विराट कोहली खेल रहे 100वां टेस्ट, शतक का सूखा बरक़रार

    • Author, पराग फाटक
    • पदनाम, बीबीसी मराठी

मोहाली में श्रीलंका के ख़िलाफ़ विराट कोहली अपना सौवां टेस्ट मैच खेल रहे हैं. इस मुकाम तक पहुंचने वाले वे महज़ 12वें भारतीय क्रिकेटर हैं. कोहली ने इस दौरान ख़ूब उतार-चढ़ाव देखे हैं.

पहली पारी में विराट कोहली 76 गेंद पर 45 रन बनाकर आउट हो गए.

साल 2014 की बात है, भारतीय टीम इंग्लैंड के दौरे पर थी. कोहली की धमक तब तक टेस्ट क्रिकेट में दिखने लगी थी. वे चौथे नंबर के बल्लेबाज़ के तौर पर स्थापित हो चुके थे. वे लगातार अच्छी बल्लेबाज़ी कर रहे थे और फ़िटनेस के मामले में अव्वल थे. वे भारतीय टीम के सबसे अहम बल्लेबाज़ थे, लिहाज़ा उनसे उम्मीदें भी बहुत थीं.

लेकिन वे पहली बार इंग्लैंड में खेल रहे थे और बुरी तरह नाकाम रहे थे. इंग्लैंड में बल्लेबाज़ी वैसे भी आसान नहीं होती है. बादलों से घिरे मौसम और स्विंग गेंदबाज़ी को मदद करने वाली पिच पर खेलना मुश्किल होता है. इसके अलावा अनुभवी गेंदबाज़ जेम्स एंडरसन उस वक्त शानदार फ़ॉर्म में थे.

एंडरसन ने अपनी आउट स्विंग गेंदों से विराट कोहली को कई बार छकाया या कहें मूर्ख बनाया. 10 पारियों में कोहली महज़ चार बार दोहरे अंक में पहुंच पाए थे. कोहली को उम्मीद से देखने वाली क्रिकेट की दुनिया सदमे में थी कि कोहली की तकनीक को आख़िरकार क्या हो गया है.

इंग्लैंड दौरे का सबक

2014 में भारत के इंग्लैंड दौरे से पहले कोहली को भारतीय क्रिकेट का अगला उभरता सितारा माना जा रहा था. लेकिन वे एंडरसन के सामने कहीं नज़र नहीं आ रहे थे, अंग्रेज़ी मीडिया ने उनकी ख़ूब आलोचना की.

अंग्रेज़ी अख़बारों ने लिखा था कि हर बल्लेबाज़ अपने घरेलू मैदान में शेर होता है, लेकिन वास्तिवक महान बल्लेबाज़ वो है जो बेहतरीन गेंदबाज़ी आक्रमण के सामने विदेशी पिचों पर शानदार बल्लेबाज़ी करे. इस पैमाने पर कोहली के लिए ये दौरा बेहद बुरा साबित हुआ था. पांच टेस्ट मैचों की दस पारियों में उनके स्कोर थे- 1, 8, 25, 0, 39, 28, 0, 7, 6, 20.

कहते हैं कि कुंदन आग में तपकर चमकता है. कोहली के साथ भी ऐसा ही हुआ. मीडिया की आलोचना का उन पर कोई असर नहीं हुआ. भारत लौटने के बाद उन्होंने अपनी तकनीक पर काम किया और उसे फूलप्रूफ़ तकनीक बनाया.

उन्होंने भारत के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ माने जाने वाले सचिन तेंदुलकर से संपर्क किया. उनकी सलाह के साथ-साथ अपने कोचों के साथ वे घंटों तक अभ्यास करते रहे. कोहली ये सब तब कर रहे थे जब उनकी ख़ूब आलोचना हो रही थी.

ऑस्ट्रेलिया में किया कमाल

इंग्लैंड दौरे की बुरी यादों को पीछे छोड़कर कोहली ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गए. अगस्त से दिसंबर तक उन्होंने अपनी बल्लेबाज़ी की तकनीक पर जो काम किया था, उसका नज़ारा दुनिया को दिखने वाला था.

एडिलेड में सिरीज़ के पहले ही टेस्ट में विराट कोहली ने दोनों पारियों में शतक ठोक दिया. इस टेस्ट की शुरुआत से पहले कई आलोचक यह कह रहे थे कि जो बल्लेबाज़ जेम्स एंडरसन का सामना नहीं कर सका वो ऑस्ट्रेलियाई पिचों पर ऑस्ट्रेलिया के तेज़ आक्रामण का सामना कैसे कर पाएगा.

कोहली ने इन आलोचनाओं का जवाब अपने बल्ले से दे दिया. उन्होंने एडिलेड के बाद मेलबर्न और सिडनी टेस्ट में भी शतक जमाया.

बेहद मुश्किल दौर, डिप्रेशन में आए

कोहली ने एक इंटरव्यू में कहा कि 2014 में इंग्लैंड का दौरा और ऑस्ट्रेलिया का दौरा शुरू होने तक का समय उनके करियर का सबसे मुश्किल वक़्त रहा. उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वे इस दौरान डिप्रेशन में आ गए थे. उन्हें अपनी क्षमता पर इतना संदेह हो गया था कि वे फिर से इंटरनेशनल क्रिकेट खेल पाएंगे या नहीं, इसको लेकर सोचने लगे थे.

कोहली ने अपनी ख़ामियों को दूर करने की कोशिश की. दर्शक से लेकर पूर्व क्रिकेटर सहित तमाम विश्लेषक ये मान रहे थे कि उन्हें अपनी तकनीक पर काम करना चाहिए. उनकी फ़िटनेस तो उस वक़्त भी लाजवाब थी और उन्होंने अपनी तकनीक पर काम किया. साथ ही उन्होंने यह साबित किया कि वे मानसिक तौर पर भी बेहद मज़बूत क्रिकेटर हैं.

ऑस्ट्रेलियाई दौरे में शानदार प्रदर्शन के बाद कोहली ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. कोहली आधुनिक दौर के वैसे क्रिकेटर रहे हैं जो वनडे और टी-20 क्रिकेट में तो शानदार प्रदर्शन करते ही रहे हैं लेकिन उन्होंने टेस्ट मैचों को भी हमेशा प्राथमिकता में रखा.

वे हमेशा कहते रहे हैं कि टेस्ट क्रिकेट ही किसी क्रिकेटर की प्रतिभा, मानसिक और शारीरिक क्षमता का असली पैमाना है. वे यह भी दोहराते हैं कि भारतीय टेस्ट टीम का हिस्सा होने पर उन्हें गर्व होता रहा है. अब वे भारत की ओर से अपना 100वां टेस्ट मैच खेल रहे हैं.

इस मुकाम तक पहुंचने वाले 12वें क्रिकेटर

वनडे, टी-20, आईपीएल और टेस्ट मैच- कोहली हर तरह के फ़ॉर्मेट का क्रिकेट खेल रहे हैं. उनका अधिकतर समय लंबी यात्राओं, अभ्यास और अनिवार्य क्वारंटीन में बीत रहा है. इस लिहाज़ से देखें तो भारतीय क्रिकेट टीम साल के 365 दिनों में 330 दिन तक खेल और उसकी यात्राओं के चलते दुनिया के किसी ना किसी कोने में होती है.

टीम के शीर्ष बल्लेबाज़ और कप्तान होने के चलते कोहली के कंधों पर अतिरिक्त दारोमदार भी रहा है, लेकिन अपनी फ़िटनेस और निरंतरता के चलते कोहली 100 टेस्ट मैचों के मुकाम तक पहुंच गए हैं.

इस मुकाम तक पहुंचने वाले वे भारत के महज 12वें क्रिकेटर हैं. उनसे पहले भारत की ओर से सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, सौरभ गांगुली, वीवीएस लक्ष्मण, वीरेंद्र सहवाग, सुनील गावस्कर, कपिल देव, दिलीप वेंगसरकर, अनिल कुंबले, ईशांत शर्मा और हरभजन सिंह ही इस मुकाम तक पहुंच सके हैं.

कोहली ने जब अपना इंटरनेशनल क्रिकेट करियर शुरू किया था तब राहुल द्रविड़ बतौर क्रिकेटर सक्रिय थे. अब जब कोहली अपना सौवां टेस्ट मैच खेल रहे हैं तब राहुल द्रविड़ भारतीय टीम के प्रमुख कोच हैं.

कोहली ने अपना पहला टेस्ट 20 से 24 जून, 2011 के बीच किंग्सटन में वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ खेला था. इस टेस्ट में कोहली के अलावा बल्लेबाज़ अभिनव मुकुंद और गेंदबाज़ प्रवीण कुमार ने भी अपना टेस्ट डेब्यू किया था.

अभिनव मुकुंद भारत के लिए सात टेस्ट मैच खेल सके जबकि प्रवीण कुमार छह टेस्ट मैचों में नज़र आए. वहीं, विराट कोहली ने बल्लेबाज़ और कप्तान के तौर पर इतिहास बनाया.

कोहली की कप्तानी में भारत की अंडर-19 टीम ने 2008 में अंडर-19 वर्ल्ड कप का खिताब जीता था. कोहली उन गिने-चुने खिलाड़ियों में शामिल हैं जो जूनियर लेवल पर मिली कामयाबी को सीनियर लेवल की क्रिकेट में भी दोहरा पाए.

बल्लेबाज़ के तौर पर कामयाबी

कोहली अपने करियर में घरेलू मैदान के साथ विदेशी मैदानों पर भी रन बटोरते रहे. उन्होंने दक्षिण अफ्ऱीका, न्यूज़ीलैंड, वेस्ट इंडीज़, श्रीलंका और दूसरे देशों की पिच पर लगातार रन बनाए हैं.

विदेशी पिचों पर बल्लेबाज़ों को तेज़ गेंदबाज़ों का सामना करना होता है. लेकिन, कोहली की ख़ासियत ये रही कि वे विदेशी मैदानों पर शानदार प्रदर्शन करते रहे. क्रिकेट की दुनिया में ऐसे कई बेमिसाल बल्लेबाज़ रहे हैं जिनका औसत विदेशी मैदानों पर बहुत कम हो जाता है, लेकिन कोहली के साथ ऐसा नहीं हुआ.

भारतीय पिचों के साथ विदेशी पिचों पर भी उनका औसत बेहतर रहा है. भारतीय पिचों पर उन्होंने जहां 62 की औसत से रन बनाए वहीं, विदेशी पिचों पर उन्होंने 44 की औसत से बल्लेबाज़ी की है.

कोहली स्पिन और तेज़ गेंदबाज़ी के सामने एक जैसी बल्लेबाज़ी करते रहे हैं. पारी की शुरुआत से ही वो पिच का मिज़ाज भांपने की कोशिश करते हैं और एक-दो रन के साथ पारी आगे बढ़ाते हैं, लेकिन जल्दी ही उनके बल्ले से चौकों की बरसात होने लगती है.

कोहली बड़ी साझेदारी निभाने वाले बल्लेबाज़ के तौर पर जाने जाते हैं, विकेट के बीच भागने में उनका अंदाज़ बेहतरीन होता है.

कोहली अपनी लय में हों तो दुनिया के तेज़-तर्रार गेंदबाज़ों और उछाल भरी पिचों पर भी लगातार रन बटोर सकते हैं. उनकी यही प्रतिबद्धता तेज़ गर्मी भरे मौसम में भी नज़र आती है.

यही वजह है कि विपक्षी टीम की कोशिश हर हाल में उनको आउट करने की होती है. कोहली अगर 30 रन को पार कर लेते हैं तो उनके समर्थक शतक की उम्मीद करने लगते हैं. टेस्ट मैचों का शतक बनाते कोहली की एक ख़ासियत यह भी रही है कि उन्हें कभी टीम से ड्रॉप नहीं किया गया.

कप्तान कोहली

बल्लेबाज़ी की तरह ही कोहली अपनी कप्तानी को लेकर प्रतिबद्ध दिखे. कोहली हार बचाने की कोशिश करने वाले के बदले जीत की कोशिश करने वाले कप्तान रहे.

उन्होंने टीम में उस तरह के क्रिकेटरों पर भरोसा किया जो लगातार पांच दिनों तक अपना बेहतरीन खेल दिखा सकें. उनकी कप्तानी में टीम का फ़िटनेस स्तर बहुत बेहतर हो गया. टेस्ट मैच को जीतने के लिए गेंदबाज़ों को 20 विकेट झटकने होंगे- कोहली ने इसी मंत्र को अपनाया.

कोहली अपनी कप्तानी में पांच गेंदबाज़ों के साथ उतरना पसंद करते रहे. उनकी आदर्श टीम में पांच गेंदबाज़, एक विकेटकीपर बल्लेबाज़ और पांच बल्लेबाज़ की जगह थी. वे चतुराई से गेंदबाज़ों का इस्तेमाल जानते थे और ज़रूरत के मुताबिक फ़ील्डिंग में भी बदलाव करते रहते थे. अच्छी फ़िटनेस के चलते वे एक बेहतरीन फ़ील्डर भी हैं.

किसी भी टीम के लिए विदेशी मैदान पर टेस्ट सिरीज़ जीतना हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है. लेकिन कोहली ने इस चुनौती को बख़ूबी स्वीकार किया. कोहली की कप्तानी में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलियाई जमीं पर हराया और अपनी कप्तानी में वे टीम को आईसीसी की टेस्ट रैंकिंग में नंबर वन बनाने में कामयाब रहे.

फ़ैब फ़ोर में कोहली की गिनती

मौजूदा समय में भारत के विराट कोहली, न्यूज़ीलैंड के केन विलियम्सन, ऑस्ट्रेलिया के स्टीव स्मिथ और इंग्लैंड के जो रूट को फ़ैबुलस फ़ोर बल्लेबाज़ माना जाता है. इन चारों की अपनी अलग-अलग शैली है, लेकिन एक बात इनमें समान है कि ये चारों गेंद पर तेज़ी से प्रहार करने वाले बल्लेबाज़ रहे हैं.

चारों अपनी टीमों के अहम बल्लेबाज़ रहे और उसके बाद टीम के कप्तान भी बने. इन चारों क्रिकेटरों का अपनी टीम की उपलब्धियों में अहम योगदान रहा है. इनके नाम क्रिकेट के ढेरों रिकॉर्ड भी हैं, इसलिए इन्हें विश्व क्रिकेट में फ़ैब फ़ोर कहा जाता है.

इनमें जो रूट इकलौते खिलाड़ी हैं जो अपने सौ टेस्ट पूरे कर चुके हैं. वे इंग्लैंड के कप्तान भी हैं. लेकिन रूट आम तौर पर वनडे और टी-20 क्रिकेट में नहीं खेलते. वे आईपीएल में भी हिस्सा नहीं लेते हैं. उनका क्रिकेट करियर काफ़ी हद तक टेस्ट क्रिकेट पर निर्भर है.

वहीं, दूसरी ओर स्टीव स्मिथ का क्रिकेट करियर थोड़ा दाग़दार हो गया है, बॉल टेम्परिंग के मामले में उन पर प्रतिबंध लग चुका है. केन विलियम्सन अपनी बल्लेबाज़ी और मैदान में व्यवहार के चलते सम्मान भाव से देखे जाते हैं, लेकिन न्यूज़ीलैंड की टीम अपेक्षाकृत कम टेस्ट खेलती है, इसके चलते वे अभी 100 टेस्ट मैच से थोड़े पीछे चल रहे हैं.

इन चारों बल्लेबाज़ों में सबसे ज़्यादा टेस्ट मैच जो रूट ने खेले हैं और इनमें सबसे ज़्यादा रन भी उनकी झोली में ही हैं. जहां तक बल्लेबाज़ी की औसत की बात है, स्टीव स्मिथ का रिकॉर्ड सबसे बेहतर है. टेस्ट शतकों के लिहाज़ से कोहली और स्मिथ दोनों 27-27 शतक के साथ आगे चल रहे हैं.

कोहली और उनके पिता की याद

कोहली का खेल के प्रति किस भाव का समर्पण रहा है, इसे उनके जीवन के शुरुआती सालों के एक अनुभव से देखा जा सकता है. 2006 में वे दिल्ली की रणजी टीम का हिस्सा थे. उनकी टीम कर्नाटक के ख़िलाफ़ मुक़ाबला खेल रही थी. जब दूसरे दिन का खेल समाप्त हुआ तो कोहली और उनके साथी बल्लेबाज़ पुनीत नॉट आउट थे.

उस रात 17 साल के कोहली के पिता प्रेम कोहली को ब्रेन स्ट्रोक आया और उनका निधन हो गया. कोहली को क्रिकेटर बनाने में उनके पिता का अहम योगदान था.

अचानक पिता के गुज़रने का दुख बहुत बड़ा था. कोहली के घर पर नाते रिश्तेदारों का आना शुरू हो गया, लेकिन कोहली नॉटआउट पारी को आगे बढ़ाने के लिए मैदान में पहुंच गए. तब दिल्ली के कोच चेतन शर्मा थे और कप्तान मिथुन मिन्हास. दोनों ने कोहली को घर जाकर परिवार के साथ रहने की सलाह दी.

लेकिन, कोहली ने मैच खेलने पर ज़ोर दिया. उस पारी में उहोंने 90 रन बनाए थे. कर्नाटक टीम की कप्तानी कर रहे येरे गौड़ और उनके टीम के साथियों ने भी कोहली के साहस और प्रतिबद्धता की तारीफ़ की थी.

तीसरे दिन का खेल ख़त्म होने के बाद विराट कोहली अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हुए. पिता के असमय निधन के बाद कोहली ने अपने भाई के साथ मिलकर परिवार को संभाला.

बल्लेबाज़ी का कप्तानी पर असर नहीं

क्रिकेट के खेल में कई शानदार बल्लेबाज़ों के कप्तान बनते ही उनकी बल्लेबाज़ी प्रभावित हुई है. लेकिन, कोहली के मामले में ऐसा नहीं हुआ. अब तक 100 टेस्ट मैचों में कोहली ने 68 मैचों में टीम की कप्तानी की है. इन 68 मैचों में वे भारत के शीर्ष बल्लेबाज़ भी रहे.

उन्होंने दोहरी ज़िम्मेदारी को बख़ूबी संभाला है. जिन 68 मैचों में उन्होंने भारत की कप्तानी की, उनमें 54.80 की औसत से उन्होंने 5864 रन बनाए. इस शानदार बल्लेबाज़ी के चलते वे टीम के खिलाड़ियों का भी उत्साह बढ़ाते रहे, उनके लिए प्रेरक भी रहे.

विराट की सचिन से तुलना

विराट कोहली की लगातार सचिन तेंदुलकर से तुलना होती रही है. सचिन तेंदुलकर में रनों की लगातार भूख देखी गई थी. कोहली के बारे में भी यही कहा जाता रहा है.

तेंदुलकर जैसे लीजेंड से तुलना एक सम्मान तो है लेकिन इसका खिलाड़ी पर दबाव भी बढ़ता है. लेकिन कोहली पर अब तक ऐसा कोई दबाव नहीं दिखा है, उनका ध्यान खेल पर ही केंद्रित रहा है.

यह भी चर्चा होती रही है कि कोहली सचिन तेंदुलकर के किन-किन रिकॉर्ड को तोड़ देंगे. कोहली अपनी बल्लेबाज़ी को लेकर सचिन तेंदुलकर से सलाह मशविरा करते रहे हैं और 2011 की विश्व कप जीत के बाद सावर्जनिक तौर पर सचिन के प्रति सम्मान के भाव को ज़ाहिर कर चुके हैं.

शतक का लंबा इंतज़ार

इन सबके बाद भी कोहली का बल्ला इन दिनों अपनी पूरी लय में नहीं है. उन्होंने टेस्ट मैचों में आख़िरी शतक कोलकाता में नवंबर, 2019 में बांग्लादेश के ख़िलाफ़ बनाया था. इसके बाद से वे रन तो लगातार बना रहे हैं, लेकिन शतक नहीं बन पाया है.

कुछ महीने पहले उन्होंने टी-20 से कप्तानी छोड़ी थी इसके बाद उन्हें वनडे टीम के कप्तान से हटाया गया. हाल ही में दक्षिण अफ्ऱीका के ख़िलाफ़ खेली गई टेस्ट सीरीज़ के बाद कोहली को टेस्ट की कप्तानी से भी हटा दिया गया.

इस लिहाज़ से देखें तो अब विराट कोहली पर कप्तानी का कोई दबाव नहीं है. ऐसे में सवाल यह कि क्या वे शतकों के लंबे इंतज़ार को ख़त्म कर पाएंगे. क्या वे अपने 100वें टेस्ट में शतक बना पाएंगे? भारत के घरेलू मैदान पर कोहली के सामने इस इंतज़ार को ख़त्म करने और सौवें टेस्ट में शतक जमाने का बेहतरीन मौका है.

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