लखीमपुर हिंसा: आशीष मिश्र की गिरफ़्तारी के बाद भी यूपी पुलिस पर उठते सवाल

आशीष मिश्रा

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    • Author, अनंत झणाणे
    • पदनाम, लखीमपुर से, बीबीसी हिंदी के लिए

लखीमपुर खीरी में किसानों पर गाड़ियां चढ़ाने के मामले में मुख्य अभियुक्त आशीष मिश्र को मामले की जांच कर ही एसआईटी ने शनिवार देर रात गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया है.

उनकी गिरफ़्तारी पर एसआईटी के डीआईजी उपेंद्र अग्रवाल ने कहा, "आशीष मिश्र विवेचना में सहयोग नहीं कर रहे हैं और सवालों के जवाब देने से बच रहे हैं, इस आधार पर पुलिस उन्हें गिरफ़्तार कर रही है."

हालांकि आशीष मिश्र के वकील अवधेश कुमार सिंह का दावा है कि उनके मुवक्किल ने पुलिस जांच में पूरी तरह सहयोग दिया है. उन्होंने बीबीसी को बताया, "सारी जांच हुई है, पुलिस ने जितने सवाल पूछे थे, उनके हर सवाल का जवाब आशीष मिश्र ने लिखित में दिए हैं."

शनिवार की देर रात उनका मेडिकल चेक अप पुलिस लाइंस में ही हुआ और उसके बाद उन्हें स्थानीय मजिस्ट्रेट दीक्षा भारती के सामने पेश किया गया, जहां पुलिस ने उन्हें तीन दिन तक रिमांड पर लेने की मांग की थी, लेकिन मजिस्ट्रेट ने अगली सुनवाई सोमवार 11 बजे तक स्थगित करते हुए उन्हें लखीमपुर खीरी जेल भेजने का निर्देश दिया.

पुलिस के तीन दिन के रिमांड मांगे जाने से तय है कि पुलिस अभी कई पहलूओं पर आशीष मिश्र से पूछताछ जारी रखना चाहती है. अब सोमवार को एसआईटी की टीम एक बार फिर से आशीष मिश्र को रिमांड पर लेने की कोशिश करेगी. आशीष मिश्र के मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल और हादसे के दिन ढाई बजे से चार बजे तक उनकी मौजूदगी के बारे में पुलिस और पूछताछ करना चाहती है.

आशीष मिश्रा को देर रात लखीमपुर जेल भेज दिया गया

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अब तक हुई पुलिस पूछताछ के बारे में आशीष मिश्रा के वकील अवधेश कुमार ने बताया, "पुलिस ने पूछा कि दो तारीख की जगह कुश्ती दंगल का आयोजन तीन तारीख को क्यों किया गया, इसका जवाब आशीष मिश्रा ने दिया कि मुख्य अतिथि का समय तीन तारीख का मिला था. इसके अलावा यह भी पूछा गया कि इस आयोजन की अनुमति ली गई थी या नहीं, तब आशीष मिश्र ने बताया कि 40 साल से दंगल हो रहा है, अब तक अनुमति की ज़रूरत नहीं पड़ी थी लिहाजा इस बार भी नहीं ली गई."

बहरहाल, एसआईटी की टीम आशीष मिश्र को तीन दिन के रिमांड पर नहीं ले सकी क्योंकि आशीष मिश्र के वकीलों ने रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने आरोपी का पक्ष रखने का मौक़ा माँगा और उन्हें वह मौका दिया गया है.

क्या कहना है यूपी के पूर्व डीजीपी का

मौके पर जांच करती यूपी पुलिस

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इमेज कैप्शन, यूपी पुलिस ने घटना के बाद क्राइम सीन को भी सुरक्षित नहीं किया और फोरेंसिक सबूत जुटाने में भी देरी की.

लेकिन इस पूरे मामले में यूपी पुलिस जिस तरह से केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे के साथ पेश आयी है, उस पर लगातार सवाल उठ रहे हैं.

लखीमपुर खीरी में किसानों को कुचलने संबंधी एफ़आईआर में आशीष मिश्र पर हत्या, हत्या की साजिश और गैर इरादतन हत्या के अलावा पांच अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज है.

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि एफ़आईआर दर्ज होने और हत्या जैसे जघन्य अपराध का आरोप लगने के बाद भी पुलिस को आशीष मिश्र की गिरफ़्तारी करने में पांच दिन का समय क्यों लगा और बारह घंटे की पूछताछ की ज़रूरत क्यों पड़ी?

इस मामले की जांच कर रही एसआईटी टीम के प्रमुख और लखनऊ डीआईजी उपेंद्र अग्रवाल ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया.

अपने कार्यकर्ताओं के साथ अजय मिश्रा टेनी

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इमेज कैप्शन, जिस समय आशीष मिश्रा से पूछताछ हो रही थी उनके पिता केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा अपने समर्थकों के साथ पास ही पार्टी कार्यालय में मौजूद थे.

दूसरा सवाल यह भी है कि आशीष मिश्र को गिरफ़्तार करने से पहले दो बार समन क्यों जारी किया गया क्योंकि आम तौर पर हत्या के दूसरे मामलों में अभियुक्तों के लिए समन जारी करने की प्रक्रिया का जिक्र भी नहीं होता है.

उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व महानिदेशक विक्रम सिंह ने बताया, "समन जारी करना एक सामान्य प्रक्रिया है लेकिन यह इतना हाईप्रोफाइल केस है. इसमें बहुत देरी नहीं होनी चाहिए. ऐसे मामले पुलिस व्यवस्था के लिए आन-बान की बात होते हैं, ऐसे में पुलिस को फॉस्ट फार्रवर्ड अंदाज़ में कार्रवाई करनी चाहिए थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि आप कुछ तो संदेश दीजिए कि आप इस मामले पर गंभीर हैं."

आम तौर पर हत्या के किसी मामले की विवेचना में पुलिस शिकायतकर्ता की तहरीर के आधार पर सबूत इकट्ठा कर दोष साबित करती है. लेकिन इस हाई प्रोफ़ाइल मामले में, पुलिस ने आरोपी आशीष मिश्र को अपने बचाव में सबूत पेश करने का मौक़ा दिया.

जो थार कार किसानों पर चढ़ाई गई थी वो केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के नाम पंजीकृत है

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यहां यह भी अहम है कि आशीष मिश्र हत्या के मामले के इकलौते नामज़द अभियुक्त हैं ना कि वारदात के चश्मदीद गवाह.

ऐसे में समझना मुश्किल नहीं है कि पुलिस के इस शिष्टाचार की एक वजह आशीष मिश्र के पिता का केंद्रीय गृह राज्य मंत्री होना भी हो सकता है.

आशीष मिश्र स्थानीय पुलिस के सामने पहले समन पर हाजिर नहीं हुए थे, जिसके बाद उन्हें दूसरा समन जारी करते हुए शनिवार 11 बजे सुबह तक पहुंचने के लिए वक्त दिया गया था.

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विक्रम सिंह कहते हैं, "पहले नोटिस पर यह बीमार पड़ गए. यह तो मीडिया का दबाव पड़ा तो यह पेश हो गए, वरना यह और बीमार पड़ते. पुलिस के पास अच्छी सुविधाएँ हैं, अगर यह बीमार पड़े थे तो इनका इलाज लखनऊ के अस्पताल में होता. अच्छे से अच्छा इलाज जेल के अंदर हो सकता है. इस मामले में इतना उदार दृष्टिकोण दिखाना उचित नहीं है."

विपक्ष इस मुद्दे को तूल भी दे रहा है. कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा, "किसानों को कुचलने वाला अभियुक्त गिरफ़्तार ज़रूर हुआ है लेकिन उनके पिता अभी भी देश के गृह राज्य मंत्री हैं उनके अधीन पूरे हिंदुस्तान के सूबों की पुलिस आती है. वे बार बार बोल रहे हैं कि मेरा बेटा बेकसूर है, उसे क्लीन चिट दे रहे हैं, ऐसे में उनके अंडर काम करने वाली पुलिस कैसे निष्पक्ष जांच करेगी?"

हालांकि इस घटना की जांच से जुड़े तमाम पुलिस अधिकारी पहले दिन से कह रहे थे कि उनकी पहली प्राथमिकता क़ानून व्यवस्था का कायम रखन है, इसलिए विवेचना में विलंब हो रहा है.

पुलिस पर है दबाव

लखीमपुर खीरी में बड़ी तादाद में पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं

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राज्य के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी भी मानते हैं कि पुलिस पर दबाव है.

त्रिपाठी कहते हैं, "इसमें कोई दो राय नहीं है कि पुलिस पर सरकार का दबाव है. खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि सबूत के बिना गिरफ़्तारी नहीं होगी. यह संदेह हो सकता है कि क्या मंत्री के बेटे जीप में थे या नहीं या फिर उनकी क्या और कितनी भूमिका है. लेकिन वीडियो से जाहिर है कि गाड़ी बहुत लापरवाही से चलाई गयी थी और वे इकलौते नामज़द आरोपी भी हैं, ऐसे में पहले दिन ही गिरफ़्तारी होनी चाहिए थी."

हालांकि भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता नवीन श्रीवास्तव के मुताबिक योगी आदित्यनाथ की सरकार ने हरसंभव कार्रवाई की है. उन्होंने कहा, "लखीमपुर खीरी की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है और एसआईटी जांच कर रही हैं. अभियुक्तों से पूछताछ कर गिरफ़्तारी भी हो गई है. यह योगी सरकार में ही सम्भव है कि एक केंद्रीय मंत्री के बेटे से पूछताछ हुई और फिर गिरफ़्तारी हुई. घटना इतनी बड़ी हुई थी, दुर्भाग्यपूर्ण हुई थी, पुलिस की पहली प्राथमिकता थी क़ानून व्यवस्था को क़ायम रखना."

वीडियो कैप्शन, योगी के राज में अपराध कम हुआ या बढ़ा?

समाजवादी पार्टी के नेता अभिषेक मिश्रा इस गिरफ़्तारी के बारे में कहते हैं, "आशीष मिश्र की गिरफ़्तारी एक तरह से पुलिस का केवल दिखावा है. इसका बहुत ज़्यादा मतलब नहीं है. क्योंकि उनके पिता आज भी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हैं. पुलिस बल ख़ासकर आईपीएस अधिकारियों पर उनके विभाग का ज़बर्दस्त नियंत्रण होता है इसलिए कोई भी इस मामले में ठीक से जांच कर पाएगा, इसमें हमें ही नहीं तमाम लोगों को संदेह है."

आशीष मिश्र की गिरफ़्तारी के अलावा इस मामले की विवेचना में भी देरी हुई है. पांच दिनों तक घटनास्थल पर मीडिया और तमाम लोगों का आना जाना जारी रही है और ऐसे में घटनास्थल पर मौजूद साक्ष्यों के ग़ायब होने की आशंका भी जताई जा रही है.

वीडियो कैप्शन, लखीमपुर हिंसा मामले पर सुप्रीम कोर्ट का सवाल

उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व महानिदेशक विक्रम सिंह ने कहा, "पुलिस ने क्राइम सीन को सिक्योर नहीं किया. वहां झमेला चलता रहा. मीडिया और आम लोग आते जाते रहे. पुलिस ने हथियार चलाने की बात कही है तो छापा मारकर अब तक हथियार क्यों नहीं बरामद किया गया. पिस्तौल के साथ छेड़छाड़ होती है तो इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा."

आशीष मिश्र की गाड़ी थार में से ज़िंदा कारतूस मिलने के बात पर आशीष मिश्र के वकील अवधेश कुमार ने कहा, "गाड़ी तो जला दी गई, तो कारतूस कैसे बच गया, हो सकता है कि उसे बाहर से डाला गया हो. पुलिस जो कह रही है वह सब सही हो ज़रूरी नहीं. वो तो अदालत में फ़ैसला होगा."

आशीष मिश्र के वकील अवधेश कुमार के मुताबिक़ घटना के वक्त आशीष तिकुनिया गाँव में घटनास्थल से दूर थे, इसे बताने के लिए लगभग 150 तस्वीरें और वीडियो पुलिस के सामने पेश किया गया है.

मंत्री की बनी हुई है मुश्किलें

आशीष मिश्र के वकील अवधेश कुमार सिंह

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उधर किसानों ने अपना आंदोलन को और बढ़ाने का एलान किया है. लखीमपुर के तिकुनिया घटनास्थल पर 12 अक्टूबर को एक शोकसभा का आयोजन किया जाएगा जिसमें सैकड़ों किसान और किसान नेता शामिल होंगे और इसके बाद 26 अक्टूबर को किसान महापंचायत करने का भी ऐलान किया गया है.

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल बना हुआ है. हालांकि वे इस घटना के बाद ना केवल वे गृह मंत्री अमित शाह से मिल चुके हैं बल्कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ चुनावी तैयारी संबंधी बैठक में भी हिस्सा ले चुके हैं. इस हादसे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लखनऊ में एक सभा को संबोधित कर चुके हैं लेकिन उन्होंने इस घटना पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

वीडियो कैप्शन, अजय मिश्रा के तेज़ी से मंत्री बनने की कहानी

वहीं दूसरी ओर विपक्ष और मृतक किसानों के परिवारवालों के मुताबिक एक निष्पक्ष जाँच के लिए मंत्री अजय मिश्र टेनी से सरकार को इस्तीफ़ा ले लेना चाहिए. विपक्ष का आरोप है कि पद और स्थानीय वर्चस्व से मंत्री अपने बेटे के ख़िलाफ़ जांच के दख़ल दे सकते हैं और उसे प्रभावित कर सकते हैं.

केंद्रीय मंत्री फ़िलहाल लखीमपुर खीरी में मौजूद हैं. उन्होंने अपने बेटे की गिरफ़्तारी से पहले उन्होंने अपने संसदीय कार्यालय में कार्यकर्ताओं से कहा, "देश में क़ानून का राज है, हमारी सरकारें निष्पक्ष तरीके से काम करेंगी और जाँच एजेंसियां सही ढंग से काम करेंगी, दोषियों पर कार्रवाई होगी और निर्दोष पर कोई कार्रवाई नहीं होगी."

कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने इस मुद्दे पर कहा, "मंत्री ने ही भड़काऊ भाषण दिए, चुनौतियाँ दीं, धमकियाँ दीं, तो वो तो इसके साज़िशकर्ताओं में भी शामिल हैं. ऐसे मंत्री को बर्खास्त कर देना चाहिए लेकिन अभी तक मोदी जी ने बर्खास्त क्यों नहीं किया?"

वीडियो कैप्शन, लखीमपुर हिंसा: मंत्री और उनके बेटे ने क्या कहा?

वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, "राजनीति में बहुत सारे कदम लोकलाज के लिए होते हैं. तो भले ही वो इस घटना की साज़िश में शामिल ना हों, उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी तो बनती है. और बहुत दुखद बात है कि प्रधानमंत्री ने इस पूरी घटना पर कुछ शोक व्यक्त नहीं किया है, तो वो अपने आप में सबके लिए और अफ़सरशाही के लिए एक सिग्नल है."

समाजवादी पार्टी के नेता अभिषेक मिश्र कहते हैं, "जब तक अजय मिश्र इस्तीफ़ा नहीं देते हैं, तब तक इस मामले की जांच ठीक से नहीं हो सकती है और जांच के नाम पर जो कुछ होगा वह महज दिखावा ही होगा. हमारी मांग है कि केंद्र सरकार उन्हें मंत्री पद से हटाए और तब इस मामले की जांच कराएं."

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