बुधवार, 26 अक्तूबर, 2005 को 02:43 GMT तक के समाचार
हिंदी भाषा में आधुनिक सार्वभौमिक चेतना को शब्द देने वाले प्रख्यात साहित्यकार निर्मल वर्मा नहीं रहे.
फेफड़े की बीमारी से जूझने के बाद 76 वर्ष की अवस्था में दिल्ली में उनका निधन हो गया.
चेक गणराज्य और लंदन में लंबा समय गुज़ारने वाले निर्मल वर्मा ने यूरोपीय जीवन की विसंगतियों को समझा और उनकी बहुत ही बारीक मानवीय व्याख्या अपनी कहानियों में की.
जाने-माने कथाकार कमलेश्वर ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा निर्मल वर्मा "यूरोप में पूरब की आवाज़ की तरह रहे और उन्होंने हिंदी साहित्य में आधुनिकता का एक नया आयाम जोड़ा."
कहानियों और उपन्यासों के अलावा बेहतरीन यात्रा वृत्तांत लिखने वाले निर्मल वर्मा का जन्म 1929 में शिमला में हुआ था.
उनके साथ 55 वर्षों के संबंधों को याद करते हुए कमलेश्वर ने कहा, "वे अपने साथ पहाड़ों का बहुत ही खूबसूरत अनुभव लेकर आए थे, उनकी कहानियों ने पचास और साठ के दशक में हिंदी साहित्य जगत में धूम मचा दी थी."
अपनी गंभीर, भावपूर्ण और अवसाद से भरी कहानियों के लिए जाने-जाने वाले निर्मल वर्मा को आधुनिक हिंदी कहानी के सबसे प्रतिष्ठित नामों में गिना जाता रहा है, उनके लेखन की शैली सबसे अलग और पूरी तरह निजी थी.
निर्मल वर्मा को भारत में साहित्य का शीर्ष सम्मान ज्ञानपीठ 1999 में दिया गया.
'रात का रिपोर्टर', 'एक चिथड़ा सुख', 'लाल टीन की छत' और 'वे दिन' उनके बहुचर्चित उपन्यास हैं. उनका अंतिम उपन्यास 1990 में प्रकाशित हुआ था--अंतिम अरण्य.
उनकी एक सौ से अधिक कहानियाँ कई संग्रहों में प्रकाशित हुई हैं जिनमें 'परिंदे', 'कौवे और काला पानी', 'बीच बहस में', 'जलती झाड़ी' आदि प्रमुख हैं.
'धुंध से उठती धुन' और 'चीड़ों पर चाँदनी' उनके यात्रा वृतांत हैं जिन्होंने लेखन की इस विधा को नए मायने दिए हैं.