कोरोना: जब एंबुलेंस वाले को देने पड़े एक लाख 10 हज़ार रुपए

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- Author, विनीत खरे
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
कोविड काल में लगातार ऐसी शिकायतें मिल रही थीं कि कई प्राइवेट एंबुलेंस चालक मनमाना पैसा वसूल कर रहे हैं.
इन्हीं शिकायतों के बाद दिल्ली के केजरीवाल सरकार ने निजी एंबुलेंस के रेट निर्धारित कर दिए हैं और आदेश के उल्लंघन पर कई कार्रवाई की बात की है.
केजरीवाल ने एक ट्वीट में कहा कि मरीज़ को ले जाने का किराया प्रति 10 किलोमीटर 1,500 रुपए, बेसिक लाइफ़ सपोर्ट एंबुलेंस का प्रति 10 किलोमीटर किराया 2,000 रुपए और डॉक्टर सहित एडवांस्ड लाइफ़ सपोर्ट एंबुलेंस का किराया 4,000 रुपए प्रति 10 किलोमीटर होगा.
दस किलोमीटर के आगे जाने पर हर किलोमीटर का 100 रुपए देना होगा.
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ऑल इंडिया एंबुलेंस वेलफ़ेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष सत्यप्रकाश राणा ने इस फ़ैसले की आलोचना की है और इसे सरकार का "एकतरफ़ा फ़ैसला" बताया "जिसे सरकार ने बिना हमसे बातचीत किए जारी कर दिया है."
वो कहते हैं, "हमें इस फ़ैसले को मानना पड़ेगा क्योंकि इनके हाथ में चाबुक है."
इससे पहले हरियाणा सरकार ने भी एंबुलेंस के रेट तय कर दिए थे, जिसे लेकर एंबुलेंस चालक नाराज़ थे.
रिपोर्टों के मुताबिक़ हरियाणा में अब एडवांस्ड लाइफ़ सपोर्ट एंबुलेंसल को 15 रुपए प्रति किलोमीटर और बेसिक लाइफ़ सपोर्ट एंबुलेंसेज़ को सात रुपए किलोमीटर के रेट पर किराए पर लिया जा सकता है.
आदेश का उल्लंघन किए जाने पर ड्राइविंग लाइसेंस को रद्द किए जाने, एंबुलेंस को ज़ब्त किए जाने और 50 हज़ार रुपए जुर्माने की बात सरकार की ओर से की गई है.

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हरियाणा सरकार के फ़ैसले के बाद दिल्ली के भी एक हलक़े में एंबुलेंस के रेट निर्धारण को लेकर माँग उठने लगी थीं.
राणा पूछते हैं, "श्मशान पर हम चार से छह घंटे इंतज़ार करते हैं, क्या हमें सरकार उसका वेटिंग चार्ज देगी?"
माँग उठने की वजह थी शिकायतें जिनमें कई एंबुलेंस चालकों पर आरोप लगे कि वो कोरोना काल में एंबुलेंस की बढ़ी माँग का नाजायज़ फ़ायदा उठाकर वो लोगों को लूट रहे हैं.
एंबुलेंस के एक लाख दस हज़ार दिए
विमल मेहता की माँ को आईसीयू हॉस्पिटल बेड की सख़्त ज़रूरत थी, उनका ऑक्सीजन लेवल 60 तक पहुँच चुका था और घर में रखा ऑक्सीजन सिलेंडर ख़त्म हो चला था.
आम तौर पर ऑक्सीजन 90 से ऊपर होना चाहिए, उन्हें पता चला कि दिल्ली में एक आईसीयू बेड ख़ाली है, लेकिन अब ज़रूरत थी ऑक्सीजन से लैस एंबुलेंस की जो विमल की माँ को अस्पताल तक जीवित पहुँचा सके.

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उनकी माँ दिल्ली से लगे इंदिरापुरम में अपने दूसरे बेटे के साथ रहती हैं, इंदिरापुरम वाले घर तक एंबुलेंस बुलाने के लिए विमल और उनका परिवार लगातार फ़ोन करता रहा. विमल लंदन में रहते हैं, वो वहां से लगातार नंबर डायल कर रहे थे. सिंगापुर में रह रही उनकी बहन वहां से कोशिशें कर रही थीं.
विमल बताते हैं, "मैंने सभी जगह फ़ोन किया लेकिन ऑक्सीजन से लैस कोई एंबुलेंस उपलब्ध नहीं था."
विमल बताते हैं कि इसी साल जनवरी में उनके पिता की दिल के दौरे से हुई, उनकी मौत की एक वजह एंबुलेंस पहुँचने में देरी थी, इसलिए उन्होंने अपनी पिछली दिल्ली यात्रा के दौरान एंबुलेंस सर्विसेज़ के नंबर नोट कर लिए थे और वो लगातार अलग-अलग नंबरों पर फ़ोन कर रहे थे.
पहले उस नंबर पर उन्हें बताया गया कि ऑक्सीजन वाली एंबुलेंस उपलब्ध नहीं है लेकिन घंटों की कोशिशों के बाद सुर बदले. तब तक भारत में अगले दिन की सुबह हो चुकी थी.
इंदिरापुरम से रोहिणी जाने के लिए वेंटिलेटर, ऑक्सीजन और डॉक्टर वाली एंबुलेंस का किराया माँगा गया--70 हज़ार रुपए. दोनो जगहों के बीच फ़ासला है केवल 40 किलोमीटर.
विमल बताते हैं, "ऐसे मौक़े पर आप पैसे का मुंह नहीं देखते. हम ये रक़म दे सकते थे. मैंने कहा आप एंबुलेंस भेज दीजिए."
विमल के भाई अपनी मां को एंबुलेंस में लेकर रोहिणी के अस्पताल पहुँचे तो लेकिन पता चला कि बेड अब उपलब्ध नहीं था.
अस्पताल में उन्हें बताया गया कि अगर उनकी मां को अगले तीन घंटे में ऑक्सीजन नहीं मिला तो वो जीवित नहीं बचेंगी. उधर विमल के मुताबिक़ एंबुलेंस वाले चार लोग चाहते थे कि विमल की मां और भाई एंबुलेंस से बाहर उतरें ताकि वो कहीं और जा सकें.
क़िस्मत से विमल के दोस्त का एक अस्पताल नज़दीक ही ईस्ट ऑफ़ कैलाश में था जहां एक बेड ख़ाली था लेकिन विमल के मुताबिक़ वहां जाने के लिए एंबुलेंस वाले अब 40 हज़ार रुपए और माँग रहे थे.
विमल बताते हैं कि उन्होंने अपने भाई से कहा कि वो एंबुलेंस वालों को माँगे हुए पैसे दे दें लेकिन अगले अस्पताल तक छोड़ने के बाद. विमल के मुताबिक़ पैसे पहुँचने पर मिलने की बात पर एंबुलेंस ड्राइवर और उसके साथी गाली-गलौच पर उतर आए.
आख़िरकार विमल का मां को आईसीयू बेड मिला और उनकी हालत अब स्थिर है. उस रात से सुबह तक लंदन से विमल ने क़रीब 30 कॉल किए. और एंबुलेंस वाले को कुल मिलाकर एक लाख दस हज़ार रुपए दिए. विमल ने उस नंबर और एंबुलेंस सर्विस के बारे में ट्विटर पर जानकारी डाली है.

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आरोपों से इनकार
हमने जब उस नंबर पर फ़ोन किया तो जिस व्यक्ति ने फ़ोन उठाया उसने अपना नाम जमील मलिक बताया. जमील ने विमल के आरोपों को ग़लत बताया और कहा कि उन्होंने ऐसी कोई गाड़ी नहीं भेजी जिसने एक लाख दस हज़ार रुपए चार्ज किए.
उन्होंने कहा कि उनके पास 10-12 गाड़ियां हैं जिनमें कई दिनों से ऑक्सीजन नहीं है और वो मामले की जाँच करवा रहे हैं.
जमील के मुताबिक़ नोएडा से दिल्ली जाने का एंबुलेंस किराया 12 हज़ार रुपए है और एंबुलेंस में वेंटिलेटर, डॉक्टर और ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध होती है.
दिल्ली और दूसरी जगह कोविड के कारण हालात बेहद ख़राब हैं. ऑक्सीजन, हॉस्पिटल बेड, दवाओं का कमी तो है ही लेकिन ऑक्सीजन वाली एंबुलेंसों की भी भारी कमी है.
और ऐसे में आरोप लगे हैं कि मौक़े और माहौल का फ़ायदा उठाकर कई लोग मुनाफ़ा कमा रहे हैं.
पुलिस ने इस बारे में गिरफ़्तारियां की हैं, हेल्पलाइन बनाई है, और आम लोगों को आगाह भी किया है लेकिन शिकायतें जारी हैं.
नोएडा के अवनीश कुमार ने भी बातचीत में बताया कि किस तरह बिचौलिये मौक़े का फ़ायदा उठा रहे हैं. ट्विटर पर उन्होंने लिखा कि नोएडा के भीतर ही सेक्टर 71 से सेक्टर 94 तक जाने के लिए उन्होंने 11 हज़ार रुपए दिए.
बातचीत में उन्होंने बताया कि कुछ लोगों के दिल पत्थर के हो चुके हैं और वो इस मौक़े को बिज़नेस के मौक़े की तरह देख रहे हैं, और लोगों के पास पैसे देने के बजाए कोई और विकल्प नहीं है.
कुछ लोग ही ज़िम्मेदार
उधर एंबुलेंस वाले कहते हैं कि हो सकता है कि कुछ लोग ऐसा ग़लत काम करते हों लेकिन उनकी भी अपनी अलग परेशानियां हैं.
दिल्ली में चार एंबुलेंस चलवाने वाले राकेश पटेल बताते हैं कि ज़्यादातर एंबुलेंस गाड़ियाँ तो दिल्ली सरकार ने ले ली हैं, और कई एंबुलेंस मालिकों के पास तो ऑक्सीजन ही नहीं है.
एंबुलेंस के बढ़े किराये पर वो कहते हैं, "एंबुलेंस में कोविड शव ले जाने वालों को पीपीई किट पहनने पड़ते हैं और उन्हें पहनकर घंटों श्मशान के बाहर इंतज़ार करना पड़ता है, ऐसे में चार्ज तो करना पड़ेगा."
इसके लिए एंबुलेंस वाले हर घंटे के हिसाब से पैसे लेते हैं.
राकेश के मुताबिक़ पीपीई किट को एक बार पहनकर फेंक देना होता है.
एक अन्य एंबुलेंस मालिक ने बताया कि उनकी एंबुलेंस ऑक्सीजन उपलब्ध न होने की वजह से बंद है.

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एंबुलेंस चालकों की परेशानियाँ
ऑल इंडिया एंबुलेंस वेलफ़ेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष सत्यप्रकाश राणा कहते हैं कि जहां एंबुलेंस चालकों पर इतने आरोप लगते हैं, उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.
वो मानते हैं कि कुछ लोग मनमाना किराया माँगकर लोगों को लूटते हैं लेकिन वो कहते हैं कि जो लोग बहुत दिनों से एंबुलेंस का काम कर रहे हैं वो ऐसा काम नहीं करते.
राणा के मुताबिक़ दिल्ली में आज क़रीब एक हज़ार एंबुलेंस हैं जबकि माँग सौ गुना ज़्यादा है, जिसकी वजह है दिल्ली में अच्छे अस्पताल होने की वजह से बाहरी राज्यों से भी लोगों का दिल्ली आना.
हरियाणा सरकार के फ़ैसले पर राणा पूछते हैं कि "सरकार इस रेट पर एंबुलेंस ख़ुद क्यों नहीं चला लेती?"
वो कहते हैं, "सरकार ने हमसे कभी पूछा कि जो गाड़ी कल आठ लाख की मिलती थी वो आज 16 लाख की मिल रही है, जो फ़ैब्रिकेशन ख़र्च कल चार लाख का था, आज उस पर आठ लाख लग रहे हैं? हमसे तो कोई कुछ नहीं पूछता."
वो कहते हैं, "जो ड्राइवर देर तक ड्यूटी करता है, उसे खाना भी देना पड़ता है. जो सिलेंडर मैं 300 रुपए में लेता था आज मुझे वो 2000 रुपए का मिल रहा है."
वो बताते हैं कि दिल्ली में इतनी तादाद में शवों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए कोई सरकारी इंतज़ाम नहीं हैं.
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