बीबीसी स्टूडियो में जमी सूफ़ी महफ़िल

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- Author, सुशांत एस मोहन
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, मुंबई
मुंबई में नवंबर 2008 के हमले के बाद से पाकिस्तानी कलाकारों के लिए भारत में आकर काम करना मुश्किल हो गया है और यह मुश्किल राहत के सामने भी आई.
बीबीसी हिंदी के मुंबई स्टूडियो में आए राहत फ़तेह अली ने कहा, "अब हम गाने म्यूज़िक डायरेक्टर्स के साथ 'स्काईप' पर बैठ कर डिस्कस करते हैं लेकिन इसमें वो बात नहीं जो एक ही स्टूडियो में आमने-सामने रिकॉर्ड करने में."

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एक मिसाल देेते हुए राहत कहते हैं, "अभी बजरंगी भाई जान के लिए हमने मुखड़ा गाया, अप्रूव करवाया फिर जब अंतरे की बारी आई तो गाते-गाते मूड बदल गया, लगा कि मुखड़े का स्थायी बदल रहा है. कितनी ही बार ऐसा भी हुआ है कि गाने के पूरे न होने के चलते फ़िल्म से गाना हटाना पड़ा है."
क़व्वाली

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राहत फ़तेह अली ख़ान जिस घराने से आते हैं वहां उस्ताद नुसरत फ़तेह अली ख़ान और उनके पिता उस्ताद फ़तेह अली ख़ान जैसे गायकों की रिवायत रही है.
क़व्वाली को एक अलग मुक़ाम देने वाले इस घराने में नुसरत फ़तेह अली ख़ान के बाद उनके वारिस राहत बने और वो क़व्वाली के भविष्य को उज्ज्वल मानते हैं.
राहत ने कहा, "हमने क़व्वाली को इम्प्रोवाइज़ किया है, आज जिस तरह के गाने बन रहे हैं चाहे वो रोमांटिक ही क्यों न हो, क़व्वाली के सुर उनमें जोड़ने से वो गाने एक अलग ही लेवल पर पहुंच जाते हैं."
राहत ने बताया कि आज सिर्फ़ पाकिस्तान और भारत में ही नहीं बल्कि विदेशो में भी क़व्वाली के लाइव शो की डिमांड बहुत बढ़ गई है और सबसे पसंदीदा क़व्वाली पूछे जाने पर वो गुनगुनाते हैं, "सांसों की माला पे सिमरू मैं पी का नाम..."
भारत में संगीत

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राहत को इस बात की ख़ुशी है कि भारत में पाकिस्तानी गायकों को गाने का मौक़ा मिलता है और हैरानी की बात है कि राहत ने बॉलीवुड के लिए लॉलीवुड (पाकिस्तानी फ़िल्म इंडस्ट्री) से ज़्यादा गाने गाए हैं.
राहत के हिसाब से भारत में आज संगीत में जो सबसे अच्छा काम कर रहे हैं वो हैं विशाल भारद्वाज और साजिद अली-वाजिद अली की जोड़ी.
वो कहते हैं, "अपने कल्चर को समझ कर, ज़मीन से जुड़ा संगीत बनाते हैं ये लोग. विशाल की एक फ़िल्म का संगीत दूसरी फ़िल्म से अलग होता है."
नुसरत

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जब राहत फ़तेह अली ख़ान अपने चाचा नुसरत फ़तेह अली ख़ान को याद करते हैं तो नाम के साथ ही सीधे बैठ जाते हैं.
वो याद करते हुए बताते हैं,"वो बहुत ग़ुस्से वाले थे, शांत रहते थे लेकिन तभी तक जब तक कोई ग़लती नहीं होती थी. एक बार हारमोनियम के रियाज़ में मुझसे एक हरकत नहीं लग रही थी, वो डांट मुझे आज भी याद है."
राहत ने बताया कि नुसरत फ़तह अली ख़ान गायकी को लेकर इतने संवेदनशील थे कि उनके सामने गाना तो दूर कोई मुंह भी नहीं खोलता था लेकिन अगर उनका डर था तो उनके गाने की इज़्ज़त भी उतनी ही थी.

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नुसरत फ़तेह अली ख़ान के बाद अब फ़तेह अली परिवार की संगीत धरोहर राहत के हाथों में है और वो इसे बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी मानते हैं, वे आज भी अपने गुरू नुसरत फ़तेह अली ख़ान की कमी महसूस करते हैं.
जब उनसे पूछा गया कि वो उनकी किस क़व्वाली को सबसे ज़्यादा याद करते हैं तो राहत ने गुनगुनाना शुरू किया, 'आफ़रीं आफ़रीं' से शुरू हुआ सफ़र 'अंखिया उडीक दिया' पर ख़त्म हुआ और जब ये हुआ तो स्टूडियो में मौजूद लोगों की आंखे नम थीं, राहत शुक्रिया कह कर अपना काला चश्मा पहन कर बाहर चले गए.
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