इतना मुखर होकर क्यों बोल रही है भारतीय सेना?

    • Author, फ़ैसल मोहम्मद अली
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

पूर्व जनरल अशोक मेहता को वे पोस्टर कई महीने गुज़र जाने के बाद भी अच्छी तरह से याद हैं.

कथित सर्जिकल स्ट्राइक से जुड़े सेना अधिकारी रणवीर सिंह के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के वे बड़े-बड़े पोस्टर लखनऊ में तक़रीबन हर अहम जगह पर मौजूद थे. कई में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी दिख रहे थे.

इन पोस्टरों की तरफ़ लोगों का ध्यान बरबस ही खींच जाता था. तब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव वक़्त था. जनरल मेहता किसी काम से अपने शहर लखनऊ गए थे.

फ़ौज के पूर्व अधिकारी को ये पोस्टर सेना के कारनामों का राजनीतिक फ़ायदा उठाने वाले लगे. उन्होंने 'सेना के राजनीतीकरण' के सवाल को अपने एक लेख में उठाया.

सेना के राजनीतीकरण के सवाल पर कई दूसरे हलक़ों और सेना में भी चर्चा हो रही है.

पूर्व सैनिक और इंडियन एक्सप्रेस अख़बार के एसोसिएट एडिटर सुशांत सिंह कहते हैं, "सेना की कामयाबी का राजनीतिक फ़ायदा लेने की कवायद पहले भी हुई है लेकिन चिंताजनक यह है कि कश्मीर जैसे मामले में यह ठीक नहीं है."

सुशांत सिंह कहते हैं, "आर्मी चीफ़ जनरल रावत के पिछले दिनों जिस तरह के बयान आए हैं उससे लोगों में सुगबुगाहट है कि वो कैसी बातें कर रहे हैं."

हालांकि सेना के पूर्व मेजर जनरल अफ़सर क़रीम कहते हैं, "हो सकता है सरकार फ़ौज के काम का प्रचार करके उसका फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रही हो. हालांकि फ़ौज का किसी भी तरह से राजनीतीकरण नहीं हुआ है."

जनरल प्रसाद कहते हैं, "प्रधानमंत्री तो हर अच्छे और बुरे काम के लिए ज़िम्मेदार हैं.''

पूर्व जनरल शंकर प्रसाद तो इस सवाल पर झल्ला जाते हैं और कहते हैं, 'न है, न होगा, न होने देंगे." हालांकि उन्हें भी कथित रूप से पाकिस्तान के अंदर घुसकर किए गए फ़ौजी ऑपरेशन पर पूर्व रक्षा मंत्री का बयान अनुचित लगता है.

रावत के तीखे बयानों के मायने

मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता का बड़ा श्रेय नरेंद्र मोदी को दिया जाना चाहिए. पर्रिकर ने इसकी सफलता को अपनी आरएसएस की ट्रेनिंग से भी जोड़ने की कोशिश की थी.

सेना प्रमुख बिपिन रावत ने हालांकि कश्मीर पर कई तीखे बयान दिए हैं लेकिन समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने जो कहा उस पर कई सवाल उठाए जा रहे हैं.

बिपिन रावत ने साक्षात्कार में कहा है, "मैं चाहता हूं कि पत्थर फेंकने के बजाय वो हम पर गोलियां चला रहे होते. तब मैं ख़ुश होता क्योंकि तब मैं वो सब कर सकता जो मैं करना चाहता हूं."

सेना प्रमुख ने न केवल मेजर गोगोई की प्रशंसा की बल्कि उसे सही भी ठहराया है. मेजर गोगोई ने एक कश्मीरी युवक को जीप के बोनट से बांधकर मानव ढाल की तरह इस्तेमाल किया था.

फ़ौज का मनोबल बढ़ा या...

मेजर जनरल अफ़सर क़रीम गोगोई के सही या ग़लत होने पर किसी तरह की टिप्पणी नहीं करते हैं लेकिन मानते हैं कि 'बहुत तारीफ़ हो गई और ये कोई अच्छा प्रभाव नहीं है लेकिन आर्मी ने अपने लोगों को बता रखा है कि इस तरह की चीज़ दोबारा नहीं होनी चाहिए.'

जनरल प्रसाद हालांकि मानते हैं कि सेना प्रमुख ने जो किया वो फ़ौज का मनोबल बढ़ाने के लिए ज़रूरी था और सेना को दिए गए समर्थन को उनकी लीडरशिप क्वॉलिटी के तौर पर देखा जाना चाहिए.

सुशांत सिंह मगर इस बात का एक दूसरा पहलू पेश करते हैं- ''उन्हें (सेनाध्यक्ष) ये याद रखना होगा कि वो सिर्फ़ सेना के ही सेनाध्यक्ष नहीं हैं पूरे भारत के हैं. उनके बयान से केवल सेना ही नहीं पूरे देश पर असर पड़ता. आर्मी चीफ़ के बयान को लोग अलग-अलग तरह से लेते हैं. उसी वजह से कंफ्यूज़न की स्थिति पैदा हो रही है.''

कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने हाल ही में कहा था, "भारतीय सेना पाकिस्तानी फ़ौज की तरह माफिया नहीं है. बुरा तब लगता है जब हमारे सेना प्रमुख सड़क के गुंडों जैसा बयान देते हैं"

संदीप दीक्षित के बयान पर हंगामा

दीक्षित के बयान पर बहुत हंगामा हुआ. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने साफ़ कह दिया कि राजनेताओं को सेना प्रमुख पर बयान नहीं देना चाहिए. लेकिन बीजेपी लगातार कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से माफ़ी की मांग करती रही.

दीक्षित ने भी एक ट्वीट के ज़रिये कहा कि उन्होंने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया था उसके लिए उन्हें खेद है. फ़ौज जिस तरह का रुख़ अपना रही है उस पर चिंता केवल कांग्रेस के किसी नेता की बात नहीं है.

जेडीयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव भी पहले नागरिक प्रतिनिधियों के बजाय सेना के जनता से सीधे संवाद पर चिंता जता चुके हैं. सुशांत सिंह कहते हैं कि वर्तमान सरकार सेना को आगे खड़ा कर ढाल की तरह इस्तेमाल कर रही है.

उन्होंने कहा, "सेना जो हमें इतनी ज़्यादा सामने दिख रही है उसकी वजह है कि एक तरह का राजनीतिक खालीपन. पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह की कोई चर्चा नहीं होना- न राजनीतिक और न ही राजनयिक. .. इसलिए सेना अपने आप ही सामने आ जा रही है. एक तरह का चेहरा बन जा रही है भारतीय शासन का."

सुशांत सिंह ने कहा, ''हालांकि इसकी एक बहुत बड़ी वजह है मीडिया. लेकिन ये बहुत चतुराई से खेला जा रहा खेल है. बीजेपी का हमेशा से मानना रहा है, जनसंघ के ज़माने से कि वो एक राष्ट्रवादी पार्टी है. वो सेना को अपने रंग में रंगना चाहते हैं.''

सेना और बीजेपी एकसाथ?

सिंह ने कहा, ''वो दिखाना चाहते हैं कि सेना और बीजेपी एक है. वो ये कोशिश कर रही है कि सेना को अपनी पार्टी की विचारधारा से इस तरह से जोड़कर दिखाएं कि जब कोई बीजेपी की बुराई करे तो लगे कि वो सेना की बुराई कर रहा है और सेना की बुराई करना किसी भी मुल्क में एक मुश्किल सवाल है. ये एक बहुत ही चतुराई से खेला जा रहा है."

मेजर जनरल अफ़सर क़रीम कहते हैं कि अगर आगे भी इस तरह का रवैया जारी रहा तो नुक़सानदेह हो सकता है, 'फ़ौज का राजनीतीकरण उसके लड़ने की क्षमता कम कर देता है. पाकिस्तान को देखिए उसने कितनी जंगें लड़ीं लेकिन एक भी नहीं जीत पाया क्योंकि फ़ौज को लगता है कि आप ये युद्ध अपने मतलब के लिए लड़ रहे हैं.'

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