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एशियाई फ़िल्म समारोह की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्में | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
30 देशों से आई 90 से ज्यादा फ़िल्में, दर्शकों से खचाखच भरे सभागार और हर तरफ समारोह की प्रशंसा के स्वर, कुछ इस तरह दिल्ली में पिछले 10 दिनों से चल रहा छठा एशियन फिल्म समारोह सम्पन्न हुआ. समारोह में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार दो फ़िल्मों को दिया गया है. इनमें से एक फ़िल्म, अर्थ एंड ऐशेज़ अफ़गानिस्तान से है जिसके निर्दशक आतिक़ राहिमी हैं और दूसरी फ़िल्म है ताइवान के ली-कॉग-शेंग की द मिसिंग. इसी ताइवानी फ़िल्म में अपने प्रभावी अभिनय के लिए लू-इ-चिंग को सर्वश्रेष्ठ महिला कलाकार का पुरस्कार मिला जबकि अफ़गानिस्तान की फ़िल्म, अर्थ एंड ऐशेज़ को सर्वश्रेष्ठ पुरुष कलाकार का पुरस्कार दिया गया. समारोह के समापन के अवसर पर बोलते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री जयपाल रेड्डी ने दुनिया भर के तमाम निर्देशकों से भारत आने और यहाँ की विविध पृष्भूमियों को अपनी फ़िल्म लोकेशन के रूप में इस्तेमाल करने का न्यौता भी दिया. सफल रहा आयोजन
जानी-मानी फिल्म कलाकार शबाना आज़मी, जो इस समारोह के निर्णायक मंडल की अध्यक्ष भी थीं, का मानना है कि केवल छह वर्षों के आयोजन में अपने लिए एक खास दर्शक वर्ग खड़ा कर पाना एक बड़ी उपलब्धि है. शबाना के मुताबिक, ''ये दर्शक तमाम अन्य फ़िल्म समारोहों के दर्शकों से अलग हैं, और एक समझ और परिपक्वता के साथ समारोह का आनन्द ले रहे हैं.'' हालांकि समारोह आयोजन करने वाले समूह ''सिनेफ़ैन'' की निदेशक अरुणा वासुदेव के मुताबिक यह आयोजन कर पाना आसान बात नहीं थी लेकिन पिछले सालों से इस बार कई गुना सुधार आया है और दर्शकों की बड़ी संख्या इसका प्रमाण भी है. प्रसिद्ध रंगकर्मी मकरन्द देशपांडे के मुताबिक यह समारोह एकदम सफल रहा है. मकरन्द ने बताया ''दानव मेरी बतौर निर्देशक पहली फिल्म है और मेरे लिए यह बड़ी उपलब्धि ही है कि मेरी पहली फ़िल्म को ही विश्व स्तर का निर्णायक मंडल और सिनेमा से खास अनुराग रखने वाले दर्शक देख रहे हैं.'' चिंता हालांकि मकरन्द भारतीय, खासतौर पर हिन्दी सिनेमा को लेकर चिंतित हैं. उन्होंने कहा, ''हम अपनी भारतीयता खो चुके हैं और इसीलिए हम न तो इधर के हैं और न उधर के.'' उन्होंने तमाम फिल्मकारों को इस समारोह की फ़िल्मों से सीखने की सलाह दी. कुछ ऐसा ही मानते है वरिष्ठ स्तंभकार अपूर्वानन्द. अपूर्वानन्द कहते हैं कि जहाँ महिलाओं और मानवीय संवेदनाओं से जुड़े पहलुओं पर बनी फ़िल्मों ने दर्शकों को ख़ासा प्रभावित किया वहीं समारोह से ये संकेत भी मिले कि वर्तमान भारतीय निर्देशकों को अभी बहुत कुछ सीखना होगा. वरिष्ठ साहित्यकार कुंवर नारायण इस आयोजन को लेकर काफी खुश दिखाई दिए. उन्होंने कहा, ''समारोह की फ़िल्मों में पूरे एशिया के तमाम पहलुओं को देखने जानने का मौका मिला और यह भी स्पष्ट हो गया कि एशियन फ़िल्मों को कम आँकना खुद को धोखे में रखना होगा.'' सेंसर पर सवाल भारतीय फ़िल्मों का सेंसर बोर्ड भी इस समारोह से अछूता नहीं रह सका. समापन समारोह में आयोजन समिति की निदेशक अरूणा वासुदेव ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री जयपाल रेड्डी से पूछा कि जब दुनिया के तमाम देशों में फ़िल्में सेंसर बोर्ड की कैंची से मुक्त है तो फिर भारत सेंसर क्यों? इस पर जवाब देते हुए जयपाल रेड्डी ने अपने भाषण में कहा, ''इस वर्ष डॉक्यूमेंटरी फिल्मों के लिए वीडियो फार्मेटिंग की अनुमति दे दी जाएगी,लेकिन ज्यादा कुछ कर पाना अभी तत्काल संभव नहीं है, अगले साल हम कुछ अलग और बेहतर कर पाने में सक्षम होंगे.'' समारोह में इस बार बड़ी तादाद में ऐसी फ़िल्में दिखाई गईं जो दुनिया के तमाम पहलुओं की काफ़ी बारीकी से पड़ताल करती हैं और इस ओर एक विमर्श भी खड़ा करती हैं ख़ासतौर पर ईरान, अफगानिस्तान और इस्राइल से आई फ़िल्मों को ख़ासी सराहना मिली. |
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