बृजभूषण शरण सिंह की ज़मानत का विरोध न करने पर दिल्ली पुलिस पर क्यों उठ रहे सवाल?

बृजभूषण शरण सिंह पर पहलवानों के आरोप

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    • Author, अंशुल सिंह
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

बीते गुरुवार को दिल्ली की राउज़ एवेन्यू कोर्ट ने बीजेपी सांसद और कुश्ती महासंघ के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह को पहलवानों से जुड़े यौन शोषण मामले में सशर्त ज़मानत दे दी है.

कोर्ट ने बृजभूषण शरण सिंह के साथ सह-अभियुक्त और कुश्ती महासंघ के पूर्व सहायक सचिव विनोद तोमर को भी जमानत दी है.

अदालत ने दोनों को 25-25 हजार रुपए के निजी मुचलके पर ज़मानत दी है.

ज़मानत देते हुए कोर्ट ने कहा है कि अभियुक्त बिना किसी पूर्व सूचना के देश नहीं छोड़ेंगे और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शिकायतकर्ताओं या गवाहों को धमकी या लालच नहीं देंगे.

अदालत की तरफ़ से मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई तय की गई है.

बृजभूषण शरण सिंह

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अदालत में क्या दलीलें दी गईं?

राउज़ एवेन्यू कोर्ट में मामले की सुनवाई एडिशनल चीफ़ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (एसीएमएम) हरजीत सिंह जसपाल ने की और इस दौरान बृजभूषण सिंह की जमानत याचिका को लेकर दिल्ली पुलिस दुविधा में दिखी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, जज ने ज़मानत की याचिका पर बार-बार पूछा कि याचिका पर जांच एजेंसी (दिल्ली पुलिस) का क्या रुख़ है?

जवाब में पुलिस की तरफ़ से पेश हुए सरकारी वकील ने अदालत से 'क़ानून के अनुसार' याचिका पर सुनवाई करने का आग्रह किया.

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जस्टिस हरजीत सिंह ने सरकारी वकील अतुल श्रीवास्तव से पूछा, ''आपका रुख़ क्या है? क्या आप याचिका का विरोध करते हैं?''

जवाब में वकील अतुल श्रीवास्तव ने कहा, ''हां, माननीय. कृपया क़ानून और सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मुताबिक़ आदेश पारित करें.''

इसके बाद जज ने पूछा, ''आप (दिल्ली पुलिस) विरोध कर रहे हैं या नहीं?''

सरकारी वकील ने कहा, ''दोनों में से कोई नहीं. मेरा निवेदन है कि क़ानून के अनुसार आदेश पारित करें.''

जज ने वकील अतुल श्रीवास्तव से फिर पूछा कि आपका उत्तर क्या है? हां या ना.

सरकारी वकील अतुल श्रीवास्तव ने कहा, ''दोनों में से कोई नहीं.''

इसके बाद जज ने अदालती कर्मचारी को अपना फ़ैसला लिखवाया, ''सरकारी वकील का कहना है कि वह न तो ज़मानत याचिका का विरोध कर रहे हैं और न ही समर्थन कर रहे हैं. उनका केवल यह कहना है कि अदालत को क़ानून, नियमों, दिशानिर्देशों और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अनुसार जमानत याचिका पर विचार करना चाहिए.''

क़ानून और अदालत संबंधी मामलों की जानकारी देने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक़ शिकायतकर्ता के वकील हर्ष बोरा ने अदालत में कड़ी शर्तों के साथ ज़मानत देने की बात कही थी.

वकील हर्ष बोरा ने कहा, "यदि माननीय जज ज़मानत देने के इच्छुक हैं, तो कड़ी शर्तें लगाई जा सकती हैं."

इस पर आरोपियों के वकील राजीव मोहन ने कहा कि उनकी तरफ़ से सभी शर्तों का पालन किया जाएगा.

बृजभूषण सिंह मामला

'ज़मानत मिलना पुलिस की चूक है'

सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने ज़मानत का न तो समर्थन किया था और न ही विरोध. उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहे विक्रम सिंह सरकारी वकील के इस फ़ैसले पर असहमत दिखाई देते हैं.

विक्रम सिंह कहते हैं, ''पुलिस और प्रशासन का ये कर्तव्य है कि पूरी शक्ति और सामर्थ्य के साथ अपराधियों को सलाखों के पीछे रखें और उनके भागने के तमाम रास्तों को बंद कर दें.''

''ज़मानत निरस्त होने के कुछ आधार होते हैं, जैसे- कोई साक्ष्य को प्रभावित कर सकता है या गवाहों को तोड़ सकता है. बृजभूषण सिंह के मामले में सर्वविदित है कि वो जांच को प्रभावित करने का सामर्थ्य रखते हैं और इसकी प्रबल संभावना है कि वो साक्ष्य के साथ खिलवाड़ कर सकते हैं और गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं. इसलिए ये पुलिस की ज़िम्मेदारी थी कि इन परिस्थितियों के मद्देनज़र ज़मानत का पुरजोर तरीके से विरोध करते. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. मैं समझता हूं ये पुलिस और सरकारी वकील की एक बड़ी चूक है.''

मामले में पूर्व डीजीपी सरकारी वकील की भूमिका पर भी सवाल उठा रहे हैं.

विक्रम सिंह कहते हैं, ''जब वकील ने कोर्ट में कोई स्टैंड नहीं लिया तो आप केस क्यों लड़ रहे हो? पुलिस ने चार्जशीट फ़ाइल की है तो हर सरकारी वकील चाहता है कि आरोपी की सहूलियत कम की जाएं लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उनकी ज़िम्मेदारी है कि आरोपी की ज़मानत का विरोध करें.''

बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ पहलवानों का प्रदर्शन

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इमेज कैप्शन, बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ पहलवानों का प्रदर्शन.

क़ानून क्या कहता है?

मामले का क़ानूनी पहलू समझने के लिए बीबीसी ने सुप्रीम कोर्ट में वकील विराग गुप्ता और नितिन मेश्राम से बात की.

विराग गुप्ता कहते हैं, ''भारत के संविधान और क़ानूनी व्यवस्था के अनुसार अपराधियों को कठोर दंड मिले लेकिन कोई भी बेगुनाह जेल में नहीं रहे. इसके उलट शातिर अपराधी जेल से बाहर और छुटभैये आरोपी सलाखों के भीतर रहते हैं. सीआरपीसी क़ानून के अनुसार संज्ञेय और गैर-ज़मानती किस्म के गंभीर अपराध जैसे-हत्या, लूट, बलात्कार और ड्रग्स जैसे मामलों में मजिस्ट्रेट के वारंट के बगैर ही आरोपी को पुलिस गिरफ़्तार कर सकती है.''

''दूसरी तरफ असंज्ञेय और ज़मानती किस्म के हल्के अपराध के मामलों में मजिस्ट्रेट के बगैर गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए. एफ़आईआर दर्ज करने के बाद अगर आरोपी की गिरफ़्तारी के बगैर पुलिस मजिस्ट्रेट के सामने चार्जशीट फ़ाइल करती है तो फिर ट्रायल शुरु होने पर आरोपी को अदालत में सरेंडर करना होता है. जांच के दौरान यदि पुलिस ने आरोपी की गिरफ़्तारी नहीं की हो तो सामान्यतः ऐसे मामलों में अंतरिम और फिर नियमित जमानत मिल जाती है, जैसा कि बृजभूषण के मामले में हुआ है.''

बृजभूषण शरण सिंह

वहीं वकील नितिन मेश्राम का कहना है कि मामले में अब तक बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ़्तारी नहीं हुई है इसलिए ज़मानत पर रोक लगाने का प्रश्न ही नहीं उठता है.

नितिन मेश्राम कहते हैं, ''चार्जशीट दायर करने से पहले और चार्जशीट दायर करने के बाद अब तक बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ़्तारी नहीं हुई है. जब उन्हें (दिल्ली पुलिस) को गिरफ़्तारी की ज़रूरत महसूस नहीं हुई तो फिर वो कोर्ट में क्या बोलेंगे?''

''सामान्यत: चार्जशीट फ़ाइल करने से पहले अगर पुलिस को हिरासत में लेकर पूछताछ करनी हो या फिर मामले से जुड़ी कोई रिकवरी करनी हो तो गिरफ़्तारी की जाती है. अब चार्जशीट फ़ाइल करने के बाद तो हिरासत में लेने का कोई तुक नहीं है. बृजभूषण खुद संसद के सदस्य हैं ऐसे में उनके भाग जाने की संभावना न के बराबर है. ऐसी स्थिति में वो ज़मानत का विरोध क्यों करेंगे?''

लेकिन अगर सरकारी वकील ज़मानत का विरोध करते तो ऐसी स्थिति में क्या होता?

इस सवाल के जवाब में नितिन मेश्राम कहते हैं, ''अगर सरकारी वकील ज़मानत का विरोध करते हुए कस्टडी की मांग करते तब भी बहुत हद तक संभव है कि ज़मानत मिल जाती. कारण है बृजभूषण सिंह की अब तक गिरफ़्तारी न होना. जब गिरफ़्तारी हुई ही नहीं तो न्यायिक हिरासत या पुलिस हिरासत में क्यों ही रखा जाता?''

नितिन मेश्राम कहते हैं कि क़ानून किसी की प्रताड़ना के लिए नहीं होता है और अगर कोई चाहता है कि बृजभूषण जेल में रहें तो बेहतर है कि उन्हें सज़ा दिलाएं.

स्वाति मालीवाल

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ज़मानत पर किसने क्या कहा?

कांग्रेस की सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की चेयरपर्सन सुप्रिया श्रीनेत ने ट्वीट कर लिखा,

अमित शाह की दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण सिंह की बेल पर कोर्ट में कहा, ''हम ज़मानत का ना तो विरोध कर रहे हैं, ना ही हम इसका समर्थन कर रहे हैं. हम न्यायालय के विवेक पर छोड़ते हैं."

"उसके बाद बृजभूषण सिंह को बेल मिल गई. ये वो पुलिस है जिसने चार्जशीट में यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए थे."

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दिल्ली महिला आयोग की चेयरपर्सन स्वाति मालीवाल ने लिखा, "कोर्ट में दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण की बेल का विरोध नहीं किया. ऐसे दिलाएँगे न्याय ?"

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टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने सांसद बृजभूषण शरण सिंह की संसद में मौजूदगी की तस्वीर ट्वीट की और लिखा, "यौन उत्पीड़न के आरोपी भाजपा सांसद ने यौन उत्पीड़न और हमले के मामले में जमानत मिलने के बाद कल इस तरह से संसद में प्रवेश किया - विजयी और प्रसन्न. दिल्ली पुलिस ने ज़मानत का विरोध नहीं किया."

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चार्जशीट में कौन सी धाराएं लगाई गई हैं?

सरकारी वकील के अनुसार, राउज़ कोर्ट एवेन्यू में दी गई चार्जशीट के बारे में वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ता ने बताया था कि राउज़ एवेन्यू कोर्ट में बृजभूषण सिंह के ख़िलाफ़ दायर की गई पहली चार्जशीट में भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 354-ए और 354-डी के तहत आरोप लगाए गए हैं.

वहीं इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मामले में एक और अभियुक्त विनोद तोमर के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 354 , 354-ए, 354-डी और 506(1) के तहत आरोप लगाए गए हैं.

  • धारा 354 : स्त्री की शालीनता को ठेस पहुंचाने के इरादे से उसपर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग. एक से पांच वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान.
  • धारा 354 ए: यौन उत्पीड़न. तीन साल तक की सज़ा संभव.
  • धारा 354 डी: पीछा करना. पहली बार दोषी पाए जाने पर तीन वर्ष तक की सज़ा संभव.
  • धारा 506(1): आपराधिक धमकी. दो साल तक की सज़ा का प्रावधान.

इन धाराओं के अपराध में पुलिस अभियुक्त को बिना वारंट के गिरफ़्तार कर सकती है लेकिन इन सभी मामलों में ज़मानत अभियुक्त का अधिकार है.

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