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करगिल संघर्ष पर एक और फ़िल्म | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 के करगिल संघर्ष पर एक और फ़िल्म 'लक्ष्य' रिलीज़ हुई है. बॉलीवुड को फ़रहान अख़्तर की इस फ़िल्म से बहुत उम्मीदें हैं. इससे पहले 2001 में आई फ़रहान की फ़िल्म 'दिल चाहता है' को आम दर्शकों और समीक्षकों, दोनों की सराहना मिली थी. उसे सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था. फ़रहान अपनी नई फ़िल्म 'लक्ष्य' में भी अपने निजी अनुभवों को शामिल करने का दावा करते हैं. ख़बर है कि अमिताभ बच्चन, हृतिक रोशन और प्रीति ज़िंटा अभिनीत इस फ़िल्म पर 35 करोड़ रुपये ख़र्च आए हैं. फ़िल्म की पटकथा फ़रहान के पिता जावेद अख़्तर ने लिखी है.
इससे पहले 12 साल पहले उन्होंने 'मैं आज़ाद हूँ' नामक फ़िल्म की पटकथा लिखी थी. 'लक्ष्य' में संवाद और गाने भी जावेद के ही हैं. इसमें संगीत है शंकर-ईशान-लॉय की उसी तिकड़ी का जिन्होंने 'दिल चाहता है' के संगीत से फ़िल्मप्रेमियों को ताज़गी का एहसास कराया था. लेह-लद्दाख की वीरानगी को पूरे प्रभाव के साथ फ़िल्माने का ज़िम्मा निभाया है क्रिस्टोफ़र पॉप ने जो युद्ध पर बनी फ़िल्म 'स्योस्तकोविस' से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहे गए थे. करगिल संघर्ष 'लक्ष्य' की पृष्ठभूमि यों तो भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ करगिल संघर्ष है, लेकिन इसमें युद्ध को एक अलग नज़रिए से देखने की कोशिश की गई है. इसमें कहानी है अमीर घराने के एक बेपरवाह लड़के करण शेरगिल(हृतिक) की.
ज़िंदगी में कोई ख़ास लक्ष्य नहीं रखने वाला करण आख़िरकार करगिल संघर्ष में एक बहादुर सैनिक के रूप में उभर कर सामने आता है. दरअसल करण को अपने ऐशोआराम के अलावा एकमात्र दिलचस्पी रोमिला दत्ता (प्रीति) में है जोकि एक महत्वाकांक्षी पत्रकार हैं. रोमिला की प्रेरणा से करण भारतीय सेना में भर्ती होता है, जहाँ कर्नल सुनील दामले(अमिताभ) उसकी छिपी हुई शारीरिक और मानसिक ताक़त को जगाने में सहायक बनते हैं. और भारतीय सेना में शामिल होकर करण अंतत: पाता है कि उसका व्यक्तिगत लक्ष्य और राष्ट्र का लक्ष्य, दोनों एक है. |
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