काजोल से जब बेटे ने पूछा 'तुम नॉर्मल माँ क्यूँ नहीं हो?'

    • Author, सुप्रिया सोगले
    • पदनाम, मुंबई से, बीबीसी हिंदी के लिए

तीन दशक से हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में अपना लोहा मनवा चुकीं अभिनेत्री काजोल के 10 साल के बेटे युग ने उनसे सवाल किया था कि वो दूसरी माँओं की तरह क्यों नहीं हैं? वो काम पर क्यों जाती हैं?

पुरुष प्रधान भारतीय समाज में अक्सर कामकाजी माँओं पर आरोप लगते आए हैं कि वो अपने परिवार की उपेक्षा करती हैं.

बीबीसी से ख़ास रूबरू हुई काजोल ने इस सन्दर्भ में अपना पारिवारिक उदाहरण देते हुए कहा, "मेरे बेटे ने एक बार मुझसे पूछा था कि तुम "नॉर्मल माँ क्यों नहीं हो? तुम काम पर क्यों जा रही हो? तुम क्यों नहीं घर पर रहती और मेरे लिए खाना बनाती हो? जिसके जवाब में मैंने कहा कि जब तुम बड़े हो जाओगे और तुम्हारी शादी होगी किसी से और वो काम पर जाएगी तो तुम उसमें ग़लती नहीं ढूंढ़ोगे. तुम्हारे लिए वो नॉर्मल होगा. वो नार्मल होना चाहिए. अगर मैं अपने बेटे की सोच बदल सकूं तो मैं समझूंगी कि मैंने बतौर माँ और नारीवादी महिला बहुत बेहतरीन काम कर दिया है."

अन्यायपूर्ण नज़रिया

काजोल रेणुका शहाणे द्वारा निर्देशित फ़िल्म त्रिभंग में तन्वी आज़मी और मिथिला पालकर के साथ नज़र आ रही हैं. फ़िल्म में महत्वकांक्षी माँ और पारिवारिक तनाव को तीन पीढ़ी के ज़रिए बताने की कोशिश की गई है.

फ़िल्म में तन्वी आज़मी काजोल की महत्वकांक्षी लेखिका माँ का किरदार निभा रही हैं. महत्वकांक्षी माँ और सामाजिक नज़रिए पर टिप्पणी करते हुए तन्वी आज़मी कहती हैं, "महत्वकांक्षी माँ पर इलज़ाम लगते हैं कि वो अपने परिवार को भूल कर अपने सपनों को पूरे करने के चक्कर में रहती हैं. मुझे ये बात बहुत ही अन्यायपूर्ण लगती है. सिर्फ़ इसलिए कि वो महिला है उसे सपने नहीं देखने चाहिए."

वो आगे कहती हैं, "उन पर आरोप लगते हैं क्योंकि वो दुनिया से कुछ हटकर करने जा रही हैं. यही हमें सिखाया जाता है कि औरतों को सिर्फ़ उनका घर संभालना चाहिए. अगर महिलाएँ अपना निर्णय ख़ुद लें तो उसे अलग नज़र से देखा जाता है. हम इस कहानी के ज़रिए वही सोच बदलने की कोशिश कर रहे हैं."

वहीं फ़िल्म की निर्देशिका रेणुका शहाणे का कहना है कि माँ को लेकर समाज सिर्फ़ एक दायरे में सोचता है जो बहुत ही आदरपूर्ण स्थान है. अगर माँ अपने पारिवारिक ज़िम्मेदारी के बाद कुछ करती है तो वो स्वीकार होता है पर अगर वो पारिवारिक ज़िम्मेदारी से समझौता कर अपनी इच्छा के हिसाब से काम करती है तो वो सही नहीं माना जाता. मैं यही सवाल समाज में उठाना चाहती हूँ कि ऐसा क्यों है?

दर्शकों को श्रेय

पूरे विश्व में महिलाओं का सशक्तिकरण बड़ी तेज़ी से हो रहा है. वहीं भारत भी दुनिया के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलने की कोशिश कर रहा है. हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री भी महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के सवाल पर आगे बढ़ रहा है.

इसका श्रेय काजोल दर्शकों को देती हैं.

काजोल का मानना है कि फ़िल्म इंडस्ट्री दर्शकों पर निर्भर है कि वो क्या देखना चाहते हैं. काजोल का मानना है कि दर्शकों के बदलते रुझान ने महिला प्रधान फ़िल्मों को वो जगह दी है और दर्शाया है कि अब अलग-अलग कहानियों के लिए जगह है वरना 'त्रिभंग' जैसी फ़िल्म नहीं बनती.

वहीं रेणुका शहाणे का कहना है कि फ़िल्म इंडस्ट्री में अब कई महिलाएं सिर्फ़ कमरे के सामने नहीं बल्कि कैमरे के पीछे भी बतौर लेखक, सिनमेटोग्राफ़र, एडिटर, निर्देशक और निर्माता बहुत काम कर रही हैं. इससे फ़िल्म की कहानियों में दर्शकों के सामने एक नया दृष्टिकोण आ रहा है जिससे हम समाज की मानसिकता धीरे-धीरे बदल सकते है.

रेणुका शहाणे द्वारा निर्देशित त्रिभंग 15 जनवरी को नेटफ़्लिक्स पर रिलीज़ हुई है.

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