नई जमीन की तलाश में कहां जा रहे हैं नक्सली?

    • Author, फ़ैसल मोहम्मद अली
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

क्या शनिवार को कांग्रेसी नेताओं के काफ़िले पर हुए हमले को <link type="page"><caption> माओवादियों</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/05/130526_police_odisha_sm.shtml" platform="highweb"/></link> की रणनीति में बदलाव के तौर पर देखा जाना चाहिए?

या ये उनकी हिंसक गतिविधियों का एक नया पड़ाव है? या फिर उनके <link type="page"><caption> आंदोलन</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/05/130526_chattisgarh_naxal_attack_vinod_sk.shtml" platform="highweb"/></link> का महज़ एक और अध्याय?

इस सवाल पर <link type="page"><caption> विशेषज्ञों</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/05/130526_pm_sonia_raipur_ar.shtml" platform="highweb"/></link> की राय बंटी हुई है

छत्तीसगढ़ की राजधानी <link type="page"><caption> रायपुर</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/03/130304_bihar_naxal_statue_sm.shtml" platform="highweb"/></link> में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार रूचिर गर्ग ने पिछले कम से कम दो दशकों में माओवादी आंदोलन पर पैनी नज़र बनाए रखी है और उसके रूप और कार्यक्रम को जानने समझने की कोशिश की है.

रूचिर गर्ग कहते हैं, "तीन दिनों पहले की घटना से दूर-दूर तक ये संदेश गया है कि अपनी गतिविधियों को <link type="page"><caption> राजनीतिक</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/02/130208_shu_book_excerpt_vv.shtml" platform="highweb"/></link> आंदोलन का नाम देने वाले माओवादी अब 'वर्ग दुश्मन', पुलिस के मुख़बिर और आम राजनीतिक <link type="page"><caption> कार्यकर्ताओं</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/01/130105_india_naxal_public_property_fma.shtml" platform="highweb"/></link> में कोई फ़र्क़ नहीं करने जा रहे. छोटे से बड़े तक सभी दहशत में रहेंगे और आने वाले दिनों में <link type="page"><caption> मूवमेंट</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/11/121112_naxal_attack_old_guns_aa.shtml" platform="highweb"/></link> और हिंसक रूप अख़्तियार करने जा रहा है."

टॉरगेट

राजनीतिक कार्यकर्ताओं को पहले भी निशाना बनाया जाता रहा है.
इमेज कैप्शन, राजनीतिक कार्यकर्ताओं को पहले भी निशाना बनाया जाता रहा है.

लेकिन इंस्टीट्यूट फ़ॉर <link type="page"><caption> कॉन्फ्लिक्ट</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/11/121108_mahendra_karma_naxal_attack_vv.shtml" platform="highweb"/></link> मैनेजमेंट के कार्यकारी निदेशक अजय साहनी माओवादियों की रणनीति में कोई बदलाव नहीं देखते हैं और उनके मुताबिक़ इस मामले पर 'शासन की कोई रणनीति कभी थी ही नहीं.'

उन्होंने कहा, "देखिए, कोई भी <link type="page"><caption> रणनीति</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/09/120924_naxal_politics_vk.shtml" platform="highweb"/></link> नहीं बदली है, माओवादियों ने पहले भी राजनेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया है. उदाहरण के तौर पर उन्होंने चंद्रबाबू नायडू पर हमला किया था."

अजय साहनी कहते हैं, "लेकिन वो ऐसा तब करते हैं जब किसी से उनकी बड़ी गहरी दुश्मनी हो. और मेरा ख़्याल है कि ये हमला महेंद्र कर्मा को <link type="page"><caption> टारगेट</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/10/121030_maoists_voiolence_psa.shtml" platform="highweb"/></link> करके तैयार किया गया था."

कांग्रेस के <link type="page"><caption> आदिवासी</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/08/120814_chhattisgarh_arms_ban_sdp.shtml" platform="highweb"/></link> नेता महेंद्र कर्मा सलवा जुडूम नाम के सरकार समर्थित कथित माओवादी विरोधी आंदोलन के कर्ता-धर्ता थे.

इसका प्रकोप बस्तर के लाखों आदिवासियों और <link type="page"><caption> ग्रामीणो</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/06/120629_encounter_questions_pp.shtml" platform="highweb"/></link>ं को झेलना पड़ा. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे बंद करने का हुक्म जारी कर दिया.

भारतीय <link type="page"><caption> कम्युनिस्ट</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/news/2012/06/120629_naxal_killed_chhattisgarh_jk.shtml" platform="highweb"/></link> पार्टी से कांग्रेस में गए महेंद्र कर्मा ने पहले भी माओवादियों के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया था.

मौजूदगी का एहसास

जवाबी कार्रवाई की आशंका जताई जा रही है.
इमेज कैप्शन, जवाबी कार्रवाई की आशंका जताई जा रही है.

<link type="page"><caption> झारखंड</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/06/120601_bastar_army_da.shtml" platform="highweb"/></link> के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बेटे और झारखंड विकास मोर्चा के नेता सुनील महतो की मौत माओवादियों की गोलियों से ही हुई थी.

रक्षा अध्ययन एवम् अनुसंधान संस्थान के पीवी रमणा कहते हैं कि फरवरी के आख़िर और मार्च के शुरू में ही <link type="page"><caption> दंडकारण्य</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/10/121030_maoists_voiolence_psa.shtml" platform="highweb"/></link> स्पेशल ज़ोनल कमेटी की एक बैठक में ये तय हो गया था कि माओवादी एक ‘<link type="page"><caption> टैक्टिकल</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/06/120621_naxal_surrender_salman_vd.shtml" platform="highweb"/></link> काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन’ या जवाबी हमला अभियान चलाएँगे.

वो कहते हैं कि ये राजनेताओं को डराने के लिए किया गया है. साफ़ तौर पर कहा जा रहा है कि ताज़ा हमले का असर दिसंबर में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा.

हाल के दिनों में माओवादियों ने जो कार्रवाईयां कीं उनमें उन्हें बहुत सीमित कामयाबी हासिल हुई है.

उन्होंने दो बड़े सरकारी अधिकारियों को अग़वा किया फिर सरकार से शर्तें तय कर उन्हें रिहा किया. लेकिन उनमें से बहुत सारे वादों को शासन ने अभी भी पूरा नहीं किया है.

कहा जा रहा है कि इसलिए माओवादी अपनी मौजूदगी को बड़े स्तर पर दर्ज करवाना चाहते थे.

हिंसा का स्तर

कयास लगाए जा रहे हैं कि नक्सली अपनी रणनीति बदल रहे हैं.
इमेज कैप्शन, कयास लगाए जा रहे हैं कि नक्सली अपनी रणनीति बदल रहे हैं.

अजय साहनी के मुताबिक़ माओवादियों ने पिछले दिनों अपने पांव कुछ अधिक लंबे पसार लिए थे. दिल्ली, कानपुर, मुंबई, पुणे, गुजरात वग़ैरह और इस दौरान उन्हें ढेर सारे शीर्ष नेताओं से हाथ धोना पड़ा. जिसके बाद उन्होंने सोची समझी रणनीति के तहत अपने गढ़ में पांव वापस खींचे हैं.

वापसी के बाद पिछले दो सालों में उन्होंने ख़ुद को फिर से संगठित किया है और तीन दिनों पहले के हमले से ये समझना चाहिए कि उन्हें लगने लगा है कि अगर वो अपनी हिंसा का स्तर बढ़ाते हैं और राज्य उन पर जवाबी कार्रवाई करता है तो वो उसे झेलने की स्थिति में हैं.

पीवी रमणा भी इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं कि माओवादियों की शहर को घेरो नीति कोई ख़ास रंग नहीं ला पाई. बल्कि उन्हें इसका नुक़सान ही उठाना पड़ा.

पांच साल पहले भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केंद्रीय समिति में जो 39 सदस्य मौजूद थे, उनमें से 18 किसी ने किसी रूप में निष्क्रिय कर दिए गए थे.

उनमें से 16 लोगों को तो गिरफ्तार कर लिया गया था जबकि दो की मौत हो गई थी.

गांव से शहर का घेरा

चंद्रबाबू नायडू को भी नक्सली अपना निशाना बनाने की कोशिश कर चुके हैं.
इमेज कैप्शन, चंद्रबाबू नायडू को भी नक्सली अपना निशाना बनाने की कोशिश कर चुके हैं.

आईडीएसए के शोधकर्ता का कहना है कि शहरी इलाक़ों में नीचे तबक़ों के बीच काम करना तो आसान है लेकिन यहां हिंसा के इस्तेमाल से दूसरी दिक्कतें पैदा हो सकती हैं.

शहरों में हिंसा को अंजाम देना बनिस्बत मुश्किल है और उसे अंजाम देकर भागना इतना आसान नहीं.

दूसरे, शहर में जिन वर्गों जैसे छात्र, कामगार, असंगठित मज़दूरों के बीच पार्टी अपनी पैठ बनाना चाहती है वो करियर को लेकर बहुत सजग है और आर्थिक तौर पर आगे बढ़ने में ज़्यादा यक़ीन रखती है.

न ही वो आंदोलन को उस तरीक़े से समय दे सकते हैं और उनके पास अपने हालात को बेहतर बनाने के रास्ते खुले हैं जो उन इलाकों के लोगों में उस हद तक नहीं मौजूद जहां माओवादी लंबे समय से सक्रिय रहे हैं.

उर्वर जमीन

रूचिर का कहना है कि शनिवार की घटना के बाद माओवादियों के ख़िलाफ़ सुरक्षा मुहिम तेज़ करने की मांग बढ़ती जा रही है.

उनका मानना है कि चूंकि माओवादियों की पहचान करनी मुश्किल है इसलिए सुरक्षा मुहिम तेज़ होने का नतीजा ग्रामीणों और आदिवासियों को भुगतना पड़ सकता है और हिंसा तेज़ होगी.

अजय साहनी कहते हैं कि माओवादी चाहते हैं कि इस तरह की हिंसक घटनाएं हों जो शासन और जनता के बीच खाई बढ़ाएंगी और उनके विचारों के और अधिक विस्तार के लिए उर्वर ज़मीन तैयार होगी.

ख़बरे हैं कि केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ में अर्धसैनिक बलों की तादाद में और अधिक इज़ाफ़ा करने का हुक्म जारी कर दिया है.

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