इन 'बाघों' से हाथी कैसे डरेंगे?

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- Author, इमरान क़ुरैशी
- पदनाम, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
तमिलनाडु के कृष्णागिरि ज़िले में एक किसान को अपनी दो एकड़ ज़मीन में टमाटर की फसल बर्बाद होने का अफ़सोस तो है ही, उन्हें दुख इस बात का भी है कि उनका 'बाघ' नहीं रहा.
फसल की बर्बादी मतवाले हाथियों ने की थी. रही बात 'बाघ' की तो उन पर फसल की रखवाली का जिम्मा था.
दरअसल, इस इलाक़े में किसानों ने कपड़े से बाघ के पुतले तैयार किए थे और इन्हें खेतों में रखा था.
इमरान कुरैशी की रिपोर्ट

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कृष्णागिरि ज़िले के किसानों ने सनमायु जंगलों से आने वाले हाथियों के झुंड से अपनी फसल को बचाने के लिए इस तरह के 'बाघों' को ख़ास जगहों पर लगाया था.
सनमायु के जंगल कर्नाटक के बन्नेरघट्टा से शुरू होकर आंध्र प्रदेश तक फैले हैं.
बीजरेपल्ली के किसान रामाकृष्णा बीबीसी हिंदी से बुझी हुई आवाज़ में कहते हैं, "शुरुआत में हमने इस तरह के 'बाघ' हाथियों को रोकने के लिए रखे थे, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ."
'हाथियों का तांडव'

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उन्होंने बताया, "फिर भी हमने बंदरों से बचाव के लिए इन 'बाघों' को लगाए रखा. लेकिन दस दिन पहले हाथियों के एक झुंड ने उत्पात मचा दिया और मेरे 'बाघ' की शक्ल बिगड़ गई."
होसुर तालुक के किसान 'हाथियों के तांडव' का पिछले पांच-छह सालों से सामना कर रहे हैं. पटाखे फोड़कर हाथियों को भगाने की उनकी कोशिशों का बस यही नतीजा निकला कि इससे वे और अधिक भड़क गए.
बीएम सुरेश इसी इलाक़े में सब्जियां उगाते हैं. उनका कहना है, "हाथियों के लौटने के बाद बस तबाही के निशान रह जाते हैं. और अगर वे बदला लेने पर उतारु हो जाएं तो बोरवेल पम्प और सिंचाई के पाइपों को तहस-नहस कर डालते हैं."
इलाके में विनाश

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इन 'बाघों' से हाथियों पर तो कोई असर नहीं पड़ रहा, लेकिन बंदरों को रोकने में ये बेहद कारगर साबित हो रहे हैं.
किसान शिव कुमार कहते हैं, "मैंने नारियल के पेड़ों के पास 'बाघ' को इस तरह से रखा था कि वह ठीक से दिखाई दे. मैंने उस 'बाघ' को होसुर शहर के बाज़ार में 1100 रुपये में ख़रीदा था. इसी 'बाघ' की वजह से मैंने इस सीज़न में 1000 नारियल बचाए."
शिव कुमार बड़े गर्व से कहते हैं कि उनकी तस्वीर उनके 'बाघ' के साथ ली जानी चाहिए.
मतवाले हाथियों ने सनमायु के संरक्षित जंगलों से लगे होसुर और डेंकानिकोट्टई के पूरे इलाक़े में तबाही मचा रखी है.
ठोस कदम

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किसानों के संगठन तमिलागा विवसाविगल संगम के महासचिव केएम रामागौंडर कहते हैं, "पांच एकड़ में फैले गन्ने की 11 महीने की खड़ी फसल को उन्होंने 24 घंटे में तहस-नहस कर दिया."
रामागौंडर कहते हैं, "अकेले होसुर तालुका में हर साल 3000 एकड़ ज़मीन पर खड़ी फसल बर्बाद होती है. डेंकानिकोट्टई में यह रकबा 2000 एकड़ के करीब है."
कृष्णागिरि में इस मुद्दे पर कोई भी सरकारी अधिकारी बात करने के लिए तैयार नहीं था. रामागौंडर कहते हैं, "हाथियों के सभी झुंड कर्नाटक के बन्नेरघट्टा से आते हैं और उनके उत्पात को रोकने के लिए सरकार ने कोई ठोस क़दम नहीं उठाए हैं."
नाटकीय बदलाव

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कर्नाटक के वन विभाग से जुड़े चीफ़ वाइल्ड लाइफ़ वार्डन विनय लूथरा कहते हैं, "हाथी अपने गलियारे से गुजरते हैं. उनके लिए राज्य की सीमा जैसी कोई बात नहीं होती. आदमी और जानवर का संघर्ष इसलिए हो रहा है कि क्योंकि ज़मीनी ढांचे में बदलाव हो रहे हैं."
उदाहरण के लिए लूथरा बताते हैं कि बन्नेरघट्टा से हाथी कर्नाटक के तुमाकुरु की ओर कूच करते हैं. इस सफर में वे 80 किलोमीटर की अच्छी खासी दूरी तय करते हैं. और इसकी वजह उस इलाक़े में अधिक पानी होना है.

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लूथरा कहते हैं, "और चूंकि वहां पानी है, किसान वहां बहुफसली खेती कर रहे हैं. खेती का दायरा बढ़ रहा है और यह हाथियों के रास्ते में आ रहा है."
इन मुद्दों पर बात करने के लिए तीनों राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के अधिकारियों की एक बैठक 20 नवंबर को होनी है.
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