BBC SPECIAL: आसाराम के निजी सचिव को बहुत कुछ पता था, दो साल से हैं लापता

आसाराम

इमेज स्रोत, PTI

इमेज कैप्शन, 13 फरवरी, 2015 को हुए हमले में राहुल सचान बच गए थे, 25 नवंबर, 2015 को वे लापता हो गए लेकिन इसके महीने भर बाद ही पुलिस में शिकायत दर्ज हुई
    • Author, प्रियंका दुबे
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

जेल में बंद धर्मगुरु असुमल सिरुमलाणी उर्फ़ आसाराम के निजी सचिव रहे राहुल सचान को लापता हुए दो साल पूरे हो चुके हैं पर इस मामले की जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है.

आसाराम और उनके बेटे नारायण साईं के ख़िलाफ़ जोधपुर, अहमदाबाद और सूरत की अदालतों में चल रहे बलात्कार के तीनों मुकदमों में सबसे अहम गवाह राहुल ही थे.

नवंबर 2015 में अपनी गुमशुदगी के वक़्त राहुल 41 वर्ष के थे, वे 2003 से 2009 तक आसाराम के निजी सचिव के तौर पर कार्यरत थे.

फ़रवरी 2015 में जोधपुर अदालत में गवाही के तुरंत बाद राहुल पर जानलेवा हमला हुआ था जिसमें वे बच गए थे, पर उस हमले के नौ महीने बाद अचानक एक रात वे लखनऊ के क़ैसर बाग़ बस स्टैंड से ग़ायब हो गए.

आसाराम और नारायण साईं से जुड़े मामलों में तीन गवाहों--अमृत प्रजापति (मई 2014), अखिल गुप्ता (जनवरी 2015) और कृपाल सिंह (जुलाई 2015)--की हत्या हो चुकी है. छह दूसरे गवाहों पर जानलेवा हमले भी हो चुके हैं.

आसाराम

इमेज स्रोत, AFP

आशंका थी कि मार दिया जाएगा

वकील बेनेट कैस्टेलिनो फ़िलहाल इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में राहुल की गुमशुदगी का केस लड़ रहे हैं.

न्यूज़ीलैंड और भारत के बीच आते-जाते रहने वाले बेनेट ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में कहा कि आसाराम के निजी सचिव के तौर पर काम करने की वजह से राहुल को आसाराम बापू की गतिविधियों के सबसे अधिक जानकारी थी. उनको आसाराम के दैनिक जीवन की छोटी-छोटी बारीकियों से लेकर, उनकी निजी आदतों और योजनाओं के बारे में सब कुछ पता होता था.

आसाराम

इमेज स्रोत, Getty Images

इमेज कैप्शन, जुलाई 2008 में अहमदाबाद में प्रवचन देते आसाराम बापू

बेनेट कहते हैं, "यही बात राहुल को जोधपुर के साथ-साथ अहमदाबाद में जारी सुनवाई के लिए भी सबसे महत्वपूर्ण गवाह बनाती थीं. उन्हें शुरू से आशंका थी कि उन्हें मार दिया जाएगा".

लापता होने से पहले सुरक्षा की माँग करते हुए अदालत में उन्होंने जो अर्ज़ी दाखिल की थी, उसमें यही लिखा था कि उनकी जान को खतरा है और वो मरने से पहले सभी अदालतों में अपनी गवाहियां पूरी करना चाहते हैं.

आसाराम

इमेज स्रोत, Getty Images

राहुल को पुलिस सुरक्षा पर नहीं था भरोसा

अगस्त 2015 में बेनेट के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया राहुल का शपथपत्र पढ़ने पर मदद की गुहार लगाता एक मार्मिक दस्तावेज़ नज़र आता है.

शपथपत्र में राहुल लिखते हैं, "मेरी ज़िंदगी हर रोज़ मेरे हाथों से फिसल रही है, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि मैं न्याय के पक्ष में खड़ा रहा ताकि आगे महिलाओं और नाबालिग लड़कियों पर अत्याचार बंद हो सकें. जिस गति से इस मामले में गवाहों की हत्याएँ हो रही हैं, मेरी मृत्यु भी निश्चित है."

इसके बाद अदालत ने राहुल को सुरक्षा प्रदान करने के आदेश दिए थे.

बेनेट जोड़ते हैं, "पहले राहुल को सिर्फ आठ घंटे के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस का एक गार्ड दिया गया था, लेकिन राहुल को यूपी पुलिस पर भरोसा नहीं था क्योंकि उनके गार्ड अक्सर फ़ोन पर या तो बात करते रहते या व्हाट्सऐप पर व्यस्त रहते."

जोधपुर कोर्ट में हुए हमले के बाद राहुल इतना डर गए थे कि रात भर जागते रहते और सुबह गार्ड के आने के बाद ही सो पाते थे.

पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक राहुल ने दशकों पहले कानपुर में रहने वाले अपने परिवार से दूरी बना ली थी. वह लखनऊ के बालजंग इलाके में एक किराए के मकान में अकेले रहते थे.

आसाराम

इमेज स्रोत, Getty Images

गुमशुदगी की जाँच में कोई प्रगति नहीं

उनके लापता होने के बाद उनके परिवार से कोई भी उनकी खबर लेने के लिए आगे नहीं आया. बेनेट के अलावा उनके कोई मित्र या परिजन उनके लापता होने शिकायत करने नहीं गया.

बेनेट बताते हैं, "अदालत के आदेश के बाद हम केंद्रीय सुरक्षा बल से सुरक्षा लेने के लिए अर्ज़ियां तैयार कर ही रहे थे कि राहुल गायब हो गए".

नवंबर 2015 में राहुल के गायब होने के तुरंत बाद बेनेट ने मामले की सीबीआई जांच की माँग की.

सीबीआई ने इलाहबाद हाइकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए 11 महीने बाद अक्टूबर 2016 में अपहरण का केस तो दर्ज लिया, पर राहुल की गुमशुदगी की जाँच में कोई प्रगति नहीं हुई है.

बीबीसी को दिए लिखित जवाब में सीबीआई प्रवक्ता अभिषेक दयाल ने सिर्फ़ इतना ही बताया कि तहक़ीक़ात जारी है, "सीबीआई राहुल सचान के परिजनों और मित्रों से पूछताछ कर रही है. हमने उनके बारे जानकारी देने वाले को दो लाख रुपये का इनाम देने की भी घोषणा की है."

बेनेट जाँच एजेंसी के प्रयासों से संतुष्ट नहीं हैं. वे कहते हैं, "सीबीआई को लगता है कि वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही है पर अभी तक उन्होंने आसाराम के मामले में मारे गए बाकी गवाहों की हत्याओं के सिलसिले में गिरफ्तार हुए आरोपियों से भी पूछताछ नहीं की है."

आसाराम

इमेज स्रोत, Getty Images

'पहले आवाज़ नहीं उठाने का अपराधबोध था'

बेनेट बताते हैं, "गवाहों की हत्याओं की साज़िश रचने के आरोप में गिरफ्तार कार्तिक हलधर जैसे अभियुक्तों ने राहुल सचान के 'हिट लिस्ट' पर होने की बात कही थी. हलधर की गिरफ़्तारी 15 मार्च 2016 को हुई थी. लखनऊ के कैसर बाग बस स्टैंड से राहुल जिस बस में बैठकर निकले थे, उस बस के बारे में भी कुछ पता नहीं चल पाया है. आश्चर्य की बात यह है कि राहुल का फ़ोन आखिरी बार उत्तर प्रदेश में जहाँ ट्रैक हुआ था, वहाँ कोई बस नहीं जाती."

बेनट आज राहुल को हकला कर बात करने वाले एक स्नेहिल आदमी की तरह याद करते हैं.

राहुल के साथ आखिरी दिनों की बातचीत को याद करते हुए बेनेट बताते हैं कि जोधपुर हमले के बाद से वे आंशिक रूप से विकलांग हो गए थे.

वे कहते हैं, "आखिरी दिनों में वो बहुत डरा हुआ रहने लगा था. हर वक़्त उसे लगता कि कोई उसका पीछा कर रहा है. उसे डर लगता था पर उससे ज़्यादा उसे इस बात का अपराधबोध था कि उसने आसाराम के खिलाफ पहले आवाज़ क्यों नहीं उठाई."

आसाराम

इमेज स्रोत, Getty Images

'महिलाओं के चीख़ने की आवाज़'

राहुल ने अपने वकील को बताया था कि आश्रम में अक्सर महिलाओं के चीख़ने की आवाज़ें आती थीं, पूछने पर उन्हें बताया जाता था कि इन लड़कियों को मोक्ष के रास्ते पर ले जाया जा रहा है.

राहुल जोधपुर और सूरत की पीड़िताओं के अलावा और भी ऐसे कई परिवारों को जानते थे जो आसाराम के खिलाफ अपनी शिकायतों के साथ सामने आना चाहते थे.

बेनेट कहते हैं, "राहुल में गहरा अपराधबोध था जिसकी वजह से वह अपनी जान पर मंडरा रहे ख़तरे के बावजूद अपनी गवाहियाँ पूरी करना चाहते थे लेकिन इससे पहले ही वे गायब हो गए."

सितंबर 2013 में आसाराम और दिसंबर 2013 में उनके बेटे नारायण साईं को बलात्कार और नाबालिगों के यौन शोषण के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था और दोनों तब से जेल में हैं.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)