मेक्सिको चुनावः ट्रंप का सामना करने के लिए कौन बनेगा राष्ट्रपति

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मेक्सिको में रविवार को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं, साल 1929 से हर 6 साल में मेक्सिको में राष्ट्रपति चुनाव होते हैं. हालांकि अभी तक हुए सभी चुनावों में देश के दोनों प्रमुख दल पीएएन और पीआरआई की तरफ से सिर्फ पुरुष उम्मीदवार ही जीते हैं.
लेकिन इस बार मेक्सिको के ये राष्ट्रपति चुनाव कई मायनों में बेहद ख़ास हैं, आपको बतातें हैं ऐसी कुछ अहम वजह.
1. मेक्सिको के इतिहास में सबसे बड़े चुनाव
इस बार मेक्सिको में वोट डालने वाले लोगों की संख्या लगभग 9 करोड़ है. वहीं चुनाव में अपना-अपना दांव लगाने वाले उम्मीदवार भी कई हैं.
सबसे ज़्यादा नज़रें रहेंगी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों पर. मेक्सिको के राष्ट्रीय चुनाव संस्थान के मुताबिक कुल 1800 पदों के लिए चुनाव करवाए जा रहे हैं.
कांग्रेस में निचले सदन और सीनेट सभी सीटों के लिए चुनाव करवाए जा रहे हैं. वहीं मेक्सिको के 30 राज्यों में राज्य कांग्रेस और मेयर के पदों पर भी चुनाव हो रहे हैं.

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इतना ही नहीं मेक्सिको सिटी के आठ राज्यों में रहने वाले नागरिक गवर्नर पद के लिए भी मतदान करेंगे.
तो कहा जा सकता है कि चाहे कोई भी दल जीते, कम से कम संघीय, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर की सरकारों में बदलाव तो ज़रूर आएगा.
अभी सत्ता पर काबिज़ पीआरआई पार्टी की तरफ से जोस एनटोनियो राष्ट्रपति उम्मीदवार हैं.

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2. मेक्सिको एक बड़े बदलाव के लिए तैयार
साल 1929 में जब इंस्टिट्यूशनल रेवोल्यूशनरी पार्टी (पीआरआई) की स्थापना हुई, तभी से इस दल ने अधिकतर समय तक मेक्सिको की राजनीति पर राज किया. 1929 से लेकर 2000 तक कुल 71 साल इसी पार्टी के उम्मीदवार राष्ट्रपति बनते रहे.
साल 2000 में इस सिलसिले को रूढ़िवादी दल नेशनल एक्शन पार्टी (पैन) ने तोड़ा, और फिर यह दल अगले 12 साल तक सत्ता में रहा. पहले विसेंट फॉक्स और उसके बाद फिलिप कैल्ड्रोन राष्ट्रपति बने.
इन्ही 12 सालों के दौरान मेक्सिको की सरकार ने ड्रग्स के ख़िलाफ़ अभियान की शुरुआत की.
लेकिन मेक्सिको के पूरे इतिहास में पहली बार लग रहा है कि साल 2018 के चुनाव में पीआरआई और पीएएन से अलग कोई अन्य उम्मीदवार जीत दर्ज़ कर सकता है.
इस उम्मीदवार का नाम आंद्रेस मेनुएल लोपेज़ ओब्राडर है. 64 वर्षीय आंद्रेस वामपंथी नेता हैं, जिनका कहना है कि वे मेक्सिको की राजनीति में क्रांति ले आएंगे.
अगर वे इन चुनावों में जीत दर्ज करते हैं तो मेक्सिको की राजनीति में यह किसी बड़े भूकंप जैसा होगा, क्योंकि मौजूदा वक्त में मेक्सिको में जितने भी वोटर हैं उन्होंने कभी भी पीआरआई या पीएएन से अलग किसी दूसरे दल के राष्ट्रपति का शासन नहीं देखा.

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3. मेक्सिको के लिए ख़ास
रूस में चल रहे फ़ुटबॉल विश्वकप में जब मेक्सिको की टीम ने अपने पहले ही मैच में जर्मनी के ख़िलाफ़ शानदार खेल दिखाया तो पूरी दुनिया ने मेक्सिको के प्रशंसकों का जश्न देखा.
लैटिन अमरीका में मेक्सिको दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और तेल का एक बड़ा निर्यातक भी है. लेकिन लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार और देश भर में हुई हिंसा ने मेक्सिको की अर्थव्यवस्था को अच्छा-खासा नुक़सान पहुंचाया है.
देश की विकास दर धीमी पड़ गई है और यही वजह है कि मेक्सिको की जनता में राष्ट्रपति पेना नीतो के प्रति गुस्सा है.
इसके अलावा मेक्सिको दो वजहों से अंतरराष्ट्रीय खबरों में भी छाया रहा, पहली वजह नॉर्थ अमरीकन फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट (नाफ़्टा) और दूसरी वजह प्रवासन का मुद्दा रहा. ये दोनों ही मुद्दे अमरीका से जुड़े हुए हैं.

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4. ट्रंप के निशाने पर रहने वाला देश
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की मेक्सिको के ख़िलाफ़ नीति पूरी दुनिया के सामने पहले से ही जाहिर है.
ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान कहा था कि मेक्सिको के लोग सीमा पार कर अमरीका में घुस आते हैं और अपने साथ ड्रग्स भी लाते हैं. साथ ही उन्होंने मेक्सिको के इन लोगों को अपराधी और रेपिस्ट भी कहा था.
ट्रंप अमरीका और मेक्सिको की सीमा पर दीवार भी बनवा रहे हैं, जिसकी कीमत वे मेक्सिको से ही अदा करवाना चाहते हैं.
हाल ही में ट्रंप ने प्रवासन मुद्दे पर मेक्सिको की आलोचना की है. उन्होंने कहा है कि मेक्सिको मध्य अमरीका के प्रवासियों को अमरीका में प्रवेश करने से रोकने के लिए उचित कदम नहीं उठा रहा है.
देखना होगा कि मेक्सिको का नया राष्ट्रपति अमरीकी राष्ट्रपति से किस तरह निपटेंगे साथ ही नाफ़्टा और सीमा पर बनने वाली दीवार पर भी मेक्सिको और अमरीका के आगामी रिश्ते किस तरह टिके रहेंगे.

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राष्ट्रपति पद के लिए खड़े उम्मीदवारों में अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की सबसे ज़्यादा आलोचना वामपंथी नेता आंद्रेस मेनुएल लोपेज़ ओब्रेडर ने की है, वे एम्लो नाम से भी जाने जाते हैं.
कई विश्लेषक मानते हैं ट्रंप के ख़िलाफ़ एम्लो की नीति ही उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में जीत दिला सकती है.
लेकिन ऐसा नहीं है कि बाकी उम्मीदवार इस मामले में पीछे हैं. प्रवासियों के बच्चों को उनके माता-पिता से अलग रखने की ट्रंप की नीति की आलोचना के मामले में सबसे अधिक आलोचना रूढ़िवादी उम्मीदवार रिकार्डो अनाया ने की है. उन्होंने कहा है कि ट्रंप की यह नीति उन्हें दूसरे विश्वयुद्ध में नाज़ियों की नीति की याद दिलाती है.
वहीं अभी सत्ता पर काबिज़ दल के उम्मीदवार जोस एनटोनियो मीडे ने ट्रंप की तरफ से हाल ही में मेक्सिको के स्टील पर बढ़ाए गए कर की आलोचना की है.
अपने एक ट्वीट में उन्होंने कहा, ''मेक्सिको के साथ मत खेलिए. हम अपनी नौकरियां, बाज़ार और कामगारों को बचा लेंगे.''

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5. विनाशक साल
मेक्सिको में बीता साल ज़बरदस्त हिंसा से भरा रहा. अलग-अलग वजहों से हुई हिंसा मे लगभग 25 हज़ार लोगों की मौत सरकारी आंकड़ों में दर्ज़ हुई है.
इस हिंसा की आग से राजनेता भी बच नहीं पाए. सितंबर में जब उम्मीदवारों का नामांकन शुरू हुआ तब से लेकर 28 जून को चुनाव प्रचार के समाप्त होने तक कुल 133 राजनेताओं की हत्या हो चुकी है.
मरने वाले नेताओं में अधिकतर स्थानीय पदों पर खड़े उम्मीदवार हैं. साथ ही उन इलाकों में प्रचार करने वाले नेताओं की भी हत्या हुई है जहां ड्रग्स बेचने वाले समूह अधिक सक्रिय हैं.
वोट डालने से पहले अधिकतर मतदाताओं का कहना है कि वे हिंसा के इस दौर पर रोक चाहते हैं. लेकिन इस पर लगाम कैसे लगाई जाए यह चुनौती मेक्सिको के अगले राष्ट्रपति के सामने ज़रूर खड़ी रहेगी, जो 1 दिसंबर को अपने पद की शपथ लेंगे.
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