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गुरुवार, 06 मार्च, 2008 को 16:11 GMT तक के समाचार
 
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मीरा सयाल
मीरा सयाल मशहूर ब्रितानी लेखिका और टीवी कलाकार हैं
भारत से बाहर भारतीय मूल की कई महिलाओं ने अपना नाम बनाया है. ब्रिटेन की मशहूर लेखिका और टीवी कलाकार मीरा सयाल उन्हीं में से एक हैं.

एक ओर जहाँ उन्होंने मशहूर म्यूज़िकल बॉम्बे ड्रीम्ज़ लिखा, तो गुरिंदर चड्ढ़ा की फ़िल्म 'भाजी ऑन द बीच' की पटकथा भी लिख चुकी हैं.

वे अनीता एंड मीं समेत कई किताबों की लेखिका हैं तो ब्रिटेन में कई हिट टीवी धारावाहिकों में काम कर चुकी हैं. उन्हें ब्रिटेन में महारानी एलिज़ाबेथ की ओर से एमबीई( मैंबर ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द ब्रिटिश अंपायर) का सम्मान मिल चुका है. ब्रिटेन में जिन लेखकों के बारे में बच्चों को पढ़ाया जाता है उनमें मीरा सयाल का नाम भी शामिल है.

महिला दिवस के मौके पर बीबीसी ने उनसे कई विषयों पर बात की. बातचीत के कुछ प्रमुख अंश

महिला दिवस आपके लिए क्या मायने रखता है?

महिला दिवस मेरे लिए साल का बड़ा अहम दिन है. स्त्री होने के नाते मुझे अच्छा लगता है कि साल में एक दिन ऐसा है जो महिला शक्ति को सलाम करता है. इसी बहाने मुझे थोड़ा समय मिलता है अपने लिए, मौज-मस्ती के लिए और लोगों से मिलने के लिए भी.

आप लेखिका हैं, आपने फ़िल्मों के लिए स्क्रीनप्ले लिखे हैं, टीवी और थिएटर में भी काम किया है. इसके अलावा आप माँ भी हैं और पत्नी भी. कामकाजी और निजी ज़िंदगी दोनों के बखूबी संभाल सकना कितना मुश्किल या आसान होता है?

ये बेहद मुश्किल है. काम और घर के बीच समय बाँटना पड़ता है. बात थोड़ी अजीब लग सकती है लेकिन ऐसा करना भारत के मुकाबले ब्रिटेन में ज़्यादा कठिन है. एक वजह है कि घरेलू कामकाज के लिए लोगों को घर में नौकरी पर रखना भारत में आसान है. यहाँ ब्रिटेन में अगर आया रखनी हो तो बेहद महंगा पड़ता है.

लेकिन सबसे अहम वजह है कि भारत में आज भी लोग अपने घर-परिवार के करीब रहते हैं. जबकि ब्रिटेन में परिवार बिखर जाते हैं. जब आप माँ बनती हैं तो आपको सबके समर्थन की बहुत ज़रूरत होती है. परिवार से ज़्यादा समर्थन कौन दे सकता है. मैं अपने माता-पिता के करीब नहीं रह सकी. लेकिन मैने ख़ुद से वादा किया है कि जब मेरी बेटी मातृत्व की ओर जाएगी तो मैं उसके आस-पास रहूँगी. अगर आपको करियर भी चाहिए और परिवार भी, तो ऐसा करना ज़रूरी है.

तो आपके लिए पारिवारिक मूल्यों की बहुत अहमियत है?

बहुत अहम है, ख़ासकर मेरे जैसी पेशेवर महिलाओं के लिए. इस काम में कई तरह के दबाव होते हैं. कभी आपकी किसी क़िताब की, किसी टीवी शो की समीक्षा खराब रही, या फिर सार्वजनिक हस्ती होने के नाते आपके बारे में कुछ ऐसा लिखा गया...कई तरह की निराशाएँ होती हैं.परिवार ही ऐसे हालात में आपको सामान्य बनाए रखता है. मुझे लगता है कि बहुत सारे पेशेवर लोग हैं जिनकी जिंदगी ग़लत दिशा में चलती जाती है, उसका कारण कहीं न कहीं पारिवारिक समर्थन का नहीं होना है.

आप लेखिका, टीवी और थिएटर कलाकार हैं, साथ ही माँ और पत्नी भी. कौन सी भूमिका सबसे पसंद है?

 भारत में आज भी लोग अपने घर-परिवार के करीब रहते हैं. जबकि ब्रिटेन में परिवार बिखर जाते हैं. जब आप माँ बनती हैं तो आपको सबके समर्थन की बहुत ज़रूरत होती है. परिवार से ज़्यादा समर्थन कौन दे सकता है
 

मैं जीवन का पूरा आनंद उठा पा रही हूँ-उसका सबसे बड़ा कारण है कि मैं कई भूमिकाएँ निभाती हूँ. ज़िंदगी में बहुत बोरियत होती अगर मैं सिर्फ़ करियर वूमन होती या केवल घर में रहती है या सिर्फ़ माँ होती. टीवी और लेखन के अपने काम के साथ मैं घरेलू काम का तालमेल बिठा पाती हूँ. मैं चाहती हूँ कि मेरी बेटी के पास भी ये विकल्प हो कि वो भी कई सारी भूमिकाएँ निभा सके.

संगीत में भी आपकी रुचि रही है. आपने संगीत निर्देशक बिडू और नाज़िया हसन के साथ काम किया है. फिर एआर रहमान के साथ म्यूज़िकल किया बॉम्बे ड्रीमज़. उस बारे में कुछ बताइए.

हाँ बिडू एक गर्ल्स बैंड बनाना चाहते थे- सो मैने और नाज़िया हसन ने गाना गाया था. भारत में तो ये गाना चला लेकिन ब्रिटेन में पिट गया. गाना रिलीज़ होने के कुछ महीने बाद मैने देखा कि वो रिकॉर्ड 50 पेंस यानी करीब 40 रूपए में बिक रहा था. (हँसते हुए). तो मेरा पॉप करियर ऐसा था.

लेकिन संगीत के क्षेत्र में असली काम मैने एआर रहमान के साथ किया जब उनके साथ म्यूज़िकल बॉम्बे ड्रीमज़ किया. वो ग़ज़ब का अनुभव था.

यहाँ बॉलीवुड की बात ज़रूर पूछना चाहूँगी. आपने झूम बराबर झूम में छोटा सा रोल किया था..आप बॉलीवुड की फ़ैन हैं?

हाँ फ़िल्म में छोटी सी भूमिका थी. आजकल बॉलीवुड में कुछ बेहद अच्छे फ़िल्मकार सामने आ रहे हैं. उम्मीद करती हूँ कि वो याद रखेंगे कि ब्रिटेन में हमारे जैसे कलाकार भी हैं जो उनके साथ काम करना पसंद करेंगे.

महिलाओं के मुद्दों की बात करें तो एक आम धारणा है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के लिए सफलता की सीढ़ी का रास्ता ज़्यादा मुश्किल है. आप भी ऐसा मानती हैं.

मीरा सयाल ने कई मशहूर ब्रितानी धारवाहिकों में काम किया है

मुझे लगता है कि जहाँ तक मौका मिलने की बात है, सबको समान मौका मिल रहा है. मुश्किल वहाँ आती है जब महिला को बच्चों और परिवार के बारे में सोचना पड़ता है. दरअसल एक महिला चाहती है कि वो घर और बाहर दोनों जगह 100 फ़ीसदी हासिल करे पर आख़िर वो भी इंसान है..ऐसा करना मुमकिन नहीं है. यही सोच कई बार नाखुशी का कारण बन जाती है.

आपने अपनी किताबों में कई ख़ूबसूरत महिला किरदार गढ़े हैं-अनीता एंड मी, लाइफ़ इज़ नॉट ऑल हा हा ही ही. प्रेरणा कहाँ से लेती हैं.

प्रेरणा अपने आस-पास की महिलाओं से ही लेती हूँ. सबके जीवन की दिलचस्प कहानी होती है. बस वहीं से चुरा लेती हूँ. हाँ ध्यान रखती हूँ कि ऐसा किरदार न बनाऊँ जो असल में किसी के जैसा हो.

आपके जीवन में सबसे ख़ास महिला कौन है?

मेरी माँ मेरे जीवन में सबसे ख़ास महिला हैं. अपने जीवन के 40 वर्षों में मुझे जिस समझ-बूझ की ज़रूरत थी, वो मेरी माँ ने मुझे सिखाई. वहीं इस समय मेरी बेटी मेरी आँखों का तारा है. वो बेहद समझदार है, ख़ूब मस्ती करती है. तो मेरे आगे-पीछे दो बेहतरीन रोल मॉडल हैं जीवन में.

कन्या भ्रण हत्या, हॉनर कीलिंग, प्रताड़ना..एशियाई समाज में महिलाओं से जुड़ी ये समस्याएँ आपको परेशान करती हैं.

 पश्चिमी देशों में महिलाओं की समस्या ये नहीं है कि उसे पीने लायक पानी के लिए कहीं जाना पड़ता है, नवजात शिशुओं की मौत हो जाती. लेकिन अगर किसी भी देश में मध्यम वर्ग की महिलाओं की बात करें तो मुश्किलें एक सी है- जैसे घरेलू हिंसा, घर और कामकाजी जीवन में तालमेल का दबाव
 

बिल्कुल. मैं सक्रिय रूप से एक संस्था से जुड़ी भी हुई हूँ जो ऐसी महिलाओं की मदद करती है. ये करना ज़रूरी है क्योंकि मैं काम में अपने समुदाय से प्रेरणा लेती हूँ. फिर मैं ऐसा नहीं कर सकती कि एशियाई समाज के बारे में लिखूँ और फिर उन्हें भूल जाउँ.

पश्चिमी देशों और विकासशील देशों में महिलाएँ की समस्याएँ क्या अलग-अलग है या कुछ समानता है?

फ़र्क़ इस मायने में है कि पश्चिमी देशों में महिलाओं की समस्या ये नहीं है कि उसे पीने लायक पानी के लिए कहीं जाना पड़ता है, नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है. लेकिन अगर किसी भी देश में मध्यम वर्ग की महिलाओं की बात करें तो मुश्किलें एक सी है- जैसे घरेलू हिंसा, घर और कामकाजी जीवन में तालमेल का दबाव. भारत में शायद स्थिति थोड़ी पेचिदा है क्योंकि इतने बड़े देश में ग़रीब तबके की अलग समस्याएँ हैं जबकि मध्यम और उच्च वर्ग की अलग. लेकिन महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा हर देश की समस्या है.

आपके माता-पिता भारत से ब्रिटेन आए. आपने बचपन से अब तक ब्रिटेन को कैसे बदलते हुए देखा है, ख़ासकर एशियाई समाज के नज़रिए से.

ब्रितानी एशियाई समाज आज ज़्यादा आत्मविश्वास से भरा है इसमें महिलाएँ भी शामिल हैं. बहुत एशियाई लोगों ने सफलता पाई है. हालांकि अभी भी बहुत से लोग हाशिए पर हैं. लेकिन ब्रिटेन को दिए गए योगदान पर एशियाई समुदाय गर्व महसूस कर सकता है, हमने कई मायनों में ब्रिटेन को बदला है-चाहे वो ख़ाना हो, हमारे मेहनतकश लोग हों या फिर कला हो.

( महिला दिवस पर बीबीसी की ये प्रस्तुति आपको कैसी लगी,आप अपनी राय हमें [email protected] पर भेज सकते हैं)

 
 
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