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यूपी में बाढ़ से कितनी तबाही: 'हथौड़े घरों और दीवारों पर नहीं लोगों के सीने पर चल रहे हैं'
- Author, प्रशांत पांडेय
- पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए
कृष्णावती अपने ही बनाए आशियाने की एक-एक ईंट निकाल कर सहेजने की कोशिश में जुटी हैं. उनके पति और परिवार के साथ कुछ रिश्तेदार भी उनके घर को तोड़ रहे हैं.
नौ कमरे का पक्का मकान दिखाते हुए वो कहती हैं, "तोड़ेंगे नहीं तो क्या करेंगे. कहाँ जाएँगे हम...कहाँ रहेंगे."
कृष्णावती के दिल में भरा दर्द उनकी आँखों में आँसुओं का सैलाब ले आया. एक हाथ में हथौड़ी पकड़े कृष्णावती दूसरे हाथ से साड़ी का पल्लू सम्भाल आँसू पोंछने लगती हैं. उनका नौ कमरों का पक्का मकान बस चंद घंटों बाद शारदा नदी में समाने वाला है.
कृष्णावती रुंधे गले से बताती हैं, "कटान तो पहले भी हो रहा था.10 दिन से ज़्यादा तेज़ हो गया. मोहरे पर आ गई नदी. मेहनत से बनाया था घर. अब क्या पता वो भी बचेगा कि नहीं."
लखीमपुर ज़िले में बाढ़ से तबाही
यूपी के लखीमपुर खीरी ज़िले के ज़िला मुख्यालय से क़रीब 35 किलोमीटर दूर कोरियाना गाँव में हर तरफ बस हथौड़ों की आवाजें हैं. करीब 35 मकानों वाले इस गाँव में शारदा नदी 15 घर काट ले गई है.
एक तरफ़ शारदा नदी में आए सैलाब की गाद से भरे खेतों में गिरी पड़ी गन्ने और कीचड़ में दबी धान की बर्बाद फ़सलें हैं तो दूसरी तरफ़ हथौड़ों की ठक-ठक की आवाजें. बीच-बीच में तेज़ी से कटान कर रही शारदा नदी में छपाक की आवाज़ गाँव के लोगों का दिल दहला देती है.
ज़मीन का कोई बड़ा टुकड़ा नदी में दरार पड़ने के बाद छपाक से गिरता है तो सब उधर देखने लगते हैं. एक के बाद एक घर शारदा नदी में समाता जा रहा है. गाँव का स्कूल भी शारदा की धार लील गई.
कोरियाना गाँव शारदा नदी के किनारे बसा है. पहले नदी यहाँ से दूर थी. पर इस बरसात और बाढ़ में नदी तेज़ी से कटान करती कोरियाना का वजूद ख़त्म कर रही है.
राम नक्षत्र चौहान के बेटे कृष्ण कुमार कहते हैं, "घर आज चला जाए या रात में चला जाए. घंटा या दो घंटा, कितनी देर में चला जाए कुछ पता नहीं."
नदी में समा गए मकानों के पीड़ितों के नाम गाँव के ब्रजेश एक साँस में गिनाते हुए कहते हैं, "कितने वीडियो बना-बनाकर प्रशासन को भेजे हम लोग, एसएमएस भेजे, कोई देखने नहीं आया. पहले खेती कटी, अब घर कट रहे हैं. 15 घर कट चुके हैं कम से कम."
लखीमपुर खीरी ज़िले में पलिया, निघासन गोला, लखीमपुर सदर और धौरहरा तहसीलें बाढ़ प्रभावित हैं. शारदा, घाघरा और नेपाल से आई मोहाना, कर्णाली नदियों से बाढ़ हर साल आती है. पर इस बार की बाढ़ अक्टूबर में आई, जब धान की फ़सल पकी खड़ी थी.अब खेतों में पानी भरा है और धान सड़ रहा है.
पूजा गाँव असाढ़ी के दारा सिंह के खेत में साढ़े तीन एकड़ धान लगा था. सब बाढ़ में बर्बाद हो गया. कहते हैं, ''पाँच साल से यही हाल है. पिछले साल भी बाढ़ अक्टूबर में आई इस बार फिर फ़सल तबाह हो गई.''
लखीमपुर खीरी के ज़िलाधिकारी महेंद्र बहादुर सिंह कहते हैं, "बाढ़ पीड़ितों में राहत किट बाँटी जा रही है, हमारी मेडिकल टीमें कैम्प कर रही हैं. जानवरों को भूसा दिया जा रहा है और दवाएँ भी दी जा रही हैं."
सीतापुर में बाढ़ के बाद अब पलायन का दंश
उत्तर प्रदेश के 17 ज़िले, क़रीब 945 गांव इस वक्त बाढ़ से प्रभावित हैं. इन ज़िलों की क़रीब साढ़े आठ लाख आबादी का जनजीवन अस्त-व्यस्त है. बाढ़ के कारण इन ज़िलों में धान की फ़सल नष्ट हो गई है और आलू की नई फ़सल पर भी असर पड़ा है.
बिसवां तहसील के जहांगीराबाद के आगे बसैहा कोठार गाँव के हरीलाल चौहान ने आठ बीघा धान बोया था. सड़क किनारे झोपड़ी बनाकर रह रहे हरीलाल की झोपड़ी में पानी अब भी भरा हुआ है.
हरीलाल कहते हैं, "केवानी घाघरा नदी अभी बढ़ रही है. घर बार छोड़ना पड़ा है. बच्चे ऊंची जगह पर सो रहे है."
हरीलाल के विकलांग भाई श्याम लाल बताते हैं, "अबकिन आई बाढ़ तबाह कर दिहिस. (इस बार की बाढ़ ने तबाह कर दिया) चार पाँच साल से इत्ता पानी आई रहा कि फसल बचना मुश्किल हुई गवा (चार-पांच साल से इतना पानी आ रहा है कि फ़सल का बचना मुश्किल हो गया है)."
सीतापुर ज़िले की गाँजर इलाके की बिसवां, लहरपुर, महमूदाबाद तहसीलें बाढ़ से घिरी हैं. शारदा और घाघरा नदियों के मिलने के बाद हर साल ही अब बाढ़ का कहर गाँजर के लोग झेलते हैं.
बाढ़ के बाद अब गाँजर के लोगों ने पलायन शुरू कर दिया है.
बहराइच-लखनऊ रोड पर पिट्ठू बैग टाँगे तीन युवक हमें मिले. बिसवां तहसील के रई बसदहा गाँव के रहने वाले घनश्याम कहते हैं, "खेतन मां कुछ नाई रहि गवा. (खेतों में कुछ भी रह नहीं गया है) जानवर, आदमी सब परेशान हैं. कामौ धाम नाई बचा तौ का करी हियाँ (कामधाम भी नहीं बचा यहां तो क्या करें)."
घनश्याम की बात काट कर दिनेश कुमार कहते है, "नुक़सान साहब सब हुई गवा, जब फ़सलै नाई रहि गई तो काम तो करना ही है. बिगहा भर ज़मीन है, तीन बच्चा परिवार पालना है,अब लखनऊ जाई रहे हन काम तलाशे."
बाढ़ से घिरे गाँवों से लोग निकल कर काम की तलाश और पेट की आग शांत करने के लिए शहरों की तरफ़ रुख़ कर रहे हैं. इलाके में बाढ़ ने काम धंधों पर भी ब्रेक लगा दी है. लकड़ी का काम मन्द पड़ गया. गन्ने के कोल्हुओं के चक्के थम गए हैं. सीतापुर के गाँजर इलाके में प्लाईवुड की बड़ी फै़क्ट्रियों में बाढ़ के चलते उत्पादन को ब्रेक लग गया है.
सीतापुर ज़िले के बहराइच बॉर्डर पर चहलारीघाट पुल के नौ किलोमीटर पहले मुग़लनपुरवा गाँव में लगे कोल्हू के चक्के थम गए हैं. पश्चिमी यूपी के मुज़फ़्फ़रनगर से भूंडू यहाँ आकर 22 सालों से कोल्हू चला रहे थे. भूंडू कहते हैं, "एक ही दिन चला था कोल्हू, पर बाढ़ आ गई."
भूंडू के बेटे साजिद कहते हैं, "15-16 लोग काम करते हैं. खाना ख़र्चा सब देना ही है. दो ढाई लाख का गन्ना ख़रीदा पड़ा है जो सूख रहा है. अभी भी पानी भरा है. कम से कम 10-15 दिन और लग जाएंगे काम चलने में."
बहराइच का का बुरा हाल
घाघरा नदी पर बने तीन किलोमीटर लंबे चहलारीघाट पुल पर नीचे बह रही घाघरा नदी अब शान्त दिख रही है. पर उसके रौद्र रूप के निशान कई किलोमीटर तक फैली गाद में दिख जाते हैं.
पुल पार करते ही रमुआपुर गाँव में बाढ़ का पानी उतर चुका है. पर धान के खेतों में अब भी बालियों तक पानी भरा है.
गाँव की महिलाएं अपनी झोपड़ी दिखाने लगती हैं. अपनी टूटी मिट्टी की डेहरिया दिखाते हुए गायत्री कहती हैं, "बाबूजी पानी रात मा आवा, सम्भरे का मौका नाई दिहिस. चौका, चूल्हा डेहरिया सब तबाह हुई गईं. धानन केर हाल आप देख रहे हो, सड़ी गवा सब."
बहराइच ज़िले की मिहिपुरवा, नानपारा, महसी, कैसरगंज तहसीलें बाढ़ के पानी से घिरी थीं. बाढ़ में एनएच 730 पर गायघाट का पुल धंस गया जिससे लखीमपुर, दिल्ली से रुपईडीहा और बहराइच का कनेक्शन इस रूट से बन्द हो गया. ज़िले के 160 गाँव बाढ़ से प्रभावित हैं. बाढ़ के पानी में अलग-अलग जगहों पर चार लोगों की डूब कर मौत हो चुकी है.
धान, उड़द, मक्का और सब्ज़ियों की खेती पूरी तरह इस इलाके में चौपट हो गई है. हालांकि अब सैलाब का पानी उतर गया है, पर ज़िले में फैली बीमारियों से स्वास्थ्य महकमा हलकान है. ज़ुकाम, मलेरिया बुखार, डायरिया के मरीज़ों की अस्पतालों में भीड़ बढ़ी है.
बहराइच के सीएमओ डॉक्टर सतीश कुमार सिंह का कहना है, "बहराइच में 43 हेल्थ चौकियाँ बनी हैं. दवा में मेट्रोजिल, ओआरएस, क्लोरीन की गोलियाँ बाढ़ प्रभावित इलाकों में दी जा रही हैं. इसके अलावा हमारी टीमें बराबर कैम्प कर रही हैं.
दाद, खुजली की दवाओं के साथ एंटीबायोटिक दवाएँ भी दी जा रही हैं. हमारा फ़ोकस है बीमारियों के प्रति लोगों को जागरूक करना और उन्हें रोकना."
श्रावस्ती में बाढ़ राहत में लगे लेखपाल की मौत
देवीपाटन मण्डल में पड़ने वाले श्रावस्ती ज़िले में राप्ती नदी में कभी इतनी बाढ़ नहीं आई जितनी इस साल आई है. बाढ़ राहत में लगे लेखपाल चंद्रभूषण तिवारी की भी श्रावस्ती में मौत हो गई.
इकौना और श्रावस्ती में बाढ़ का असर ज़्यादा रहा. श्रावस्ती ज़िले के इकौना ब्लॉक के मुस्काबाद के 77 साल के भगवती प्रसाद 9-10 अक्टूबर को आई बाढ़ की रात को याद करते हुए कहते हैं, "एक तरफ़ बाढ़ थी तो दूसरी तरफ़ बारिश और पत्थर थे. लग रहा था जान चली जाएगी."
मुस्काबाद गाँव में राप्ती नदी के किनारे ही हमें बाढ़ कटान से गाँव को बचाने के लिए यूपी सरकार और सिंचाई विभाग से एक करोड़ रुपए से ज़्यादा के 'स्टड वर्क' (दीवार बनाना) कराने का बोर्ड लगा मिला. गांव के सतेश्वर तिवारी कहते हैं, "इंजीनियर, फोरमैन सब लूट खाय के चले गए. अब गाँव में बचे लोग चाहे भाड़ में जाएं."
सतेश्वर तिवारी गाँव और अपने घर के अस्तित्व को लेकर चिंतित हैं. घर नदी से पांच मीटर दूर रह गया है. उन्हें चिंता है कि 'अगली बार पता नहीं घर बचेगा या चला जाएगा पानी में.'
मुस्काबाद गाँव के 58 साल के अम्बिकाप्रसाद खेत से जमा हुआ धान लाकर हमें दिखाते हुए बताते हैं, "हमारी याद में इतना पानी कभी नहीं आया. 1969 की बाढ़ बचपन में देखी थी हल्का-हल्का याद है, पर इतनी बाढ़ तब भी नहीं आई थी."
बलरामपुर में बाढ़ में डूबकर 12 की मौत
श्रावस्ती ज़िले से आगे एनएच 730 के दोनों तरफ हरे-भरे धान के खेतों की जगह बाढ़ के पानी और गाद से सने सफेद धान के खेत दिखते हैं. राप्ती नदी ने बलरामपुर ज़िले में भारी तबाही मचाई है.
बलरामपुर तहसील के सेमरहना गाँव में तैनात लेखपाल दिनेश मिश्र ट्रक से राहत सामग्री बाँटते दिखे. सैकड़ों की तादात में लोग राहत किट लेने को अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. लेखपाल दिनेश मिश्र ने बताया, "गाँव-गाँव जाकर हम राहत किट बाँट रहे हैं."
हर व्यक्ति को एक-एक किट दी जा रही है जिसमें 10 किलो आलू, एक बोरी लैया, तेल और आटा शामिल है. हाल ये था कि आपदा राहत कंट्रोल रूम तक बाढ़ का पानी घुस गया.
बलरामपुर आपदा कार्यालय के कंट्रोल रूम में आपदा विशेषज्ञ पद पर तैनात अरुण सिंह अपने दफ्तर की दीवारों की सीलन दिखाते हुए कहते हैं, "हाल ये हो गया कि हमारी अलमारी में पानी भर गया था, जेनरेटर बन्द हो गए. बिजली गुल और नेटवर्क भी नहीं. किसी तरह हमने कंट्रोल रूम को शिफ़्ट किया. चंदापुर बांध कटने से भयावह बाढ़ थी."
बलरामपुर के एडीएम फ़ाइनेंस राम अभिलाष बताते हैं, "ज़िले में बाढ़ से 12 लोगों की डूबकर मौत हुई है. पाँच परिवारों को हम चार लाख की सहायता दे चुके हैं. बाक़ी को भी जल्द दी जाएगी."
गोंडा, सिद्धार्थनगर, बस्ती, गोरखपुर, महराजगंज तक बाढ़
यूपी के नेपाल से सटे तराई के लगभग सभी ज़िलों में बारिश और बाढ़ ने तबाही मचाई है. गोंडा, सिद्धार्थनगर, बस्ती, गोरखपुर और महराजगंज ज़िलों में भी बाढ़ का प्रकोप है.
राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर के कैम्पियर गंज, महराजगंज, श्रावस्ती और सिद्धार्थनगर में बाढ़ का जायज़ा लिया है. राज्य प्रशासन का दावा है कि मुख्यमंत्री ने बाढ़ग्रस्त ज़िलों के ज़िलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि कोई भी बाढ़ पीड़ित छूटने ना पाए.
यूपी के पूर्वांचल में गोंडा ज़िले के बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह हों या पीलीभीत के बीजेपी सांसद वरुण गाँधी, दोनों ने सरकार के बाढ़ पीड़ितों के राहत अभियानों पर सवाल खड़े किए हैं.
बृजभूषण शरण सिंह ने ज़िला प्रशासन पर बाढ़ से पहले की तैयारियाँ न करने का आरोप लगाते हुए कहा, "पहले कोई भी सरकार होती थी तो बाढ़ के पहले एक तैयारी बैठक होती थी. हमको नहीं लगता कि कोई बैठक हुई है. लोग भगवान के भरोसे हैं. मैंने अपने जीवन में इतना ख़राब इंतज़ाम नहीं देखा बाढ़ का. बोलना बन्द है. सुनना है बस. जनप्रतिनिधियों की ज़ुबान बन्द है."
वहीं पीलीभीत के सांसद वरुण गाँधी ने बाढ़ के दौरान पीईटी परीक्षा कराने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार को कटघरे में खड़ा किया.
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