कुशीनगर के जिस गांव से बारातें निकलनी थीं वहां ये 13 अर्थियां निकलीं- ग्राउंड रिपोर्ट

इमेज स्रोत, चंद्रकांत मिश्र
- Author, चन्द्रकांत मिश्रा
- पदनाम, कुशीनगर से, बीबीसी हिंदी के लिए
जिस गाँव से 17 फ़रवरी को दो बरातें जानी थीं, ढोल-नगाड़े बजने थे आज उस गाँव के एक मोहल्ले से 13 शव महिलाओं और लड़कियों के उठे हैं. इन शवों में एक साल की परी भी शामिल है. अभी पिछले हफ़्ते ही तो उसका पहला जन्मदिन मनाया गया था. रह-रहकर लोगों की चीखें गाँव में पसरे सन्नाटे को तोड़ रही थीं. हर आँख नम थी, इन मौतों का किसी के पास कोई जवाब नहीं था.
नौरंगिया गाँव के एक ही मोहल्ले से अमित कुशवाहा और नारद कुशवाहा की 17 फ़रवरी को बारात जानी थी. दोनों घरों के बीच की दूरी क़रीब 300 मीटर है. इस हादसे के बाद बारात के नाम पर अमित के यहाँ से उनका एक भाई और भतीजा गया है जबकि नारद के यहाँ से बारात ही नहीं गयी.
जिस गुरुवार के दिन गाँव से धूमधाम से बारात जानी थी उसी दिन 17 फ़रवरी को सभी मृतकों का कुशीनगर से 20 किलोमीटर दूर नारायणी पनियहवा घाट पर अंतिम संस्कार किया गया. ऐसा पहली बार था जब ज़िले में किसी गाँव की इतनी चिताएं एक साथ जल रही थीं.
अंतिम संस्कार करके लौट रहे नौरंगिया गाँव के 65 वर्षीय लक्ष्मी यादव कहते हैं, "ऐसा खौफ़नाक मंजर इस उमर में पहली बार देखा. गाँव में आज किसी के घर चूल्हे नहीं जले. एक अनहोनी थी जिस पर किसी का बस नहीं चला."
गांव के रहने वाले अभिषेक यादव ने भारी मन से कहा, "अब गांव जाने की ही इच्छा नहीं हो रही है. समझ नहीं आ रहा है कि अब गाँव में कैसे क़दम रखा जाए."
जिस वक़्त कुएं से महिलाओं और लड़कियों को रस्सी और सीढ़ी के सहारे निकाला जा रहा था उस वक़्त वहां पर मौजूद प्रिंस यादव ने बताया, "हमने एम्बुलेंस को उसी वक़्त फ़ोन किया था. उन्हें बताया भी कि लोग निकाले जा रहे हैं उन्हें तुरंत अस्पताल भेजना है. लेकिन फ़ोन करने के एक डेढ़ घंटे तक कोई एम्बुलेंस नहीं आयी. मुझे लगता है अगर समय से एम्बुलेंस आ जाती तो हो सकता है कुछ और जानें बच जातीं."
प्रशासन की लापरवाही?
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि अगर वक़्त से एम्बुलेंस पहुंच जाती तो और कई जानें बच जातीं. प्रशासन की लापरवाही की वजह से कई ज़िंदगियां ख़त्म हो गईं.
वहां मौजूद विजय यादव बताते हैं, "घटना की सूचना के बाद पुलिस तो तुरंत आ गई थी लेकिन जिसकी सबसे अधिक ज़रूरत थी उस एम्बुलेंस को पहुंचने में डेढ़ घंटे लग गए. कुएं में गिरी बहुत-सी महिलाओं को जब बाहर निकाला गया तब उनकी सांसें उखड़ रही थी, उन्हें ऑक्सीजन की कमी महसूस हो रही थी. अगर समय पर उन्हें ऑक्सीजन और इलाज मिल गया होता तो शायद वो बच जातीं."

इमेज स्रोत, चंद्रकांत मिश्र
कुएं से लोगों को बाहर निकालने में राकेश भी शामिल थे. राकेश ने बताया, "रस्सी के सहारे कुएं में उतरा था. लोग दर्द के मारे चीख रहे थे. कुछ की सांसे तो कुएं के अन्दर ही थम गई थीं."
नौरंगिया गाँव में गुरुवार को सैकड़ों की संख्या में आसपास गाँव के लोगों और रिश्तेदारों का अवागमन लगा था. हर कोई उस कुएं में झांककर देख रहा था जिसकी स्लैब टूटने से 16 फ़रवरी की रात को 13 मौतें हुई थीं. जिसमें सात नाबालिग बच्चियां थीं.

इमेज स्रोत, चंद्रकांत मिश्र
ये वही कुआं है जहाँ सालों से इस गाँव के लोग हर शुभ काम में पूजा करने आते थे. गाँव के लोगों के मुताबिक कुआं 100 साल पुराना है पर इस पर जो स्लैब डाली गयी थी वो दो साल पहले ही बनवाई गयी थी.
प्रिंस यादव बताते हैं, "गाँव के दो लोग अमित और नारद की शादी थी. दोनों की माटी कड़वा कार्यक्रम कुएं पर एक साथ हो रहा था इस वजह से महिलाओं की संख्या ज़्यादा थी. क़रीब 50 से 70 महिलाएं वहां थी."
कुशीनगर ज़िला मुख्यालय से क़रीब 20 किलोमीटर दूर नौरंगिया गाँव में घुसते ही 100 कदम चलने पर दाहिने तरफ़ क़रीब 70 फ़ीट गहरा श्रवण कुमार के दरवाज़े एक कुआं बना है. अभी कुएं को चारो तरफ़ से गाँव के लोगों ने दो तीन टूटी पड़ी लकड़ी की सीढ़ियों से ढक दिया है. वहां बिखरी हुई कई चप्पलें, सैंडल उस हादसे की गवाही दे रहे हैं.
गाँव में हर आने वाला थोड़ी दूर से झाँककर इस कुएं की गहराई समझने की कोशिश कर रहा है. लोग इस कुएं से कई सालों से पानी नहीं भर रहे थे. कुआं खुला था इसलिए श्रवण कुमार ने दो साल पहले इसपर स्लैब डलवाई थी ताकि उनके घर के बच्चे और जानवर उसमें न गिरें. कोई उस स्लैब पर बैठेगा भी ऐसा उन्हें अंदेशा ही नहीं था इसलिए उन्होंने स्लैब बहुत मजबूत नहीं बनवाई थी.
श्रवण कुमार को अंदेशा भी नहीं था कि जिस स्लैब को उन्होंने अनहोनी से रोकने के लिए बनवाया था वही स्लैब किसी दिन एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत का कारण बनेगा. कुएं के आसपास और इसकी स्लैब पर 16 फरवरी की रात करीब आठ-नौ बजे के बीच एक ही मोहल्ले की 30-40 महिलाएं और लड़कियाँ दोनों शादियों की एक रस्म की अदायगी गाना बजाना कर रहीं थीं.
एक साथ रस्म होने की वजह से भीड़ ज्यादा बढ़ गयी थी. स्लैब बहुत मजबूत नहीं थी इसलिए ज्यादा लोगों के बैठने से अचानक टूट गयी और फिर एक के बाद एक 23 महिलाएं और लड़कियाँ उस 70 फीट गहरे कुएं में गिरती गईं. कुछ ही देर पहले जहाँ लोकगीत गाये जा रहे थे. ढोलक की थाप थी वहीं देखते ही देखते हर तरफ से बचाओ-बचाओ की आवाजें आने लगीं. खुशी का माहौल अचानक से मातम में तब्दील हो गया.

इमेज स्रोत, चन्द्रकांत मिश्रा
खुशी का माहौल मातम में तब्दील
जहां यह हादसा हुआ उस कुएं से चंद कदमों की दूरी पर सुमित्रा देवी का घर है. हर कोई सुमित्रा को ढाढस बंधा रहा था क्योंकि मृतकों में इनकी 22 वर्षीय बेटी मीरा भी शामिल है. वो रो-रोकर कहें जा रही थीं, "कहकर गयी थी जल्दी आ जाऊंगी. अगर मैं जानती तो उसे जाने ही न देती."
सुमित्रा देवी की आँखे रोते-रोते पथरा गईं थीं. हाथों में मीरा की तस्वीर लिए कह रहीं थीं, "अभी तो इसकी शादी के लिए लड़का खोज रही थी. सोच रही थी आख़िरी शादी है धूमधाम से करूंगी. भगवान मुझे उठा लेते उसकी जाने की उम्र थी क्या?" ये कहते हुए वो देर तक सुबकती रहीं. मीरा तीन बहनों में सबसे छोटी थी, दो बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है.
कुएं में गिरने वाली कुछ ऐसे भी थे घायल लगभग 10 लोगों को अस्पताल पहुंचाया गया.
जिस अमित कुशवाहा की शादी थी उनका सात वर्षीय भांजा उपेंद्र भी इस कुएं में गिर गया था लेकिन उसे वक़्त रहते कुएं से निकाल लिया गया. उसके सर और हाथ में हल्की-फुल्की चोटें आयीं हैं. उपेन्द्र के 40 भाई वर्षीय राजेन्द्र कुशवाहा ने बताया, "मुझे सुबह फोन करके बताया गया कि बेटा कुएं में गिर गया था, हल्की-फुल्की चोटें आयीं हैं लेकिन वो ठीक है."
पूर्वांचल में लड़के की बारात जाने के एक दिन पहले एक रस्म होती है जिसका नाम है माटी कुडवा. इस रस्म में पुरुषों में दूल्हे के अलावा महिलाएं ही शामिल होतीं हैं. रस्म के दौरान महिलाएं और लड़कियाँ नाच-गाना करती हैं.

इमेज स्रोत, चन्द्रकांत मिश्रा
पूजा यादव (20 वर्ष) लखनऊ शहर में रहकर पुलिस की तैयारी कर रही थी. वो पिछले हफ्ते ही गाँव आयी थी और इस हादसे में मरने वालों में एक हैं. पूजा की माँ का रो-रोकर बुरा हाल था. वो कह रहीं थीं, "मेरी बेटी पुलिस की तैयारी कर रही थी वो पुलिस में भर्ती होना चाहती थी. कह रही थी कि पड़ोस की शादी निपटाकर लखनऊ वापस जाउंगी."
ज़िलाधिकारी एस. राजलिंगम ने बताया कि इस हादसे में करीब 10 अन्य लोग ज़ख्मी हुए हैं, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है, मृतकों के परिजन को चार-चार लाख रुपये की सहायता दी जाएगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना पर शोक जताया है. प्रशासन ने मृतकों को चार लाख रुपए देने की घोषणा की है. साथ ही घायलों को 50-50 हज़ार रुपये की मदद की बात कही है.
इस घटना में कुल 13 लोगों की मौत हुई है. जिनमें परी (एक वर्ष), आरती ( 07 वर्ष), शशि कला चौरसिया (15 वर्ष), ज्योति चौरसिया (16 वर्ष), पूजा चौरसिया (17 वर्ष), सुन्दरी कुशवाहा (09 वर्ष), राधिका कुशवाहा (20 वर्ष), मन्नू (12 वर्ष), पूजा यादव (20 वर्ष), वृंदा यादव (20 वर्ष), मीरा विश्वकर्मा (22 वर्ष), शकुंतला (34 वर्ष) और ममता चौरसिया (35 वर्ष) शामिल हैं.
जिस वक़्त ये घटना हुई उससे कुछ देर पहले ही चालीस वर्षीय सरिता जायसवाल अपने दरवाजे तक पहुंची ही थीं तबतक उन्हें कुएं के पास से चीखने की आवाज़ें सुनाई दीं.
सरिता बताती हैं, "मैं भी मटकोड़ में गयी थी. लेकिन तबियत कुछ ठीक नहीं लगी तो लौट आयी. जिनके साथ कुछ देर पहले खड़े होकर बातें कर रही थीं लेकिन हादसे के बाद बारी-बारी से उनकी मिट्टी (लाशें) देख घबरा गयी. अगर मैं घर न गयी होती तो मैं भी न बचती."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)















