कठुआ गैंगरेपः पुलिसवालों की सज़ा निलंबित, क्या कह रहे हैं पीड़ित परिवार वाले?

- Author, माजिद जहांगीर
- पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए
साल 2018 के कठुआ सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले के दो दोषियों की बाकी सज़ा निलंबित करते हुए अदालत ने उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया है.
अदालत ने पूर्व पुलिस सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता और हेड कांस्टेबल तिलक राज को इस मामले में ज़मानत दे दी है.
इन दोनों दोषियों की रिहाई से पीड़िता के परिवारवालों में काफ़ी गुस्सा है. दुख भी है.
पीड़िता के पिता अख़्तर ख़ान ने बीबीसी को फ़ोन पर बताया, "हमने सुना है कि मेरी बेटी के दो दोषियों को अदालत ने ज़मानत पर रिहा किया है. उनकी रिहाई के बाद हम फिर एकबार ख़ौफ़ में जीने लगे हैं. मुझे डर है कि मेरी बेटी के दोषी अब जेल से बाहर आने लगे हैं और हम को किसी झूठे मामले में उल्टा फंसाया जा सकता है. जिन्हें छोड़ दिया गया है वो बहुत ताक़तवर लोग हैं. हम तो ये सोच रहे थे कि हमें इंसाफ़ मिल गया है ,लेकिन ये कौन सा इंसाफ़ है?"

कठुआ रेप और हत्या का मामला
साल 2017-18 में कठुआ ज़िले के रसाना गांव में मुस्लिम बकरवाल समुदाय की एक आठ साल की बच्ची का सामूहिक बलात्कार और फिर हत्या कर दी गयी थी. पुलिस के मुताबिक़ बच्ची को कई दिनों तक ड्रग्स देकर बेहोश रखा गया था.
इस घटना के बाद जम्मू-कश्मीर के साथ ही देश में भी इस घटना को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए थे और दोषियों को सख़्त सज़ा देने की मांग की गई थी.
इस घटना के सामने आने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी चर्चा हुई. संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने भी इस घटना की कड़ी निंदा की थी.
जम्मू-कश्मीर पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इस मामले में साल 2018 में आरोप पत्र दायर किए और सात लोगों को अभियुक्त बनाया. आरोप पत्र में क्राइम ब्रांच ने बताया था कि बच्ची का अपहरण करने के बाद उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और नशीली दवाइयां खिलायी गई थीं. पुलिस ने ये भी बताया था कि बच्ची का बलात्कार और हत्या करने के बाद उसे उस इलाके के एक मंदिर में चार दिनों तक रखा गया था.

तीन को उम्र क़ैद, तीन को 5-5 साल की क़ैद
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई जम्मू-कश्मीर से बाहर पठानकोट की सेशन कोर्ट में, रोज़ाना करने का आदेश दिया था.
साल 2019 में अदालत ने सात में से छह अभियुक्तों को दोषी ठहराया. छह दोषियों में से तीन को उम्र क़ैद की सज़ा सुनायी गई.
अदालत ने पूर्व सरकारी अधिकारी सांजी राम, दीपक खजुरिया और प्रवेश कुमार को उम्र क़ैद (25 साल की सज़ा) सुनाई थी जबकि अन्य तीन अभियुक्तों सब-इंस्पेक्टर आनंद दत्ता, हेड कॉन्स्टेबल तिलक राज और सुरिंदर वर्मा को पांच साल की सज़ा सुनायी थी. वहीं सांजी राम के बेटे विशाल को अदालत ने सबूत न होने के कारण रिहा कर दिया गया था.
अब अदालत ने पूर्व पुलिस सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता और हेड कांस्टेबल तिलक राज को ज़मानत दे दी है. इन्हें कठुआ सामूहिक बलात्कार मामले में सबूतों को नष्ट करने का दोषी पाए जाने के बाद जून 2019 में पांच साल की सज़ा सुनाई गई थी. इसके बाद उन्होंने सज़ा को निलंबित करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट का रुख़ किया था.

पीड़िता के वकील को डर है कि...
पीड़िता के वकील मुबीन फ़ारूक़ी ने बताया कि जिन दो दोषियों को ज़मानत पर रिहा किया गया है उनके ख़िलाफ़ उन्होंने उम्र क़ैद या फ़िर सज़ा-ए-मौत की अपील की है.
वे बताते हैं "हमने रिहा किए गए दोषियों के ख़िलाफ़ डेढ़ साल पहले उम्र क़ैद या फ़िर सज़ा-ए-मौत की अपील की थी. लेकिन हमारी अपील की सुनवाई नहीं हुई जबकि दोषियों की अपील को सुना गया और उन्हें ज़मानत पर रिहा किया गया है. हमारी अपील को अगर सुना जाता तो शायद दोषियों की सज़ा बढ़ जाती. बच्ची के मरने से पहले ये दो भी आपराधिक साज़िश में शामिल थे और ये भी बच्ची की मौत के ज़िम्मेदार रहे हैं."
मुबीन का कहना है कि उनके बाहर आने से मामले पर असर पड़ सकता है.
वह बताते हैं, "हमने बेल के विरोध में अपनी अपील में कहा था कि अगर इनकी ज़मानत हुई तो इलाके में शांति बिगड़ सकती है और भाईचारे का माहौल बिगड़ सकता है."
मुबीन बताते हैं कि जिन को दोषियों को बेल दी गई है वे पुलिस वाले हैं, लिहाज़ा पीड़िता के परिवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
वे कहते हैं कि जिस दिन से यह केस आया है उनका जीना मुश्किल हो गया है. उन पर पूरी ज़िंदगी कोई मामला दर्ज नहीं हुआ लेकिन इस केस को हाथ में लेने के बाद उन पर चार मामले दर्ज किए गए हैं.
वे कहते हैं, "जबसे मैं इस केस में आया हूँ, तब से मैं यहां सरकार का भी दुश्मन हो गया हूँ. ये सब एक साथ हैं. एक तरह से कोल्ड वॉर चल रही है कि किसी तरह से इन सबको जेल से निकाला जाए. और जब से मीडिया इस मामले पर ख़ामोश हो गया, तबसे मामले ने नई करवट लेनी शुरू कर दी. जो भी बच्ची को इंसाफ़ देने के लिए उठा वो उनके लिए आतंकवादी हो गया."

महबूबा मुफ़्ती की प्रतिक्रिया
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने ट्वीट किया है, "कठुआ बलात्कार मामले में सबूत नष्ट करने के दोषी पुलिसकर्मी को ज़मानत मिलने और उसकी जेल की अवधि निलंबित किए जाने से परेशान हूं. जब एक बच्ची के साथ बलात्कार और उसे पीट-पीटकर मार डाला जाता है, तो वह न्याय से वंचित हो जाती है, यह स्पष्ट हो जाता है कि न्याय का पहिया पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है."
पीड़िता के परिवारवालों को मिले पैसों का क्या हुआ?
इस घटना के बाद पीड़ित परिवार वालों के लिए देश और दुनिया के कई संस्थाओं और लोगों ने पैसा भेजा था और एक बड़ी रक़म जमा हो गयी थी.
पीड़ित परिवार वालों का कहना है कि वो पैसा आजतक उनको नहीं मिला और उनके नाम पर वह पैसा निकाला गया है.
अख़्तर ख़ान ने बीबीसी को बताया कि जब उनकी बेटी के साथ यह हादसा हुआ तो उनसे उनके समुदाय के लोगों ने बताया कि उनका और उनके साले मोहम्मद यूसफ़ का ज्वाइंट अकाउंट खुलवाना है जिसमें लोग पैसे डालेंगे. खाता खोलने के लिए वे जम्मू आ गए और दोनों (यूसफ़ और अख़्तर) का खाता खोला गया.
लेकिन अख़्तर का कहना है कि उनको आजतक उन पैसों में से कुछ भी नहीं मिला.

पैसों के बारे में कौन क्या कह रहा है?
हालांकि, पैसों के इस लेन-देन में जम्मू-कश्मीर पुलिस की क्राइम ब्रांच ने भी जांच की है.
अख़्तर ख़ान का कहना है, "मैं एक अनपढ़ आदमी हूँ. मुझे क्या पता कि खाता खोलने के बाद किसने मेरा पैसा निकला? जब हम दोबारा बैंक गए तो वहां से सारा पैसा निकल गया था."
अख़्तर के मुताबिक़, खाता असलम और फ़ारूक़ ने खुलवाया था और दोनों ने आश्वासन दिया था कि खाता खोलने के बाद पैसे आएंगे. असलम और फ़ारूक़ उनके (अख़्तर) रिश्तेदार हैं.
अख़्तर और यूसफ़ का ज्वाइंट खाता जम्मू-कश्मीर बैंक के नौआबाद, जम्मू ब्रांच में खोला गया था.
असलम ने बीबीसी को बताया कि जो पैसा उनके खाते में आया था वह अख़्तर और यूसफ़ को चेक और कैश की शक़्ल में दिया गया है.
उनका ये भी कहना था कि अख़्तर और यूसफ़ ने उन पर क्राइम ब्रांच में मामला भी दर्ज करवाया है और बीते दो वर्षों से वह केस झेल रहे हैं.
अख़्तर और यूसफ़ ने असलम के ख़िलाफ़ क्राइम ब्रांच में शिकायत दर्ज करवाई थी.
पैसों की लेनदेन की जांच कर रहे क्राइम ब्रांच के डीएसपी आबिद अहमद ने बताया कि जांच में असलम निर्दोष साबित हो चुके हैं. उनका ये भी कहना था कि जिन चेक के ज़रिए पैसे निकाले गए हैं, उनपर अख़्तर और यूसफ़ के दस्तख़त मौजूद हैं.
आबिद अहमद ने बताया कि उन्होंने रिपोर्ट को इंस्पेक्टर जनरल (ईईजी) के दफ़्तर में जमा किया है.
हालांकि, अख़्तर का कहना था कि जो जांच की गई है वो सही नहीं है.
कठुआ गैंगरेप और हत्या कांड को उजागर करने वाले तालिब हुसैन ने बीबीसी को बताया कि पीड़ित परिवारवालों का पैसा हड़प लिया गया है.
वे कहते हैं कि पैसे के लेनदेन की नए सिरे से जाँच होनी चाहिए.
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