मलेशिया ने ख़ुद को संकट में घिरते देख पाम तेल को ख़ुदा से जोड़ा

पाम तेल

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दुनिया भर में पाम ऑयल के इस्तेमाल के ख़िलाफ़ हो रही लामबंदी को देखते हुए मलेशिया ने एक नया नारा दिया है, 'पाम ऑयल ख़ुदा का तोहफ़ा है.'

मलेशिया दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पाम तेल उत्पादक और निर्यातक देश है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ मलेशिया के एक सरकारी अधिकारी ने मंगलवार को बताया कि पर्यावरण पर पाम तेल के नकारात्मक असर की चौतरफ़ा हो रही आलोचना को देखते हुए उनका देश अब इस नारे का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्तेमाल करेगा. पिछले हफ़्ते ही मलेशिया ने राष्ट्रीय स्तर पर इस स्लोगन की शुरुआत की थी.

देश के बाग़बानी उद्योग और कमोडिटी मामलों के उपमंत्री विली मॉन्गिन ने मंगलवार को संसद में बताया था, "सरकार इस नारे का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार करने के लिए प्रतिबद्ध है."

पाम तेल को जादुई फ़सल कहा जा सकता है- यह आसानी से उगती है, तेज़ी से बढ़ती है, इससे कई उत्पाद निकलते हैं

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'लव माई पाम ऑयल'

'पाम ऑयल ख़ुदा का तोहफ़ा है' के स्लोगन से पहले मलेशिया में इसके प्रचार के लिए पिछले साल 'लव माई पाम ऑयल' का नारा दिया गया था.

अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं के बीच इस नारे का मक़सद था कि मलेशिया के पाम तेल को लेकर नागरिकों के मन में गर्व का भाव मज़बूत हो.

दुनिया भर में होने वाले पाम ऑयल के कुल उत्पादन का 28 फ़ीसद मलेशिया में तैयार होता है. पाम ऑयल के ग्लोबल मार्केट में मलेशिया की हिस्सेदारी 33 फ़ीसद है.

यूरोपीय संघ पाम ऑयल का बड़ा ख़रीदार है और वहां इस तेल के ख़िलाफ़ एक लॉबी सक्रिय हो रही है. मलेशिया की कोशिश इस मुहिम को नाकाम करने की है.

पिछले साल यूरोपीय संघ ने फ़ैसला किया था कि साल 2030 तक ग़ैर-परंपरागत ऊर्जा क्षेत्र में ट्रांसपोर्ट फ़्यूल के तौर पर पाम ऑयल के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीक़े से ख़त्म किया जाएगा.

यूरोपीय संघ की पाबंदी

यूरोपीय संघ में रिफ़ाइंड वनस्पति तेल जिसमें पाम ऑयल भी शामिल है, के लिए अलग से खाद्य सुरक्षा मापदंड लागू किए जाने की भी संभावना है.

पाम ऑयल दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाले वनस्पति तेलों में से एक है जिसका इस्तेमाल बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां खाने-पीने की चीज़ों से लेकर लिपस्टिक और डिटरजेंट बनाने में करती हैं.

पर्यावरण समूहों का कहना है कि पाम की खेती के लिए जंगलों की बड़े पैमाने पर कटाई हो रही है और अस्तित्व के संकट से जूझ रहे जानवरों के मारे जाने का ख़तरा पैदा हो गया है.

दुनिया के सबसे बड़े पाम ऑयल उत्पादक और निर्यातक देश इंडोनेशिया की तरह मलेशिया भी विश्व व्यापार संगठन में पाम ऑयल से तैयार होने वाले बॉयो फ़्यूल पर पाबंदी लगाने के मुद्दे पर यूरोपीय संघ के ख़िलाफ़ केस फ़ाइल करने की तैयारी कर रहा है.

पाम ऑयल मलेशिया का चौथा प्रमुख एक्सपोर्ट प्रोडक्ट है. मलेशिया में पाम उद्योग 60 अरब डॉलर के बराबर है.

पाम तेल

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पाम तेल का इस्तेमाल

पाम तेल रोज़ाना की ज़रूरतों में शामिल हो चुका है. हो सकता है आज आपने शैंपू में इसका इस्तेमाल किया हो या फिर नहाने के साबुन में. टूथपेस्ट में या फिर विटामिन की गोलियों और मेकअप के सामान में. किसी न किसी तरह आपने पाम तेल का इस्तेमाल ज़रूर किया होगा.

जिन वाहनों में आप सफ़र करते हैं, वो बस, ट्रेन या कार जिस तेल से चलती हैं, उनमें पाम तेल भी होता है. डीज़ल और पेट्रोल में बायोफ्यूल के अंश शामिल होते हैं जो मुख्य तौर पर पाम तेल से ही मिलते हैं. यही नहीं, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जिस बिजली से चलते हैं, उसे बनाने के लिए भी ताड़ की गुठली से बने तेल को जलाया जाता है.

ये दुनिया का सबसे लोकप्रिय वेजिटेबल तेल है और रोज़मर्रा में इस्तेमाल होने वाले कम से कम 50 फ़ीसद उत्पादों में मौजूद होता है. साथ ही औद्योगिक प्रयोगों में भी इसका इस्तेमाल अहम है.

वैश्विक उत्पादन

साल 2018 में किसानों ने वैश्विक बाज़ार के लिए क़रीब 7.70 करोड़ टन पाम तेल का उत्पादन किया और साल 2024 तक इसके 10.76 करोड़ टन तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है.

लेकिन पाम तेल की बढ़ती माँग और इसके लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाने की वजह से इंडोनेशिया और मलेशिया में जंगलों को लगातार ख़त्म किए जाने के आरोप भी लगते रहे हैं. यही नहीं जंगलों के ख़त्म होने से यहां के मूल जंगली जीव जैसे ओरंगुटान भी प्रभावित हो रहे हैं और कई अन्य प्रजातियां भी संकट में हैं.

सिर्फ़ इंडोनेशिया और मलेशिया में ही क़रीब 1.3 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन पर तेल के लिए पाम के पेड़ लगाए गए हैं, जो दुनिया भर के आधे पाम के पेड़ हैं.

ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के मुताबिक़ सिर्फ़ इंडोनेशिया में 2001 से 2018 के बीच 2.56 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन से पेड़ काटे गए. ये इलाक़ा न्यूज़ीलैंड के बराबर है.

पाम तेल के लिए जंगल काट दिए गए

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इसी वजह से सरकार और उद्योगपति भी पाम तेल के विकल्प तलाशने के दबाव में हैं. लेकिन इस जादुई उत्पाद का विकल्प खोजना आसान नहीं है. ब्रिटिश सुपरमार्केट चेन आइसलैंड को साल 2018 में तब सराहना मिली, जब उसने घोषणा की थी कि वो अपने प्रोडक्ट से पाम तेल को हटाएगा.

हालांकि, कुछ उत्पादों से पाम तेल को हटाना इतना मुश्किल रहा कि कंपनी ने उन पर अपना ब्रैंड नाम भी नहीं लिखा. अमरीका में पाम तेल की बड़ी ख़रीदार और नामी फ़ूड कंपनी जनरल मिल्स को भी इसी मुश्किल से गुज़रना पड़ा.

ईंधन में पाम तेल का इस्तेमाल बड़ा मुद्दा है

जनरल मिल्स के प्रवक्ता मॉली वुल्फ़ कहते हैं, "हमने पहले भी इस दिशा में ध्यान दिया है, लेकिन पाम ऑयल में कुछ ख़ास तत्व होने की वजह से इसकी नक़ल करना मुश्किल होता है."

ईंधन के तौर पर पाम तेल का इस्तेमाल भी एक बड़ा मुद्दा है. रसोई घर से लेकर बाथरूम तक इस मौजूदगी के बावजूद 2017 में यूरोपियन यूनियन द्वारा आयात किया गया आधा तेल ईंधन के लिए इस्तेमाल किया गया था.

हालांकि, 2019 में यूरोपियन यूनियन ने ऐलान किया था कि पाम ऑयल और अन्य खाद्य फ़सलों से निकलने वाले बायोफ्यूल का इस्तेमाल बंद किया जाएगा क्योंकि इसके उत्पादन से पर्यावरण को नुक़सान हो रहा है.

पाम तेल की कटाई

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पाम ऑयल की ख़ूबियां

रोज़मर्रा की ज़िंदगी में पाम तेल के इतने इस्तेमाल के पीछे इसकी ख़ास केमिस्ट्री है.

पश्चिमी अफ़्रीका में बीजों से निकलने वाला पाम तेल पीला और गंधहीन होता है, जो खाने में इस्तेमाल के लिए दुरुस्त है.

पाम तेल का मेल्टिंग पॉइंट अधिक है और इसमें सैचुरेटेड फ़ैट भी ज़्यादा होता है. इसी वजह से यह खाते समय मुंह में घुलता है और मिठाई वग़ैरह बनाने के लिए मुफ़ीद है.

कई अन्य वनस्पति तेलों को कुछ हद तक हाइड्रोजनेटेड करने की ज़रूरत पड़ती है. हाइड्रोजनेशन वो प्रक्रिया है, जिसमें तरल फ़ैट में हाइड्रोजन मिलाकर उसे ठोस फ़ैट बनाया जाता है.

रफाल

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इस प्रक्रिया में फ़ैट में हाइड्रोजन अणुओं को रसायनिक तरीक़े से मिलाया जाता है, जिससे स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंचाने वाला ट्रांस-फ़ैट तैयार होता है.

अपनी ख़ास केमिस्ट्री की वजह से पाम तेल अधिक तापमान पर भी बच जाता है और ख़राब नहीं होता है. पाम तेल से बनाए गए उत्पाद भी ज़्यादा दिनों तक चलते हैं.

पाम तेल और इसकी प्रॉसेसिंग के बाद बचे गूदे, दोनों को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.

पाम के छिलकों को पीसकर कंक्रीट बनाया जा सकता है. पाम फाइबर और गूदा जलने के बाद बची राख को सीमेंट के तौर पर उपयोग किया जा सकता है.

ख़राब मिट्टी और ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में भी पाम के पेड़ आसानी से उगाए जा सकते हैं और ये किसानों के लिए फ़ायदे का सौदा है.

इसी से पता चलता है कि पिछले कुछ बरसों में पाम के पेड़ उगाए जाने वाला इलाक़ा इतना कैसे बढ़ गया है.

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