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मंगलवार, 06 जून, 2006 को 13:09 GMT तक के समाचार
 
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गिरावट से छोटे निवेशक संकट में
 

 
 
शेयर कारोबारी
विदेशी निवेशक तेज़ी से भारतीय शेयर बाज़ार से निकल रहे हैं
छह जून, 2006 को सेंसेक्स ने दस हजार बिंदुओं से नीचे जाकर निवेशकों को बहुत डरा दिया है.

छोटे निवेशकों के लिए यह ख़ासे तनाव का समय है. पिछले एक साल से बाजार में ऐसे कई निवेशक आ गए थे, जो रोज बाज़ार को सिर्फ़ उठता हुआ देख रहे थे.

बाजार नीचे भी जाता है, ऐसा उन्होने देखा नहीं था. बाज़ार के ऊपर जाने की सबसे बड़ी वजह थी शेयर बाज़ार में विदेशी संस्थागत निवेशकों का निवेश.

कंपनियों के कामकाज की गुणवत्ता एक दम बहुत शानदार नहीं हो गई थी. मुनाफ़े में इतने ज़बरदस्त इज़ाफ़े नहीं हुए थे कि सेंसक्स एक ही साल के अंदर इतनी जबरदस्त बढ़ोत्तरी दर्ज करे.

मामला कुल मिलाकर यह था कि बहुत कम शेयरों के पीछे बहुत अधिक रुपया डॉलर समेत दौड़ रहा था.

विदेशी संस्थागत निवेशकों ने सिर्फ़ मई, 2006 में दो अरब डालर रुपए वापस निकाले यानी इतनी रकम की बिकवाली उन्होने की. बाज़ार नीचे आ गया.

अधिकांश विदेशी संस्थागत निवेशक लघु अवधि में भारतीय बाजारों के लिए सकारात्मक रवैया नहीं दिखा रहे हैं. बाजार के गिरने का सबसे बड़ा कारण यही है.

यह गिरता हुआ बाज़ार कहाँ जाकर रुकेगा इस पर सिर्फ़ अनुमान लगाए जा सकते हैं, पर अधिकांश अनुमान 8,000-10,000 के बीच के लगाए जा रहे हैं.

नुक़सान की स्थिति

इस स्थिति में उन निवेशकों को बहुत नुक़सान होने वाला है, जिन्होंने एकाध महीने में ही शेयर बाज़ार से करोड़पति बनने के ख्वाब देख डाले थे.

पर आम निवेशक के लिए दिक्कत सिर्फ़ शेयरों तक सीमित नहीं है.

तमाम विशेषज्ञों ने उन्हें समझाया है कि शेयर बाजार में सीधे निवेश के बजाय उन्हें म्यूचुअल फंडों के जरिये निवेश करना चाहिए.

हाल के कुछ महीनों में तमाम म्यूचुअल फंडों ने नये फंड शुरु करने में बहुत दिलचस्पी दिखाई है. वहाँ की तस्वीर भी बहुत निराशाजनक दिख रही है.

इन नई योजनाओं के निवेशक औसतन दस प्रतिशत निवेश तो खो चुके हैं. इसकी एक वजह यह है कि इन योजनाओं की रकम जिस वक़्त शेयर बाज़ार में लगी, उस वक़्त वह बूम पर था.

अब उन कीमतों तक उसका जा पाना निकट भविष्य में आसान नहीं है. सो कुल मिलाकर नए म्यूचुअल फंड भी निवेशकों के लिए घाटे का सौदा साबित होने जा रहे हैं.

पर निवेशक की चिंता सिर्फ़ इतनी तक सीमित नहीं है. हाल में आए आंकड़ों के हिसाब से 20 मई 2006 को खत्म हुए हफ़्ते में मुद्रा स्फीति 4.74 प्रतिशत थी.

हाल में पेट्रोल और डीजल में हुई बढ़ोत्तरी के बाद मुद्रा स्फीति और बढ़ेगी. एक अनुमान के मुताबिक यह 6-7 प्रतिशत तक जा सकती है.

तीन साल से ऊपर के डिपॉज़िट के लिए बैंकों द्वारा दी जाने वाली ब्याज दर सात प्रतिशत के आसपास है. सवाल यह है कि जितनी मुद्रास्फीति उतनी ही ब्याज दर तब निवेशक को प्रतिफल क्या हासिल होगा.

आज छोटे निवेशक का यही सवाल है कि सुरक्षित और ठीकठाक प्रतिफल कहाँ मिलेगा. सेंसेक्स ने दस हज़ार से नीचे जाकर इस सवाल को और गहरे रेखांकित किया है.

 
 
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