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आलोचना की परवाह नहीं:फराह ख़ान | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पिछले सप्ताह रिलीज़ हुई शाहरूख़ ख़ान की फ़िल्म 'मैं हूँ न' निर्देशक के तौर पर फ़राह ख़ान की पहली फ़िल्म है. नृत्य निर्देशन से फ़िल्म निर्देशन की ओर रुख़ करने वाली फ़राह ख़ान से मुंबई में बीबीसी के ज़ुबैर अहमद ने बातचीत की. फ़िल्म को लेकर दर्शकों का जो रूख़ रहा है क्या आप उससे संतुष्ट हैं? लोगों की प्रतिक्रिया तो बहुत अच्छी रही है. बेशक आलोचकों ने ज़्यादा पसंद नहीं किया, मुझे पहले ही अंदाज़ा था कि बुद्धिजीवी लोगों को फ़िल्म बहुत पसंद नहीं आएगी. यह उन लोगों के लिए है जो मनोरंजन चाहते हैं. पॉपकॉर्न खाओ, एन्ज्वाय करो. अच्छे गाने हैं, एक्शन बहुत अच्छा है, कॉमेडी है, और सबसे बढ़कर शाहरूख़ ख़ान हैं. 100 रूपए के टिकट में और क्या चाहिए. लोग तो पूछ रहे हैं कि कहानी कहाँ है? जिनको कहानी नहीं मिली उनको फिर से देखनी पड़ेगी. तीन-तीन कहानियाँ हैं मेरी फ़िल्म में. मुझे आलोचना की परवाह नहीं है क्योंकि फ़िल्म सुपर-डूपर हिट हो गई है. इतना अच्छा बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पिछले पाँच सालों में नहीं हुआ. शायद भारत-पाकिस्तान दोस्ती के पैगाम के कारण लोग फ़िल्म को पसंद कर रहे हैं. अगर ऐसा है तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है. हमने कॉमर्शियल फ़िल्म ज़रूर बनाई है लेकिन हमने इसमें कुछ कहने की भी कोशिश की है और इस तरीक़े से कि लोग बोर न हों. भारत-पाकिस्तान के रिश्ते में सुधार के बाद क्या आपने फ़िल्म की कहानी में बदलाव किया, पहले कहीं आप पाकिस्तान विरोधी फ़िल्म तो नहीं बना रही थीं? नहीं, बिल्कुल नहीं. स्क्रिप्ट हमने चार साल पहले लिखी थी, उसे बदला नहीं गया. हम फ़िल्म पिछले वर्ष रिलीज़ करना चाहते थे लेकिन शाहरूख़ की कमर में दर्द के कारण देरी हो गई. मुझे लगता है कि अल्लाह हमारे साथ है, फिल्म ऐसे माहौल में रिलीज़ हुई है जबकि पाकिस्तान के साथ दोस्ती का माहौल है. बड़ा जोखिम का क़दम था क्योंकि उन दिनों तो पाकिस्तान विरोधी फ़िल्में बनाई जा रही थीं, आपने धारा के ख़िलाफ़ जाने का फ़ैसला किया था? जिस समय मैंने स्क्रिप्ट लिखी थी, बॉर्डर और ग़दर हिट हो चुकी थीं लेकिन ऐसा प्रेशर मेरे ऊपर कभी नहीं आया कि फ़िल्म कैसी बनानी है. मेरे विचार में हमें वही करना चाहिए जो सही हो. आपने इस फ़िल्म में फौजियों का बहुत प्रचार किया है, उनकी खुशामद की है, आख़िर क्यों? हमने प्रचार सिर्फ़ अपना किया है, शाहरूख़ ख़ान फौज में हैं, उनके पिता फौज में हैं तो ज़ाहिर है कि फौज के लिए ज़रा इज़्ज़त का इज़हार तो होगा ही. फ़िल्म में एक दृश्य है जब फौज को बुरा-भला कहा जाता है, इसी तरह फ़िल्म में विलेन सुनील शेट्टी हैं जो एक समय फौज में थे. मैंने आपकी फ़िल्म देखी है, कहीं-कहीं अच्छी है लेकिन ज़्यादातर जगहों पर सत्तर और अस्सी के दशक में बनने वाली फ़िल्मों की खिचड़ी लगती है, क्या आपने ऐसा जान-बूझकर किया? यह एक मसाला फिल्म है, बॉलीवुड की सत्तर और अस्सी के दशक की फ़िल्मों को ध्यान में रखकर बनाई गई है. आगे चलकर आपका इरादा क्या है, फराह ख़ान नृत्य निर्देशक या फ़िल्म निर्देशक? डायरेक्टर बनना तो एक प्रमोशन है, कोरियोग्राफ़ी मैं छोड़ तो नहीं रही हूँ, कुछ-कुछ करती रहूँगी. भविष्य में और फ़िल्में डायरेक्ट करने का ऑफर मिला है? मुझे काफ़ी ऑफर मिल रहे हैं, काफ़ी लोगों से. लेकिन अभी मैंने दो महीने की छुट्टी लूँगी. आपके पास जो प्रोड्यूसर आ रहे होंगे उनसे आप कहती होंगी, मैं हूँ न. पता नहीं, कह पाऊँगी कि नहीं, लेकिन शाहरूख़ मुझसे एक और फिल्म डायरेक्ट करने को कह रहे हैं. |
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