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गुरुवार, 19 अगस्त, 2004 को 13:24 GMT तक के समाचार
 
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नए रूप में भी धमाका कर रही है शोले
 

 
 
शोले
पहली बार शोले 1975 में रिलीज़ हुई थी
मुम्बई के एक जाने-माने सिनेमा घर मिनर्वा में मैटनी शो शुरू होने वाला है.

बाहर काफी भीड़ है. हाउसफुल बोर्ड लगा है लेकिन फिल्म प्रेमी ब्लैक में टिकटें ख़रीदने की कोशिश में लगे हैं. काला बाज़ार गर्म है.

29 साल पुरानी फ़िल्म "शोले" अपने नए अवतार में उतना ही धमाका कर रही है जितना कि 1975 में पहली बार रिलीज़ होने के समय किया था.

अनुपमा चोपड़ा ने शोले पर एक किताब लिखी है.

वह कहती हैं कि शोले का कोई मुकाबला नहीं.

अनुपमा बताती हैं,"29 वर्ष बाद भी अगर मिनर्वा में टिकटें ब्लैक में बिक रही हैं तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं शोले कितनी लोकप्रिय फिल्म है - यह हर ज़माने के लिए है- सदाबहार है."

नई रिलीज़

 29 वर्ष बाद भी अगर मिनर्वा में टिकटें ब्लैक में बिक रही हैं तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं शोले कितनी लोकप्रिय फिल्म है - यह हर ज़माने के लिए है- सदाबहार है
 
अनुपमा चोपड़ा

पिछले शुक्रवार को मुंबई के कई सिनेमा घरों में शोले एक बार फिर से नई फिल्म की तरह रिलीज की गई.

इसके साउंडट्रैक को डिजिटलाइज किया गया है.

इसकी प्रिंट में भी बेहतरी लाई गई है.

जिन लोगों ने पहले यह फिल्म देखी है वे कहते हैं कि फिल्म को देखने का मज़ा ही कुछ और है.

शोले देखने वालों में वह नौजवान पीढ़ी आगे है जो शोले बनने के बाद पैदा हुई है.

एक युवक राज बिहारी निराश नज़र आए क्योंकि उन्हें टिकट नहीं मिला.

शोले
रास बिहारी को टिकट नहीं मिल सकी

वे बोले,"हम ने यह नहीं सोचा था कि हॉल हाउसफुल होगा. लेकिन हम ब्लैक में टिकट नहीं ख़रीद सकते. हम किसी और दिन आकर देख लेंगे."

लेकिन शोले के कुछ और दीवाने कहते हैं कि वह फिल्म देखे बिना वापस नहीं लौटेंगे.

अनवर ख़ान कहते हैं कि उन्होंने टिकट ब्लैक में ख़रीदा है.

"मैंने यह फिल्म इससे पहले दस बार देखी है लेकिन बड़े पर्दे पर अभी तक नहीं देखी थी, इसीलिए मैंने ब्लैक में टिकट खरीद लिया".

आज भी लोकप्रिय

विशेषज्ञों का कहना है कि शोले की लोकप्रियता से उन्हें हैरानी नहीं हुई.

अनुपम चोपड़ा,"ये फिल्म योग्यता और तकनीकी की एक अनोखी मिसाल है. साथ ही अभिनेता भी अपनी अदाकारी की चरमसीमा पर थे."

सुशील मेहरा मिनर्वा सिनेमाघर के उस समय भी मैनेजर थे और आज भी हैं.

 इस जन्म में अब इस तरह की फिल्म कभी नहीं बन सकेगी
 
सुशील मेहरा, मिनर्वा सिनेमा

वे कहते हैं कि शोले जैसी फ़िल्म अब कभी नहीं बनेगी

उन्होंने कहा,"इस जन्म में अब इस तरह की फिल्म कभी नहीं बन सकेगी".

लेकिन अगर यह फ़िल्म इतनी ज़बर्दस्त है तो इसे दोबारा डिजिटलाइज कर के, इसमें तकनीकी रूप से सुधार लाकर रिलीज करने की क्या जरूरत थी?

फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटर लियाकत गोला कहते है,"हम एक नया दौरे शुरु करना चाहते थे. ठीक उसी तरह जिस तरह हॉलीवुड में कुछ क्लासिक फ़िल्मों को दोबारा रिलीज करके उन्हें एक नया जीवनदान दिया गया है. मैंने इसके लिए शोले को चुना".

और चुनते भी क्यों नहीं?

गोला ने इसे 32 बार देखा है और वह कहते हैं उन्हें हर बार कुछ नया अनुभव हुआ.

मुम्बई में शोले की सफलता को देखते हुए उन्होंने इसे अब अन्य कई शहरों में रिलीज करने का फैसला किया है.

दूसरी ओर वह 70 के दशक की एक ओर क्लासिक फ़िल्म- शान- को दोबारा रिलीज करने की तैयारी में जुटे हैं.

उन्होंने बताया कि शान सितंबर के अंत में दोबारा रिलीज होगी.

 
 
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