जम्मू और कश्मीर: टास्क फ़ोर्स जो बिना जांच के सरकारी कर्मचारी को कर सकती है बर्ख़ास्त

पुलिसकर्मी

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    • Author, माजिद जहाँगीर
    • पदनाम, श्रीनगर से, बीबीसी हिंदी के लिए

केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में सरकार ने 'राज्य की सुरक्षा' के ख़िलाफ़ गतिविधियों के संदेह में सरकारी कर्मचारियों पर कार्रवाई शुरू करने के लिए एक विशेष टास्क फोर्स (एसटीएफ़) का गठन किया है.

इस विशेष टास्क फोर्स का काम कर्मचारियों से जुड़े मामलों की जांच करना होगा.

संविधान के अनुछेद 311 (2) (सी) के तहत पास किए गए इस ऑर्डर के ज़रिए सरकार को ये अधिकार है कि किसी भी कर्मचारी को बिना जाँच कमेटी का गठन किए नौकरी से बर्ख़ास्त किया जा सकता है.

तीन दिन पहले जम्मू-कश्मीर के सामान्य प्रशासन विभाग ने इस आशय का आदेश जारी किया है.

टास्क फोर्स में जम्मू-कश्मीर के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक, क़ानून, न्याय और विधायी विभाग के प्रतिनिधियों के साथ संबंधित कर्मचारी के विभाग का नुमाइंदा शामिल होगा.

इस आदेश में बताया गया है कि एसटीएफ़ को तय समय-सीमा के भीतर तेज़ी से मामलों की जांच-पड़ताल करनी होगी.

'कर्मचारियों को दबाने का ज़रिया'

कर्मचारी

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जम्मू कश्मीर में कर्मचारियों का मानना है कि ये कदम कर्मचारियों को दबाने का ज़रिया है.

कश्मीर के वरिष्ठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता रियाज़ खावर का कहना है, "जम्मू-कश्मीर के पास पहले भी भारतीय संविधान का आर्टिकल 126 था, भारत के संविधान का आर्टिकल 311 (2) भी लागू होता था. इस क़ानून के तहत ये किसी भी कर्मचारी को नौकरी से निलंबित कर सकते हैं."

"लेकिन क़ानून ये है कि अगर किसी कर्मचारी को निलंबित करना है, तो उसकी एक प्रक्रिया होती है. पहले जाँच होती है, आरोप-पत्र दाखिल किया जाता है, गवाही होती है. फिर अनुशंसा के बाद कर्मचारी को सक्षम अधिकारी निलंबित कर सकता है.''

रियाज़ खावर आगे कहते हैं, "आर्टिकल 311 (2) तब लागू किया जाता है, जब देश में जंग जैसा माहौल हो. जम्मू-कश्मीर में इसका मतलब है कि वो कर्मचारयों को दबाना चाहते हैं. ये अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है. जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है. यहाँ उप-राज्यपाल या राष्ट्रपति ही ऐसा कर सकते हैं. मैं समझता हूँ कि ये क़दम ग़ैर-क़ानूनी है."

नए आदेश की क्या ज़रूरत थी?

महिलाएं

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कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) के स्टेट सेक्रेटरी और पूर्व विधायक मोहम्मद यूसुफ़ तारिगामी इस आदेश की अलोचना करते हुए कहते हैं, "ये मनमानी है, ये काला क़ानून है और जम्मू कश्मीर में काम करने वाले लाखों कर्मचारियों के ख़िलाफ़ है."

"पहले से ही यहां क़ानून में कई प्रावधान मौजूद हैं, जो उन कर्मचारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई का अधिकार देते हैं जो अपनी ड्यूटी का उल्लंघन करते हैं. इस हवाले से नया ऑर्डर जारी करने की क्या ज़रूरत है?"

यूसुफ़ तारिगामी आगे कहते हैं, "इस तरह का ऑर्डर सरकार और अधिकारयों को ये मौका देगा कि वो अपने मातहत कर्मचारयों को दबा कर रखें. कर्मचारी के खिलाफ किसी जाँच के बिना कार्रवाई करना या नौकरी से बर्ख़ास्त करना इंसाफ़ के नियमों के ख़िलाफ़ है."

कश्मीर यूनिवर्सिटी में क़ानून विभाग के पूर्व प्रोफ़ेसर शौकत शफ़ी कहते हैं कि सरकार की तरफ़ से जारी आदेश में जो नई बात है, वो ये है कि इस काम के लिए स्पेशल टास्क फोर्स बनाई गई है.

कर्मचारी

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शौकत शफ़ी कहते हैं, "जम्मू-कश्मीर में पहले भी ऐसे क़ानून मौजूद थे. लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि राज्य अब कर्मचारियों के डराने के लिए एक मशीनरी बना रहा है. कश्मीर में तो इस समय कुछ हो नहीं रहा है. ग़ैर-कर्मचारियों को भी कोई गतिविधि करने की इजाज़त नहीं है."

"अब कौन-सी ऐसी गतिविधि हो रही है, जिसके लिए ये टास्क फोर्स बनाई जा रही है. अगर कर्मचारी कुछ करेगा भी, तो ज़्यादा से ज़्यादा ट्वीट ही कर सकता है. हमें समझ नहीं आ रहा है कि टास्क फोर्स किसलिए बनाई जा रही है?"

एक सरकारी कर्मचारी ने नाम ज़ाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ''सरकार अपने ख़िलाफ़ कोई भी बात सुनना नहीं चाहती है. सोशल मीडिया पर अपने ख़यालात साझा करने पर ये एक तरह से लगाम है.''

कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार शाह अब्बास कहते हैं कि आर्टिकल 370 को हटाने के साथ ही सरकार की ये कोशिश रही है कि यहाँ नए-नए क़ानून बनाए जाएं.

वीडियो कैप्शन, आइए, आपको ट्यूलिप गार्डन की सैर कराते हैं.

वो कहते हैं, "हमें यहाँ के हालात को लेकर ज़रा पीछे जाना पड़ेगा. 5 अगस्त 2019 से यहाँ ऐसे क़ानून लागू किए जा रहे हैं, जिनका मक़सद यहाँ मौजूद अलगाववाद की हवा को रोकना है. इसके लिए स्थानीय प्रशासन भी अब तरह-तरह के फ़रमान जारी करने लगा है."

"जिस ऑर्डर की आप बात कर रहे हैं, वो क़ानूनी रूप से भी ठीक नहीं है. टास्क फोर्स को अदालत के अधिकार दिए जा रहे हैं. इसका मतलब ये है कि अदालत को जो फैसला करना था, वो अब टास्क फोर्स करेगी.''

इस सरकारी आदेश की हो रही आलोचना के बारे में बीबीसी ने जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल के सलाहकार फ़ारूक़ ख़ान से जब पूछा तो उन्होंने कहा, "अगर इसकी आलोचना हो रही है या इसके ख़िलाफ़ बोला जा रहा है तो उसको ज़रूर देखा जाएगा."

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