पश्चिम बंगाल के मुसलमान ममता का साथ छोड़ क्या ओवैसी का दामन थामेंगे?

    • Author, प्रभाकर मणि तिवारी
    • पदनाम, कोलकाता से, बीबीसी हिंदी के लिए

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी के कुछ घंटों के औचक पश्चिम बंगाल दौरे ने राज्य में पहले से गरमाती सियासत में एक नया उफ़ान पैदा कर दिया है.

ओवैसी बेहद गुपचुप तरीक़े से रविवार को अचानक कोलकाता पहुँचे और सीधे हुगली ज़िले के श्रीरामपुर में मुसलमानों के पवित्र ज़ियारत स्थल फुरफुरा शरीफ़ गए.

वहाँ ज़ियारत के बाद उन्होंने पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी के साथ बैठक की और अगले विधानसभा चुनावों में उनके साथ मैदान में उतरने का एलान किया.

राज्य में चुनाव लड़ने की घोषणा करने के बाद ओवैसी का यह पश्चिम बंगाल का पहला दौरा था. ओवैसी के इस एलान ने ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है.

पश्चिम बंगाल में क़रीब 30 फ़ीसद अल्पसंख्यक टीएमसी का सबसे मज़बूत वोट बैंक रहे हैं. अब ओवैसी के मैदान में उतरने से इस वोट बैंक में सेंध का ख़तरा पैदा हो गया है.

ओवैसी की पार्टी

हालांकि टीएमसी ने ओवैसी को ख़ास अहमियत देने से इनकार करते हुए ओवैसी की पार्टी को बीजेपी की बी टीम क़रार दिया है.

लेकिन राजनीतिक हलक़े में सवाल उठने लगा है कि क्या ओवैसी ममता के खेल में ख़लल डालेंगे?

ओवैसी की सिद्दीक़ी से मुलाक़ात के बाद बंगाल में क़यासों का दौर तेज़ हो गया है.

वैसे तो बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद ही ओवैसी ने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में अपना उम्मीदवार उतारने का एलान कर दिया था.

लेकिन उसके कुछ दिनों बाद ही एआईएमआईएम के पश्चिम बंगाल प्रदेश अध्यक्ष अनवर पाशा को अपने ख़ेमे में खींच कर टीएमसी ने औवैसी को करारा झटका दिया था.

तब पाशा ने ओवैसी की खिंचाई करते हुए दावा किया था कि एआईएमआईएम वोटों का ध्रुवीकरण करके ममता बनर्जी को सत्ता से बेदख़ल करने का सपना देख रही बीजेपी को फ़ायदा पहुँचा रही है.

फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ की अहमियत

हुगली ज़िले में स्थित फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ अल्पसंख्यकों का पवित्र ज़ियारत स्थल है. फ़ुरफ़ुरा में वर्ष 1375 में मुकलिश ख़ान ने एक मस्जिद का निर्माण कराया था.

वह अब बंगाली मुसलमानों की आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है. उर्स और मेला के दौरान यहाँ देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं.

फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ में अबु बकर सिद्दीक़ी और उनके पाँच बेटों की मज़ार है. अबु बकर एक समाज सुधारक थे. धर्म में उनकी गहरी आस्था थी.

उन्होंने कई चैरिटेबल संस्थानों की स्थापना की थी. महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ में लड़कियों के लिए स्कूल की भी स्थापना की.

इसका नाम सिद्दीक़ी हाई स्कूल रखा. अबु बकर को ऑर्डर ऑफ़ फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ का संस्थापक माना जाता है.

चुनावों के मौक़े पर इसकी अहमियत काफ़ी बढ़ जाती है. वाम दलों से लेकर टीएमसी और कांग्रेस तक तमाम पार्टियों के नेता आशीर्वाद लेने वहाँ पहुँचने लगते हैं.

बंगाल का अल्पसंख्यक समुदाय

बंगाल के अल्पसंख्यक मुख्य रूप से दो धार्मिक संस्थाओं का अनुसरण करते हैं.

इनमें से देवबंदी आदर्शों पर चलने वाले जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अलावा फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ शामिल है.

ममता अपने ठोस अल्पसंख्यक वोट बैंक के समर्थन से लगभग 10 साल से सत्ता में हैं.

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक़, पश्चिम बंगाल की कुल आबादी में 27.01 फ़ीसद मुस्लिम थे. अब यह आँकड़ा 30 फ़ीसदी के क़रीब पहुँच गया है.

बांग्लादेश सीमा से लगे राज्य के ज़िलों में मुस्लिमों आबादी बहुतायत में है.

मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर में तो इस तबक़े के लोगों की आबादी कुल आबादी की आधी या उससे ज़्यादा है.

मुस्लिम वोट बैंक

इनके अलावा दक्षिण और उत्तर 24-परगना ज़िलों में भी इनका ख़ासा असर है. विधानसभा की 294 सीटों में से 100 से 110 सीटों पर इसी तबक़े के वोट निर्णायक हैं.

वर्ष 2006 तक राज्य के मुस्लिम वोट बैंक पर वाममोर्चा का क़ब्ज़ा था.

लेकिन उसके बाद इस तबक़े के वोटर धीरे-धीरे ममता की तृणमूल कांग्रेस की ओर आकर्षित हुए और साल 2011 और 2016 में इसी वोट बैंक की बदौलत ममता सत्ता में बनी रहीं.

लेकिन बीजेपी की ओर से मिलती मज़बूत चुनौती के बीच अब ओवैसी के यहाँ चुनावी राजनीति में उतरने की वजह से ममता बनर्जी सरकार के लिए नया सिरदर्द पैदा होने का अंदेशा है.

फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ में अब्बासी के साथ बैठक के बाद ओवैसी ने कहा, "टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी को मेरे संगठन पर आरोप लगाने की जगह आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और देखना चाहिए कि किस तरह से बीते लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने यहाँ 18 सीटें जीत लीं."

ममता बनर्जी के ख़िलाफ़

ओवैसी ने टीएमसी और ममता के इन आरोपों को भी निराधार बताया कि उनकी पार्टी बीजेपी की बी-टीम है और बीजेपी के विरोधी राजनीतिक दलों के वोट बैंक में सेंध लगाएगी.

ओवैसी का कहना था, "हम राजनीतिक दल हैं. हम बंगाल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे और चुनाव लड़ेंगे. यहाँ हम अब्बासी के साथ हैं. वे जो भी फ़ैसला करेंगे, हम उनका समर्थन करेंगे."

उधर, अब्बासी ने पत्रकारों से कहा, "ओवैसी यहाँ ज़ियारत के लिए आए थे. लेकिन राजनीतिक मसलों पर भी चर्चा हुई. उन्होंने हमे सामने रख कर बंगाल चुनावों में उतरने का फ़ैसला किया है. इस गठजोड़ का स्वरूप क्या होगा और हम कितनी सीटों पर लड़ेंगे, इसका फ़ैसला आने वाले दिनो में किया जाएगा."

अब्बासी इसी महीने अपनी नई राजनीतिक पार्टी का एलान कर सकते हैं. अब्बास सिद्दीक़ी हाल तक ममता बनर्जी के कट्टर समर्थक थे. लेकिन बीते कुछ महीनों से उन्होंने ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल रखा है.

बीजेपी की राह

सिद्दीक़ी ने ममता सरकार पर अल्पसंख्यकों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है. बंगाल की लगभग 100 सीटों पर फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ दरगाह का प्रभाव माना जाता है.

दूसरी ओर, टीएमसी ने ओवैसी के दौरे या उनके बंगाल चुनाव में उतरने के एलान को अपने लिए कोई चुनौती मानने को तैयार नहीं है.

शहरी विकास मंत्री फ़िरहाद हकीम कहते हैं, "बंगाल में सत्ता पाने के लिए 147 सीटों की ज़रूरत है. लेकिन ओवैसी के पास इतने उम्मीदवार ही नहीं है. उनकी पार्टी बीजेपी की राह आसान बनाने के लिए ही राजनीति में उतर रही है."

टीएमसी सांसद सौगत राय कहते हैं, "ओवैसी के आने से बंगाल की राजनीति पर कोई असर नहीं होगा. यहाँ उर्दूभाषी मुसलमानों की तादाद बहुत कम है. लोग ओवैसी की असलियत समझ गए हैं कि वे बीजेपी के लिए दूसरे दलों के वोट काटने का काम करते हैं."

कुछ दिनों पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी के साथ फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ का दौरा करने वाले वरिष्ठ कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान कहते हैं, "बंगाल के मुसलमान इतने मूर्ख नहीं हैं. अगर यहाँ धर्म के आधार पर राजनीति कामयाब होती, तो मुस्लिम लीग का वजूद ख़त्म नहीं होता."

बंगाल की राजनीति

फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के एक अन्य पीरज़ादा त्वाहा सिद्दीक़ी, जो ममता ख़ेमे के हैं, कहते हैं, "बंगाल के मुसलमान मौसमी सियारों की बजाय पूरे साल बाघ के साथ रहना ही पसंद करते हैं. बंगाल के मुसलमान धर्म और जात-पात की राजनीति के बजाय विकास का साथ देंगे."

दूसरी ओर, बीजेपी ने कहा है कि ओवैसी का दौरा और चुनाव लड़ने के एलान से टीएमसी के लिए तो चिंता का विषय हो सकता है, बीजेपी के लिए नहीं.

प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "मुसलमानों को अपनी जागीर समझने वाले और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले लोगों को ओवैसी से ख़तरा महसूस हो रहा है."

घोष ने टीएमसी के आरोपों का भी खंडन किया है. उनका कहना था, "मीम और बीजेपी के रास्ते अलग-अलग हैं. हमें किसी की सहायता की ज़रूरत नहीं है. बीते साल लोकसभा चुनावों के नतीजे इसका सबसे बड़ा सबूत हैं."

राजनीतिक पर्यवेक्षक समीर कुमार सेन कहते हैं, "ओवैसी के बंगाल की राजनीति में उतरने का क्या असर होगा, यह तो फ़िलहाल कहना मुश्किल है. लेकिन उनके दौरे और चुनाव लड़ने के एलान ने टीएमसी के माथे पर चिंता की लकीरें तो गहरी कर ही दी हैं."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)