कोरोना वैक्सीन: क्या भारत की पूरी आबादी को वैक्सीनेशन की ज़रूरत नहीं है?

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- Author, कमलेश
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
कोरोना वायरस से संक्रमण के बढ़ते आकंड़ों के साथ-साथ भारत में कोविड वैक्सीन की चर्चा भी बढ़ती जा रही है.
एक अरब से ज़्यादा की आबादी वाले देश में हर किसी को वैक्सीन मिल पाएगी या नहीं? इस सवाल और टीकाकरण अभियान में आने वाली चुनौतियों को लेकर चिंता जताई जा रही है.
लेकिन, फ़िलहाल सरकार द्वारा दी गई एक जानकारी ने एक नई चर्चा छेड़ दी है.
मंगलवार को स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण ने एक प्रेस कांफ्रेस के दौरान कहा कि पूरे देश के टीकाकरण की बात सरकार ने कभी नहीं की है. टीकाकरण सीमित जनसंख्या का किया जाएगा.
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राजेश भूषण के बयान को और स्पष्ट करते हुए इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के डायरेक्टर जनरल डॉक्टर बलराम भार्गव ने कहा कि सरकार का उद्देश्य वायरस की ट्रांसमिशन चेन को तोड़ना है.
कोरोना वैक्सीन
डॉक्टर बलराम भार्गव ने कहा, "अगर हम आबादी के उस हिस्से को जिसके कोरोना के चपेट में आने की ज्यादा आशंका है, वैक्सीन लगाकर कोरोना संक्रमण रोकने में कामयाब रहे तो शायद पूरी आबादी को वैक्सीन लगाने की ज़रूरत न पड़े."
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इससे पहले यही अनुमान लगाया जा रहा था कि सरकार के टीकाकरण अभियान में पूरी आबादी को शामिल किया जाएगा.
पर अब साफ हो गया है कि सरकार फ़िलहाल पूरी जनसंख्या को वैक्सीन नहीं देने जा रही है.
लेकिन, इसके बाद भी कई सवाल बाक़ी हैं. जैसे कि आबादी के एक ख़ास समूह को वैक्सीन देकर संक्रमण को कैसे रोका जा सकता है, ये तरीक़ा कितना कारगर हो सकता है और इसकी ज़रूरत क्यूं पड़ी?
वैक्सीनेशन की रणनीति
इसे लेकर सार्वजनिक नीति और स्वास्थ्य प्रणाली विशेषज्ञ डॉक्टर चंद्रकांत लहारिया का कहना है कि वैक्सीन का इस्तेमाल किस तरह किया जाए ये फ़ैसला दो आधार पर लिया जात है. पहला वैक्सीन की उपलब्धता और दूसरा उसका उद्देश्य.
डॉक्टर लहारिया 'टिल वी विन: इंडियाज़ फ़ाइट अगेंस्ट कोविड-19 पेंडेमिक' के सह-लेखक भी है. वे बताते हैं, "हमें पहले ये देखना होगा कि वैक्सीनेशन का उद्देश्य क्या है. अगर किसी देश के पास सीमित मात्रा में वैक्सीन है और उसका उद्देश्य मृत्यु दर घटाना है तो उसे उस जनसंख्या का चुनाव करना होगा जिनमें मौतें ज़्यादा हो रही हैं. जैसे बुज़ुर्ग, पहले से किसी बीमारी से ग्रस्त लोग और स्वास्थ्यकर्मी."
"लेकिन, एगर वैक्सीन उपलब्ध हो और ऐसी परिस्थिति हो कि मृत्यु दर काफ़ी कम है लेकिन संक्रमण बहुत तेज़ी से फैल रहा है. ऐसे में सरकार ये भी फ़ैसला ले सकती है कि मृत्यु दर तो कम है इसलिए पहले संक्रमण रोका जाए. अगर ये रणनीति अपनाई जाती है तो उन लोगों को पहले वैक्सीन दी जाती है जिन्हें संक्रमण होने और जिनसे संक्रमण फैलने का ख़तरा ज़्यादा होता है."
अपने फ़ैसले में भी सरकार ने उन लोगों को पहले वैक्सीन देने की बात की जिन्हें ख़तरा ज़्यादा है. इन लोगों में स्वास्थ्यकर्मी और पुलिसकर्मी शामिल हो सकते हैं. स्वास्थ्यकर्मिंयों में सिर्फ़ डॉक्टर और नर्स नहीं बल्कि वॉर्ड बॉय, सफाईकर्मी और एंबुलेंस ड्राइवर आदि भी शामिल हो सकते हैं.
सीमित समय और संसाधन
वहीं, सभी लोगों तक वैक्सीन पहुंचाना भी एक बड़ी चुनौती है. इसमें स्टोरेज से लेकर वितरण तक बहुत बड़ी मात्रा में संसाधानों की ज़रूरत होगी.
ये सही है कि टीकाकरण अभियानों के मामले में भारत का बहुत समृद्ध अनुभव है. भारत दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन उत्पादकों में से एक है.
यहां पोलिया, चेचक और अन्य बीमारियों के लिए चलाए गए टीकाकरण अभियानों की सफलता के कारण भारत के पास पहले से एक व्यवस्थित प्रणाली है.
लेकिन, फ़िलहाल वैक्सीन पर ही ट्रायल ख़त्म नहीं हुआ है और संक्रमण के स्तर को देखते हुए सरकार के पास समय भी कम है जबकि पहले के टीकाकरण अभियान सालों-साल तक चलाए गए हैं.
भारत में इस समय पांच वैक्सीन प्रोजेक्ट्स के क्लीनिकल ट्रायल चल रहे हैं जिनमें से दो भारत में बनी हैं और तीन विदेश में.
इसके अलावा ब्रिटेन-स्वीडन की फ़ार्मास्यूटिकल कंपनी एस्ट्राजेनिका और मॉडर्ना ने वैक्सीन के बेहतर नतीजे सामने आने की बात कही है. अमेरिकी कंपनी फाइज़र की वैक्सीन को तो ब्रिटेन ने मंज़ूरी भी दे दी है.
कैसे टूटेगा संक्रमण का चेन
लेकिन, सबसे ज़्यादा ख़तरे वाली आबादी को वैक्सीन देने के पीछे का उद्देश्य संक्रमण को कम करना है.
ये कैसे संभव है? इसे लेकर इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर सुरनजीत चैटर्जी कहते हैं कि इसमें वही तरीक़ा काम करता है जो हर्ड इम्यूनिटी में होता है.
डॉक्टर सुरनजीत बताते हैं, "जैसा कि हर्ड इम्यूनिटी में होता है कि कुछ प्रतिशत लोग किसी बीमारी से इम्यून हो गए हैं तो संक्रमण कम हो जाता है. अगर किसी को पहले से संक्रमण हो चुका है और ठीक होने के बाद उसमें इम्यूनिटी बन गई है, तो उसे फिर से कोरोना का संक्रमण होने पर वो वायरस उस व्यक्त के शरीर से दूसरे में नहीं फैलेगा."
"यही बात वैक्सीन को लेकर है. अगर उन लोगों को वैक्सीन दी जाती है जिनके संक्रमित होने और जिनसे संक्रमण फैलने की ज़्यादा संभावना है तो उनमें कोरोना वायरस के लिए इम्यूनिटी पैदा हो जाएगी. वो आगे वायरस के कैरियर नहीं बनेंगे. इस तरह संक्रमण का चेन टूट जाता है और वो कम लोगों तक पहुंच पाता है."
भारत में पहले भी टीकाकरण अभियान चले हैं लेकिन उनमें ऐसा तरीक़ा नहीं अपनाया गया.
अलग स्थितियां
डॉक्टर्स इन स्थितियों को पहले से अलग बताते हैं. कोविड-19 महामारी पहले की महामारियों से अलग है. यह वायरस बहुत जल्दी संक्रमित होता है. देखते ही देखते ये कुछ ही महीनों में पूरी दुनिया में फैल गया. गंभीर मामलों में इससे लोगों की मौत भी हो जाती है.
फिर दुनिया पहले के मुक़ाबले अब ज़्यादा जुड़ी हुई है. लोग एक से दूसरे देश आते-जाते रहते हैं. इससे भी संक्रमण जल्दी फैलता है.
बीमारी का तेज संक्रमण, गिरती अर्थवयवस्था, रुके हुए कामकाज और राजनीतिक दबाव भी ऐसे कारण हैं जिससे इस बीमारी जितना जल्दी हो नियंत्रित करने की ज़रूरत होने लगी है.
जानकारों के मुताबिक इन हालात में जल्द से जल्द बीमारी पर काबू पाने के लिए प्रथामिकता के आधार पर वैक्सीन दी जाती है. इस पर पूरे विश्व में सहमति होती है.
हालांकि, बाद में वैक्सीन के प्रभाव और ज़रूरत के अनुसार हर देश फैसला लेता है.
कम होंगे मामले
डॉक्टर सुरनजीत चैटर्जी कहते हैं कि इस तरीक़े से वायरस पूरी तरह ख़त्म नहीं होगा लेकिन संक्रमण के मामले कम हो सकेंगे जिससे स्वास्थ्य सुविधाओं पर पड़ रहा बोझ भी कम हो जाएगा. फिर जो लोग संक्रमित होंगे उनमें वायरस लोड कम हो सकता है, उन्हें बेहतर इलाज मिल सकता है और लोगों में इससे डर भी कम होगा.
वह कहते हैं कि भारत की जनसंख्या को देखते हुए हर एक व्यक्ति को वैक्सीन देना बहुत मुश्किल है. इसलिए मौजूदा संसाधनों में तात्कालिक समाधान खोजने की ज़रूरत है. इसके क्या नतीजे आते हैं इसके बाद आगे की रणनीति बनेगी.
डॉक्टर चंद्रकांत लहारिया के मुताबिक महामारी के दौरान और उसके बाद की टीकाकरण की रणनीति अलग होती है. माना जा रहा है कि ये महामारी साल 2021 के अंत तक ख़त्म होगी लेकिन कुछ हिस्से में कोरोना वायरस तब भी रह जाएगा. इसके बाद देखना होगा कि सरकार क्या तरीक़ा अपनाती है.
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