किसान आंदोलन: क्या भारत के किसान ग़रीब हो रहे हैं?

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    • Author, श्रुति मेनन
    • पदनाम, रियलिटी चेक, बीबीसी

किसानों के लगातार जारी आंदोलन के बीच भारत सरकार इस बात पर ज़ोर दे रही हैं कि बदलाव किसानों की ज़िंदगी को बेहतर बनाएंगे.

साल 2016 में प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी बीजेपी ने वादा किया था कि 2022 तक वो किसानों की आय को दोगुनी कर देंगे.

लेकिन क्या इस बात का कोई सबूत है कि गांव में रहने वालों कि ज़िंदगी में सकारात्मक बदलाव आए हैं?

ग्रामीण इलाकों में आय की हालत?

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 40 प्रतिशत से अधिक काम करने वाले लोग खेती से जुड़े हुए हैं.

ग्रामीण भारत की घरेलू आय से जुड़े हाल के कोई आंकड़े नहीं है, लेकिव कृषि मजदूरी, जो कि ग्रामीण आय का एक अहम हिस्सा है, उससे जुड़े कुछ आंकड़े मौजूद है. इसके मुताबिक साल 2014 से 2019 के बीच विकास की दर धीमी हुई है.

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भारत में महंगाई दर पिछले कुछ सालों में बढ़ी है, वर्ल्ड बैंक के डेटा के मुताबिक उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 2017 में 2.5% से थोड़ी कम थी जो कि बढ़कर 2019 में लगभग 7.7% हो गई

इसलिए मजदूरी में मिले लाभ का कोई फ़यदा नहीं हुआ. ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर इकॉनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलेपमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 से 2016 के बीच सही मायने में किसानों की आय केवल 2 प्रतिशत बढ़ी है.

इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इनकी आय ग़ैर-किसानी वाले परिवारों का एक तिहाई भर है.

कृषि मामलों के जानकार देवेंद्र शर्मा का मानना है कि किसानों की इनकम नहीं बढ़ी है, और मुमकिन है कि पहले से ये कम ही हो गई है.

वीडियो कैप्शन, तमिलनाडु के किसानों ने कहा सूखे के कारण उनके साथी कर रहे हैं आत्महत्या

"अगर हम महंगाई को देखें तो महीने के दो हज़ार रुपये बढ़ जाने से बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता."

शर्मा खेती से जुड़े सामानों की बढ़ती कीमतों की ओर भी इशारा करते हैं, और बाज़ार में उत्पादन के घटते बढ़ते दामों को लेकर भी चिंतित हैं.

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ये भी बताता ज़रूरी है कि हाल के सालों में मौसम ने भी कई जगहों पर साथ नहीं दिया. सूखे के कारण किसानों की आय पर बुरा असर पड़ा है.

क्या सरकार अपना टारगेट पूरा कर पाई है?

2017 में एक सरकारी कमेटी ने रिपोर्ट दी थी कि 2015 के मुकाबले 2022 में आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसानों को 10.4 प्रतिशत की दर से बढ़ना होगा.

इसके अलावा, ये भी कहा गया था कि सरकार को 6.39 बिलियन रुपये का निवेश खेती के सेक्टर में करना होगा.

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2011-12 में सरकार का कुल निवेश केवल 8.5 प्रतिशत था. 2013-14 में ये बढ़कर 8.6 प्रतिशत हुआ और इसके बाद इसमें गिरावट दर्ज की गई. 2015 से ये निवेश 6 से 7 प्रतिशत भर ही रह गया है.

कर्ज़ में डूबते किसान

साल 2016 में नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट ने एक सरकारी सर्वे में पाया था कि तीन सालों में किसानों का कर्ज़ करीब दोगुना बढ़ गया था.

केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ़ से पिछले कुछ सालों में कोशिश की गई है कि किसानों को सीधे वित्तीय सहायता दी जाए और दूसरे कदम उठाकर भी मदद की जाए, जैसे कि उर्वरक और बीज पर सब्सिडी और कुछ क्रेडिट स्कीम देना.

2019 में केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि 8 करोड़ लोगों की कैश ट्रांसफर से मदद ली जाएगी.

इस स्कीम के तहत केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि किसानों को हर साल 6000 रुपये की मदद की जाएगी.

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देश के 6 राज्य इससे पहले से ही कैश ट्रांसफर स्कीम चला रहे थे.

देवेंद्र शर्मा के मुताबिक इनसे किसानों की आय बढ़ी है.

वो कहते हैं, "सरकार सीधे किसानों को सपोर्ट करने की स्कीम लेकर आई,ये एक सही दिशा में उठाया गया कदम था."

लेकिन इन स्कीम ने काम किया या नहीं, ये बताने के लिए हमारे पास डेटा उपलब्ध नहीं है.

किसानों की आय बढ़ाने के लिए बना सरकार की एक कमेटी के चेयरमेन अशोक दलवाई के मुताबिक सरकार सही दिशा में आगे बढ़ रही है.

वो कहते हैं, "हमें डेटा का इंतज़ार करना चाहिए. लेकिन मैं यह कह सकता हूं कि पिछले तीन सालों में विकास की रफ़्तार तेज़ हुई है, और आने वाले समय में यह और बढ़ेगी."

दलवाई कहते हैं कि उनके 'आंतरिक मूल्यांकन' के मुताबिक वो 'सही दिशा में हैं.'

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