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'दिलवाले दुल्हनिया'... ने रिकॉर्ड बनाया | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुंबई के मराठा मंदिर में 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का ये पांच सौवां सप्ताह है. मशहूर सिनेमा निर्माता–निर्देशक यश चोपड़ा की ये फ़िल्म 25 अक्टूबर, 1995 को रिलीज़ हुई थी. हिन्दी सिनेमा के इतिहास में ये पहला मौक़ा है कि कोई फ़िल्म किसी एक सिनेमा थिएटर में लगातार दस साल से चल रही है. इनसे पहले सबसे लंबे समय तक चलने वाली हिंदी फ़िल्म थी 'शोले' जो मुंबई के ही मिनर्वा थियेटर में लगभग पांच साल तक चली थी. मराठा मंदिर हॉल में 1102 सीटें है. शुक्रवार को छोड़कर बाकी किसी भी दिन “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे” के देखने के लिए जुटे दर्शकों की संख्या 700 से कम नहीं रहती है. यह फ़िल्म दर्शकों पर कैसा असर डालती है, मराठा मंदिर के दोपहर के शो में बैठकर इस बात का बख़ूबी अनुमान लगाया जा सकता है. ये जानते हुए भी कि आख़िर में राज को सिमरन मिल ही जाएगी, लोगों की आंखें नम हो जाती हैं. जब राज और कुलजीत की लड़ाई होती है तो उस समय हॉल में बैठा कोई भी दर्शक राज(शाहरुख़) को एक चपत लगते देखना नहीं चाहता. फ़िल्म के आखिर में जब सिमरन के पिता उसकी और राज की शादी के लिए तैयार हो जाते है तो दर्शक सीटी और ताली बजाकर ठेठ भारतीय अंदाज़ में पूरे मामले पर अपनी रज़ामंदी की मुहर लगाते हैं. दर्शकों की राय फ़िल्म देख रहे दर्शकों में से कोई ऐसा नहीं था जो इस फ़िल्म को पहली बार देख रहा हो. लेकिन कारण सबके अपने-अपने थे.
60 वर्षीय कविता साहनी अपने 68 वर्षीय पति अनिल साहनी के साथ शादी की वर्षगांठ पर ये फ़िल्म देखने आईं थीं. उन्होंने बताया कि वो इससे पहले भी कोई पांच या छह बार इस फ़िल्म को देख चुके हैं. लेकिन अपनी बेटी के कहने पर उन्होंने इसे फिर से देखना पसंद किया. श्रीमती रोशन बाथा और उनके पति मीनू बाथा इस फ़िल्म को दोबारा देखने की योजना कई महीनों से बना रहे थे, और काम से छुट्टी लेकर देखने आए थे. लेकिन विनोद दास का कहना है कि वो सौंवी वार फ़िल्म देख रहे हैं. विनोद एक रेस्तरॉ में काम करते हैं. उन्होंने पिछले पाँच साल में कोई और दूसरी फ़िल्म नहीं देखी है. उनके मुताबिक इस फ़िल्म की सबसे ख़ास बात यह है कि फ़िल्म के नायक और नायिका में से कोई भी अपने परिवार से नफरत नहीं करता. दोनों अपने-अपने परिवार को विश्वास में रखकर प्रेम निभाना चाहते हैं. लेकिन फ़िल्म के सबसे महत्वपूर्ण दर्शक हैं राज कोरगांवकर. राज कोरगांवकर के पास इसकी कोई गिनती नहीं है कि उन्होंने इस फ़िल्म के कितने शो देखे हैं. वो कहते हैं कि ये फ़िल्म उनकी सच्ची जिंदगी पर आधारित है. हाँ फ़िल्म और उनकी जिंदगी की कहानी के अंत में फर्क़ है. राज एक लड़की से प्यार करते थे. लड़की भी उनसे उतना ही प्यार करती थी. राज के पिता और घरवालों को भी लड़की पसंद थी. लेकिन घरवाले ने लड़की की मर्जी के ख़िलाफ़ उसकी शादी कहीं और करवा दी. राज को आज भी जब कभी अपनी प्रेमिका की याद आती है या अकेलापन सताता है वो फ़िल्म देखने चले आते हैं. मराठा मंदिर के आसपास के दुकान के मालिक और उनमें काम करने वाले लोगों में से हर किसी ने इस फ़िल्म को कम से कम 30 बार देखने का दावा किया. मराठा मंदिर के कार्यकारी निदेशक मनोज देसाई के मुताबिक 32 साल के उनके कैरियर में ऐसी संपूर्ण पारिवारिक मनोरंजक फ़िल्म दूसरी नहीं आई. उनके अनुसार 'दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के 10 साल के सफर में परीक्षा का समय, क्रिकेट का मैच और रमजान का महीना सिर्फ़ ये तीन ऐसे मौसम आए हैं जब इस फ़िल्म के दर्शकों की बाढ़ थोड़ी कम हुई थी. देसाई की योजना है कि वो इस फ़िल्म को तब तक चलाएंगे जब तक उन्हें चलाने से घाटा न शुरू हो जाए. देसाई का दावा है कि 30 सितंबर तक चलने पर ये फ़िल्म गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में स्थान पा लेगी. मराठा मंदिर ने 13 मई को एक विशेष आयोजन रखा है जिसमें दिलवाले के निर्देशक आदित्य चोपड़ा तो भाग नहीं ले पाएंगे. लेकिन सिनेमा के निर्माता और निर्देशक के पिता यश चोपड़ा दर्शकों को उपहार में प्यार का प्रतीक घंटी बाँटेंगे. |
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