अयोध्या राम मंदिर शिलान्यास से मोदी की हिंदुत्ववादी छवि और मज़बूत होगी?

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- Author, सरोज सिंह
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
धोती कुर्ता और गले में गमछा. साथ में कोरोना से बचने वाला मास्क भी. अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास के लिए निकले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली छवि जैसे ही टीवी चैनलों पर दिखाई पड़ी, सभी ने एक ही बात नोटिस की - उनकी धोती और कुर्ते का रंग.
धारणा से उलट आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गेरुआ रंग का कुर्ता नहीं पहना.
सोशल मीडिया पर मोदी की 30 साल पहले की तस्वीर और आज की तस्वीर भी ख़ूब शेयर की जा रही है. लेकिन 30 साल पहले के कार्यकर्ता मोदी और आज के भारत के प्रधानमंत्री मोदी में कितना फ़र्क है - इसकी चर्चा आज के दिन ज़रूर हुई.
पहनावा
वैसे भी नरेंद्र मोदी की छवि हमेशा कुछ नया करने की रही है. ब्रांड गुरू हरीश बिजूर कहते हैं कि मोदी मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए ड्रेस पहनते हैं. इसलिए उन्हें 'अप्रोप्रिऐट ड्रेसर' की संज्ञा दी जाती है 'फ़ैशनेबल ड्रेसर' की नहीं.
हरीश के मुताबिक़ प्रधानमंत्री मोदी के आज के पहनावे की चर्चा देश में ही नहीं विदेश में भी होगी, इस बात को वो अच्छी तरह समझते हैं. इसलिए जानबूझ कर उन्होंने एक 'न्यूट्रल' रंग चुना है. हरीश कहते हैं, "ये रंग 'गेरुआ' से मिलता जुलता है, उसी का एक शेड है. लेकिन उतना भड़काऊ नहीं है. आज जिस समारोह में हिस्सा ले रहे हैं उसमें 'आपसी सोहार्द्र' का संदेश भी देना चाहते हैं. एक राष्ट्राध्यक्ष के तौर पर वो इस बात को समझते हैं."
'मैं भारतीय हूँ', 'मैं एक हिंदू हूँ' साथ ही 'मैं न्यूट्रल भी हूँ' - हरीश को लगता है कि एक ही पहनावे से प्रधानमंत्री ने ये तीनों संदेश एक साथ दे रहे हैं.

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गौरतलब है कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट इस भूमि पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया है. ये ट्रस्ट अयोध्या ज़मीन विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद केंद्र सरकार ने बनाया था.
ट्रस्ट के निमंत्रण पर ही प्रधानमंत्री वहाँ गए हैं. प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन की शुरुआत और अंत 'जय सियाराम' और 'सियापति रामचंद की जय' कहकर किया. सीपीआई और असदउद्दीन ओवैसी ने प्रधानमंत्री के तौर पर भूमि पूजा में शामिल होने के लिए मोदी की आलोचना की है. विवादित मंदिर पर विवाद भले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ख़त्म हो गया हो, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक जीवन में इसका उल्लेख हमेशा रहेगा. इसका प्रभाव उनके राजनीतिक भविष्य पर कितना पड़ेगा, इस पर बहस शुरू हो गई है.
भारत में कुछ राजनीति के जानकार मानते हैं कि आज के एतिहासिक समारोह के बाद भारत के इतिहास के सबसे लंबे अध्याय का समापन होने जा रहा है. और कुछ जानकारों के मुताबिक़ इसी अध्याय के समापन के साथ नए भारत की शुरुआत होगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिलान्यास के बाद अपने दिए भाषण में कहा, "भगवान राम भी मानते हैं कि भय बिनु होइ न प्रीति यानी बिना डर के प्रेम नहीं होता है. इसलिए हमारा देश जितना अधिक ताक़तवर होगा, हम उतने ही सुरक्षित और भयमुक्त होंगे."

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निर्णायक घड़ी
वरिष्ठ पत्रकार निस्तुला हेब्बार मानती हैं कि कोरोना के दौर में विश्व में मोदी की छवि पर इस समारोह और भूमि पूजा में हिस्सा लेने से कितना फ़र्क पड़ेगा, इसका आकलन अभी नहीं किया जा सकता. समाचार एजेंसी रॉयटर्स पर भी मोदी के आज के अयोध्या में होने की तस्वीरें शेयर की हैं. कैप्शन में लिखा गया है- भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विवादित हिंदू मंदिर के शिलान्यास समारोह में शामिल होते हुए.
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पहले ऐसा लगता था कि यह तथ्य कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद ये भूमि पूजन हो रहा है और ट्रस्ट के न्यौते पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहाँ गए हैं, ये अपने आप में कुछ विवादों पर विराम लगा देता है. लेकिन ऐसा लगता नहीं हैं.
निस्तुला के मुताबिक़, "पूरी दुनिया में इस बात की चर्चा पहले से है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदू सेंटिमेंट का प्रतिनिधित्व करते हैं और सरकारी नीतियों में भी सैद्धांतिक तौर पर इसे आगे रखते हैं. इस कार्यक्रम में उनके शामिल होने से उनकी छवि वैसी ही रहेगी."
लेकिन वो मानती हैं कि भारत में उनकी छवि हिंदुत्वादी नेता के प्रतीक के तौर पर होने लगेगी. इसमें कोई संदेह नहीं हैं. निस्तुला का मानना है कि अडवाणी-अटल वाली बीजेपी ने अयोध्या में राम-मंदिर बनने की मुहिम को आगे बढ़ाया, उसे अपने मुकाम तक पहुँचाने का काम नरेंद्र मोदी ने किया. इसका श्रेय हमेशा से मोदी को मिलेगा, ये आज तय हो गया.

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अयोध्या में राम-मंदिर निर्माण, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 ख़त्म करना और यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड- देश के लिए आरएसएस के ये तीन मुख्य एजेंडा हमेशा से रहे हैं. इसमें से दो नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में पूरे हुए, और तीन तलाक़ का बिल भी आया, ये नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि है. ऐसा निस्तुला को लगता है.
वो आगे कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि मोदी के राजनीतिक जीवन में आज के कार्यक्रम में शामिल होना सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट है. बतौर प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल को तीन बातों के लिए याद किया जाएगा.
पहला ये कि उनके नेतृत्व में दो बार बीजेपी अपने बूते पर सरकार बनाने में क़ामयाब रही. मोदी ने सत्ता में दो बार क़ाबिज हो कर ये साबित कर दिया हिंदुत्व की राजनीति करके भी भारत में सत्ता हासिल की जा सकती है. इससे पहले देश में एक धारणा थी कि जाति के आधार पर हिंदू वोट करते हैं, इसलिए वोट का विभाजन होता है और माइनॉरिटी सपोर्ट की भी ज़रूरत सरकार बनाने में पड़ती है.
दूसरा ये कि उन्होंने सदियों से चले आ रहे दो मुद्दों अनुच्छेद 370 और राम मंदिर दोनों पर अपना जनता से किया हुआ वादा निभाया.
और तीसरा ये उन्होंने कई योजनाएँ जैसे, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना जैसी स्कीम शुरू की. निस्तुला कहती हैं कि देश में कांग्रेस को ही ग़रीबों की पार्टी माना जाता रहा है, मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने वो तमग़ा भी कांग्रेस से छीन लिया है.

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दंगों के दाग
लेकिन क्या मोदी के राजनेता के तौर पर मंदिर के शिलान्यास करने के बाद 2002 के दंगों के दाग धुल जाएँगे?
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं, वो छवि तो कब की धुल गई है. उसके बाद नरेंद्र मोदी एक भी चुनाव नहीं हारे हैं. आज ओवैसी की पार्टी के अलावा कहीं से विरोध का कोई स्वर सुनाई नहीं दिया. क्या 25 साल पहले कोई इसकी कल्पना कर सकता था. मोदी ने आज हिंदुत्व विरोध का जो विमर्श था, उसे भारत की राजनीति ने ख़त्म कर दिया है.
लेकिन वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं कि वो बात हमेशा मोदी के साथ रहेगी. मोदी की प्रोफ़ाइल में ये बात हमेशा रहेगी. गुजरात में इनकी छवि हिंदू हृदय सम्राट की रही है. विश्व स्तर पर भी ऐसी ही रही है और आज के कार्यक्रम के बाद उस छवि को और बल मिलेगा.
लेकिन ये भी सच है अयोध्या के आगे क्या होगा, इस पर भी बहुत बातें निर्भर करती है.
अपनी बात को विस्तार से समझाते हुए नीरजा कहती हैं कि 6 दिसंबर 1992 के बाद से मंदिर का मुद्दा चुनाव में वोट बटोरने का मुद्दा बनना बंद हो गया. उनका तर्क है कि बीजेपी को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर पर वोट मिला ना कि मंदिर के मुद्दे पर.
नीरजा आगे कहती हैं कि अब सवाल है उठता है कि अयोध्या में मंदिर के नाम पर क्या उत्तर प्रदेश के 2022 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ को फ़ायदा मिलेगा?
क्या 2024 में होने वाले आम चुनाव में बीजेपी मंदिर के नाम पर दोबारा वोट ले पाएगी? या फिर अयोध्या में मंदिर के शिलान्यास के बाद विश्व हिंदू परिषद काशी और मथुरा का नारा दोबारा से बुलंद करेगी? या फिर हिंदू मुसलमान के बीच सोहार्दपूर्ण माहौल बना रहेगा?
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि बाबरी मस्जिद को गिराया जाना 'क्रिमिनल' था, जिसके लिए अभी तक किसी को ना तो दोषी नहीं ठहराया गया है और ना ही किसी को सज़ा ही मिली है. ऐसे में नीरजा को लगता है कि उत्तर भारत में आने वाले दिनों में हिंदू मुसलमान के रिश्ते कैसे होंगे, क्या मुसलमानों को आगे न्याय मिल पाएगा, ऐसे कई सवाल आज से दोबारा शुरू होते हैं.
इन्हीं सवालों के जवाब में मोदी का राजनेता के तौर पर आगे का भविष्य भी जुड़ा है.

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नीरजा कहती हैं कि आज की तारीख़ को राम-मंदिर के इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए. नरेंद्र मोदी के राजनीतिक सफ़र में ये दिन ज्यादा अहमियत नहीं रखता. इसे एक और वादा पूरा हुआ- बस इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडणीस भी निस्तुला और नीरजा की तरह ही मोदी के इस समारोह में शामिल होने को एक और समारोह जैसा ही मानती हैं.
अदिति को लगता है कि मोदी ख़ुद भी चाहते हैं कि उनकी छवि केवल हिंदुत्व लीडर की ना हो. बल्कि ऐसे नेता के तौर पर हो जिसने आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में भी बहुत काम किया है. मोदी और उनकी सरकार ने ग़रीबों के लिए जो काम किया है, उसको भी वो चाहते हैं कि हाईलाइट किया जाए. मंदिर उस कड़ी में है, लेकिन थोड़ी नीचे या अंत की तरफ़ आता है.
बीबीसी से बातचीत में अदिति ने कहा कि आज के समारोह में प्रधानमंत्री मोदी का अयोध्या जाना देश के हिंदुत्व पॉलिटिक्स के लिए एक टर्निंग प्वाइंट ज़रूर है.
मोदी जो कहते हैं, वो हिंदुत्व की पृष्ठभूमि में कहते हैं, जो करते हैं, वो हिंदुत्व की पृष्ठभूमि में करते हैं, लेकिन दूसरी तरफ़ उनको इस बात का गर्व है कि उन्होंने कई ऐसी नीतियाँ और स्कीम बनाई हैं, जो भारत में बिल्कुल नई हैं. मिसाल के तौर पर सोशल सिक्योरिटी के क्षेत्र में. और उसका श्रेय उनसे कोई छीने, वो ये नहीं चाहते.
प्रदीप सिंह यहाँ अदिति, निस्तुला और नीरजा से अलग राय रखते हैं. वो कहते हैं कि अयोध्या में प्रधानमंत्री मोदी के जाने से उनकी हिंदुत्वादी छवि और मज़बूत हुई है. ऐसा कह कर उन्हें एक खांचे में फिट नहीं कर रहे और ना ही उनकी दूसरी उपलब्धियों को नकार रहे हैं. हिंदुत्वादी छवि को वो लोग छोटा मानते हैं, जो हिंदुत्व को छोटा मानते हैं.
राम मंदिर आंदोलन

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अदिति 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद के लालकृष्ण आडवाणी के भाषण को याद करती हैं. उस वक़्त आडवाणी ने अपने भाषण में 'कल्चरल नेशनलिज्म' यानी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का ज़िक्र किया था.
उस समय किसी को इस शब्द की सही परिभाषा नहीं मालूम थी. अदिति को लगता है कि अब सही वक़्त आ गया है इसको परिभाषित करने का.
भारत में कई धर्म के लोग एक साथ रहते हैं. आने वाले बिहार के चुनाव में जो मुस्लिम बहुल इलाक़े हैं, वहाँ पर चुनाव प्रचार का स्वरूप क्या होगा, क्या मुसलमानों के जख़्मों को कुरेदा जाएगा, या फिर नहीं कुरेदा जाएगा, ये सब देखने की बात होगी. और तभी पता चलेगा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को सही मायनों में भारत अपनना चाहता है या नहीं.
प्रधानमंत्री ने आज के अपने भाषण में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की एक झलक भी सुनने को मिली. उन्होंने कहा, "राम अनेकता में एकता के प्रतीक हैं. सब राम के हैं, राम सबके हैं तुलसी के राम सगुण राम हैं. नानक और कबीर के राम निर्गुण राम हैं. आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के रघुपति राम हैं. तमिल, मलयालम, बांग्ला, कश्मीर, पंजाबी में राम हैं."
अदिति को लगता है कि मंदिर का सबसे बड़ा फ़ायदा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को होगा. वो भले ही व्यक्तिगत रूप से ब्राह्मणों के ख़िलाफ़ ना हों, लेकिन ब्राह्मणों को लगता है कि योगी उनके ख़िलाफ़ हैं. मंदिर बनने का काम जैसे जैसे तेज़ होगा, वैसे वैसे योगी की 'एंटी ब्राह्मण' छवि धूमिल होगी और उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी.
वैसे भी राम मंदिर आंदोलन में प्रधानमंत्री का कोई योगदान नहीं रहा है- ये बात प्रधानमंत्री की ही पार्टी के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने एक निजी चैनल पर कही है. सुब्रमण्यम स्वामी के मुताबिक़ राम मंदिर बनने का रास्ता साफ़ करने में अहम भूमिका पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और अशोक सिंघल की रही है.
70 साल से एक मामला चल रहा था, जिसे पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर के बाद मंदिर बनने का रास्ता साफ़ हुआ, लेकिन सच ये भी है कि भारत की जनता इसका सेहरा प्रधानमंत्री मोदी के सिर बांध रही है. नीरजा कहती है कि प्रधानमंत्री मोदी का वहाँ जाना इस बात को साबित करता है कि वो इस श्रेय को लेना भी चाहते हैं.
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