बुलंदशहर: अपने खून से ख़त लिखकर इंसाफ़ मांगने वाली बहनों की कहानी

इमेज स्रोत, SANJAY SHARMA
- Author, गीता पांडेय
- पदनाम, बीबीसी न्यूज़, दिल्ली
छह साल पहले एक किशोरी ने अपने ख़ून से ख़त लिखकर अपनी मां के लिए इंसाफ़ की मांग की थी.
उनकी मां को उनकी आंखों के सामने ज़िंदा जलाकर मार दिया गया था लेकिन छह साल पहले लिखे गए इस ख़त से शुरू हुई जांच के बाद अब हत्यारे को सज़ा सुनाई गई है.
लतिका बंसल, जो अब 21 साल की हैं और उनकी छोटी बहन इस मामले में प्रत्यक्षदर्शी थीं. इस मामले में कोर्ट ने फ़ैसला देते हुए बच्चियों के पिता मनोज बंसल को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है.
इन लड़कियों ने कोर्ट को गवाही के दौरान बताया कि उनके पिता, उनकी मां को मारा करते थे. उन पर ये अत्याचार सिर्फ़ इसलिए होता था क्योंकि उन्होंने बेटियों को जन्म दिया था, बेटे को नहीं.
हालांकि बंसल ने अपने ऊपर लगाए आरोपों से इनक़ार किया था और कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि उनकी पत्नी ने आत्महत्या की थी.
बुधवार को इस मामले में कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया. बुलंदशहर की एक कोर्ट ने इस केस में बुधवार को फ़ैसला सुनाया. कोर्ट ने बंसल को उनकी पत्नी की हत्या करने का दोषी पाया.
भारत में बेटे की चाह रखने वालों की संख्या आज भी बड़े स्तर पर है. समाज के एक वर्ग में यह प्रचलित मान्यता है कि बेटा ही वंश को आगे बढ़ाता है और बेटा ही उम्र के आख़िरी पड़ाव पर मां-बाप का सहारा बनता है.
जबकि बेटियां बोझ समझी जाती हैं, जिनकी शादी करनी पड़ती और शादी में मोटा दहेज देना होता है. समाज में एक बड़े स्तर पर लोग मानते हैं कि लड़कियों को एक दिन विदा होना ही होता है.
भारत में आज भी होता है लिंगभेद
महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वालों का मानना है कि ये सोच, भारत में लड़कियों के साथ होने वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार के लिए उत्तरदायी है.
लड़कियों के साथ होने वाला भेदभावपूर्ण व्यवहार, पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कम संख्या, कन्या-भ्रूण हत्या इन्हीं सब का परिणाम है.
मामले की सुनवाई के दौरान, बंसल बहनों ने उन लम्हों का ज़िक्र किया जब उनके पिता उनकी मां के साथ मारपीट किया करते थे.
उन्होंने उस दौर को याद किया जब वो बड़ी हो रही थीं और लगभग हर रोज़ उनकी मां अनु को, बेटा पैदा ना करने के लिए ताने दिए जाते थे. उनके साथ मारपीट की जाती थी.
कोर्ट के सामने ये भी तथ्य आया कि अनु को ज़बरदस्ती छह बार अबॉर्शन के लिए मजबूर किया गया. अवैध तरीक़े से उनके गर्भ के लिंग की जांच करवायी गई और जब पता चला कि गर्भ में बेटी है, तो अनु का जबरन अबॉर्शन करवा दिया गया.
बंसल बहनों ने कोर्ट को बताया कि 14 जून 2016 की सुबह के बाद से उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई. जब उनके पिता ने उनकी मां पर मिट्टी का तेल डालकर उन्हें आग लगा दी.
इस कृत्य में उनके पिता को उनके परिवार का समर्थन था और वे इस तरह के किसी भी आरोप से इनक़ार करते हैं.

इमेज स्रोत, SANJAY SHARMA
जब बंसल बहनों ने अपनी मां को जलते देखा
ट्रायल कोर्ट में अपनी गवाही के दौरान बंसल बहनों ने बताया, "सुबह के क़रीब साढ़े छह बज रहे थे. हम सो रहे थे और मां की चीखों से हमारी नींद खुली. हम अपनी मां की मदद नहीं कर सकते थे क्योंकि जिस कमरे में हम सो रहे थे वो बाहर से बंद था. हमने उन्हें जलते हुए देखा."
लतिका ने बताया, "हमने स्थानीय पुलिस और एंबुलेंस सर्विस को भी कॉल किया लेकिन हमारी कॉल्स पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. उसे गंभीरता से नहीं लिया गया. इसके बाद हमने अपने मामा को कॉल किया और नानी को सबकुछ बताया. जिसके बाद वे लोग बागते हुए आए और मां को जल्दी-जल्दी में अस्पताल लेकर गए."
अनु बंसल का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि जिस समय अनु को अस्पताल ले आया गया, उस समय तक वह अस्सी फ़ीसद जल चुकी थीं. उन्हें बर्न-वॉर्ड में एडमिट कराया गया लेकिन कुछ दिनों बाद ही उनकी मौत हो गई.
ये मामला तब रोशनी में आया जब बंसल बहनों ने तत्कालिक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपने ख़ून से ख़त लिखकर इस मामले में न्याय की मांग की थी. उस समय अंसल बहनों की उम्र 15 साल और 11 साल थी. उन्होंने अखिलेश यादव को ख़त लिखकर स्थानीय पुलिस की शिकायत भी की थी और बताया था कि कैसे उनकी मां की हत्या के मामले को सुसाइड बता दिया गया.
उस समय के स्थानीय पुलिस जांचकर्ता को इस ख़त के बाद सस्पेंड कर दिया गया था. उन पर आरोप लगा कि उन्होंने मामले की गंभीरता और अच्छी तरह जांच नहीं की. इसके बाद अखिलेश यादव ने इस मामले की जांच वरिष्ठ पुलिस और प्रशासन को सौंप दी गई.
बंसल बहनों का केस कोर्ट में पेश करने वाले वकील संजय शर्मा ने बीबीसी को बताया, "इस केस में न्याय मिलने में छह साल, एक महीने और 13 दिन लग गए."
संजय शर्मा ने बताया, "छह सालो में, इस मामले में क़रीब 100 से अधिक बार बंसल बहनें कोर्ट में हाज़िर हुईं और इस दौरान उन्होंने एक डेट भी मिस नहीं की."
इस लेख में Google YouTube से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले Google YouTube cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.
पोस्ट YouTube समाप्त
पिता के ख़िलाफ़ केस लड़ने वाली बेटियां
उन्होंने कहा कि ये अपने आप में एक बेहद अलग केस रहा, जिसमें बेटियां अपने पिता के ख़िलाफ़ केस लड़ रही थीं और अंत में जिन्हें न्याया मिला है.
संजय शर्मा ने बताया कि इस केस के लिए उन्होंने परिवार से कोई फ़ीस नहीं ली क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. साथ ही इस केस के माध्यम से वह समाज के एक बेहद गंभीर मुद्दे पर लोगों का ध्यान खींचना चाहते थे.
उन्होंने कहा, "यह सिर्फ़ एक औरत की हत्या का मामला नहीं था. यह समाज के ख़िलाफ़ अपराध का मामला है. यह किसी औरत के हाथ में नहीं होता है कि वो बेटी को जन्म दे या फिर बेटे को.. लेकिन फिर इसके लिए उसे सज़ा क्यों?"
ये भी पढ़ें
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

















