BBCHindi.com
अँग्रेज़ी- दक्षिण एशिया
उर्दू
बंगाली
नेपाली
तमिल
 
रविवार, 05 जून, 2005 को 20:02 GMT तक के समाचार
 
मित्र को भेजें कहानी छापें
'सफलता का मतलब एक अच्छा परिवार'
 

 
 
रानी मुखर्जी और शाहरुख़ ख़ान
रानी मुखर्जी और शाहरुख़ 'पहेली' फ़िल्म के प्रचार के लिए लंदन पहुँचे थे
अभिनेत्री रानी मुखर्जी से पिछली बार जब यहाँ लंदन में मुलाक़ात हुई थी तो उनकी फ़िल्में ‘वीर ज़ारा’ और ‘ब्लैक’ आने ही वाली थीं और अब इन दोनों ही फ़िल्मों में जब उनके अभिनय की तारीफ़ हो चुकी है तब मुझे एक बार फिर मौक़ा मिला रानी से विशेष बातचीत का.

मैंने मिलते ही पहला सवाल उनसे यही पूछा कि रानी मुखर्जी इतनी हँसमुख और मिलनसार कैसे हैं?

मेरे माता पिता ने मुझे हमेशा यही शिक्षा दी है कि हँसते रहो, और जो लोग आपसे मिलते हैं उन्हें भी ख़ुश रखो.

काम के इतने दबाव और प्रशंसकों की अपेक्षाओं के बीच हँसमुख बने रहना मुश्किल है?

मुश्किल तो नहीं है क्योंकि मुझे नहीं लगता कि हँसने से कुछ जाता है. फिर मुस्कुराना अच्छा भी है क्योंकि इससे आप युवा बने रहते हैं और ख़ुश रहते हैं.

‘ब्लैक’ फ़िल्म की भूमिका कितनी चुनौती भरी थी?

एक अंधी, गूँगी, बहरी लड़की की भूमिका करना काफ़ी चुनौती भरा था क्योंकि इस संबंध में मदद लेने के लिए मेरे पास कोई और रेफ़रेन्स भी नहीं था. मुझे ऐसे लोगों से मिलना पड़ा और सांकेतिक भाषा भी सीखनी पड़ी.

आम भूमिकाओं के लिए हम ऐसा नहीं करते. इस भूमिका से मेरी ज़िंदग़ी का एक नया पन्ना खुला है.

आपके लिए एक चुनौतीपूर्ण भूमिका का मतलब क्या है?

मेरे विचार से फ़िल्म बंटी और बबली में मेरा जो किरदार है वो काफ़ी चुनौती भरा है क्योंकि वो किरदार जीवन से भरा हुआ एक ख़ुश कर देने वाला किरदार है और लोगों को हँसाना बहुत ही मुश्किल काम होता है. इस तरह बंटी और बबली में मेरा एक बिल्कुल ही अलग किरदार दिखाया गया है.

बॉलीवुड की फ़िल्में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान क्यों नहीं बना पा रही हैं?

 मेरे लिए सफलता का मतलब है एक अच्छा परिवार, जिसके पास आप घर लौट सकें. जो आपको वास्तविकता बताए कि आपने ये ग़लत किया ये सही किया
 
रानी मुखर्जी

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत ही जल्दी इन फ़िल्मों की पहचान बन जाएगी क्योंकि बहुत सारे ऐसे लोग जो भारतीय नहीं हैं, उनकी भी भारतीय फ़िल्मों में रुचि बढ़ रही है. उनकी भारतीय फ़िल्म उद्योग के बारे में जानकारी बढ़ रही है और लोग भारतीय सितारों को पहचानने भी लगे हैं.

लोग जानना चाहते हैं कि भारतीय फ़िल्में कैसी होती हैं? हम जो गानों और नृत्य के बीच फ़िल्में बनाते हैं वो फ़िल्में कैसी होती हैं? इस बारे में उनकी उत्सुकता बढ़ रही है. वो दिन दूर नहीं जब भारतीय फ़िल्में भी हॉलीवुड की मुख्य धारा में प्रदर्शित होने लगेंगी.

आपके विचार से बॉलीवुड की ताक़त क्या है?

जिस तरह की फ़िल्में हम बनाते हैं वो पारिवारिक मूल्यों से भरी होती हैं और संस्कृति से पूर्ण होती हैं वो हमारी ताक़त है.

भारतीय सिनेमा में महिला प्रधान फ़िल्मों की कमी नहीं होती जा रही है?

भारत में हमेशा से ही महिला प्रधान फ़िल्में बनती रही हैं आप मदर इंडिया को ले लीजिए या फिर पिछले एक साल की कोई भी सफल और बड़ी फ़िल्म आप देख लीजिए, जिसने लोगों पर छाप छोड़ी है तो वो महिला प्रधान फ़िल्म ही है.

कहा जाता है कि भारतीय फ़िल्म उद्योग में महिलाओं का शोषण भी होता है, आप एक जाने माने घराने से आती हैं तो शायद आपको ये नहीं झेलना पडा होगा मगर क्या भारतीय फ़िल्म उद्योग में ऐसा होता है?

रानी मुखर्जी ने बीबीसी से बात की
रानी मुखर्जी ने विभिन्न विषयों पर बीबीसी हिंदी सेवा से बात की

मेरे विचार से ये सिर्फ़ भारतीय फ़िल्म उद्योग ही नहीं बल्कि हर जगह है और जो लड़कियाँ ख़ुद अपना शोषण करवाना चाहती हैं ये उनके लिए ठीक ही होगा. वैसे हर इंसान की अपनी ज़िंदगी होती है और उसे चलाने का तरीक़ा होता है. आज के समय में अगर कोई न चाहे तो उसका शोषण नहीं हो सकता.

क्या भारतीय फ़िल्मों में भी आगे बढ़ने के लिए ‘गॉडफ़ादर’ की ज़रूरत होती है?

आजकल हिंदी फ़िल्म उद्योग बहुत ही पेशेवर और व्यावसायिक हो गया है अगर आप में प्रतिभा न हो तो आपको कोई कुछ नहीं बना सकता.

आपके लिए सफलता का मतलब क्या है?

मेरे लिए सफलता का मतलब है एक अच्छा परिवार, जिसके पास आप घर लौट सकें. जो आपको वास्तविकता बताए कि आपने ये ग़लत किया ये सही किया और जब आप अपने काम में लापरवाही नहीं दिखाते और काम ठीक ढंग से करते हैं.

आगामी फ़िल्म ‘पहेली’ के बारे में कुछ बताइए.

‘पहेली’ सिर्फ़ एक भूत के एक लड़की के प्यार में पड़ जाने की कहानी नहीं है. ये एक ऐसी महिला की कहानी है जो घूँघट और चारदीवारी में रहती है मगर उसका किरदार बहुत ही मज़बूत है. एक किरदार जिसमें सहनशीलता है और जब उसको विकल्प दिया जाता है तो वो जो भी ज़रूरी समझती है वही करती है. इस फ़िल्म में बहुत सारी दुविधाएँ दिखाई गई हैं और ये फ़िल्म बहुत सी पहेलियाँ बूझती है.

 
 
66शाहरुख़ का सपना
अभिनेता के बाद फ़िल्म निर्माता बन चुके शाहरूख़ अब नया सपना देख रहे हैं.
 
 
66अमिताभ भारी पड़े
'बंटी और बबली' में अमिताभ बच्चन अन्य कलाकारों के मुक़ाबले कहीं बेहतर हैं.
 
 
66ब्लैक क्यों भिन्न है!
संजय लीला भंसाली की नई फ़िल्म ब्लैक किस तरह अलग फ़िल्म है...
 
 
66लंदन में बॉलीवुड
कई प्रमुख फ़िल्मी सितारे लंदन आए और उन्होंने धूम सी मचा दी.
 
 
इससे जुड़ी ख़बरें
 
 
इंटरनेट लिंक्स
 
बीबीसी बाहरी वेबसाइट की विषय सामग्री के लिए ज़िम्मेदार नहीं है.
 
सुर्ख़ियो में
 
 
मित्र को भेजें कहानी छापें
 
  मौसम |हम कौन हैं | हमारा पता | गोपनीयता | मदद चाहिए
 
BBC Copyright Logo ^^ वापस ऊपर चलें
 
  पहला पन्ना | भारत और पड़ोस | खेल की दुनिया | मनोरंजन एक्सप्रेस | आपकी राय | कुछ और जानिए
 
  BBC News >> | BBC Sport >> | BBC Weather >> | BBC World Service >> | BBC Languages >>