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मुस्लिमों, दलितों पर हमले के विरोध में पूर्व सैनिकों का मोदी के नाम ख़त
हाल के दिनों में मुस्लिमों और दलितों पर हुए हमलों को याद दिलाते हुए भारतीय सशस्त्र बलों के रिटायर सैनिकों ने प्रधानमंत्री मोदी को खुला ख़त लिखा है.
ख़त में पूर्व सैनिकों ने इन हमलों की निंदा करते हुए अपनी निराशा ज़ाहिर की है. इन सैनिकों ने हिंदुत्व की रक्षा के लिए खुद को चुने जाने वाले रक्षकों और बर्बर हमलों की तीखी आलोचना की है.
खुले ख़त में इन सैनिकों ने कहा कि वो इस बर्बरता के ख़िलाफ़ 'नॉट इन माय नेम' कैंपेन के साथ खड़े हैं. ख़त में लिखा है कि देश के सशस्त्र बलों का 'अनेकता पर एकता' पर अब भी भरोसा बना हुआ है. इन्होंने कहा कि देश की वर्तमान स्थिति डरावनी, नफ़रत भरी और संशय की है.
इस ख़त में सशस्त्र सेनाएं यानी थल, जल और वायुसेना के 114 रिटायर्ड सैनिकों के हस्ताक्षर हैं.
आगे पढ़िए पूर्व सैनिकों ने ख़त में और क्या लिखा?
''आज हमारे देश में जो हो रहा है उससे देश के सशस्त्र सेनाओं और संविधान को धक्का लगा है. हिंदुत्व की रक्षा के लिए खुद को नियुक्त करने वाले रक्षकों के हमले समाज में बढ़े हैं.
इन हमलों को हम समाज में अप्रत्याशित रूप से देख रहे हैं. मुस्लिमों और दलितों पर हमले की हम निंदा करते हैं.
हम लोग मीडिया, सिविल सोसायटी ग्रुप, यूनिवर्सिटी, पत्रकार और विद्वानों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हुए हमले, अभियान के ज़रिए उन्हें राष्ट्र विरोधी बताए जाने और उनके ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा पर सरकार की चुप्पी की निंदा करते हैं.
हम पूर्व सैनिकों का एक ग्रुप हैं, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी देश की सेवा करते हुए बिताई है. संगठित तौर पर हम किसी राजनीतिक पार्टी से ताल्लुक नहीं रखते हैं. हमारी साझी प्रतिबद्धता सिर्फ भारत के संविधान के प्रति है.
इस ख़त को लिखते हुए हम दुखी हैं लेकिन भारत में हो रही हालिया घटनाएं जो देश को बांट रही हैं, पर हमारी बेचैनी को दर्ज करना भी ज़रूरी है.
सशस्त्र सेनाएं अनेकता में एकता पर यकीन करती है. फौज में अपनी सेवाओं के दौरान न्याय, खुलेपन की भावना और निष्पक्ष व्यवहार ने हमें सही कदम उठाने की राह दिखाई. हम एक परिवार हैं.
हमारी विरासत में कई रंग हैं, यही भारत है और हम इस जीवंत विविधता को संजोते हैं.
अगर हम धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी मूल्यों के हक में नहीं बोलेंगे, तब हम अपने देश का ही नुकसान करेंगे. हमारी विविधता ही हमारी महान ताकत है.
हम केंद्र और राज्य सरकारों से अपील करते हैं कि हमारी चिंताओं पर विचार करें और हमारे संविधान का आत्मा से सम्मान करें.''
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