नरेंद्र मोदी के गुजरात दौरे में पाटीदार केंद्र में लेकिन पटेल मतदाता हैं किसके साथ?

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- Author, रॉक्सी गागडेकर छारा
- पदनाम, बीबीसी गुजराती
गुजरात में आने वाले महीनों में होने वाले चुनाव के लिए बीजेपी के प्रचार और आईपीएल का फाइनल मैच देखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह शनिवार से दो दिवसीय गुजरात दौरे पर हैं.
नरेंद्र मोदी ने शनिवार की सुबह सरदार पटेल सेवा समाज द्वारा निर्मित मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल का उद्घाटन किया है. राजकोट-भावनगर हाइवे पर 40 करोड़ रुपए की लागत से 200 बेड का अस्पताल बनाया गया है.
गुजरात की राजनीति में जहां हार्दिक पटेल और नरेश पटेल की चर्चा हो रही है, वहीं नरेंद्र मोदी और अमित शाह के कई कार्यक्रमों में इस कार्यक्रम पर ख़ास ध्यान दिया जा रहा है, क्योंकि इसके केंद्र में पाटीदार समाज है.
इस कार्यक्रम में राज्य के विभिन्न हिस्सों से पाटीदार समुदाय के सदस्य शामिल हुए हैं. जहां भाजपा नेताओं का दावा है कि यह जनकल्याण से जुड़ा कार्यक्रम है, वहीं कई लोगों का मानना है कि इसके ज़रिए नरेंद्र मोदी और भाजपा आने वाले चुनावों के लिए पाटीदार समुदाय के लोगों को ख़ुश करने की कोशिश कर रहे हैं.

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हालांकि सवाल यह उठता है कि वास्तव में पाटीदार समुदाय इस समय है किसके साथ?
पाटीदारों के लिए एक तरफ़ भाजपा है, दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी है, जिसके पास हार्दिक पटेल जैसा नेता था, अब उनके सामने आम आदमी के रूप में तीसरा विकल्प भी उपलब्ध है. सभी राजनीतिक दल राजनीतिक और आर्थिक रूप से उन्नत पाटीदारों को एक साथ रखने की कोशिश कर रहे हैं और भाजपा इनमें सबसे आगे दिखाई दे रही है.
गुजरात में क्यों अहम हैं पाटीदार
अगर हम पाटीदार समुदाय की बात करें तो वर्तमान में गुजरात में लगभग 12% आबादी पाटीदारों की है. राज्य में आदिवासी आबादी लगभग 15.5 प्रतिशत है, जो पाटीदारों से अधिक है, लेकिन पाटीदार राज्य में सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक तौर पर सबसे सशक्त समूह है.
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों को मिलाकर पाटीदार समुदाय के 51 विधायक थे, जो किसी भी समुदाय के लिए बड़ी बात है. वर्तमान में, कई विश्लेषकों और राजनीतिक दलों के लिए सवाल यह है कि क्या पाटीदार 2017 की तरह भाजपा से नाराज़ होंगे या पाटीदार भाजपा से दूर होंगे लेकिन कांग्रेस पार्टी में नहीं जाकर आम आदमी पार्टी (आप) के पास जाएंगे?

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आम आदमी पार्टी ने राज्य में पार्टी की कमान युवा पाटीदार नेता गोपाल इटालिया को सौंपी है, क्या इससे कोई फर्क पड़ेगा?
बीबीसी गुजराती ने कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों से बात की और पाया कि हर पार्टी का भविष्य में पाटीदार वोटरों पर ही टिका है, लेकिन कमज़ोर कांग्रेस और असंगठित आम आदमी पार्टी को देखते हुए विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी चुनाव में पाटीदारों को ख़ुश रख पाएगी.
जब विजय रूपाणी मुख्यमंत्री थे, तब पटेलों ने मुख्यमंत्री पद की मांग की थी और बीजेपी इस मांग से संतुष्ट भी थी. विजय रूपाणी समेत पूरे मंत्रिमंडल को हटा दिया गया है और भूपेंद्र पटेल इस समय गुजरात के मुख्यमंत्री हैं.
वह गुजरात के 61 साल के राजनीतिक इतिहास में पांचवें पाटीदार मुख्यमंत्री हैं. कुल 17 मुख्यमंत्रियों में से पांच पाटीदार समाज के रहे हैं.
अगर हम गुजरात के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो चिमनभाई पटेल पहले पाटीदार मुख्यमंत्री थे. वह पहले जनता दल से और फिर कांग्रेस से मुख्यमंत्री बने. उनसे पहले के सभी मुख्यमंत्री व्यापारी और ब्राह्मण समुदायों से रहे हैं. चिमनभाई पटेल के बाद बाबूभाई जशभाई पटेल दो बार मुख्यमंत्री बने और फिर केशुभाई पटेल और आनंदी बहन पटेल मुख्यमंत्री बनीं.
उमियामाता मंदिर का उद्घाटन हो या पाटीदारों द्वारा निर्मित अस्पताल का उद्घाटन.. नरेंद्र मोदी कभी भी पाटीदारों के बीच आने का मौका नहीं छोड़ते और शनिवार को पीएम मोदी ने पाटीदारों को संबोधित किया है.

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'पाटीदार जिसके साथ वही पार्टी जीतती है'
बीबीसी गुजराती ने इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक घनश्याम शाह से बात की. गुजरात और देश की राजनीति के विद्वान घनश्याम शाह ने 1950 से 2020 तक गुजरात की राजनीति पर कई लेख और किताबें लिखी हैं.
घनश्याम शाह कहते हैं, "इतिहासकार डेविड हार्डीमैन ने स्वतंत्रता संग्राम और मुख्य रूप से खेड़ा सत्याग्रह के बारे में लिखा कि कांग्रेस पाटीदार है और पाटीदार कांग्रेस है. यानी कांग्रेस के आधार पर पाटीदार हैं, जिनमें सरदार पटेल एक बड़ा नाम हैं."
वो कहते हैं, "गुजरात में अन्य समाजों के विपरीत, पाटीदार अपने समाज को एकजुट करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं. भले ही वे कदवा और लिउआ के नाम पर बंटे हुए हैं, लेकिन उन्होंने 'सामाजिक संरक्षण' पर बहुत ज़ोर दिया है. अर्थात पैसे से समाज के लिए कैसे उपयोगी हो."
"उदाहरण के लिए, गुजरात में किसी भी समुदाय का एक ग़रीब बच्चा, अगर उसे पढ़ना है, छात्रावास में रहना है या मदद की ज़रूरत है, तो उसे इसके लिए कड़ा संघर्ष करना होगा लेकिन पाटीदार छात्र को इस तरह संघर्ष करने की ज़रूरत नहीं है. "
घनश्यामभाई कहते हैं, "उनके पास ज़मीन के अलावा व्यापार करने का कौशल है, वे सिर्फ़ किसान नहीं हैं, इसलिए हर राजनीतिक दल को उनसे बात करनी है. क्योंकि उनके पास ज़मीन है, उनके पास उद्योग हैं, उनके पास स्कूल हैं, कुल मिलाकर उनकी अर्थव्यवस्था है."
"पाटीदारों का वर्षों का इतिहास है कि वे जिस पार्टी के साथ रहे हैं वह चुनाव जीतती है. या कहें पाटीदार जीतते हैं."
इस बारे में समाजशास्त्री गौरांग व्यास ने कहा, "जब कोई प्रधानमंत्री किसी समुदाय के लिए सामुदायिक कार्यक्रम में आता है तो लोगों में एक अलग संदेश जाता है. आजकल गुजरात की राजनीति सिर्फ़ पाटीदारों के इर्द-गिर्द घूम रही है."
"चाहे हार्दिक पटेल हों या नरेश पटेल. राजनीतिक दल पाटीदारों को महत्व देने की कोशिश में अन्य समुदायों की उपेक्षा भी कर रहे हैं."
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