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महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव आख़िर क्यों? | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
बॉलीवुड की बिंदास अभिनेत्री प्रीति ज़िंटा का कहना है कि भारत में महिलाओं के साथ हर स्तर पर भेदभाव होता है, ज़्यादातर पुरुष महिलाओं के साथ क्रूर बर्ताव करते हैं, मीडिया में भी उनका शोषण होता है और बहुत से क़ानून भी महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं. प्रीति ज़िंटा की क़लम से --- "भारत में एक लड़की युवावस्था तक अपने पिता पर निर्भर होती है, शादी के बाद अपने पति पर और बूढ़ी होने पर अपने बेटे पर. मैं नहीं चाहता कि तुम इनमें से किसी भी तरह की बनो. मैं चाहता हूँ कि तुम हर तरह से आत्मनिर्भर बनो, अपनी क़िस्मत की ख़ुद मालिक." जब मैं छोटी थी तो मेरे पिता मुझसे इस तरह कहा करते थे. मैं आज जो कुछ भी हूँ, मेरे पिता की ही देन है, उन्होंने ही मुझे ख़ुद में भरोसा करना सिखाया. आज वह इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन जो कुछ भी वह चाहते थे आज मैं उन्हीं की दी हुई सीख से बन सकी हूँ. मैं आत्मनिर्भर हूँ, आत्मविश्वास से भरपूर हूँ और मैं अपनी नियति की ख़ुद मालिक हूँ. अगर मेरी ज़िंदगी एक फ़िल्म होती तो मेरे पिता मेरे सबसे आदर्श हीरो होते. उन्होंने ही मुझे मज़बूत बनने की सीख दी. इसलिए आज मैं एक आधुनिक भारतीय महिला हूँ. मैं अपनी संस्कृति और अपने मूल्यों को नहीं भूली हूँ और मैं अपने बहूत महत्वाकाँक्षी हूँ और अपने काम पर ज़्यादा ध्यान देती हूँ. समस्या लेकिन एक समस्या है. मैं जब सड़क पर चलती हूँ तो सुरक्षित महसूस नहीं करती हूँ. मैं ही क्या भारत में ज़्यादातर महिलाएं असुरक्षित ही महसूस करती हैं. और ऐसा क्यों है? दरअसल भारत में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं एक आम बात हो गई हैं और यह मामूली छेड़छाड़ से लेकर उन पर यौन हमलों तक हो सकती हैं.
मैं भी इसी तरह की घटनाओं का शिकार हो चुकी हूँ. मेरा एक सिद्धांत है. अगर कोई मेरे साथ छेड़छाड़ करता है या मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करता है या फिर मुझे सिर्फ़ माँस का एक ढाँचा भर समझता है तो मेरा सिद्धांत शुरू होता है. कुछ साल पहले की बात है, दिल्ली के एक भीड़भाड़ वाले बाज़ार में मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ ख़रीदारी कर रही थी, कि किसी ने मुझे चुटकी काटी. ऐसे मामलों में मेरी प्रतिक्रिया बहुत तेज़ और तीखी होती है, मैंने तुरंत उसका हाथ पकड़कर भरी भीड़ में मरोड़ दिया और उसे एक ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया. लेकिन मुझे वहाँ बहुत ग़ुस्सा आया और मैंने ख़ुद को दबाकुचला महसूस किया. इस तरह की घटनाएं महिला की इज़्ज़त से खेलती हैं, उसके सम्मान को ठेस पहुँचाती हैं और उसकी आज़ादी के लिए भी ख़तरा पैदा करती हैं. सरकारी मजबूरी आज मैं ख़ुद को बहुत ख़ुशक़िस्मत समझती हूँ क्योंकि मैं एक स्टार हूँ और मुझे सुरक्षा मिलती है. लेकिन आम महिलाओं की हालत तो बहुत ख़राब है, उन्हें हर रोज़ ऐसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है.
कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि कुछ पुरुष इस तरह का बर्ताव क्यों करते हैं और सरकार महिलाओं की हिफ़ाज़त करने में नाकाम क्यों रहती है. एक ऐसे देश में महिलाओं असुरक्षित क्यों महसूस करती हूँ जिसकी एक महिला प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नाम कमा चुकी हैं. आज देश के 29 में से पाँच राज्यों में महिलाएं सरकार चलाती हैं फिर क्यों पुरुष महिलाओं को सड़क पर छेड़ते हैं, बसों, रेलगाड़ियों में उन पर फ़ब्तियाँ कसते हैं और उन पर हमले और बलात्कार करते हैं? मीडिया मैं समझती हूँ कि इसमें कुछ दोष मीडिया का भी है, मीडिया में भी सेक्स शोषण बहुत होता है, टेलीविज़न पर प्राइम टाइम में बहुत कूड़ा-कचरा होता है. इतना कि कुछ कार्यक्रमों को मैं अपने परिवार के साथ देखने में शर्म महसूस करती हूँ.
मेरा इशारा उन एलबमों की तरफ़ है जिनमें कैमरा महिलाओं के अंगों पर क्लोज़ अप करके घूमता और केंद्रित रहता है और ऐसे गाने ख़ासतौर से पुराने कामयाब फ़िल्मी गीतों की धज्जियाँ उड़ाकर बनाए जा रहे हैं. चलती-फिरती तस्वीरें बड़ा असर डालती हैं और कभी-कभी यह असर उल्टा भी होता है. मेरी समझ में नहीं आता है कि सेंसर की नज़र इस तरह के वीडियो एलबमों पर क्यों नहीं पड़ती है. सम्मान ख़तरे में भारत में परंपरागत तौर पर महिला हालाँकि घर संभालने तक ही सीमित हुआ करती थी लेकिन उसके सम्मान में कोई कमी नहीं थी. लेकिन आज जब महिलाओं ज़्यादा संख्या में घर से बाहर निकलकर अपने पैर जमा रही हैं तो पुरूषों से उन्हें न सिर्फ़ ज़्यादा बुरा बर्ताव मिल रहा है बल्कि उनकी सुरक्षा और सम्मान को ही ख़तरा पैदा हो गया है. इसमें बहुत हाथ मीडिया का भी है और ज़्यादातर पुरुष जो मीडिया में देखते हैं उसकी नक़ल करने की कोशिश करते हैं. मैं यह कहने की जुर्रत भी करुँगी कि आज का सिनेमा भी इसके लिए बहुत हद तक ज़िम्मेदार है. पुराने ज़माने की हिंदी फ़िल्मों में अभिनेत्रियाँ एक निश्चित दायरे में रहकर काम करती थीं जहाँ उनका सम्मान क़ायम रहता था लेकिन आज तो अजब तरीक़े के कपड़े पहन कर "सेक्सी" दिखने के लालच ने सारा नक्शा ही बदलकर रख दिया है. एक क़दम आगे बढ़कर देखें तो क़ानूनों से भी महिलाओं को कुछ ख़ास मदद नहीं मिलती. अगर किसी महिला के साथ कुछ ज़्यादती होती है या बलात्कार होता है तो उल्टे उसे ही क़ानून के सामने यह साबित करना होता है कि उसका चरित्र ख़राब नहीं है और उसने अपने साथ "यौन संबंधों की इजाज़त" ख़ुद नहीं दी थी. लेकिन इस सबके बावजूद मैं बहुत आशावादी हूँ. मेरा मानना है कि बुराई की अच्छाई पर हमेशा ही जीत होती है. हमारे समाज में खलनायकों से कहीं बहुत ज़्यादा अच्छे आदमी होते हैं और होंगे. |
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