पंजाब चुनाव 2022: चरणजीत सिंह चन्नी को दो सीटों से क्यों उतारा गया

मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी

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    • Author, गुरकिरपाल सिंह, बीबीसी पंजाबी
    • पदनाम, सुखचरणप्रीत सिंह, बीबीसी पंजाबी

पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस ने भदौड़ सीट से उम्मीदवार घोषित किया है. ये सीट भी आरक्षित सीटों में आती है.

इससे पहले कांग्रेस की ओर से जारी उम्मीदवारों की पहली सूची में चरणजीत सिंह चन्नी को चमकौर साहिब सीट से उम्मीदवार घोषित किया गया था.

चन्नी चमकौर साहिब विधानसभा सीट से विधायक हैं. यहाँ से तीन बार जीत चुके हैं. एक बार उन्होंने वहाँ से निर्दलीय ही चुनाव जीता था.

अब भदौड़ सीट से चरणजीत सिंह चन्नी की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद विपक्ष लगातार तंज कस रहा है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने चुटकी लेते हुए कहा, ''मैंने यह नहीं कहा कि हमारे सर्वे में चमकौर साहिब से चन्नी जी हार रहे हैं. आज कांग्रेस ने ऐलान किया है कि वे दो सीटों से चुनाव लड़ेंगे. क्या इसका मतलब ये है कि सर्वे सच है?"

शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भी भदौड़ सीट से चरणजीत सिंह चन्नी की उम्मीदवारी की घोषणा पर तंज कसते हुए कहा, ''चमकौर साहिब के लोग अवैध खनन और दूसरी कई वजहों से उनसे नाराज थे. ये बात चरणजीत चन्नी जानते थे इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वे भदौड़ से चुनाव लड़ेंगे.''

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भदौड़ - पिछली बार आप की जीत

भदौड़ में कुल 1,54,466 मतदाता हैं, जिनमें 82,149 पुरुष और 72,308 महिला मतदाता हैं. ये एक अर्ध-शहरी क्षेत्र है, जो कभी अकालियों का गढ़ हुआ करता था.

2012 में गायकी से राजनीति में प्रवेश करने वाले मोहम्मद सादिक ने अकाली दल के दरबारा सिंह गुरु को हरा दिया था.

2017 में जब मालवा में आम आदमी पार्टी की हवा चली तो बरनाला, महिला कलां और भदौड़ की तीन सीटें भी आम आदमी पार्टी के हाथ लगीं.

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मोहम्मद सादिक
इमेज कैप्शन, 2012 में गायकी से राजनीति में आए मोहम्मद सादिक ने भदौड़ से अकाली दल के दरबारा सिंह गुरु को हरा दिया

2017 में आम आदमी पार्टी के पिरमल सिंह धौला ने तीन बार के विधायक बलवीर सिंह घुनास को हराया था.

धौला बाद में आम आदमी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए. इस बार कांग्रेस ने उन्हें सीट भी नहीं दी है.

अब भदौड़ में त्रिकोणीय मुकाबला है, जिसमें एक तरफ अकाली दल के वकील सतनाम सिंह, दूसरी तरफ़ आप के लाभ सिंह उगोके और कांग्रेस के चरणजीत सिंह चन्नी हैं.

वरिष्ठ पत्रकार बलजीत बल्ली के अनुसार, "भदौड़ निर्वाचन क्षेत्र धुर मालवा का निर्वाचन क्षेत्र है. ये एक आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र है. हालांकि, पहले ये आरक्षित नहीं था. परिसीमन के दौरान इसे आरक्षित बनाया गया था.

"ये अकालियों के साथ भी रहा है, कांग्रेस के साथ भी रहा है और आम आदमी पार्टी के साथ रहा है. 2017 में आम आदमी पार्टी ने यहां चुनाव जीता था.

"वैसे, बलवीर सिंह घुनास यहां जीतते रहे हैं लेकिन इस निर्वाचन क्षेत्र को कभी बड़ा नेता नहीं मिला. एक तरह से इसे उपेक्षित निर्वाचन क्षेत्र कहा जा सकता है."

पिरमल सिंह

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इमेज कैप्शन, पिरमल सिंह ढोलन वर्तमान में भदौड़ से विधायक हैं. वे आम आदमी पार्टी के टिकट पर जीते लेकिन बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए.

2012 में जब मोहम्मद सादिक यहां से जीते थे तो ये क्षेत्र चर्चा में आया था.

बलजीत बल्ली का कहना है कि इस बार निर्वाचन क्षेत्र को चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में बड़ा नेता मिल सकता है.

इस निर्वाचन क्षेत्र की एक दिलचस्प बात ये है कि ये हवा के विपरीत चलता है.

वे कहते हैं, ''यहां जीतने वाले विधायक की पार्टी की सरकार नहीं बनती. 2012 में मोहम्मद सादिक जीते लेकिन अकालियों ने सरकार बनाई. 2017 में आम आदमी पार्टी ने सीट जीती लेकिन सरकार कांग्रेस की बनी.''

चरणजीत सिंह चन्नी

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चमकौर साहिब में हार से डरे चरणजीत चन्नी?

बलजीत बल्ली के मुताबिक चन्नी को मैदान में उतारने के पीछे कांग्रेस की रणनीति हिंदू और दलित वोटों को साधने और क्षेत्र में प्रभाव डालने की है. बल्ली के अनुसार, ''कांग्रेस चमकौर साहिब से डर कर नहीं बल्कि मालवा क्षेत्र को निशाना बनाने जा रही है.''

विरोधियों का कहना हो सकता है कि चन्नी चमकौर साहिब से हार रहे थे लेकिन बल्ली के मुताबिक कांग्रेस एक रणनीति के तहत ऐसा कर रही है.

वो कहते हैं, "पार्टी बरनाला के हिंदू और दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही है. इसलिए केवल ढिल्लों की टिकट काटी गई है और पवन बंसल के बेटे मनीष बंसल को बरनाला से टिकट दी गई है. चरणजीत सिंह चन्नी को भदौड़ आरक्षित सीट से मैदान में उतारा गया है."

ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि चरणजीत सिंह चन्नी दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए वे ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे.

बल्ली कहते हैं,"जब मुख्यमंत्री या वर्तमान मुख्यमंत्री का चेहरा किसी विधानसभा से चुनाव लड़ता है, तो उसका उद्देश्य न केवल उस विधानसभा को जीतना होता है, बल्कि आसपास की कई सीटों को भी प्रभावित करना होता है.

ये चार पांच सीटें किसी दूसरी पार्टी के पास जा सकती थी. ऐसा ना हो इसलिए कांग्रेस ने ये रणनीति बनाई है''.

वीडियो कैप्शन, पंजाब चुनाव: इस बार माहौल कुछ बदला-बदला सा है

भदौड़ से चन्नी के पक्ष में क्या जाता है

बल्ली कहते हैं, ''भदौड़ में चन्नी को लेकर कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है. हो सकता है कि अंदरूनी इलाक़ों में रेत और नकदी पकड़ने की उतनी चर्चा न हो, जितनी अन्य जगहों पर होती है."

इसके अलावा, बल्ली को लगता है कि लोगों को ज़मीन का मालिकाना हक देने और बिजली की कीमतों को कम करने के चन्नी के फ़ैसलों का गरीबों पर असर पड़ता है. खासकर गांवों में कांग्रेस इसका फायदा उठा सकती है"

वो साथ ही कहते हैं कि बाकी पार्टियों के कमज़ोर उम्मीदवार भी एक कारण हो सकता है.

बल्ली ने कहा,"कांग्रेस को लग सकता है कि अकाली दल के उम्मीदवार बलवीर सिंह घुनास को टिकट नहीं मिला इसलिए अकाली दल का उम्मीदवार भी कमज़ोर है.

"दूसरी तरफ भाजपा जो इस बार अकेले चुनाव लड़ रही है, उसे डर है कि वह शहरी हिंदू वोट काट देगी. तब कांग्रेस सोच सकती है कि इसके ख़िलाफ़ दलित वोटों को एकजुट करके इसकी भरपाई की जानी चाहिए.

इस तरह चन्नी की उम्मीदवारी से कांग्रेस को कुछ सीटें मिल सकती हैं."

नवजोत सिंह सिद्धू, राहुल गांधी और चरणजीत सिंह चन्नी

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इमेज कैप्शन, नवजोत सिंह सिद्धू, राहुल गांधी और चरणजीत सिंह चन्नी

क्या सिद्धू सीएम की रेस से बाहर हो रहे हैं?

इस सवाल पर बल्ली का मानना है कि कांग्रेस के लिए यह एक बड़ी दुविधा की स्थिति रही है.

वो कहते हैं,"पहले सुनील जाखड़ का नाम आगे किया गया था फिर पार्टी के भीतर से विरोध हुआ कि पंजाब का मुख्यमंत्री केवल एक सिख हो सकता है, हिंदू नहीं."

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बलजीत बल्ली का कहना है, ''सिद्धू अब कुछ नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने अमृतसर से अपना नामांकन भर दिया है. इसलिए वे नाराज़ नहीं बैठ सकते. ज़्यादा से ज़्यादा ये हो सकता है कि वे प्रचार के लिए न जाएं. देखा जाए तो कोई बड़ी रैलियां नहीं हो रही हैं कि सिद्धू स्टार प्रचारक होने का दावा कर सकते हैं.

''कांग्रेस के पास भी कोई विकल्प नहीं है. जब चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया था, तो कहा गया था कि उन्हें टाइम पास के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया है और बाद में नहीं बनाया जाएगा.''

बल्ली का कहना है कि अगर कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री घोषित नहीं करती है या उन्हें अभी मुख्यमंत्री नहीं बनाती है, तो जो फायदा एक दलित नेता को आगे लाने का हुआ था वो खत्म हो जाएगा. सुनील जाखड़ को हटाए जाने के बाद उन्होंने पहले ही हिंदू मतदाताओं को खो दिया है.''

कुल मिलाकर भदौड़ से मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी के साथ ही यह उपेक्षित निर्वाचन क्षेत्र एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है.

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