डोनल्ड ट्रंप इसलिए करते हैं मीडिया पर हमला

डोनल्ड ट्रंप

इमेज स्रोत, Reuters

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने पिछले साल जब पहली बार मीडिया को 'लोगों का दुश्मन' कहा था तो इस बात को लेकर काफ़ी नाराज़गी देखने को मिली थी.

यहां तक कि रिपब्लिकन सिनेटर जेफ़ फ़्लेक ने कहा कि ये स्वतंत्र मीडिया पर राष्ट्रपति के अप्रत्याशित और बेबुनियाद हमले का एक उदाहरण है.

लेकिन जब ट्रंप ने दूसरी, तीसरी और चौथी बार भी यही बात कही तो कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं देखने को मिली.

यही इस राष्ट्रपति का कमाल है कि वे किसी विवादास्पद क़दम या विचार को 'नया सामान्य' बना देने की योग्यता रखते हैं.

हालांकि अब उनके ऐसे वक्त्वयों से सुर्खियां ना भी बनती हों पर पत्रकार तब भी नोटिस करते हैं. जब कुछ हफ़्ते पहले मैरीलैंड के एक अख़बार 'द कैपीटल' के न्यूज़रूम में गोलीबारी हुई तो एक बार फिर से ज़ाहिर हुआ कि एक स्थिर लोकतंत्र में भी, राष्ट्रपति के भड़कावे के कारण या उसके बिना भी, इस पेशे के क्या ख़तरे होते हैं.

द कैपीटल अख़बार

इमेज स्रोत, CAPITAL GAZETTE

न्यू यॉर्क टाइम्स के प्रकाशक एजी सल्ज़बर्गर ने नौ दिन पहले राष्ट्रपति ट्रंप से गुप्त मुलाक़ात की थी. इस मुलाक़ात में उन्होंने स्पष्ट रूप से यही मुद्दा उठाया था.

हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप ने उनके संदेश को शायद नहीं समझा. रविवार सुबह किए गए एक ट्वीट में राष्ट्रपति ट्रंप ने फिर दोहराया कि ये मीडिया की ही कमी है कि उन्हें 'मीडिया को जनता का दुश्मन' कहना पड़ा.

ट्रंप के लिए, अगर ये भाषा समस्या है तो इसका हल खोजना मीडिया का काम है, ट्रंप का नहीं.

लेकिन विडंबना ही है कि ट्रंप रूस के कथित हस्तक्षेप पर रॉबर्ट म्यूलर की जांच को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स की अज्ञात सूत्रे के हवाले से प्रकिशित रिपोर्टों का ज़िक्र भी करते हैं.

डोनल्ड ट्रंप

इमेज स्रोत, donald trump/twitter

शुक्रवार को उन्होंने विशेष अधिवक्ता के अपने ट्वीट पर नज़र रखने के बारे में लिखा. ये जानकारी उन्हें टाइम्स के लेख से मिली थी.

लेकिन जब टाइम्स उनके प्रशासन के बारे में ऐसे ही सूत्रों के हवाले से ख़बर लिखता है तो वो उन्हें फ़ेक न्यूज़ लगती हैं. और यही इस पूरे मुद्दे की जड़ है.

राष्ट्रपति अपने लिए तो सकारात्मक न्यूज़ कवरेज चाहते हैं और अपने विरोधियों के लिए आलोचनात्मक. 'फ़ेक न्यूज़', 'लोगों का दुश्मन' और मीडिया को कोसना, उनका इस लक्ष्य तक पहुंचने का रास्ता है.

डोनल्ड ट्रंप

इमेज स्रोत, Getty Images

खेल में इस रणनीति को रेफ़री को अपने पाले में करना कहा जाता है. यही उपाय राजनीति में भी होता है लेकिन यहां दांव पर बहुत कुछ है.

यहां ट्रंप सिर्फ़ रेफ़री के फ़ैसलों को अपने पक्ष में नहीं करना चाहते ब्लकि उनका उद्देश्य रेफ़री की विश्वसनीयता को पूरी तरह ख़त्म कर देना है. और ये रणनीति काम भी कर रही है, कम से कम राष्ट्रपति के सबसे वफ़ादार समर्थकों के बीच में तो ज़रूर.

हालिया सीबीएस न्यूज़ वोटिंग में ट्रंप के 91 फ़ीसदी मज़बूत समर्थकों का कहना था कि सही जानकारी के लिए वे ट्रंप पर भरोसा करते हैं.

सिर्फ़ 11 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि वे मीडिया पर भरोसा करते हैं जबकि 63% लोगों ने कहा कि सही जानकारी के लिए वे अपने परिवार और दोस्तों पर भरोसा करते हैं.

डोनल्ड ट्रंप

इमेज स्रोत, Getty Images

राष्ट्रपति के मीडिया के साथ वाक्-युद्ध ने उनके लिए समर्थन की नींव तो बना ही दी है जिस पर किसी नकारात्मक ख़बर का प्रभाव नहीं पड़ता है.

लेकिन सवाल ये है कि क्या ये समर्थन आने वाले मध्यावधि चुनावों तक बना रहेगा और 2020 के चुनावों में उन्हें फिर से जीत दिलाएगा.

कम से कम उनके लिए ये एक अच्छी शुरूआत है और इसी वजह से एजी सल्ज़बर्गर की चेतावनी के बावजूद राष्ट्रपति ट्रंप शायद अपनी रणनीति पर बने रहेंगें.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)