सबरीमला: हर उम्र की महिलाएं कर सकती थीं मंदिर में प्रवेश?

    • Author, विग्नेश ए
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, तमिल सेवा

हाल में 10 से 50 वर्ष की उम्र के बीच की महिलाओं ने केरल के विवादित सबरीमला मंदिर में प्रवेश किया है.

इस ख़बर को मीडिया में स्वामी अयप्पा मंदिर में मासिक धर्म होने वाली महिलाओं के प्रवेश के पहले मामले के रूप में पेश किया गया है और ऐतिहासिक भी कहा गया है.

हालांकि, कई अपुष्ट ख़बरों के अनुसार पहले भी महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने की ख़बरें आती रही हैं.

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सितंबर 2018 में फ़ैसला दिया था कि हर उम्र की महिलाएं मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं. इसके बाद कई महिलाओं ने अकेले और समूह में मंदिर में आने की कोशिश की.

लेकिन भारी विरोध और कई बार स्वामी अयप्पा के भक्तों के हमले के कारण उनकी ये कोशिशें नाकाम रहीं.

लेकिन जनवरी की दो तारीख़ को सुबह पौने चार बजे कनकदुर्गा और बिंदु अम्मिनि नाम की दो महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश किया और स्वामी अयप्पा के दर्शन किए. दोनों की उम्र 40 साल के आसपास है.

दोनों महिलाएं सादे कपड़े में पुलिसकर्मियों और कार्यकर्ताओं की सुरक्षा में स्वामी अयप्पा के मंदिर में प्रवेश करने में सफल रहीं.

मंदिर में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश का विरोध करने वालों का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद ही पहली बार महिलाएं सबरीमला मंदिर में प्रवेश कर पाई हैं और जनवरी की ये घटना अब तक का पहला मामला है.

कई मीडिया रिपोर्टों में भी यही दावे किए गए हैं. इन सभी रिपोर्ट की वैधता जांचने के लिए बीबीसी ने ये पड़ताल की कि क्या सबरीमला मंदिर में 50 से कम उम्र की महिलाओं के प्रवेश का ये वाक़ई पहला मामला है.

इस बात के सबूत मिलते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले भी 50 से कम उम्र की महिलाओं ने स्वामी अयप्पा के मंदिर में प्रवेश किया है.

सबरीमला मंदिर की देखरेख करने वाले त्रावणकोर देवासम बोर्ड को इन प्रवेशों की जानकारी भी थी और इन महिलाओं को बोर्ड से इजाज़त भी मिली थी. साथ ही इन भक्तों को पूजानुष्ठान करने की फ़ीस के बदले मिलने वाली रसीद भी जारी की गई थी.

कब-कब स्वामी अयप्पा के सामने पहुंची महिलाएं

केरल हाई कोर्ट ने एक मामले की जांच करने के बाद फ़ैसला दिया था जिसमें ऐसे मामलों का ज़िक्र किया गया था. उस फ़ैसले को देखें तो पता चलता है कि मंदिर में मासिक धर्म होने वाली महिलाओं को पहले भी प्रवेश मिला है.

19 अगस्त 1990 को जन्मभूमि मलयालम दैनिक अख़बार में देवासम बोर्ड की तात्कालिक कमिश्नर चंद्रिका की एक तस्वीर छपी थी. तस्वीर में उन्हें अपनी पोती के अन्नप्राशन्न समारोह में शिरकत करते देखा जा सकता है.

इस तस्वीर में चंद्रिका के साथ उनकी पोती की मां यानी उनकी बेटी भी मौजूद थीं. समारोह सबरीमला मंदिर में आयोजित किया गया था.

इसके बाद केरल हाई कोर्ट में एस. महादेवन नाम के एक व्यक्ति ने याचिका दायर की और कहा कि मंदिर में वीआईपी को अनुचित रूप से प्राथमिकता दी जा रही है और 10 से 50 साल की महिलाओं को प्रवेश करने दिया जा रहा है, जो परंपरा के ख़िलाफ़ है.

इस याचिका को बाद में जनहित याचिका में तब्दील कर दिया गया था.

कोर्ट में चंद्रिका ने यह बात स्वीकार की कि उन्हें और उनकी बेटी ने अन्न प्राशन्न समारोह में हिस्सा लिया था. लेकिन उन्होंने कोर्ट से कहा कि उन्हें अनुचित रूप से कहीं भी ख़ास मौक़े नहीं दिए गए हैं.

उन्होंने कहा कि मंदिर में उस दिन कई और बच्चों के लिए अन्न प्राशन्न समारोह का आयोजन किया गया था और उन बच्चों की मांएं भी वहां मौजूद थीं, और वो 50 साल से कम उम्र की थीं.

अपने उत्तर में त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने मांग की कि इस मामले में आम नागरिक के किसी अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया है, इसलिए इस याचिका को रद्द कर किया जाए.

इसके 26 साल बाद साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट में इसी देवासम बोर्ड ने महिलाओं के प्रवेश का विरोध किया. बोर्ड के प्रशासन और सदस्यों का बदलना शायद बोर्ड की दलील के बदलने का कारण हो सकती है.

बोर्ड ने स्वीकार किया था कि मासिक धर्म होने वाली महिलाएं यानी 10 से 50 साल की उम्र की महिलाएं पहले भी मंदिर में प्रवेश पाती रही हैं और इस तरह के आयोजन के सिलसिले में बोर्ड भक्तों से एक फ़ीस लिया करता था.

कोर्ट के फ़ैसले के अनुसार बोर्ड मलयालम महीनों के शुरुआत के दिनों में और अन्न प्राशन्न के मौक़ों पर हर उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की इजाज़त देता था.

लेकिन मकरविलयाकू पूजा, मंडला पूजा और मलयालम कैलेंडर के अनुसार साल की शुरुआत में होने वाले विशू त्योहार के दौरान 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी.

हालांकि, हाई कोर्ट की दो जजों की बेंच ने 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर रोक के बारे में जो फ़ैसला सुनाया था उसके अनुसार बीते बीस सालों में हर महीने होने वाली पूजा के लिए मंदिर जब भी खुलता था हर उम्र की महिलाओं को उसमें प्रवेश करने की अनुमति दी जाती थी.

इस फ़ैसले में कहा गया था, "त्रावणकोर के महाराजा, महारानी और उनके दीवान ने मलयालम कैलेंडर के अनुसार साल 1115 में स्वामी अयप्पा के दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश किया था. पुराने दिनों में मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर कोई रोक नहीं थी लेकिन बड़ी संख्या में महिलाएं मंदिर नहीं आती थीं."

1991 में आए हाई कोर्ट के इस फ़ैसले में ये भी कहा गया था कि बीते 40 सालों में धार्मिक पूजानुष्ठानों में बदलाव आया है, ख़ास तौर से 1950 के बाद से अधिक बदलाव आया है.

27 नवंबर 1956 में त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने एक आदेश जारी किया और 10 से 55 साल की सभी महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक लगा दी. लेकिन साल 1969 में कुछ आयोजनों के मद्देनज़र नियमों में बदलाव किया गया और मंदिर में फ्लैग स्टाफ़ की नियुक्ति की गई.

हाई कोर्ट का फ़ैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति बालनारायण मारार के अनुसार पुजारी के सुझावों के बाद ही ये बदलाव लागू किए गए थे.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र ने अपने फ़ैसले में भी हाई कोर्ट के फ़ैसले का ज़िक्र किया था.

भले ही स्वामी अयप्पा के भक्तों और मीडिया के कुछ हलकों में ये दावा किया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सबरीमला में प्रवेश करने वाली 50 साल से कम उम्र की ये दो महिलाएं पहली महिला हों, लेकिन ये बात सच है कि सालों पहले इस मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश दिया जाता था.

ये भी पढ़ें:

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिएयहां क्लिक कर सकते हैं.हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)