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जयपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस को क्यों बदलना पड़ा अपना उम्मीदवार, जानिए पूरा मामला
- Author, त्रिभुवन
- पदनाम, वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए
राजस्थान कांग्रेस के अंदर जयपुर शहर के टिकट पर ऐसे अनचाहे विवाद ने जन्म ले लिया, जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो.
इस विवाद ने दो चीज़ें एकदम साफ़ कर दीं कि एक तो राजस्थान में कांग्रेस के सभी प्रमुख नेता चुनाव लड़ने से भाग रहे हैं और वे यह ज़िम्मेदारी किसी और को देना चाहते हैं.
वे अपने इलाके की सीटों पर या तो ऐसे लोगों को टिकट दे रहे हैं, जिसे विधानसभा में पास भी नहीं फटकने दे रहे थे या फिर दूसरे दलों से बुला-बुलाकर उम्मीदवार बना रहे हैं.
अलबत्ता, जयपुर शहर के लिए उम्मीदवार घोषित करते समय पार्टी के नेता भी भयंकर लापरवाही में रहे और हाईकमान में टिकट तय करने वाले आला नेताओं ने भी न तो पूरा होमवर्क किया और न ही सही फ़ीडबैक जुटाया.
पार्टी के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदरसिंह रंधावा भी सियासी होश में नहीं रहे और विवादों का पिटारा खुल गया.
पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली जैसे नेताओं ने भी इस मामले में ध्यान नहीं दिया.
नतीजा यह हुआ कि न केवल पार्टी के शुरुआती उम्मीदवार और शिक्षाविद माने जाने वाले सुनील शर्मा की, बल्कि उम्मीदवार चयन के मामले में इतनी पुरानी पार्टी की भी ठीक होली से एक दिन पहले जमकर किरकिरी हुई.
एक बहुत बदमज़ा से वातावरण में पार्टी ने उनकी जगह हाल ही अपदस्थ हुई अशोक गहलोत सरकार की कैबिनेट में मंत्री रहे प्रताप सिंह खाचरियावास को नया प्रत्याशी बना दिया है.
पार्टी के प्रत्याशी सुनील शर्मा को तीन दिन पहले जब जयपुर शहर से उम्मीदवार घोषित किया गया था तो वे शायद महसूस कर रहे थे कि होली की शाम उनके सियासी जीवन के बसंत की सहर लेकर आएगी; लेकिन हुआ इसका एकदम उलटा.
दरअसल हुआ यह कि जैसे ही काँग्रेस ने अपनी दूसरी सूची में गुरुवार को देर रात पांच उम्मीदवारों के नाम घोषित किए, उनमें जयपुर शहर से कांग्रेस के कम चर्चित कार्यकर्ता और सुरेश ज्ञान विहार विश्वविद्यालय के चेयरपर्सन सुनील शर्मा का नाम देखकर बहुत से लोग चौंक गए.
शुक्रवार की सुबह होते-होते विवाद नया रूप लेने लगा, जिसमें सोशल मीडिया में वायरल हुए वीडियो, टेक्स्ट और इमेजेज़ में उनका संबंध 'जयपुर डायलॉग्स' नामक उस प्लेटफाॅर्म से जुड़ गया, जो कांग्रेस के नेताओं को ट्रॉल करने और उनकी आलोचना करने का मौक़ा कभी नहीं चूकता है.
सुनील शर्मा और जयपुर डायलॉग
सोशल मीडिया में सुनील शर्मा की कांग्रेसी और धर्म निरपेक्ष साख पर सवाल उठाया गया और कहा गया है कि उनका संबंध उस जयपुर डायलॉग्स से है, जो हिंदुत्ववादी, संघ दृष्टिकोण, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के पक्ष में सोशल मीडिया, यूट्यूब और अन्य मंचों पर खुलकर अभियान चलाता है.
जयपुर डायलॉग्स महात्मा गांधी, कांग्रेस, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के ख़िलाफ़ ख़तरनाक़ टिप्पणियां करता है और इन्हें बदनाम करने की कोई कसर नहीं छोड़ता.
सुनील शर्मा सफ़ाई देते रहे; लेकिन कोई उनकी बात को ठीक से सुनता और समझता, उससे पहले इस पूरे विवाद में पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर भी कूद पड़े और उन्होंने भी जयपुर डायलॉग्स को लेकर तीखे सवाल उठा दिए.
दिल्ली में प्रसिद्ध साहित्यकार और राजनीतिक विश्लेषक पुरुषोत्तम अग्रवाल तक ने इस टिकट पर हैरानी जताई.
उन्होंने एक वीडियो युक्त ट्वीट पर कमेंट किया, इन सज्जन का संबंध अगर सचमुच जयपुर डायलॉग्स से है तो बस यही कहा जा सकता है कि धन्य परम धन्य कांग्रेस.
रविवार को होली के दिन जब विवाद बहुत बढ़ गया तो सुनील शर्मा ने मीडिया से कहा, "कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की न्याय यात्रा से जो माहौल बना है, उस पर कंट्रोवर्सी खड़ी करने की कोशिश की जा रही है. मेरी साख पर सवाल उठाया जा रहा है. यह ग़लत है. मेरे परिवार की प्रतिबद्धता कांग्रेस के साथ 1938 से है और यह एकाध नहीं, तीन पीढ़ियों का जुड़ाव है."
वे बोले, "मेरे पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू के समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे. मेरे भाई जयपुर कांग्रेस के ज़िला अध्यक्ष रहे. उनके नाम से ज़िला कार्यालय है."
लेकिन विवाद तब और तूल पकड़ गया था, जब एक स्थानीय यूट्यूब चैनल के एक रिपोर्टर ने उनसे जयपुर डायलॉग्स को लेकर प्रश्न पूछा.
स्थिति स्पष्ट करने के बजाय सुनील शर्मा गले में पड़ा माइक और माला निकालकर तेज़ी से निकल गए.
रिपोर्टर उनके पीछे भागता रहा और उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. यह वीडियो वायरल हो गया और सुनील शर्मा को लेकर विवाद बढ़ता ही चला गया.
सुनील शर्मा ने क्या कहा?
रविवार को सुनील शर्मा ने इस विवाद पर जिस विस्तार के साथ सफ़ाई दी, उससे बहुत सारे लोगों को लगा कि वे जयपुर डायलॉग्स से बहुत अच्छी तरह जुड़े हुए हैं. इसे यों भी कह सकते हैं कि उन्हें इस संस्था की अच्छी जानकारी है.
सुनील शर्मा ने कहा, "जयपुर डायलॉग्स नाम की दो कंपनियां हैं. एक जयपुर डायलॉग्स है, जो दरअसल एक फोरम है. एक जयपुर डायलॉग्स डिजिटल मीडिया है. जयपुर डायलॉग्स जो फोरम है, वह एक चैरिटेबल संगठन है. ये सेक्शन एट का है. इसकी चैरिटी से मेरा संबंध कुछ समय रहा है. इनके यूट्यूब चैनल से मेरा कोई संबंध नहीं रहा. जो इनका डिजिटल मीडिया चलाता है, वो जयपुर डायलॉग्स डिजिटल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड है."
सुनील शर्मा ने सफ़ाई दी, "आज की तारीख में तो मेरा चैरिटी वाले से भी संबंध नहीं. काफ़ी अरसा हो गया मेरा ताल्लुक खत्म हुए. लेकिन अब षड्यंत्रकारी लोग सफल हुए हैं. खोटे सिक्के ने खरे सिक्के को बाहर कर दिया है."
माना गया कि आख़िर ऐसी और इतनी जानकारी किसी असंबद्ध व्यक्ति को तो कैसे हो सकती है!
यह संकेत पहले ही मिलने लगे थे कि उनकी उम्मीदवारी पर तलवार लटक गई है. इससे संबंधित सवालों पर शर्मा बोले, "मैंने पार्टी की उम्मीदवारी से इनकार किया है. मेरे टिकट लौटाने के दो घंटे बाद प्रताप सिंह जी का फैसला हुआ है."
उनसे जब सवाल हुए कि आपने टिकट लौटाने की पेशकश क्यों की तो उनका तर्क था, "स्थिति ऐसी है कि पार्टी में मुझे कोई डिफेंड करने को तैयार नहीं है तो मैंने कहा कि मैं विनम्रतापूर्वक टिकट लौटाता हूँ. कोई भी हमारे काँग्रेस के जुड़ाव और गांधी-नेहरू के विचारों से मेरी प्रतिबद्धता को नहीं देख रहा."
शर्मा ने विवाद के बाद कहा, "पहली बात तो मैंने पार्टी से टिकट मांगा नहीं. सब नेताओं का मुझ पर दबाव था. वे कह रहे थे कि यह राहुल गांधी के साथ खड़े होने का समय है. राहुल गांधी की न्याय यात्रा के मोमेंटम को गति देने की ज़रूरत है. मुझे टिकट की कभी चाहत नहीं रही."
लेकिन जयपुर से लोकसभा का उम्मीदवार बनने में उनकी दिलचस्पी नहीं थी या उन्होंने टिकट नहीं मांगा था, इस सवाल पर कांग्रेस के नेता बताते हैं कि ऐसा कहना सही नहीं; क्योंकि एक प्रमुख अख़बार में संभावित उम्मीदवारों को लेकर रीडर्स सर्वे हुआ तो उसके नतीजों में पहले स्थान पर आने के बाद शर्मा ने खुद सर्वे को सोशल मीडिया पर वायरल किया था.
वे टिकट के दावेदार थे और इसीलिए उन्होंने इस गुट से उस गुट में शिफ़्ट किया था.
क्यों गए जयपुर डायलॉग्स में?
सुनील शर्मा ने कहा, "जयपुर डायलॉग्स में मैं ही नहीं, पार्टी के अधिकृत प्रवक्ता तक गए. मैं जब वहाँ पहली बार गया तो खुद शशि थरूर का पत्र मुझे दिखाया गया कि वे आ रहे हैं. ऐसे लोगों ने मुझ पर हमला किया, जिनकी खुद की इंटीग्रिटी डाउटफुल है."
जब उनसे पूछा गया कि वे जयपुर डायलॉग से जुड़े हुए नहीं थे तो इस मंच पर गए क्यों थे तो वे बोले, "मैं दक्षिणपंथ के मंच पर कांग्रेस को डिफेंड करने गया था. मैं उनका ब्लड था. ब्लड को उन्हें डिफेंड करना चाहिए था."
उन्होंने कहा, "केसरिया कट्टरवाद खतरनाक है. लेकिन पार्टी को मुझे डिफेंड करना चाहिए था. मैंने अपने आपको आहत महसूस किया, क्योंकि पार्टी ने मुझे डिफेंड नहीं किया. माँ का काम था अपने बच्चे को डिफेंड करने का. सबको मेरे साथ आगे आना चाहिए था. मुझे लगा कि दोनों तरह के हमलावरों से घिर जाऊंगा."
उम्मीदवार बदले जाने पर उन्होंने कहा, "प्रताप सिंह खाचरियावास को या किसी को भी लड़ाएं. मैं पूरी तरह काम करूंगा."
कांग्रेस के नेताओं से बातचीत में यह खुलासा हुआ कि वे कांग्रेस से लंबे समय से जुड़े हुए हैं और पार्टी के प्रति उनका जुड़ाव है; लेकिन सोशल मीडिया में व्यक्त की गई उनकी टिप्पणियां बताती हैं कि वे आरक्षण, ओबीसी संबंधी पार्टी की राय या धर्म निरपेक्षता को लेकर गाहे-बगाहे ऐसी टिप्पणियां करते रहे हैं, जो आम तौर पर राष्ट्रीय स्वयं संघ या भाजपा से जुड़े लोग करते हैं.
वे गौहत्या और अज़ान के समय मस्जिदों पर स्पीकर लगाने के ख़िलाफ़ खुलकर टिप्पणियां करते रहे हैं.
क्या है जयपुर डायलॉग्स और विवाद की शुरुआत कैसे हुई?
राजस्थान कैडर के एक रिटायर्ड आईएएस संजय दीक्षित की पहल पर बनी कंपनी है. इसमें बीजेपी और संघ से जुड़े लोग हैं. संजय दीक्षित के ट्विटर हैंडल के बायो में इसका साफ़ ज़िक्र है और उसमें लिखा है कि सभी धर्म एक समान नहीं होते.
इस कंपनी का एक यूट्यूब चैनल भी है, जिस पर कई ऐसे वीडियो दिखते रहे हैं, जिन पर 'नेहरू चाचा का राम विरोध, कहाँ भाग गए किसान?' 'देवी की शक्ति से लड़ेगा पप्पू जैसे स्लोगन दिखाई देते हैं.'
पहले सोशल मीडिया में सुनील शर्मा के जयपुर डायलॉग्स से जुड़ाव संबंधी कुछ स्क्रीनशॉट वायरल हुए. इसके बाद एक वायरल वीडियो में रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि आपको टिकट किस आधार पर मिला है, जबकि आप तो उस जयपुर डायलॉग्स से जुड़े हैं, जो राहुल गांधी, सोनिया गांधी और कांग्रेस को खुले आम गाली देता है. जयपुर डायलॉग्स से आपका क्या रिश्ता है? कहा जा रहा है कि आप उसके डायरेक्टर हैं.
इस पर वे कुर्सी से तत्काल उठकर चले गए. लेकिन उसके बाद सफाई दी, तब तक देर हो चुकी थी.
कौन हैं प्रताप सिंह खाचरियावास
54 वर्षीय खाचरियावास राजस्थान के दिग्गज नेता भैरोसिंह शेखावत के भतीजे हैं. वे राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष रहे.
राजनीति की शुरुआत में वे बीजेपी से संबंधित थे, लेकिन बाद में वे कांग्रेस से जुड़ गए.
वे पहली बार 2008 में सिविल लाइंस से विधायक बने. साल 2013 में बीजेपी नेता अरुण चतुर्वेदी से हार गए, लेकिन अगली बार 2018 में जीत गए और गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे.
इस विधानसभा चुनाव में खाचरियावास जयपुर शहर के सिविल लाइंस क्षेत्र में बीजेपी के एक नए चेहरे और पत्रकार गोपाल शर्मा के सामने हार गए.
अलबत्ता, यह माना जाता है कि खाचरियावास को चुनाव लड़ना आता है और वे कांग्रेस के अच्छे चुनावी लड़ाके साबित होंगे.
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