कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर क्या केरल से शुरू होगी?

कई महिलाएं

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    • Author, इमरान कुरैशी
    • पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए

कोरोना संक्रमण की पहली लहर के दौरान केरल ने सक्रियता दिखाते हुए महामारी पर अंकुश लगाने में कामयाबी हासिल की थी, राज्य सरकार की इसके लिए काफ़ी प्रशंसा भी हुई थी.

लेकिन, मौजूदा समय में केरल में संक्रमण लगातार बढ़ रहा है और अब यह आशंका होने लगी है कि क्या कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर केरल से शुरू होने वाली है?

वैसे विशेषज्ञ इन आशंकाओं को सिरे से खारिज़ करते हैं, लेकिन अभी देश भर में जितने मामले सामने आ रहे हैं. उनमें 25 से 30 प्रतिशत मामले केवल केरल से आ रहे हैं. नए संक्रमण के लिहाज से केरल और महाराष्ट्र में होड़ देखने को मिल रही है.

राज्य में पिछले कई सप्ताह से टेस्ट पॉज़िटिविटी रेट 10 से 11 प्रतिशत के बीच थी, जो सोमवार को बढ़कर 11.08 प्रतिशत हो गई.

नई दिल्ली स्थित हेल्थ सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन प्लेटफ़ॉर्म (एचएसटीपी) के मुख्य कार्यकारी अधिकीरी राजीव सदानंदन ने बीबीसी हिंदी को बताया, "संक्रमण के मामले कम नहीं हो रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ क्यों नहीं रहे हैं. असली सवाल तो यह होना चाहिए. सभी संकेतों के मुताबिक़ संक्रमण तेज़ी से बढ़ना चाहिए, लेकिन वह नहीं हो रहा है."

जाने माने महामारी रोग विशेषज्ञ और पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया के प्रोफ़ेसर डॉ. गिरिधर बाबू ने बताया, "संक्रमण के बढ़ते मामलों को लेकर आशंकाएँ बंद होनी चाहिए. अभी भी केरल का उदाहरण बेहतर है. यहाँ कम लोगों की मौत हुई है. ज़्यादा लोगों को वैक्सीन दिए जाने के चलते अस्पताल आने वाले लोगों की संख्या भी कम है."

"राज्य सरकार ने अपना निगरानी कार्यक्रम बंद नहीं किया है, बल्कि उसे बढ़ाया है. कोरोना को लेकर केरल एक पॉज़िटिव स्टोरी है."

टेस्टिंग

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संक्रमण का लगातार बढ़ना

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान संक्रमितों की संख्या का बढ़ना असामान्य स्थिति नहीं है. पिछले साल पहली लहर के समय लगे लॉकडाउन के बाद से केरल में संक्रमितों की संख्या ज़्यादा देखने को मिली है.

11 सितंबर, 2020 को भारत में संक्रमण के कुल 96 हज़ार नए मामले सामने आए थे, जिनमें केरल में नौ हज़ार मामले थे. इसके बाद जब पहली लहर कमज़ोर पड़ी, तब 19 जनवरी, 2021 को भारत में 10 हज़ार नए संक्रमण सामने आए थे, जिनमें अकेले केरल में चार हज़ार मामले थे.

ऐसा ही रूझान कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान भी दिखा. छह मई, 2021 को देश भर में 4.12 लाख नए मामले सामने थे, जिनमें अकेले केरल में 10 प्रतिशत मामले थे.

तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज में कम्युनिटी मेडिसीन के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनीश टीएस ने बताया, "जब भी भारत में कोरोना संक्रमण के मामले कम हुए, केरल में संक्रमण मामलों का अनुपात ज़्यादा दिखा. लेकिन आपको ध्यान देना होगा कि केरल में कभी ऑक्सीजन की कमी या अस्पतालों में बेड की कमी नहीं हुई."

मई में केरल में रोज़ाना 44 हज़ार मामले सामने आ रहे थे और राज्य में सक्रिय मामलों की संख्या 4.45 लाख तक पहुँच गई थी. साथ ही राज्य में कोरोना संक्रमण के लिए टेस्ट पॉज़िटिविटी रेट 30 से 35 प्रतिशत तक हो गई थी.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के केरल प्रांत में सचिव डॉ. गोपीकुमार पी ने बीबीसी हिंदी को बताया, "इसका मतलब यही है कि राज्य की 30 से 35 फ़ीसदी आबादी को इम्युनिटी मिल चुकी है, जबकि 65 फ़ीसदी आबादी को संक्रमण का ख़तरा है."

केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन

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केरल में संक्रमण के मामले क्यों बढ़े?

डॉ. गोपीकुमार के मुताबिक़ पहली लहर के दौरान अगर परिवार के किसी एक शख़्स को संक्रमण होता था, तो परिवार के दूसरे लोग पॉज़िटिव नहीं होते थे, लेकिन दूसरी लहर में डेल्टा वेरिएंट के चलते संक्रमण की गति बढ़ गई है.

डॉ. गिरिधर बाबू ने बीबीसी हिंदी को बताया, "घरों में आइसोलेशन कितना कारगर है, ये हमें नहीं मालूम है. संक्रमण को कम करने के दो ही तरीक़े हैं, एक तो संक्रमितों की पहचान और दूसरा उन्हें आइसोलेट और क्वारंटीन रखना. कई लोग घरों में हैं, इसलिए संक्रमण फैलने की वजहों की पहचान कर पाना मुश्किल है, इससे जल्दी ही क्लस्टर बन रहा है. वायरस शरीर में मौजूद रहता है और जब आप बाहर निकलते हैं तो यह संक्रमण फैलता है. इसके अलावा केरल में संक्रमण के बढ़ते मामले की कोई दूसरी वजह तो नज़र नहीं आती है."

दूसरे राज्यों में भी देखा गया है कि लॉकडाउन के तुरंत बाद लोग घरों से बाहर निकलने लगे हैं. केरल में नियमों के तहत सप्ताह में तीन दिन दुकानें खुली रहती हैं और इन दुकानों पर बड़ी संख्या में लोग पहुँचते हैं, जहाँ सोशल डिस्टेंसिंग के प्रावधानों का पूरी तरह से पालन नहीं होता है.

वैक्सीनेशन

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केरल में स्वास्थ्य विभाग के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव सदानंदन ने बताया, "लॉकडाउन एक सुस्त विकल्प है, इसका कोई फ़ायदा नहीं है. आमतौर पर लॉकडाउन का इस्तेमाल लोगों को घरों में बंद करने के लिए नहीं होता है, बल्कि इसके ज़रिए लोगों को समस्या की स्थिति के बारे में बताया जाता है ताकि लोग अपने नज़रिए में बदलाव ला सकें. कोरोना संक्रमण में मौत की दर एक प्रतिशत से भी कम है, ये लोग जानते हैं. केरल को संक्रमितों की पहचान, उनके संपर्क में आए लोगों का पता लगाना और उन सभी लोगों के टेस्ट जैसे उन्हीं उपायों का इस्तेमाल करना चाहिए. जिन्हें मई, 2020 के दौरान अपनाया गया था."

सदानंदन इसे वैक्सीनेशन से जोड़कर भी देखते हैं. उन्होंने बताया, "वैक्सीन से लोगों में झूठा भरोसा उत्पन्न हुआ है. जब लोगों में यह भरोसा हो जाता है कि उनकी मौत नहीं होगी, महामारी की गंभीर स्थिति का सामना नहीं करना होगा, तो उनके नज़रिए में बदलाव आ जाता है."

केरल के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक़ राज्य में 18 साल से अधिक उम्र की 50 फ़ीसदी आबादी को वैक्सीन की पहली डोज़ मिल चुकी है, जबकि वैक्सीन की दोनों डोज़ 19.5 फ़ीसदी लोगों को मिली है.

कोरोना

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इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग पर पूरा ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिसके चलते मामले बढ़े हैं. कोरोना की पहली लहर के दौरान केरल में ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ता, आशा वर्कर, ग्राम पंचायत सदस्यों की भूमिका बेहद अहम रही थी.

डॉ. गोपीकुमार ने बताया, "दूसरी लहर के दौरान, ज़िला प्रशासन और स्वास्थ्यकर्मियों पर काफ़ी ज़्यादा दबाव है. स्थानीय कर्मचारियों और पुलिस की मदद लेनी पड़ी और यह सरकार की नाकामी थी."

केरल में एक और विचित्र समस्या है. राज्य सरकार के नियमों के मुताबिक़ टेस्ट पॉज़िटिविटी रेट एक निश्चित संख्या से कम होने पर इलाक़े में लॉकडाउन के प्रावधानों में रियायत दी जाती है.

राज्य के एक अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर कहा, "इसके चलते लॉकडाउन में रियायत पाने के लिए स्थानीय स्तर पर लोग 30 प्रतिशत से ज़्यादा टेस्ट कर रहे हैं ताकि टेस्ट पॉज़िटिविटी रेट कम रहे."

कोरोना टेस्टिंग

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तीसरी लहर की शुरुआत केरल से होगी?

केरल के डॉक्टरों ने स्वीकार किया है कि संक्रमण के जल्दी कम होने की उम्मीद नहीं है. डॉ. अनीश ने बीबीसी हिंदी को बताया, "कोरोना संक्रमण के मामलों में तेज़ी से कम या तेज़ी से बढ़ोत्तरी जैसी स्थिति नहीं होगी. सोमवार को कम मामले ज़रूर दर्ज होते हैं क्योंकि रविवार को बड़े अधिकारी निगरानी के लिए मौजूद नहीं होते हैं."

सदानंदन ने बताया, "संक्रमण के बढ़ते मामले, वैक्सीनेशन की स्थिति, सीरो पॉजिटिविटी और पाबंदियाँ, सब संतुलन की स्थिति में हैं और यह 10 से 11 प्रतिशत के बीच में है. केरल इसको सहजता से संभालने की स्थिति में है."

"सरकार को चिंता नहीं है क्योंकि प्राइवेट अस्पतालों के आईसीयू बेड ख़ाली पड़े हैं. संक्रमण के मामले तीन-चार सप्ताह से स्थिर है. संक्रमण की स्थिति संतुलन में हैं और सरकार को पता है कि वैक्सीन उपलब्धता के बेहतर होने से हालात सुधरेंगे, सरकार में किसी तरह का पैनिक नहीं है. अस्पतालों में स्थिति को संभालने की क्षमता है."

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डॉ. गिरिधर बाबू ने बताया, "अस्पतालों के 50 प्रतिशत से ज़्यादा कोविड बेड ख़ाली हैं. अस्पतालों में दूसरे मरीज़ों का इलाज हो रहा है. दूसरे राज्यों को भी केरल का मॉडल अपनाना चाहिए क्योंकि यहाँ कोरोना से होनी वाली मौतें कम हैं, अस्पताल में मरीज़ों की कमी है और वैक्सीनेशन की दर बेहतर है. हालांकि, संक्रमितों की कांटैक्ट ट्रेसिंग और टेस्टिंग की स्थिति को बेहतर करने की ज़रूरत है."

लेकिन अहम सवाल यही है कि क्या केरल से ही कोरोना की तीसरी लहर शुरू होगी?

इस बारे में डॉ. गिरिधर बाबू ने बताया, "एक लहर से दूसरी लहर के बीच में कुछ गैप होता है. एक लहर तब आती है जब बहुत सारे संक्रमित लोग एकत्रित हो जाएँगे. अगर संक्रमण वेरिएंट की वजह से है, तो वह लहर तेज़ी से फैलेगी. आप उसकी पहचान कर पाते हैं या नहीं यह काफ़ी हद तक टेस्टिंग की स्थिति से तय होगा."

वहीं, डॉ. अनीश तर्क देते हैं, "इस समय संक्रमण होता है तो अस्पतालों में बेड उपलब्ध है. वास्तविकता में कोरोना संक्रमण के ग्राफ़ के सपाट होने का यही अर्थ है."

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