वर्ल्ड राइनो डे : काज़ीरंगा के एक सींग वाले गैंडे की दुनियाभर में क्यों होती है चर्चा?

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- Author, दिलीप कुमार शर्मा
- पदनाम, असम के काज़ीरंगा नेशनल पार्क से
असम के काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व में एक सींग वाले दुनिया के 65 फ़ीसदी गैंडे रहते हैं.
इस साल की शुरुआत में हुई गणना के अनुसार काज़ीरंगा नेशनल पार्क में दुनिया के कुल 4014 एक सींग वाले गैंडों में से 2613 गैंडे रहते हैं.
वन्य जीव संरक्षण के मामले में काज़ीरंगा नेशनल पार्क के लिए इसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है क्योंकि साल 2015 के मुकाबले 2018 में महज 12 गैंडे अधिक थे वहीं इस बार की गिनती में 200 गैंडे बढ़ गए हैं.
असम के गोलाघाट और नगांव जिले में 884 वर्ग किमी में फैले काज़ीरंगा नेशनल पार्क को कोमैरी कर्ज़न की सिफारिश पर 1908 में बनाया गया था. साल 1985 में इस पार्क को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था.भारत सरकार ने इसे टाइगर रिजर्व के तौर पर भी घोषित कर रखा है.
काज़ीरंगा नेशनल पार्क के अलावा 2022 में हुई गिनती के अनुसार इस समय असम के पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य में 107 गैंडे है. जबकि मानस नेशनल पार्क में 40 और ओरंग नेशनल पार्क में 125 गैंडे है. फिलहाल इस समय एक सींग वाले गैंडे को लुप्तप्राय जानवर की श्रेणी से अलग कर अति संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है.
असम का गौरव कहा जाने वाले यह एक सींग वाला गैंडा तीसरा सबसे बड़ा जानवर है जो दुनिया के अनोखे और सीमित स्तनधारियों में से एक है.

एक सींग वाले गैंडों की संख्या
- 4014 - दुनिया भर में, 2875 - असम में
- 2613 - काज़ीरंगा नेशनल पार्क (असम)
- 107 - पोबितोरा नेशनल पार्क (असम)
- 125 - ओरंग नेशनल पार्क (असम)
- 40 - मानस नेशनल पार्क (असम)

वैसे तो एक सींग वाला बड़ा गैंडा उत्तरी भारत के कई राज्यों समेत दक्षिणी नेपाल में नदी के किनारे घास के मैदानों और आस-पास के जंगलों में पाया जाता है.
लेकिन असम में इस राजकीय पशु की सबसे ज़्यादा आबादी काज़ीरंगा नेशनल पार्क में ही देखने को मिलती है.

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असम के काज़ीरंगा में एक सींग वाले गैंडे का इतिहास

इंटरनेशनल राइनो फाउंडेशन के वरिष्ठ सलाहकार तथा वाइल्ड लाइफ के क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रहे गैर सरकारी संगठन आरण्यक के सेक्रेटरी जनरल डा. बिभव कुमार तालुकदार कहते हैं,"अगर ऐतिहासिक साक्ष्यों को देखा जाए तो 16वीं और 17वीं शताब्दी में असम के काजीरंगा में एक सींग वाले राइनो थे. क्योंकि 17वीं शताब्दी में राइनो का वैज्ञानिक नामकरण किया गया था.
"भारत के आज़ाद होने से पहले राइनो की मौजदूगी असम से लेकर पाकिस्तान तक थी. लेकिन असम से ये गैंडा पाकिस्तान गया था या फिर उधर से इस तरफ कैसे आया इसे लेकर कोई ठोस साक्ष्य नहीं है. हालांकि एक सींग वाले राइनो के होने का इतिहास इन बातों से भी अधिक पुराना है."

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तालुकदार कहते हैं,"19वीं शताब्दी में जब भारत में ब्रिटिश राज था उस समय तक गैंडों का बहुत शिकार किया जाता था.शायद उसके बाद ब्रिटिश को इस बात का अहसास हुआ कि काज़ीरंगा में केवल एक दर्जन राइनो ही बचे हैं. उसके बाद ब्रिटिश ने राइनो के संरक्षण की बात को गंभीरता से लिया. इस तरह राइनो के संरक्षण के बाद साल 1966 में पहली बार असम सरकार ने राइनो की गिनती करवाई और उस समय 366 राइनो होने की जानकारी का पता लगा. अब 2022 में जो गिनती हुई है उसके मुताबिक काज़ीरंगा में इस समय राइनो की आबादी 2613 हो गई है."

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काज़ीरंगा में ही क्यों रहते है एक सींग वाले गैंडे

ऐसा कहा जाता है कि काज़ीरंगा के जंगल और पास से गुजरती ब्रह्मपुत्र नदी वाला इलाका इन एक सींग वाले गैंडों के लिए बहुत उपयुक्त माना जाता है.
काज़ीरंगा नेशनल पार्क के निदेशक जतिंद्र शर्मा ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में कहा,"काज़ीरंगा में राइनो के रहने के कई सारे कारण हैं. दरअसल यहां का जो इलाका है वो राइनो के लिए एक आदर्श ठिकाना है, क्योंकि काज़ीरंगा में 18 तरह की घास होती है जो काफी पौष्टिक होती है. राइनो ज्यादातर घास ही चरता है. एक वयस्क राइनो एक दिन में करीब 50 किलो घास चर लेता है. उस हिसाब से काज़ीरंगा में पर्याप्त मात्रा में घास है."

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वो कहते हैं, "इसके अलावा ये ब्रह्मपुत्र के पास का इलाका है और पास में ही पहाड़ है.यहां पानी भी पर्याप्त होता है. दरअसल राइनो खुद को पानी में विसर्जित करना पसंद करते हैं, जहां वे जलीय पौधे भी चरते हैं. एक तरह से यहां वातावरण की परिस्थितियाँ बहुत अच्छी होती है. गैंडे को इसी तरह का वातावरण चाहिए होता है. उनके लिए बाढ़ का समय थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन राइनो बहुत अच्छी तरह तैर लेता है.एक स्वस्थ राइनो ऐसी किसी भी स्थिति का आसानी से मुकाबला कर लेता है."

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16 महीने के गर्भ के बाद पैदा होता है राइनो

एक मादा राइनो का गर्भकाल लगभग 15 से 16 महीने तक रहता है और एक बार मां बनने के बाद दूसरे बछड़े को जन्म देने में करीब तीन साल का समय लगता है.
काज़ीरंगा नेशनल पार्क में पिछले 24 सालों से काम कर रहे रिसर्च अधिकारी रॉबिन शर्मा बताते हैं,"ज़मीन पर हाथी के बाद भारत में सबसे बड़ा जानवर राइनो ही है.16 महीने के गर्भकाल के बाद एक राइनो का जन्म होता है. इंसान की तुलना में यह पैदा होने के समय बहुत बड़ा होता है और इसका वजन क़रीब 45 किलो के आसपास होता है.
राइनो का बच्चा जन्म लेने के तीन-चार घंटे बाद ही चलने सकता है. हालांकि क़रीब तीन महीने तक गैंडे का बच्चा अपनी मां का दूध पीता है और उसके बाद वो धीरे-धीरे गोलाकार घास चरने की कोशिश करता है. आमतौर पर राइनो का बच्चा तीन साल तक अपनी मां के साथ ही रहता है. बाद में वो अलग झुंड में चला जाता है."
"एक मादा राइनो की उम्र छह साल होने के बाद यौन गतिविधियों में उसकी रूचि शुरू होती है. लेकिन आमतौर पर एक मादा राइनो 9 साल से 12 साल की उम्र में ही पहला बच्चा पैदा कर सकती है. जबकि एक नर राइनो 12 साल से 15 साल की उम्र में ही प्रजनन रूप से सक्रिय होते हैं."
वो बताते हैं कि एक वयस्क राइनो को वजन क़रीब 1600 किलोग्राम होता है. चिड़ियाघरों में रहने वाले राइनो के मुक़ाबले जंगली राइनो की उम्र महज 45 साल ही होती है. जबकि चिड़ियाघरों में रखे गए राइनो की उम्र 55 से 60 साल तक होती है.

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3 साल में निकलते हैं सींग

राइनो के सींग की अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग रही है. सरकारी अधिकारी मानते है कि ख़ासकर एशियाई काले बाज़ार के मूल्य के आधार पर राइनो के सींग की क़ीमत 55 से 60 लाख रुपए प्रति किलोग्राम अनुमानित है.
राइनो के सींग से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए रॉबिन शर्मा कहते हैं,"एक गैंडे का सींग विशिष्ट होता है और "राइनो" नाम वास्तव में "नाक" और "सींग" के लिए ग्रीक शब्दों से आया है. राइनो जब तीन साल का होता है, उस समय उसका सींग थोड़ा बाहर की तरफ निकलने लगता है. मौजूदा रिकॉर्ड के अनुसार औसतन 18 साल की उम्र में यह सींग पूरे आकार में निकल जाता है."
"वैसे तो औसतन राइनो के सींग का वजन करीब 900 ग्राम बताया जाता है लेकिन कई इंडियन राइनो के सींग का वज़न ढाई किलो तक भी पाया गया है.अन्य सींग वाले जानवरों के विपरीत राइनो का सींग मुख्य रूप से केराटिन नामक प्रोटीन से बना होता है. यह वही पदार्थ है जिससे मानव का बाल और नाखून बनाता है.लेकिन राइनो का सींग हमेशा एक जैसा नहीं रहता. जब राइनो कई तरह के कवक संक्रमण के चपेट में आता है या फिर जब बूढ़ा हो जाता है तो उसका सींग खराब होने लगता है."

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शाकाहारी और सफ़ाईपसंद

वैसे तो काजीरंगा नेशनल पार्क हाथियों,जंगली भैंस, लुप्तप्राय दलदली हिरणों,बाघों और पक्षियों की कई प्रजातियों का घर माना जाता है लेकिन विश्वभर से पर्यटक यहां केवल एक सींग वाले गैंडे को ही देखने आते है.
असम में पाए जाने वाले राइनो के बारे में रिसर्च अधिकारी शर्मा कहते है,"दुनिया में गैंडों की पांच अलग-अलग प्रजातियां हैं - दो अफ्रीका के मूल निवासी हैं, और तीन दक्षिण एशिया में पाए जाते हैं. लेकिन असम में पाए जाने वाला यह एक सींग वाला गैंडा कई मायनों में बहुत क़ीमती है. राइनो विशुद्ध रूप से एक शाकाहारी जानवर होता है. इसके मांस खाने को लेकर आज तक कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है."
शर्मा कहते हैं,"राइनो की देखने की क्षमता बहुत कमज़ोर होती है. वो 30 से 40 फीट के बाद देख नहीं सकता. लेकिन राइनो की सुनने और सूंघने की क्षमता बहुत अच्छी होती है. राइनो की सबसे अनोखी बात है कि वो सामुदायिक शौचालय का इस्तेमाल करता है. वो पानी में कभी मल त्याग नहीं करता है. जब किसी गैंडे को शौच करने की तलब होती है तो वो सूंघकर उसी जगह मल त्यागने जाता है जहां पहले से दूसरे गैंडों ने गोबर का ढेर कर रखा है."

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राइनो का शिकार

बीते कुछ सालों में गैंडे के अवैध शिकार की ख़बरें भी आती रही हैं.
डॉ. तालुकदार कहते हैं,"अगर राइनो का अवैध शिकार नहीं हुआ होता तो यह संख्या शायद 4 हज़ार के आस-पास होती. साल 1985 से लेकर 2021 तक असम के काज़ीरंगा में 800 से अधिक गैंडो की हत्या की गई. भारत और नेपाल में मिलाकर इस समय एक सींग वाले गैंडों की संख्या 4014 है. कुछ देशों में इस गैंडे के सींग को लेकर कई तरह की मांग है इसलिए अवैध शिकारियों की नज़र हमेशा इस राइनो पर बनी रहती है. यह राइनो एक तरह से असम का गोल्ड है जिसे यहां की सरकार बचाकर रखने के लिए लगातार प्रयास कर रही है."
हालांकि काज़ीरंगा नेशनल पार्क के निदेशक शर्मा दावा करते हैं कि अवैध शिकार पर रोक लगा दी गई है. वे बताते हैं, "काज़ीरंगा में राइनो को शिकारियों से बचाने के लिए कई प्रशिक्षित खोजी कुत्ते भी तैनात हैं. बीते दो साल में राइनो का अवैध शिकार करीब-करीब रोक दिया गया है. पहले एक साल में 30 से 40 राइनो मार दिए जाते थे लेकिन इस साल अबतक केवल एक राइनो का अवैध शिकार किया गया है और उस मामले में भी हमने कार्रवाई करते हुए हथियार समेत अवैध शिकारियों को पकड़ा है. जबकि पिछले साल दो राइनो का अवैध शिकार किया गया.
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