भारत और चीन भूटान को लुभाने में क्यों लगे हैं?

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- Author, भूमिका
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
चीन इस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई विवादों से जूझ रहा है. वो कोरोना का मामला हो, हॉन्ग कॉन्ग में नया सुरक्षा क़ानून हो, वीगर मुसलमानों की कथित प्रताड़ना हो या फिर भारत के साथ सीमा पर संघर्ष.
लेकिन इन सबके बीच चीन ने पूर्वी भूटान के सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य पर भी अपना दावा ठोक दिया. इतना ही नहीं भूटान के पूर्वी सेक्टर को भी चीन ने सीमा विवाद से जोड़ दिया.
चीन अपने दावे के समर्थन में कहता आया है कि दोनों देशों के बीच अब तक सीमांकन नहीं हुआ है और मध्य, पूर्वी और पश्चिमी सेक्शन को लेकर विवाद है.
लेकिन अब चीन ने इस विवाद को सुलझाने के लिए पैकेज समाधान की पेशकश की है. अब सवाल उठ रहा है कि चीन के रुख़ में एकाएक गरमी और फिर नरमी कैसे आई.
चीन ने पहले कभी नहीं किया ऐसा दावा

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पूर्वी भूटान पर चीन का दावा नया है, क्योंकि इससे पहले उसने कभी भी सकतेंग वन्यजीव अभ्यारण्य पर दावा नहीं किया था.
ये अभ्यारण्य अरुणाचल प्रदेश की सीमा के नज़दीक है.
दिलचस्प बात यह है कि 1984 के बाद से विवादित सीमा को लेकर 24 बार बातचीत हुई, तब तक चीन ने ऐसा कोई दावा नहीं किया था.
मंगलवार को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने पत्रकारों से बातचीत मेंसीमांकन की बात का ज़िक्र करते हुए कहा, "चीन की स्थिति तटस्थ और स्पष्ट है. दोनों देशों के बीच अब तक सीमांकन नहीं हुआ है और मध्य, पूर्वी और पश्चिमी सेक्शन को लेकर विवाद है."
हालांकि पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने यह भी कहा कि चीन नहीं चाहता है कि दो देशों के बीच के इस मुद्दे की और मंचों पर चर्चा हो.
चीन के इस दावे पर दिल्ली स्थित भूटान दूतावास की ओर से भी बयान जारी किया गया है.
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई की ख़बर के मुताबिक़, चीन के इस दावे पर भूटान ने भी जवाब दिया है.
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी कहते हैं, "चीन ने इससे पहले कभी भी यह मुद्दा नहीं उठाया और अब अचानक से पिछले महीने इस पर दावा पेश कर दिया. इसका सीधा सा मतलब यह कि चीन कभी भी कोई भी नया दावा पेश कर सकता है. उसके पड़ोसियों को भी नहीं पता चलेगा कि वो कब कौन सा विवाद पैदा कर दे."
चेलानी गलवान घाटी पर दावे का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि इससे पहले कभी भी उन्होंने ऐसा दावा नहीं किया था.
वो कहते हैं, "निश्चित रूप से यह चीन की रणनीति है और यह व्यवहार चीन के संदर्भ में नया नहीं है."
भारत-भूटान रिश्ता कितना मज़बूत

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एक ओर जहाँ चीन, भूटान के हिस्से पर दावा कर रहा है और इस मुद्दे को आपसी बातचीत से सुलझाने पर ज़ोर दे रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत, भूटान से संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने पर ध्यान दे रहा है.
हालिया घटनाक्रमों पर नज़र डालें तो 15 जुलाई को भारत और भूटान के बीच एक नयाट्रेड रूट खुला है.
इसके साथ ही भारत सरकार भूटान के एक और स्थायी लैंड कस्टम स्टेशन खोलने का अनुरोध भी स्वीकार कर सकती है. इससे भूटान को निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी.
इसके अलावा दोनों देशों के बीच ट्रेड प्वाइंट्स बनाने और मुजनाई-न्योएनपालिंग रेललिंक बनाने की दिशा में भी काम हो रहा है.
भारत और भूटान के बीच का सहयोग नया नहीं है.
भारत की आज़ादी के बाद दोनों देशों के बीच एक संधि हुई थी. इसमें अनेक प्रावधान थे और सबसे महत्वपूर्ण था रक्षा और विदेश मामलों में भूटान की निर्भरता.
हालांकि बाद में इस संधि में कई बदलाव हुए और अप्रचलित प्रावधानों को हटा दिया गया लेकिन आर्थिक सहयोग को मज़बूत करने और उसके विस्तार के लिए, संस्कृति-शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आपसी सहयोग के प्रावधान बने रहे. साथ ही विकास के लिए ज़रूरी प्रावधानों को शामिल भी किया गया.
क्या भारत और भूटान को दूर करने के लिए चीन बना रहा है दबाव?

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चीन का जिन दो देशों के साथ फ़िलहाल सीमा विवाद चल रहा है उनमें से एक भारत है और एक भूटान.
वहीं दूसरी ओर भूटान-भारत दक्षिण एशिया के दो सबसे क़रीबी देश हैं.
जानकार मानते हैं कि भूटान के साथ चीन का ताज़ा सीमा विवाद भारत के रणनीतिक हितों को प्रभावित करने की कोशिश हो सकती है.
भूटान में भारत के पूर्व राजदूत पवन वर्मा के मुताबिक़, "ये भूटान पर दबाव बनाने का चीन का तरीक़ा है. चीन जानता है कि भूटान के साथ जहाँ उसकी सीमा रेखा तय होगी, ख़ास तौर पर भूटान के पश्चिम की तरफ, जहाँ चीन-भूटान और भारत के बीच में एक ट्राइ-जंक्शन बनता है, वहाँ किस जगह सीमा निर्धारित हो, उससे भारत के रणनीतिक हितों पर असर होगा."
पवन वर्मा का मानना है कि यह प्रयास चीन आज से नहीं सालों से करता आ रहा है. वो चाहता है कि भूटान किसी भी तरह भारत से अपनी मित्रता को छोड़कर, चीन के साथ संबंध सुदृढ़ करे. लेकिन अब तक भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंध तक नहीं है.
साल 2017 में भूटान को लेकर ही चीन और भारत आमने सामने आए थे और दोनों देशों के बीच 75 दिनों तक सैन्य गतिरोध हुआ था.
तब भी चीन ने भूटान के हिस्से को नियंत्रण में लेने की कोशिश की थी.
भूटान में भारत के पूर्व राजदूत इंद्र पाल खोसला ने बीबीसी से बातचीत में इसे चीन की विस्तारवादी सोच का परिणाम बताया. उनका मानना है कि इस सोच के कारण ही चीन हर ओर दावे कर रहा है.
चीन लगातार भारत पर आरोप लगाता रहा है कि भारत अपने हितों को साधने के लिए भूटान का इस्तेमाल कर रहा है.
डोकलाम विवाद के दौरान चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने आरोप लगाया था कि भूटान की सीमा चौकी पर भारत ने बेवजह आकर टांग अड़ाई है.
चीन के इस सरकारी अख़बार ने लिखा था, ''अतीत में चीन और भूटान सीमा पर कई घटनाएँ हुई हैं. सभी का समाधान रॉयल भूटान आर्मी और चीनी आर्मी के बीच होता रहा है. इसमें कभी भारतीय सैनिकों की ज़रूरत नहीं पड़ी है.''
अख़बार ने लिखा था, ''इसमें कोई शक नहीं है कि भूटान में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी है और भूटानी आर्मी को भारत ट्रेनिंग और फंड मुहैया कराता है. भारत ऐसा भूटान की सुरक्षा के लिए नहीं करता है बल्कि ऐसा वह अपनी सुरक्षा के लिए करता है. यह भारत की चीन के ख़िलाफ़ सामरिक योजना के तहत है.''
लेकिन चीन और भारत के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है भूटान

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भूटान भारत और चीन के बीच एक बफ़र स्टेट है.
भारत के लिए भूटान के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि भारत में एक अनौपचारिक प्रथा है कि भारतीय प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, विदेश सचिव, सेना और रॉ प्रमुख की पहली विदेश यात्रा भूटान ही होती है.
पवन वर्मा के मुताबिक़, "भारत के लिए भूटान किस कारण अहम है, नक़्शे पर भूटान की स्थिति को देखकर ही समझा जा सकता है. हमारी सुरक्षा के लिए और रणनीतिक बढ़त के लिए भूटान के साथ संबंध बनाए रखना बेहद अहम है. यही वजह है कि भारत के विश्व में सबसे अच्छे संबंध भूटान से ही हैं."
भूटान के साथ भारत की 605 किलोमीटर की सीमा के कारण इसका सामरिक महत्व तो है ही, साथ ही भारत और भूटान के बीच व्यापारिक संबंध भी काफ़ी मज़बूत हैं. साल 2018 में दोनों देशों के बीच 9228 करोड़ रुपए का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था.
भूटान, भारत के लिए एक प्रमुख जल विद्युत स्रोत भी है. इसके अलावा भारत के सहयोग से भूटान में विकास से जुड़ी कई परियोजनाएँ चल रही हैं.
दूसरी ओर भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंध तक नहीं हैं.
पवन वर्मा कहते हैं, "चीन के संदर्भ में भूटान का महत्व कुछ इस तरह है कि अगर चीन भूटान में अपनी पैंठ बना ले तो वो भारत की सरहद के और क़रीब आ जाएगा. इसके साथ ही भारत-भूटान और चीन के बीच कुछ जगहें ऐसी हैं, जहाँ अगर चीन पहुँच जाए तो चिकन-नेक तक पहुँच जाएगा. इससे भारत पर निश्चित तौर पर दबाव बनेगा. ऐसे में चीन बार-बार कोशिश करता रहता है कि या तो दबाव से या फिर प्रलोभन से भूटान को अपने पक्ष में कर ले."
पवन वर्मा मानते हैं कि भूटान को लेकर चीन सालों से प्रयास करता रहा है और आगे भी करता रहेगा कि वो उससे अपने संबंध प्रगाढ़ कर ले.
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