को शुरू करना 'अपरंपरागत' है.
उन्होंने सीएनबीसी न्यूज़ वेबसाइट से कहा, "आपातकालीन इस्तेमाल के लिए वैक्सीन कार्यक्रम को शुरू करने से पहले तीसरे चरण के ट्रायल के विश्लेषण की प्रतीक्षा करना सामान्य बात है."
दिसंबर में पेरू ने एक वॉलंटियर में 'गंभीर प्रतीकूल असर' देखने के बाद साइनोफार्म वैक्सीन के ट्रायल को रद्द कर दिया था. हालांकि, बाद में घोषणा की गई कि उसने निलंबन को रद्द कर दिया है.
क्लीनिकल ट्रायल को बीच में रोकना कोई असामान्य बात नहीं है. सितंबर में ब्रिटेन ने एक प्रतिभागी में प्रतिकूल असर पाए जाने के बाद एक अन्य कोविड-19 की वैक्सीन के ट्रायल को रोक दिया था. हालांकि, बाद में इसके कारणों का पता लगाने के बाद ट्रायल शुरू कर दिया गया था.
और कितनी वैक्सीन पर चल रहा है काम?
द कन्वर्सेशन में छपे लेख के अनुसार, चीन में कम से कम दो अन्य कोविड-19 वैक्सीन पर काम जारी है.
इनमें से एक केनसिनो बायोलॉजिक्स है जिसका कथित तौर पर सऊदी अरब समेत कुछ देशों में तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है.
एक अन्य वैक्सीन को अनहुई चूफ़े लॉन्गकॉम बना रही है. इस वैक्सीन में वायरस के एक प्यूरिफ़ाइड पीस का इस्तेमाल होता है जो इम्यून सिस्टम को जगाता है और हालिया रिपोर्ट के अनुसार इसके तीसरे चरण का ट्रायल जारी है.
चीन से कौन देश वैक्सीन ले रहे हैं?
सिंगापुर, मलेशिया और फ़िलीपींस जैसे कई एशियाई देशों ने साइनोवैक के साथ समझौता किया है और जनवरी 2021 में इंडोनेशिया ने इसी वैक्सीन का बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया है.
तुर्की ने भी साइनोवैक वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दे दी है. यह कंपनी ब्राज़ील और चिली के साथ भी समझौता कर चुकी है.
संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने साइनोफार्म वैक्सीन को अनुमति दे दी है.
चीन की वैक्सीन किस तरह से दी जाएगी?
साइनोवैक के चैयरमेन ने सरकारी न्यूज़ चैनल सीजीटीएन से कहा था कि उसके 20,000 स्क्वेयर मीटर के नए प्रोडक्शन प्लांट के कारण वह हर साल 30 करोड़ वैक्सीन की डोज़ देने में सक्षम हैं.
बाक़ी वैक्सीनों की तरह इस वैक्सीन की भी दो डोज़ दी जाएगी. इसका अर्थ यह हुआ कि यह अभी सिर्फ़ 15 करोड़ लोगों के लिए ही काफ़ी होगी जो कि चीन की कुल आबादी का 10वां हिस्सा है.
इसी के साथ ही विश्लेषक वैक्सीन को चीन की कूटनीतिक दौड़ के लिए भी अहम मान रहे हैं क्योंकि कथित तौर पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वादा किया है कि वो अफ़्रीका महाद्वीप के लिए इसके लिए दो अरब डॉलर देंगे. साथ ही लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों को वैक्सीन ख़रीदने के लिए एक अरब डॉलर का क़र्ज़ देने की योजना है. हालांकि, यह सौदा किन शर्तों पर होगा यह अभी साफ़ नहीं है.
विश्लेषक जैकब मार्डेल एबीसी न्यूज़ से कहते हैं, "बीजिंग जीवन रक्षक तकनीक के ज़रिए वाणिज्यिक और कूटनीतिक लाभ ज़रूर उठाएगा."
यह अभी साफ़ नहीं है कि इस वैक्सीन की क्या लागत आएगी लेकिन इस साल की शुरुआत में बीबीसी की टीम ने चीनी शहर ईवू में देखा था कि नर्स 400 युआन (लगभग 60 डॉलर) की फ़ीस पर इंजेक्शन लोगों को दे रही थीं.
इंडोनेशिया की सरकारी कंपनी बायोफार्मा ने कहा है कि वैक्सीन की स्थानीय क़ीमत दो लाख रुपये (लगभग 13.60 डॉलर) होगी.
यह ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन से काफ़ी महंगी हैं जिसकी एक डोज़ 4 डॉलर की है. हालांकि, मॉडर्ना की एक डोज़ 33 डॉलर की है.
मॉडर्ना ने कहा है कि उसका लक्ष्य 2021 में 50 करोड़ डोज़ बनाने का है और एस्ट्राज़ेनेका ने कहा है कि वह 2021 की पहली तिमाही में 70 करोड़ डोज़ बनाएगी.
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