कोरोना लॉकडाउन: स्कूलों में ऑनलाइन क्लास से कितना होगा बच्चों को फ़ायदा

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    • Author, कमलेश
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

भारत में कोरोनावायरस के मामले

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स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

11: 30 IST को अपडेट किया गया

दिल्ली की रहने वालीं अनीता सिंह (बदला हुआ नाम) का बेटा एक निजी स्कूल में छठी क्लास में पढ़ता है. कोरोना वायरस के कारण आजकल स्कूल बंद हैं तो उनके बेटे की स्कूल से ऑनलाइन क्लासेस (कक्षाएं) चल रही हैं.

एक तरफ़ अनीता ख़ुश हैं कि स्कूल बंद होने पर भी बेटे की पढ़ाई हो रही है तो दूसरी तरफ़ उन्हें ये भी चिंता है कि बच्चे को चार से पांच घंटे मोबाइल लेकर बैठना पड़ता है.

वो कहती हैं कि वैसे तो कहा जाता है कि बच्चों को मोबाइल से दूर रखें लेकिन अभी बच्चे को पढ़ाई के लिए ही मोबाइल इस्तेमाल करना पड़ रहा है. उसके बाद वो टीवी भी देखता है तो उसका स्क्रीन टाइम बढ़ गया है. इसका बच्चे की सेहत पर क्या असर होगा.

आजकल माता-पिता कुछ ऐसी ही दुविधा से दो-चार हो रहे हैं. बच्चे को पढ़ाना भी ज़रूरी है लेकिन उसकी सेहत भी अपनी जगह अहम है. साथ ही बच्चा कितना समझ पा रहा है ये भी देखना ज़रूरी है.

दरअसल, कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते मार्च से ही स्कूल बंद कर दिए गए हैं. इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि स्कूल कब से खुलेंगे और नया सिलेबस कब शुरू हो पाएगा.

ऐसे में ऑनलाइन क्लासेस देकर बच्चों को नया सिलेबस पढ़ाना शुरू हो चुका है. स्कूलों का ये भी कहना है कि ऑनलाइन क्लासेस में जो सिलेबस कराया गया है वो बाद में नहीं दोहराया जाएगा.

बच्चों का स्कूल की तरह ही टाइम टेबल बनाया गया है. बच्चों की कक्षाएं सुबह 8:30-9:00 बजे से शुरू हो जाती हैं और चार से पांच घंटे चलती हैं. हर विषय की कक्षा 40 से 45 मिनट तक चलती है और हर कक्षा के बाद 15 मिनट का ब्रेक दिया जाता है.

बच्चे ये क्लासेस मोबाइल या लैपटॉप पर वीडियो कॉल के ज़रिए ले रहे हैं जिससे उन्हें एक लंबे समय तक स्क्रीन देखनी पड़ती है और उनका स्क्रीन टाइम बढ़ जाता है.

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क्या होता है स्क्रीन टाइम

डॉक्टर कहते हैं कि बच्चों के लंबे समय तक मोबाइल या लैपटॉप के संपर्क में रहने से मानसिक और शारीरिक तौर पर असर हो सकता है.

ये असर क्या हो सकता है इससे पहले जानते हैं कि स्क्रीन टाइम क्या होता है. स्क्रीन टाइम का मतलब होता है कि बच्चा 24 घंटों में कितने घंटे मोबाइल, टीवी, लैपटॉप और टैबलेट जैसे गैजेट के इस्तेमाल में बिताता है.

अमेरिकन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने बच्चों के स्क्रीन टाइम के संबंध में कुछ दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिनके मुताबिक़-

· 18 महीने से कम उम्र के बच्चे स्क्रीन का इस्तेमाल ना करें.

· 18 से 24 महीने के बच्चे को माता-पिता उच्च गुणवत्ता वाले प्रोग्राम ही दिखाएं.

· 2 से 5 साल के बच्चे एक घंटे से ज़्यादा स्क्रीन का इस्तेमाल ना करें.

· छह साल और उससे ज़्यादा उम्र के बच्चों के स्क्रीन देखने का समय सीमित हो. साथ ही वो किस गैजेट पर और क्या देख रहे हैं, इस पर माता-पिता ध्यान दें. ये सुनिश्चित करें कि टीवी, मोबाइल या लैपटॉप पर इतना समय ना बिताए कि बच्चे के पास सोने, फिजिकल एक्टिविटी और अन्य ज़रूरी कामों के लिए समय कम पड़ जाए.

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बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर

स्क्रीन टाइम बढ़ने के मानसिक प्रभाव पर सफ़दरजंग अस्पताल में मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर पंकज कुमार कहते हैं, “कुछ स्टडीज़ के मुताबिक़ अगर बच्चे या किशोर छह या सात घंटे से ज़्यादा स्क्रीन पर रहते हैं तो उन पर मनोवैज्ञानिक असर हो सकता. इससे उनमें आत्मसंयम की कमी, जिज्ञासा में कमी, भावनात्मक स्थिरता ना होना, ध्यान केंद्रित ना कर पाना, आसानी से दोस्त नहीं बना पाना, जैसी समस्याएं हो सकती हैं.”

“हालांकि, ये इस पर भी निर्भर करता है कि वो स्क्रीन पर क्या देख रहे हैं, फ़िल्म, वीडियो, गेम, सोशल मीडिया देख रहे हैं या कुछ पढ़ रहे हैं. इनका असर बच्चे के अनुसार अलग-अलग हो सकता है.”

डॉक्टर पंकज कहते हैं कि ये समझना भी ज़रूरी है कि ऑनलाइन क्लास में जो पढ़ाया जा रहा है बच्चे उसे कितना समझ पा रहे हैं. जैसे कि सामान्य तौर पर नॉर्मल अटेंशन स्पैन 20 से 30 मिनट होता है यानी कोई भी व्यक्ति इतनी ही देर तक काम पर अच्छी तरह फ़ोकस कर सकता है.

ये सीमा ज़्यादा से ज़्यादा 40 मिनट हो सकती है. उसके बाद ध्यान भटकना शुरू हो जाता है. इसलिए स्कूल में कक्षाएं भी 30 से 40 मिनट की होती हैं उसके बाद ब्रेक दिया जाता है.

भारत में कोरोनावायरस के मामले

यह जानकारी नियमित रूप से अपडेट की जाती है, हालांकि मुमकिन है इनमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नवीनतम आंकड़े तुरंत न दिखें.

राज्य या केंद्र शासित प्रदेश कुल मामले जो स्वस्थ हुए मौतें
महाराष्ट्र 1351153 1049947 35751
आंध्र प्रदेश 681161 612300 5745
तमिलनाडु 586397 530708 9383
कर्नाटक 582458 469750 8641
उत्तराखंड 390875 331270 5652
गोवा 273098 240703 5272
पश्चिम बंगाल 250580 219844 4837
ओडिशा 212609 177585 866
तेलंगाना 189283 158690 1116
बिहार 180032 166188 892
केरल 179923 121264 698
असम 173629 142297 667
हरियाणा 134623 114576 3431
राजस्थान 130971 109472 1456
हिमाचल प्रदेश 125412 108411 1331
मध्य प्रदेश 124166 100012 2242
पंजाब 111375 90345 3284
छत्तीसगढ़ 108458 74537 877
झारखंड 81417 68603 688
उत्तर प्रदेश 47502 36646 580
गुजरात 32396 27072 407
पुडुचेरी 26685 21156 515
जम्मू और कश्मीर 14457 10607 175
चंडीगढ़ 11678 9325 153
मणिपुर 10477 7982 64
लद्दाख 4152 3064 58
अंडमान निकोबार द्वीप समूह 3803 3582 53
दिल्ली 3015 2836 2
मिज़ोरम 1958 1459 0

स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

11: 30 IST को अपडेट किया गया

डॉक्टर की सलाह है कि ऐसे में ध्यान देना ज़रूरी है कि क्लासेस बहुत लंबी और बोझिल ना हों. ऐसे में बच्चा स्क्रीन पर देखेगा, सुनेगा पर समझ नहीं पाएगा. फिर ऑनलाइन क्लास में टीचर के लिए ये पूछना भी मुश्किल है कि सभी बच्चों को समझ आया या नहीं.

लेकिन, डॉक्टर पंकज क्लासेस करवाना भी एक ज़रूरी एक्टिविटी मानते हैं ताकि बच्चे पढ़ाई से पूरी तरह अलग ना हो जाएं. इसके लिए वो कुछ विशेष बातें ध्यान रखने के लिए कहते हैं ताकि बच्चे मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ रहें.

· बच्चों को छोटी-छोटी फिजिकल एक्टिविटी के लिए प्रोत्साहित करें. एक ही जगह पर बैठे-बैठे उनकी सक्रियता कम हो सकती है.

· वो परिवार के साथ भी समय बिताएं. ऑनलाइन क्लास के बाद मोबाइल या टीवी पर कम से कम समय बिताएं.

· साथ ही बच्चों में आए बदलावों को नोटिस करें. उनमें उदासी, नींद की कमी या नींद का बढ़ना, चिड़चिड़ापन और ध्यान ना लग पाने जैसे लक्षण दिखने लगें तो उसके कारणों पर ग़ौर करें.

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आंखों पर असर

फ़ोन और लैपटॉप के ज़्यादा इस्तेमाल से बच्चे की आंखें कितनी सुरक्षित हैं, उसके चश्मे का नंबर तो नहीं बढ़ जाएगा, किसी भी माता-पिता के दिमाग़ में ऐसे सवाल आना लाज़मी हैं.

लेकिन, मैक्स अस्पताल में नेत्र विशेषज्ञ संजय धवन साफ़तौर पर कहते हैं कि स्क्रीन पर देखने से बच्चे के विज़न पर कोई असर नहीं पड़ता है.

वो कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि इससे बच्चे का नंबर बढ़ जाएगा या आंखें ख़राब हो जाएंगी. फिर बच्चों को हर क्लास के बाद मिलने वाला 15 मिनट का ब्रेक बहुत अच्छा है. इससे बच्चे को आराम करने का मौक़ा मिलेगा.”

हालांकि, डॉक्टर धवन का ये भी कहना है कि स्क्रीन पर देखने से आंखों में खिंचाव ज़रूर होता है, जिससे आंखों में पानी आना, सूखापन, जलन, आंखों में लालपन जैसी दिक्कतें हो सकती हैं. इन परेशानियों पर ध्यान देना ज़रूरी है. कुछ सावधानियों को अपनाकर इन दिक्कतों से बच्चों को बचाया जा सकता है.

· बच्चे को हर 15 मिनट के अंतराल पर एक मिनट के लिए आंखे बंद करने के लिए कहें. इससे आंखों को आराम मिलेगा.

· स्क्रीन बड़ी होगी तो आंखों के लिए ज़्यादा बेहतर होगा. मोबाइल की जगह लैपटॉप का इस्तेमाल करें. मोबाइल इस्तेमाल कर रहे हैं तो उसका साइज़ बड़ा हो.

· बच्चे के बैठने का पॉश्चर बिल्कुल ठीक रखें. स्क्रीन और बच्चे की आंखों का लेवल बराबरी पर हो. पीठ और सिर सीधे रहें.

· स्क्रीन को बच्चे से दो फ़ीट की दूरी पर रखें.

· क्लास के बाद टीवी देखने और मोबाइल के इस्तेमाल का समय कम कर दें ताकि उसका स्क्रीन टाइम बहुत ज़्यादा ना बढ़ जाए.

डॉक्टर संजय धवन का कहना है कि ये मुश्किल समय है और इस वक़्त पर कुछ कठिनाइयां होंगी ही. पढ़ाई ना होने से अच्छा है कि कुछ तो पढ़ाई हो वरना बच्चे टीवी, मोबाइल और वीडियो गेम में ही वक़्त बिताएंगे जिसका कोई फ़ायदा नहीं होगा.

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कितनी फ़ायदेमंद होगीं क्लास

मैक्स अस्पताल में मेंटल हेल्थ एंड बिहेव्यरल साइंस विभाग के प्रमुख डॉक्टर समीर मल्होत्रा मानते हैं कि ऑनलाइन क्लासेस ने बच्चों को एक रूटीन दिया है जो उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है.

वो कहते हैं, “स्कूल ना खुलने से बच्चों का समय बर्बाद नहीं हो रहा है. एक सकारात्मक दिशा में जा रहा है. माता-पिता ने देखा होगा कि ऑनलाइन क्लास के बिना बच्चे देर से सो रहे थे और देर से जग रहे थे और उनका पूरा रूटीन बदल गया था. लेकिन, ऑनलाइन क्लास होने से अब उनकी दिनचर्या ठीक रहेगी. उन्हें व्यस्त रहने के लिए सही काम मिलेगा.”

“फिर एक बात ये है कि अभी कोई नहीं जानता कि स्कूल कब खुलने वाले हैं. अगर इसमें बहुत देरी होती है तो आगे चलकर बच्चों पर ही स्लेबस पूरा करने का दबाव आएगा. ऐसे में उनकी मुश्किल बढ़ जाएगी. इससे अच्छा है कि थोड़ा-थोड़ा करके अभी से ही आगे बढ़ें.”

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ऑनलाइन क्लासे और स्कूलों की होड़

लेकिन, यूनिसेफ़ के साथ जुड़े शिक्षा विशेषज्ञ शेषागिरी इस बारे में अलग राय रखते हैं. वो छुट्टियों के दौरान पढ़ाई को तो ज़रूरी मानते हैं लेकिन ऑनलाइन क्लासेस के मौजूदा ढांचे को बच्चों पर दबाव और निजी स्कूलों की होड़ के तौर पर देखते हैं.

शेषागिरी कहते हैं, “बच्चे के ऊपर इतना दबाव डालने की ज़रूरत नहीं है. वैसे भी जब स्कूल बंद हुए थे तो पिछला सेशन लगभग पूरा हो चुका था और परीक्षाएं चल रही थीं. अब नया सेशन शुरू किया जाना है तो स्कूल खुलने पर पढ़ाया जा सकता है. ”

“ऑनलाइन क्लासेस के इस मौजूदा ढांचे पर ठीक से विचार नहीं किया गया है. जैसे कि इस दौरान जो स्लेबस कवर हो गया है वो आगे नहीं दोहराया जाएगा. अब उन बच्चों का सोचिए जो इस दौरान क्लासेस नहीं ले पाए. निजी स्कूलों में ही एक बड़ी संख्या आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के बच्चों की है, जो फीस भी नहीं दे पाते वो महंगा मोबाइल, लैपटॉप और इंटरनेट कहां से लाएंगे. एक तरह से आप उन बच्चों से शिक्षा का हक छीन रहे हैं.”

वो कहते हैं कि लग रहा है कि ऑनलाइन क्लासेस की सार्थकता और पहुंच का विश्लेषण किए बिना ही इन्हें शुरू कर दिया गया है. जैसे माता-पिता को दिखाने और अपने स्कूल का नंबर बढ़ाने की कोई दौड़ हो.

हालांकि, शेषागिरी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल को पूरी तरह ग़लत भी नहीं मानते. वो कहते हैं कि इतने लंबे समय तक बच्चे को पढ़ाई से दूर रखना भी ठीक नहीं. ऐसे में क्लासेस छोटी और दिलचस्प कटेंट के साथ हों जिससे बच्चे कुछ अच्छी बातें सीख सकें. जिनके पास मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा नहीं है उन तक रेडियो, टीवी, आंगनबाड़ी के माध्यम से पढ़ने की सामग्री पहुंचाई जाए.

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