मोहम्मद मोख़बर: 'समंदर में उतरकर भी न भीगने वाले' सियासतदान बने ईरान के अंतरिम राष्ट्रपति

रईसी के साथ मोख़बर

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ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत की ख़बर की पुष्टि के बाद उनके उप राष्ट्रपति मोहम्मद मोख़बर देज़फुली को चुनाव तक राष्ट्रपति पद की ज़िम्मेदारी दी गई है.

ईरान में उप राष्ट्रपति पद के लिए सीधा चुनाव नहीं होता है. राष्ट्रपति बनने वाला शख़्स ही उप राष्ट्रपति को चुनता है. उप राष्ट्रपति लगभग वही काम करता है जो किसी देश में प्रधानमंत्री करता है.

ईरान में 1989 में प्रधानमंत्री के पद को ख़त्म कर दिया गया था.

ईरान के इस्लामी गणराज्य के संविधान के अनुच्छेद 131 के अनुसार, राष्ट्रपति की मृत्यु की स्थिति में, उपराष्ट्रपति "नेतृत्व की मंजूरी के साथ, राष्ट्रपति की शक्तियों और जिम्मेदारियों को ग्रहण करते हैं."

संविधान के अनुसार उपराष्ट्रपति अधिकतम पचास दिनों की अवधि के भीतर एक नए राष्ट्रपति के चुनाव की व्यवस्था करने के लिए बाध्य हैं.

इब्राहिम रईसी के उप राष्ट्रपति बनने से पहले, मोहम्मद मोख़बर लगभग 15 सालों तक फ़रमान इमाम नामक संस्था के कार्यकारी स्टाफ़ के प्रमुख थे.

इस संस्था को ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इमाम ख़ुमैनीज़ ऑर्डर या सेताद के नाम से जाना जाता है.

फ़रमान इमाम ईरान की एक बेहद ताक़तवर संस्था है जो देश के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई के सीधे नियंत्रण में है.

देश की अमीर संस्थाओं में से एक, फ़रमान इमाम सिवाय सुप्रीम लीडर के, किसी और के प्रति जवाबदेह नहीं है.

मोख़बर ईरान के कई जाने-माने कट्टरपंथियों को मात देकर उपराष्ट्रपति बने. उसके बाद उन्हें देश की आर्थिक स्थिति को व्यवस्थित करने के लिए "रेज़िस्टेंस इकोनॉमी हेडक्वार्ट्स" के प्रमुख का पद दिया गया.

हालांकि इस महकमें में वे इतने सफल साबित नहीं हुए.

ख़ुजेस्तान से तेहरान तक

कई कट्टरपंथियों को मात देते हुए मोख़बर उप राष्ट्रपति बने थे.

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मोहम्मद मोख़बर का जन्म साल 1955 में ईरान के ख़ुजेस्तान प्रांत के देज़फुल शहर में हुआ था.

यही वजह है कि उनके नाम के आगे कई बार उनके जन्म स्थान का नाम भी जोड़ दिया जाता है.

उनका परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का था और उनके पिता, शेख़ अब्बास मोख़बर एक उपदेशक और मौलवी थे. वे एक समय के लिए देज़फुल के अस्थायी इमाम भी रहे थे.

मोहम्मद मोख़बर ने अपनी शुरुआती पढ़ाई देज़फुल में की. उसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए अहवाज़ गए.

ईरानी मीडिया के मुताबिक उनके पास इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक और मैनेजमेंट में मास्टर की डिग्री है.

मीडिया के मुताबिक मोख़बर ने प्रबंधन और आर्थिक विकास में डॉक्टरेट भी की है. इसके अलावा उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कानून में पीएचडी भी की है.

1979 की क्रांति से पहले उनकी गतिविधियों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन हमामिहान अखबार में छपे एक लेख के मुताबिक वे मोहम्मद जहांआरा, अली शामखानी, मोहसिन रेजाई, मोहम्मद फरूजांदेह और मोहम्मद बाकर जुल्कादर जैसे लोगों के साथ मंसूरुन समूह के सदस्य थे.

ये समूह जो खुज़ेस्तान में बना था और ईरान की पहली सरकार के खिलाफ सक्रिय था.

खुज़ेस्तान में इस्लामिक रिपब्लिकन गार्ड्स कोर (आईआरजीसी) की स्थापना के बाद, उन्हें देज़फुल में आईआरजीसी के स्वास्थ्य अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया.

1980 के दशक में चले ईरान-इराक युद्ध के के दौरान मोख़बर इसी पद पर रहे.

ईरान-इराक़ युद्ध की समाप्ति के बाद मोख़बर, देज़फुल टेलीकम्युनिकेशन कंपनी के सीईओ, खुज़ेस्तान प्रांत की टेलीकम्युनिकेशन कंपनी के कार्यकारी उपाध्यक्ष और फिर इसी कंपनी के सीईओ बने.

वे कुछ समय के लिए खुज़ेस्तान के डिप्टी गवर्नर भी रहे.

उसके बाद वे तेहरान गए. जब उन्हीं के प्रांत ख़ुजेस्तान से आने वाले मोहम्मद फ़रुज़ान्दे देश के राष्ट्रपति बने तो मोख़बर को मुस्तफ़ाफ़न फाउंडेशन के परिवहन और वाणिज्य के डिप्टी जैसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया गया.

कहा जाता है कि इस दौरान मोख़बर ने तुर्कसेल नामक मोबाइल फ़ोन कंपनी की जगह, ईरान सेल कंसोर्टियम में दक्षिण अफ्रीकी एमटीएन कंपनी को जगह देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. ये मामला काफ़ी विवादित रहा था.

बाद में उन्हें इसी ईरान सेल कंसोर्टियम के निदेशक मंडल के उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया.

इसके अलावा मोहम्मद मोख़बर सिना बैंक के निदेशक मंडल के अध्यक्ष थे. ये बैंक मुस्तफ़ान फाउंडेशन की देखरेख में संचालित होता था.

ताक़तवर संस्था के कार्यकारी प्रमुख

मोहम्मद मोख़बर

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इमेज कैप्शन, अमेरिकी विदेश विभाग ने जनवरी 2021 में 'फ़रमान इमाम' और उसके तत्कालीन प्रमुख, मोहम्मद मोख़बर पर प्रतिबंध लगाए थे.

साल 2006 में ईरान में सरकार की नींव कही जानी वाली संस्था फ़रमान इमाम के कार्यकारी मुख्यालय के प्रमुख के रूप में नियुक्ति, मोख़बर के करियर की सबसे निर्णायक छलांग थी.

फ़रमान इमाम की स्थापना तत्कालीन नेता आयतुल्लाह रूहुल्लाह खुमैनी के आदेश से उनकी मृत्यु से एक महीने पहले मई 1989 में की गई थी.

इस संस्था के हाथ में इस्लामी क्रांति के बाद ज़ब्त की गई हज़ारों संपत्तियों का प्रबंधन है.

सीधे आयतुल्लाह के कंट्रोल और निर्देश से चलने वाली फ़रमान इमाम, ईरानी व्यवस्था के किसी भी विभाग के प्रति जवाबदेह नहीं है.

अब ये एक विशाल आर्थिक इकाई बन गई है जिसके पास बेपनाह दौलत है. ये संस्था अब ईरान अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में प्रवेश कर चुकी है.

अमेरिकी विदेश विभाग ने जनवरी 2021 में फ़रमान इमाम और उसके तत्कालीन प्रमुख, मोहम्मद मोख़बर पर प्रतिबंध लगाए थे.

विदेश विभाग ने संस्था को "एक व्यापारिक राक्षस" बताया था जो "ऊर्जा, दूरसंचार सहित ईरान की अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में दखल रखती है."

कार्यकारी कमान मुख्यालय की संपत्ति के अलग-अलग अनुमान हैं. 2013 में, रॉयटर्स समाचार एजेंसी ने एक खोजी रिपोर्ट में कार्यकारी मुख्यालय को "विशाल आर्थिक साम्राज्य" कहा था और इसकी संपत्ति का अनुमान लगभग 95 बिलियन डॉलर लगाया था.

आलोचकों का कहना है कि फ़रमान इमाम का कार्यकारी मुख्यालय एक माफ़िया की तरह चलाया जाता है.

वर्तमान में संस्था तेल, गैस, पेट्रोकेमिकल, कृषि, उद्योग, खनन, चिकित्सा और निर्माण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में दर्जनों कंपनियों की मालिक है.

साथ ही कार्यकारी मुख्यालय के अंतर्गत बरकत फाउंडेशन नामक चैरिटी भी आती है.

बरकत नॉलेज फाउंडेशन एंड इंस्टीट्यूट की स्थापना मोख़बर के दौर में ही हुई थी.

अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने बरकत पर फ़रमाम इमाम का निवेश स्तंभ बताते हुए, इस पर भी प्रतिबंध लगाया हुआ है.

कोविड-19 महामारी के दौरान बरकत फ़ाउंडेशन ने घरेलू वैक्सीन उत्पादन परियोजना पर काम किया और मोख़बर ने मीडिया में सुर्खियां बटोरीं.

भले ही मोख़बर ईरान की ताक़तवर संस्था को चला रहे थे लेकिन कोविड वैक्सीन से पहले उन्हें देश के भीतर कम ही जाना जाता था.

ईरान के सर्वोच्च लीडर के समर्थन से चली वैक्सीन विकास परियोजना को काफ़ी सम्मान मिला. लेकिन परियोजना को कुछ विवादों का सामना भी करना पड़ा.

आख़िरकार वैक्सीन को देश के सामने पेश किया गया है और मोहम्मद मोख़बर की बेटी को इस वैक्सीन का पहला टीका लगाया गया.

'पर्दे के पीछे के खिलाड़ी'

मोहम्मद मोख़बर

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इमेज कैप्शन, मोहम्मद मोख़बर ने उपराष्ट्रपति पद के लिए सईद जलीली जैसे नामचीन लोगों को मात दी थी.

मोहम्मद मोख़बर ने उपराष्ट्रपति पद के लिए सईद जलीली जैसे नामचीन लोगों को मात दी थी. रईसी ने सत्ता संभालने के बाद अगस्त 2021 में मोख़बर को उप राष्ट्रपति चुना था.

फ़रमान इमाम में बिज़नेस की समझ को विकसित करने वाले मोख़बर ने सरकार में आने के बाद अर्थव्यवस्था में योगदान देना शुरू किया. वे ईरान की रेज़िस्टेंस इकॉनमी के प्रमुख बने.

पद संभालने के बाद उन्होंने कुछ महीनों के भीतर सबसे पहले इब्राहिम रईसी के प्रतिद्वंद्वी मोहसिन रेज़ाई को पद से हटाया.

रेज़ाई ने रईसी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें नए राष्ट्रपति ने सरकार के आर्थिक डिप्टी के रूप में नियुक्त किया था. लेकिन जल्द ही इस पद को ख़त्म कर दिया गया.

कई लोगों ने इस कहानी और इसी तरह की घटनाओं को मोहम्मद मोख़बर की पर्दे के पीछे की लॉबी का नतीजा माना था.

मोख़बर ने फ़रमान स्टाफ़ के प्रमुख के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान सत्ता के गलियारों में कई घनिष्ठ संबंध स्थापित किए थे. वे अब उनका इस्तेमाल करते दिख रहे थे.

हालाँकि इब्राहिम रईसी के शासन को एक साल भी नहीं बीता था कि देश में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और बिगड़ती आर्थिक स्थिति से असंतुष्ट कट्टरपंथियों ने आवाज़ें उठानी शुरू कर दी थीं.

जुलाई 2022 में स्टेबिलिटी फ्रंट के सदस्य जवाद करीमी-कुद्दूसी ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा, "मोख़बर के पास इस पद के लिए ज़रूरी योग्यता नहीं है."

करीमी-कुद्दूसी ने चेतावनी दी, "उनका यहां पल भर के लिए भी रहना, देश को नुकसान पहुँचा रहा है."

इससे पहले एक कट्टरपंथी मीडिया एक्टिविस्ट मोहम्मद मोहजे़री ने 'एतेमाद' अखबार में मोहम्मद मोख़बर और रईसी सरकार में उनकी पर्दे के पीछे की भूमिका को लिखा था.

मोहज़ेरी का कहना था, "अपने राजनीतिक कौशल के साथ वे इस तरह से काम करते हैं कि रईसी सरकार की अक्षमताएं छिपी रहें. ठीक उस व्यक्ति की तरह जो समुद्र में तो उतर जाता है पर भीगता नहीं है.”

लेकिन इन तमाम आलोचनाओं का मोख़बर के करियर पर कोई असर नहीं पड़ा. साल 2022 में ही ईरान के सुप्रीम लीडर ने उन्हें एक विशेष परिषद का सदस्य बनाया.

इतना ही नहीं रईसी ने भी अपने डिप्टी की आलोचनाओं की ओर ध्यान नहीं दिया.

उसी साल एक कार्यक्रम के दौरान मोहम्मद मोख़बर की तस्वीरें देश के ताक़तवर लोगों के साथ प्रकाशित हुईं.

कई लोगों ने इस बैठक के बाद उनकी तस्वीरों को आलोचकों के लिए एक संदेश के रूप में देखा. तब से, ईरान की अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल के बावजूद, बिना ख़बरों में आए उप राष्ट्रपति के रूप में मोख़बर अपने पद पर बने रहे.

ईरानी राष्ट्रपति की मौत के साथ, मोहम्मद मोख़बर को एक नया और अप्रत्याशित मिशन मिल गया है जो अगले राष्ट्रपति की नियुक्ति तक जारी रहेगा.

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