'हनुमान' का जब वध हो रहा होगा 'राम' ख़ामोशी से नहीं देखेंगेः चिराग पासवान

- Author, प्रदीप कुमार
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
राम विलास पासवान के निधन के एक साल के अंदर ही उनकी बनाई पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी दो गुटों में बंट गई है. एक गुट की कमान उनके बेटे चिराग पासवान के हाथों में है जबकि दूसरे गुट की कमान राम विलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस के हाथों में हैं.
दोनों गुट का दावा है कि पार्टी का असली कमान उनके हाथों में है और वही राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. हालांकि मौजूदा समय में चिराग पासवान अपने ख़ेमे के इकलौते सांसद हैं. जबकि चाचा पशुपति कुमार पारस के गुट में पार्टी के पाँच सांसद हैं और इन लोगों के अनुरोध पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने पशुपति कुमार पास को संसदीय दल के नेता के तौर पर स्वीकृति दे दी है.
चिराग पासवान अपने राजनीतिक जीवन के सबसे मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं और ख़ुद उनके ही शब्दों में उन्हें किसी दूसरे से कोई शिकायत नहीं है क्योंकि उनके अपने ही उनका साथ छोड़ कर गए हैं. बीबीसी हिंदी से ख़ास मुलाक़ात में चिराग पासवान ने इस पूरे मामले में अपनी बात रखी.

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पार्टी में अलग-थलग पड़े, पार्टी हाथों से छिटक गई
पार्टी हाथों से छिटकी नहीं है. पाँच सांसद ज़रूर अलग हुए हैं. हमारी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 75 सदस्य हैं और उनमें 66 लोग हमारे साथ हैं. मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि पार्टी पर अधिकार के लिए हम लोग क़ानूनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं. मेरी राजनीतिक हत्या कराने की कोशिश है और पार्टी के अंदर कुछ मुट्ठी भर लोग कर रहे हैं जो मेरे पिता के सपनों को पूरा होते नहीं देखना चाहते हैं.

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चाचा पारस से कितना दुखी हैं चिराग
मैं दुखी ज़रूर हूं. क्योंकि जब अपने ही मेरे साथ नहीं हैं तो फिर दूसरों से क्या ही शिकवा करूं, क्या जनता दल यूनाइटेड को दोष दूं. पिता जी के निधन के बाद चाचा जी में जो परिवर्तन देखा है, उसकी क्या ही बात करूं. पहले छोटे चाचा का निधन और पिता जी के निधन के बाद मैं हर चीज़ के लिए उन पर ही निर्भर था. लेकिन मैं यह भी कहना चाहूंगा कि उन्होंने पार्टी को तोड़ने का प्रयास पिता जी के रहते भी किया था. जिन सांसदों के विरोध करने की बात हो रही थी, उनमें उनका भी नाम था. पिताजी के निधन के बाद उन्होंने बात करनी बंद कर दी. अगर उन्हें अध्यक्ष बनना था या केंद्र में मंत्री बनने की इच्छा थी, तो मुझसे कहते हैं, 'मैं ख़ुद उनके नाम का प्रस्तावक बनता है.'

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नीतीश कुमार की पार्टी पर दोष
मेरे पार्टी के मुट्ठी भर लोग मेरे पिता जी के विचारों के साथ समझौता करके उन लोगों के साथ जाकर खड़े हो गए हैं जो मेरे पिता की राजनीतिक हत्या कराना चाहते थे. मैं नीतीश कुमार की बात कर रहा हूं. पहली बार हमारी पार्टी में टूट नहीं कराई है. 2005 में हमारे 29 विधायक जीतकर आए थे, उन्हें तोड़ा. नवंबर, 2005 में चुनाव हुआ, उसमें तोड़ा. गाहे बगाहे एमएलसी को तोड़ा. इस बार एक विधायक जीत कर आए, उन्हें भी तोड़ लिया. नीतीश कुमार हमेशा मेरे पिता के राजनीतिक क़द को कम करने की कोशिश करते रहे. दलित-महादलित का विभाजन भी उन्होंने इसी सोच के साथ कराया था.

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बिहार चुनाव में समझौता कर लेता था तो...
मुझे 15 सीट मिल रहे थे, छह सांसदों की पार्टी को महज़ 15 सीटें मिल रही थीं, अगर मैं मान लेता तो दो मंत्री तो बिहार में होते ही, और केंद्र में मैं मंत्री बन चुका होता. अगर मेरी अपनी महत्वकांक्षा होती, तो वहां एनडीए में रहना मेरे लिए बेहतर होता. मेरा सवाल बिहार के सात निश्चय प्रोग्राम को लेकर भी था क्योंकि वह प्रोग्राम तो महागठबंधन का था, वह प्रोग्राम तो एनडीए का था भी नहीं. मैं बिहार फ़र्स्ट और बिहारी फ़र्स्ट के अपने विज़न की बात कर रहा था जिस पर नीतीश जी का कोई ध्यान नहीं था.

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राम पर क़ायम है हनुमान का भरोसा
मेरे चाचा और मेरे भाई ने मेरा साथ छोड़ दिया तो दूसरों पर क्या ऊंगली उठाऊं? हां, मुझे इस बात का दुख ज़रूर है कि जब मुझे संरक्षण की ज़रूरत है, तब मुझे वह नहीं मिल रहा है. हालांकि मैंने पूरी ईमानदारी से एक हनुमान की तरह अपनी भूमिका निभाई है. रामायण में जिस तरह से हनुमान ने माता सीता की खोज से लेकर लंका जलाने का काम किया था, उसी तरह से मैं प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के हर फ़ैसले में उनके साथ खड़ा रहा. चाहे वह धारा 370 की बात हो, चाहे ट्रिपल तलाक़ की बात हो चाहे एनआरसी की बात हो या राम मंदिर की बात हो, ये तमाम बड़े मुद्दे हैं जिसमें नीतीश कुमार जी ने केंद्र सरकार का विरोध किया है. सीएए-एनआरसी पर तो उन्होंने बिहार विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया था.
मेरी उम्मीद क़ायम है, आज नहीं तो कल आदरणीय प्रधानमंत्री जी का संरक्षण मुझे मिलेगा. हालांकि बीजेपी नेताओं की चुप्पी ज़रूर मुझे दुखी करती है. लेकिन मेरा विश्वास है कि 'जब हनुमान का वध हो रहा होगा तो राम ख़ामोशी से नहीं देखेंगे.'

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बिहार में तेजस्वी से बात
मैंने हमेशा कहा है कि तेजस्वी यादव मेरे छोटे भाई हैं. मेरे पिता और उनके पिता अच्छे दोस्त रहे हैं, लंबे समय तक साथ काम किया है, तो हम लोगों के बीच संवाद होता रहा है. ऐसा नहीं है कि अभी जो प्रकरण है उसके चलते बातचीत हो रही है. पिता जी से सीखा है कि हर जगह उनके मित्र होते थे.
केवल विपक्ष के नेताओं से बात नहीं हो रही है, बीजेपी के नेताओं के भी फ़ोन आए हैं, हालांकि ऑफ़िशियली वे सामने नहीं आए हैं. किसी से बातचीत के आधार पर यह कहना कि गठबंधन बदल रहा हूं या उनके साथ जा रहा हूं, ये ग़लत है.

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बिहार की जनता का भरोसा
मेरे सिर पर अब आशीर्वाद देने वाला हाथ नहीं रहा. पिता जी और छोटे चाचा के निधन के बाद दूसरे चाचा ने अपना हाथ हटा लिया है. ऐसे में मुझे लग रहा है कि बिहार की जनता के सिवा मेरे पास कुछ बचा नहीं है. मेरे अपने परिवार और साथियों ने धोखा दिया है तो ऐसे में बिहार की जनता ही है मेरे पास. उन लोगों से आशीर्वाद के लिए यात्रा कर रहा हूं, उसके बाद ऐसी कई यात्राओं की योजना है.

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चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में कहा है कि परिवार और पार्टी में फूट की वजह सौरभ पांडेय नाम के बनारस से आए बाहरी शख़्स हैं. सौरभ पांडेय चिराग पासवान की पार्टी के रणनीतिकारों में शामिल हैं और बिहार चुनाव ही नहीं पार्टी के फ़ैसलों में उनकी भूमिका बेहद अहम रही है.
सौरभ पांडेय ने पिछले दिनों राम विलास पासवान की लिखी एक चिट्ठी भी जारी की थी, जिसमें पासवान उन्हें बेटा और चिराग का भाई जैसा दोस्त कहते दिखे. सौरभ पांडेय की भूमिका पर चिराग पासवान ने कहा कि बाहर को कोई भी शख़्स इतना महत्वपूर्ण नहीं हो सकता कि परिवार में फूट पड़ जाए. चिराग कहते हैं कि बाहर के किसी शख़्स के चलते चाचा मेरी राजनीतिक हत्या करने की कोशिश कर रहे हैं, अगर मैं उनका अपना बेटा होता तो वे ऐसा करते?
लेकिन चिराग जिस दौर में गुज़र रहे हैं, उसकी कल्पना शायद उन्होंने कभी नहीं की थी, लिहाज़ा चाचा पशुपति कुमार पारस और चचेरे भाई प्रिंस राज की खुली बग़ावत के बाद भी वे कहते हैं, "मुझे तो यक़ीन ही नहीं हो रहा है कि मेरे अपनों ने ऐसा धोखा दिया है, अगर इन लोगों को मेरे व्यवहार से कोई शिकायत थी, तो मेरी मां से बात कर सकते थे."
हालांकि वे स्पष्टता से यह भी इरादा ज़ाहिर करते हैं कि राम विलास पासवान की पार्टी और उनकी विरासत को बचाने की लड़ाई में वे कोई कसर नहीं रखेंगे.
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