'सेंगोल' की तलाश की शुरुआत के पीछे पीएमओ को मिली वो चिट्ठी - प्रेस रिव्यू

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बताया कि जब 28 मई को पीएम मोदी नई संसद का उद्घाटन करेंगे तब एक नई परंपरा भी शुरू होगी.

अमित शाह ने कहा कि 1947 में अंग्रेज़ों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर जवाहरलाल नेहरू को 'सेंगोल' दिया था. इसे अब फिर से संसद में लोकसभा स्पीकर के आसन के पास स्थापित किया जाएगा.

अभी तक ये सेंगोल एक म्यूज़ियम में रखा था. अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू ने बताया है कि कैसे प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखी गई एक चिट्ठी के बाद इस सेंगोल की तलाश शुरू हुई.

आज प्रेस रिव्यू की शुरुआत इसी ख़बर से.

अख़बार ने बताया है कि जानी-मानी डांसर पद्मा सुब्रमण्यम ने ये पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखा था.

संस्कृति मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से अख़बार ने कहा है कि पद्मा सुब्रमण्यम ने चिट्ठी में तमिल मैगज़ीन 'तुग़लक' में छपे एक आर्टिकल का ज़िक्र किया था. इस लेख में उस समारोह के बारे में बताया गया था, जब 1947 में भारत के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल सौंपा गया.

ये लेख मई 2021 में छपा था और पद्मा सुब्रमण्यम ने उसी साल 15 अगस्त के मौक़े पर सरकार से इससे जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने का आग्रह किया था.

तमिल मीडिया में छपी ख़बर से फिर चर्चा में आया सेंगोल

यहीं से संस्कृति मंत्रालय ने इस ऐतिहासिक पल के बारे में खोजबीन शुरू की. इस शोध में मंत्रालय का इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स (आईजीएनसीए) के विशेषज्ञों ने साथ दिया.

15 अगस्त, 1947 की आधी रात को नेहरू द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने और उनके प्रसिद्ध 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' भाषण देने से कुछ मिनट पहले सेंगोल समारोह हुआ था. इस सेंगोल को अब तक नेहरू के प्रयागराज निवास स्थित निवास में रखा गया जो अब संग्रहालय बन गया है.

उस समय टाइम मैग़ज़ीन सहित कई भारत और विदेश के बड़े-बड़े अख़बारों ने सेंगोल के बारे में काफ़ी-कुछ छापा था.

अख़बार से बातचीत में आईजीएनसीए के सेक्रेटरी सच्चिदानंद जोशी ने कहा, "देश विभाजन और हिंसा से तबाह था. इसलिए समारोह जल्दी में आयोजित किया जाना था और चूंकि ये कोई क़ानूनी या औपचारिक मामला नहीं था, इसलिए इसका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया. इसका परिणाम ये हुआ कि पवित्र सेंगोल और इससे जुड़ा समारोह भारत की यादों से ग़ायब हो गया."

सेंगोल

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साल 2017 में तमिल मीडिया में एक बार फिर से इसके बारे में रिपोर्ट छपने लगीं. इनमें बताया गया कि कैसे प्रधानमंत्री के तौर पर देश को संबोधित करने से कुछ मिनटों पहले ही ब्रिटिश राज से भारत को सत्ता हस्तांतरण के लिए भारत सरकार ने तमिलनाडु के चोल साम्राज्य के 'सेंगोल' मॉडल को अपनाया.

इसके बाद शोधकर्ताओं ने नेशनल अर्काइव्स ऑफ़ इंडिया, अख़बार, किताबें और ऑनलाइन मौजूद सभी जानकारियों को खंगाला.

इसमें पता लगा कि इस सुनहरे सेंगोल में महंगे आभूषण लगे हैं, जिनकी क़ीमत उस समय 15000 रुपये के आसपास थी. इसे चेन्नई के हीरा कारोबारी वुमिदी बंगारु चेट्टी एंड सन्स ने बनाया था.

अख़बार ने सूत्रों के हवाले से बताया वुमिदी बंगारु चेट्टी सन्स ने पुष्टि भी की है कि उन्होंने ये सेंगोल बनाया था. हालांकि, इस बनाने वाले परिवार के सबसे बुज़ुर्ग शख्स की उम्र अब 95 साल है इसलिए वो ज़्यादा जानकारी देने में असमर्थ थे. लेकिन इसकी एक तस्वीर उनके घर में है.

उत्तर प्रदेश: 2017 से अब तक हर पखवाड़े एनकाउंटर में एक की मौत

योगी आदित्यनाथ

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अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने एक एक्सक्लूसिव इनवेस्टिगेशन में पाया है कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश में करीब 186 पुलिस एनकाउंटर हुए हैं.

अख़बार ने पाया है कि हर पंद्रह दिन यानी एक पखवाड़े में पुलिस के साथ मुठभेड़ से किसी एक कथित अपराधी की जान गई है.

इन छह सालों में पुलिस की फ़ायरिंग से 5 हज़ार 46 लोग घायल हुए हैं..

पुलिस एनकाउंटर में जो 186 लोग मारे गए हैं उनमें से 96 पर कथित तौर पर हत्या, यौन उत्पीड़न और गैंगरेप, पोक्सो के तहत मामले दर्ज थे.

आधिकारिक रिकॉर्ड के हवाले से अख़बार ने ये जानकारी दी है कि साल 2016 से 2022 के बीच राज्य में अपराधों में कमी आई. डकैती के मामले 82 फ़ीसदी तक घटे और हत्या के केस में भी 37 फ़ीसदी गिरावट हुई.

लेकिन ऐसे बहुत कम ही लोग हैं जो अपराध में आई कमी को एनकाउंटर से जोड़ते हैं. बल्कि उत्तर प्रदेश पुलिस के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "पुलिस एनकाउंटर कभी भी जघन्य अपराधों पर काबू करने और की हमारी रणनीति का हिस्सा नहीं रहे."

रिकॉर्ड ये भी बताते हैं कि एनकाउंटर में होने वाली अधिकतर मौतों पर सवाल नहीं उठाए गए.

एनकाउंटर

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अख़बार ने रिकॉर्ड के आधार पर लिखा है कि 161 एनकाउंटरों में अनिवार्य प्रक्रिया के तौर पर मैजिस्ट्रेट स्तर की जाँच हुई बिना किसी आपत्ति के पूरी हो गईं.

यहां ये जानना ज़रूरी है कि जांच के दौरान मैजिस्ट्रेट को एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों के बयान दर्ज करने होते हैं. इसके अलावा यदि कोई अपनी मर्ज़ी से गवाही देना चाहे तो मैजिस्ट्रेट उसे भी दर्ज कर के अपनी रिपोर्ट सौंपते हैं. इन 161 केसों की मैजिस्ट्रेट जांच में कोई भी विपरीत बयान नहीं है.

आधिकारिक रिकॉर्ड के हवाले से अख़बार ने बताया है कि इन 186 मामलों में से 156 में पुलिस ने क्लोज़र रिपोर्ट जमा कर दी है. संबंधित अदालतों में 141 मामलों की क्लोज़र रिपोर्ट स्वीकार भी कर ली गई है लेकिन 15 लंबित हैं. बाकी बचे 30 केस में पुलिस की जांच जारी है.

एनएचआरसी चीफ़ ने कहा- मुसलमान तभी आगे बढ़ पाएंगे जब...

मदरसा

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अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू ने नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (एनएचआरसी) के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस अरुण मिश्रा के उस बयान को प्रमुखता से छापा है जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर मदरसों में बच्चों को मिल रही शिक्षा का स्तर ख़राब रहा तो मुसलमान कभी 'आगे' नहीं बढ़ पाएंगे.

रिटायर्ड जस्टिस अरुण मिश्रा ने मानवाधिकार आयोग के एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि बच्चों की शिक्षा का मानकीकरण करने की ज़रूरत है.

ख़बर के अनुसार रिटायर्ड जस्टिस अरुण मिश्रा ने मंगलवार को सात राष्ट्रीय आयोगों के अध्यक्षों और प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की. इस दौरान उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि आरक्षित श्रेणियों के सबसे ज़रूरतमंदों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए आरक्षण की नीति पर भी विचार किया जाना चाहिए.

बैठक में शामिल हुए नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेज़ (एनसीबीसी) के अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहीर ने, ये मुद्दा उठाया कि कुछ राज्य समाज में मौजूद गैर-बराबरी और भेदभाव को ख़त्म करने के लिए लाई गई कल्याणकारी योजनाओं को लागू नहीं करते. उन्होंने ये भी कहा कि आजकल भारत की सीमा में घुसपैठ करके आने वाले लोगों को आरक्षण का लाभ देने का ख़तरनाक चलन शुरू हो गया है. इस की जाँच की ज़रूरत है.

वहीं, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने मानव तस्करी को लेकर गहरी चिंता ज़ाहिर की. उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल और श्रीनगर में महिलाओं की तस्करी बढ़ी है. एनसीडब्लू चीफ़ ने कहा कि शादी के नाम पर जबरन धर्मांतरण मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है और इसपर ध्यान देने की ज़रूरत है.

एनएचआरसी और अन्य आयोगों से बात करते हुए जस्टिस मिश्रा ने कहा, "बच्चों की शिक्षा के मानकीकरण की ज़रूरत है. देशी भाषाएं अब भूली जा रही हैं. साथ ही अगर मदरसों में बच्चों को खराब स्तर की शिक्षा मिलना जारी रहा तो मुसलमान कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे."

अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर एनएचआरसी अध्यक्ष ने कहा, "बेशक कुछ सुधारों की गुंजाइश हो सकती है लेकिन जिस तरह की अभिव्यक्ति की आज़ादी और बहस भारत में हो रही है वो कहीं और सुनने को नहीं मिलती."

इस बैठक में अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इक़बाल सिंह लालपुरा ने 1984 दंगों के कुछ पीड़ितों को अब तक मुआवज़ा न मिलने का मुद्दा भी उठाया.

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