झारखंड का ये स्कूल चल रहा है सिर्फ़ एक शिक्षक की बदौलत

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- Author, रवि प्रकाश
- पदनाम, रांची से, बीबीसी हिन्दी के लिए
सिलेबेस्तर कुल्लू 46 साल के हैं. यह उम्र का वह पड़ाव है, जब उन्हें छुट्टियों की भी ज़रूरत पड़ सकती है.
लेकिन, उन्हें छुट्टियाँ आसानी से नहीं मिल पातीं. वे अपनी आधिकारिक छुट्टियों में से बमुश्किल आधी का इस्तेमाल कर पाते हैं.
उनकी बाक़ी छुट्टियाँ लैप्स कर जाती हैं. वे झारखंड की राजधानी राँची से क़रीब 40 किलोमीटर दूर स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय सरगांव में शिक्षक हैं.
यहाँ पाँचवीं क्लास तक की पढ़ाई होती है. 114 बच्चे नामांकित हैं. स्कूल में पाँच कमरे भी हैं, लेकिन सिलेबेस्तर कुल्लू इस स्कूल के इकलौते 'मास्स साहब' (शिक्षक) हैं.
उनके ऊपर स्कूल के सभी बच्चों को पढ़ाने, उनके लिए मिड डे मील का प्रबंध कराने और दूसरी ज़रूरी काग़ज़ी कार्यवाहियों में शामिल होने की भी ज़िम्मेदारी है.
उनका स्कूल झारखंड के उन क़रीब 6000 स्कूलों में शामिल है, जो सिर्फ़ एक शिक्षक के भरोसे संचालित किए जा रहे हैं.
इनमें से ज़्यादातर स्कूल प्राथमिक कक्षाओं (क्लास 5) तक की पढ़ाई के लिए सुदूर गाँवों में खोले गए थे.
इनमें पढ़ने वाले बच्चों का ताल्लुक ग़रीब परिवारों से है. इनके माँ-बाप खेती या मज़दूरी करते हैं. इनमें से अधिकतर आदिवासी या दूसरे वंचित समुदायों में से हैं.
1 शिक्षक, 5 क्लास, कैसे होता है मैनेज

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सिलेबेस्तर कुल्लू ने बीबीसी को बताया कि अकेले शिक्षक होने के कारण 5-5 कक्षाओं के बच्चों को पढ़ा पाना मुश्किल टास्क है.
स्कूल की साफ़-सफ़ाई भी ख़ुद ही करनी होती है. काग़ज़ात अपलोड करने होते हैं, लेकिन मुझे अब इसकी आदत हो गई है. मैं किसी तरह मैनेज कर लेता हूँ.
उन्होंने कहा, "मेरे स्कूल के पाँच कमरों में से तीन की हालज जर्जर है. मैं कक्षा 1 और 2 के बच्चों को एक साथ एक कमरे में, कक्षा 3 औक 4 के बच्चों को दूसरे कमरे में और पाँचवीं के बच्चों को अपने दफ़्तर के कमरे में बैठाकर उन्हें पढ़ाता हूँ. "
"हर सुबह एक-एक करके मैं हर कमरे में जाता हूँ. उन्हें क्लास वाइज पढ़ा कर टास्क देता हूँ. फिर मॉनिटर को उनकी निगरानी का जिम्मा देकर दूसरे कमरे के बच्चों से मिलता हूँ. यही रोज़ का रूटीन है. इसके बाद मैं बरामदे पर अपनी टेबल कुर्सी लगाकर बैठ जाता हूँ ताकि हर क्लास की निगरानी कर सकूँ. यह कठिन है, लेकिन मैनेज हो जाता है."
"मेरी इस समस्या से गाँव के लोग भी वाक़िफ़ हैं. ऐसे में गाँव के ही एक युवा रेयाज अंसारी मेरे सहयोग के लिए प्रायः स्कूल आ जाते हैं और बच्चों को पढ़ाने में मेरी मदद करते हैं. मिड डे मील के लिए काम करने वाली दीदी भी मैट्रिक (दसवीं) पास हैं. वे भी बच्चों को पढ़ाने में मेरी मदद कर देती हैं. ख़ासकर तब जब मुझे छुट्टी लेनी होती है."
प्राथमिक विद्यालय सरगांव के बच्चे अनुशासित हैं और उनकी पढ़ाई का स्तर भी थोड़ा ठीक है.
बीबीसी की टीम जब वहा पहुँची, तो बच्चे अपनी कक्षाओं में थे. वे आवाज़ लगाकर पढ़ रहे थे. लेकिन, हर स्कूल की हालत ऐसी नहीं है और न हर शिक्षक सिलेबेस्तर कुल्लू की तरह हैं, जिन्हें सहयोग के लिए किसी ग्रामीण की मदद मिल जाए.

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उनके स्कूल से क़रीब 15 किलोमीटर दूर नवसृजित प्राथमिक विद्यालय, मेशाल भी एक शिक्षक वाला स्कूल है.
यहाँ पदस्थापित पारा शिक्षिका देवगी देवी तबीयत ख़राब होने के बावजूद स्कूल आई थीं.
उन्हें तभी छुट्टी मिल पाती है, जब कोई दूसरा शिक्षक उनकी जगह काम करन के लिए राजी हो जाए. ऐसा प्रायः संभव नही हो पाता. उनके स्कूल में भी चार कमरे हैं, लेकिन नामांकित छात्रों की संख्या सिर्फ़ 48 है. इनमें से औसतन 30 बच्चे रोज स्कूल आते हैं.
देवगी देवी ने बीबीसी से कहा, "बच्चे कम हैं, इसलिए मैं एक ही कमरे में सभी कक्षाओं का सीटिंग अरेजमेंट करती हूँ. फिर एक-एक कर उनकी कॉपियों में टास्क देकर उन्हें पढ़ाती हूँ. जो बातें बोर्ड पर लिखकर बतानी है, उन्हें बोर्ड पर लिखती हूँ ताकि संबंधित क्लास के बच्चे उसे देखकर अपनी-अपनी कॉपियों में लिख सकें. पढ़ाने के बीच मे ही समय निकालकर मुझे बच्चों का बैंक खाता खुलवाने और उनका जाति प्रमाण पत्र भी बनवाने के लिए जाना होता है."
माँ की पीड़ा

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राजकीय प्राथमिक विद्यालय, सरगाँव में कक्षा पाँच में पढ़ने वाली साजिया की माँ नाज़मा ख़ातून कहती हैं कि उनके पास बच्चों को पढ़ाने के लिए और कोई विकल्प नहीं है. इसलिए वे एक शिक्षक वाले स्कूल में अपनी बेटी को भेजती हैं.
नाज़मा ख़ातून ने बीबीसी से कहा, " हमलोग ग़रीब हैं. मेरे टोले में यही एक सरकारी स्कूल है. इसलिए अपने बच्चों को यहाँ पढ़ाना मेरी मजबूरी है. मास्स साहब अच्छी तरह पढ़ाते हैं लेकिन एक शिक्षक और आ जाते, तो बहुत ठीक हो जाता."
क्या कहते हैं आँकड़े
यूनेस्को की एक रिपोर्ट 'स्टेट आफ एजुकेशन रिपोर्ट फार इंडिया : नो टीचर, नो क्लास' के मुताबिक़ झारखंड के क़रीब छह हज़ार स्कूलों में सिर्फ़ एक शिक्षक कार्यरत हैं.
यह एक तरीक़े से शिक्षा के अधिकार क़ानून (आरटीई) के प्रावधानों का उल्लंघन है.
ग्रामीणों ने निकाली रैली

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मशहूर अर्थशास्त्री व सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज कहते हैं कि एक शिक्षक वाले स्कूल दरअसल अवैध हैं.
उन्होंने कहा कि आरटीई एक्ट के मुताबिक़ हर स्कूल में न्यूनतम दो शिक्षक होने चाहिए और हर 30 बच्चे के लिए एक शिक्षक होना चाहिए.
झारखंड के क़रीब 30 प्रतिशत स्कूलों में सिर्फ़ एक शिक्षक हैं. ज़ाहिर है कि यहाँ शिक्षा के अधिकार क़ानून का पालन नहीं हो पा रहा है.
13 अप्रैल की दोपहर वे लातेहार ज़िले के सुदूर गारू प्रखंड में निकाली गई अभिभावकों और स्कूली बच्चों की उस रैली में भी शामिल हुए, जो ऐसे स्कूलों के ख़िलाफ़ निकाली गई थी. इन ग्रामीणों ने अपनी रैली के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक चिट्ठी भेजकर पढ़ाई व्यवस्था को लेकर कई सवाल खड़े किए.
क्या कहती है सरकार

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झारखंड शिक्षा परियोजना की निदेशक किरण पासी कहती हैं कि सरकार इस मामले को लेकर गंभीर है और इसे ठीक करने की कोशिशें की जा रही हैं.
किरण पासी ने बीबीसी से कहा, "सरकार के स्तर से शिक्षकों की नियुक्ति के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन कुछ अड़चनों की वजह से नियुक्ति फ़िलहाल नही हो पा रही है. ऐसे में हम वैसे स्कूल जहाँ सिर्फ़ एक शिक्षक हैं, या फिर जहाँ छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की कमी है, वहाँ ट्रेनी शिक्षकों की पदस्थापना कर रहे हैं. अब तक नौ हज़ार से अधिक प्रशिक्षुओं को इसमें लगाया जा चुका है."
उन्होंने बताया कि ये स्थायी समाधान नहीं है. लिहाजा, सरकार इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए प्रयासरत है.
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