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मेसी के इवेंट से 29 साल पहले जब दर्शकों ने कोलकाता के स्टेडियम में किया था हंगामा
- Author, रेहान फ़ज़ल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
अर्जेंटीना के स्टार फ़ुटबॉल खिलाड़ी लियोनेल मेसी भारत के दौरे पर हैं. वो शनिवार को जब कोलकाता के सॉल्ट लेक स्टेडियम पहुंचे तो दर्शकों में उनको लेकर ज़बरदस्त उत्साह था.
हालांकि ये उत्साह कुछ ही समय बाद ग़ुस्से में बदल गया जब लियोनेल मेसी वहां से जल्दी निकल गए. इस दौरान स्टेडियम में कुर्सियां और बोतलें फेंकते दर्शकों की तस्वीरें भी सामने आईं.
आज से ठीक 29 पहले उपद्रव का कुछ ऐसा ही एक मामला कोलकाता में घट चुका था. आइये जानते हैं, उस दिन क्या हुआ था.
नीचे पढ़िए वो कहानी जो पहली बार 28 सितंबर 2023 को बीबीसी न्यूज़ हिन्दी पर प्रकाशित हुई थी.
1996 के विश्व कप में जब भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ बेंगलुरु में हाई प्रेशर क्वॉर्टर फ़ाइनल मैच जीता तो उसका हैंगओवर इतना था कि भारत चार दिन बाद श्रीलंका के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल मैच तक उससे उबर नहीं पाया.
भारतीय टीम के कोच अजीत वाडेकर जानते थे कि भारतीय टीम की आदत है कि एक बड़ा मैच जीतने के बाद वो चीज़ों को आराम से लेना शुरू कर देते हैं.
संजय मांजरेकर अपनी आत्मकथा ‘इंपरफ़ेक्ट’ में लिखते हैं, ‘मुझे याद है एक बार मैच जीतने के बाद हम सब जहाज़ में आपस में कुछ चुहल कर रहे थे.
उस शाम होटल में टीम मीटिंग के दौरान वाडेकर हम पर अचानक बरसे थे, तुम अपने आप को समझते क्या हो? क्या तुमने टूर्नामेंट जीत लिया है? फ़्लाइट में हो क्या रहा है? ये किस तरह का व्यवहार था?’
श्रीलंका से पहले बल्लेबाज़ी करवाने का फ़ैसला
श्रीलंका के ख़िलाफ़ सेमी फ़ाइनल से पहले भी वाडेकर कुछ उसी तरह के मूड में थे. टीम मीटिंग में सिर्फ़ वो ही बोलते रहे. उनके बाद कप्तान अज़हरुद्दीन ने कुछ शब्द कहे.
हांलाकि ये बैठक क़रीब एक घंटे चली लेकिन इसमें 50 मिनट सिर्फ़ इस बात पर चर्चा हुई कि श्रीलंका के ओपनर्स रोमेश कालूवितरना और जयसूर्या को किस तरह रोका जाए.
इन दोनों ने कुछ दिन पहले दिल्ली में हुए लीग मैच में भारत के ख़िलाफ़ बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हुए भारत के 272 रन के स्कोर को आसानी से पार कर दिया था.
उनकी बैटिंग इतनी ज़बरदस्त थी कि मनोज प्रभाकर को ऑफ़ स्पिन गेंद फेंकने के लिए मजबूर होना पड़ा था और यहीं से उनके करियर के अंत की शुरुआत हो गई थी.
कलकत्ता (अब कोलकाता) पहुंचने पर भारतीय टीम को बताया गया कि ईडन गार्डन की पिच को हाल ही में ऑस्ट्रेलिया से लाई गई मिट्टी से फिर से बिछाया गया है. पहली नज़र में वो पिच किसी ईडन गार्डन ईडन गार्डन ऑस्ट्रेलियाई पिच की तरह ही ठोस दिखाई दे रही थी.
सचिन तेंदुलकर अपनी आत्मकथा ‘प्लेइंग इट माई वे’ में लिखते हैं, “पिच को देखते ही हमने ये तय किया कि अगर हम टॉस जीतते हैं तो हम पहले फ़ील्डिंग करेंगे. इससे पीछे एक कारण ये भी था कि श्रीलंका ने तब तक सफलतापूर्वक अपने लक्ष्यों का पीछा किया था.''
''उनके आरंभिक बल्लेबाज़ सनत जयसूर्या और रोमेश कालूवितरना पहली गेंद से ही पिंचहिटर का रोल निभा रहे थे और अधिकतर मैचों में श्रीलंका को अच्छी शुरुआत देने में कामयाब रहे थे. वो हमें लीग मैच मे हरा चुके थे. ये ज़रूरी था कि हम शुरू में ही उनके विकेट चटका कर उनपर दबाव बना लें.’'
अरविंद डीसिल्वा और महानामा की बैटिंग चमकी
भारत ने टॉस जीता और श्रीलंका से पहले बल्लेबाज़ी करने के लिए कहा. भारतीय टीम की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने पहले ही ओवर में दोनों ओपनर्स को पवेलियन वापस भेज दिया.
संजय मांजरेकर लिखते हैं, मैंने कालूवितरना को श्रीनाथ की गेंद पर गोल्डन डक पर थर्ड मैन पर कैच किया और वैंकटेश प्रसाद ने जयसूर्या का कैच लपका. इसके बाद हमें पता नहीं था कि हमें क्या करना है. महाभारत में अभिमन्यु की तरह हमने अपने आप को लक्ष्य के चक्रव्यूह में घुसने के लिए ट्रेन तो किया था लेकिन हमने इस बात के लिए अपनेआप को तैयार नहीं किया था कि चक्रव्यूह से बाहर कैसे आना है.
थोड़ी देर के लिए हमारा फ़ोकस मैच से हट गया और अरविंद डिसिल्वा ने इसका पूरा फ़ायदा उठाते हुए 47 गेंदों पर 66 रन जड़ दिए. महानामा ने भी 58 रनों की पारी खेल कर श्रीलंका को शुरुआती नुकसान से उबार लिया. पारी के अंत में राणातुंगा के 35, तिलकरत्ने के 32 और चमिंडा वास के 22 रनों की बदौलत श्रलंका की टीम अपने स्कोर को 251 रनों तक ले गई.
जब सचिन तेंदुलकर गेंदबाज़ी करने आए तो उन्हें महसूस हुआ कि पिच को पढ़ने में उनसे ग़लती हुई है. उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा, “गेंद बल्लेबाज़ की तरफ़ रुक कर जा रही थी. पिच की ऊपरी सतह भले ही मज़बूत दिख रही हो, लेकिन उसके नीचे की मिट्टी बँधी हुई नहीं थी. ये साफ़ था कि ये पिच पूरे 50 ओवर चलने वाली नहीं थी. ये ज़रूरी था कि श्रीलंका के स्कोर को सीमित रखा जाए. लेकिन इसके बावजूद वो 50 ओवरों में 251 रन बनाने में सफल हो गए जो आख़िर में हमारे लिए बहुत भारी साबित हुए.
बाद में राणातुंगा ने स्वीकार किया कि उनका लक्ष्य 275-280 रन बनाने का था लेकिन जब उन्होंने गेंद को स्पिन होते देखा तो उन्हें लगने लगा कि इस पिच पर 220 रन भी काफ़ी होंगे. जब सचिन तेंदुलकर गेंदबाज़ी करने आए तो उन्हें महसूस हुआ कि पिच को पढ़ने में उनसे ग़लती हुई है.
तेंदुलकर स्टंप आउट
अब सब की निगाहें सचिन तेंदुलकर पर थीं कि वो भारत को अच्छी शुरुआत दें और उन्होंने दर्शकों को निराश भी नहीं किया. स्पिन होती पिच पर वो अपना स्कोर 65 तक ले गए और 98 के स्कोर पर विचित्र तरीके से स्टंप आउट हुए.
तेंदुलकर लिखते हैं, ‘जयसूर्या बाएं हाथ से स्पिन गेंदबाज़ी कर रहे थे. उनकी एक गेंद मेरे पैड से टकरा कर ऑन साइड की तरफ़ मुड़ गई. मैंने सोचा कि तेज़ी से एक रन लेने की गुंजाइश है, इसलिए मैं क्रीज़ से बाहर निकल आया. लेकिन तभी मैंने देखा कि गेंद विकेटकीपर कालूवितरना के बहुत पास आकर रुक गई है. मेरे पास न तो रन लेने का समय था और न ही क्रीज़ में वापस आने का. उन्होंने फ़्लैश मे विकेट की गिल्लियाँ बिखेर दीं. मैंने तीसरे अंपायर के फ़ैसले का इंतेज़ार किए बिना पवेलियन का रुख़ किया क्योंकि मुझे मालुम था कि मैं आउट था. जब मैं पवेलियन की तरफ़ बढ़ रहा था तो मुझे इस बात का अंदाज़ा हो गया था कि मेरे बाद वाले बल्लेबाज़ों की राह आसान नहीं होगी.’
पिच ने तेज़ स्पिन लेना शुरू किया
जब तक दूसरे विकेट के लिए सचिन और मांजरेकर में 90 रनों की साझेदारी हुई, कम से कम दर्शकों को नहीं लगा कि पिच ख़राब हो चली है.
संजय मांजरेकर लिखते हैं, ‘जब कुमार धर्मासेना ने अज़हरुद्दीन को ऑफ़ ब्रेक गेंद फेंकी, उसने ऑफ़ स्टंप के बाहर टप्पा खाया जिसे विकेटकीपर कालूवितरना ने लेग साइड पर अपने सीने की ऊँचाई पर कलेक्ट किया. इस गेंद को वाइड घोषित किया गया लेकिन इसके बाद धर्मसेना के चेहरे पर जो मुस्कान आई उसको मैं कभी नहीं भूल सकता. शायद उसको उसी समय अंदाज़ा हो गया था कि मैच उनका हो गया है और फ़ाइनल मैच खेलने के लिए भारत नहीं उनकी टीम लाहौर जाएगी. श्रीलंका की उस टीम में धर्मासेना के अलावा दो और स्पिनर थे, मुथैया मुरलीधरन और जयसूर्या. अरविंदा डिसिल्वा भी ज़रूरत पड़ने पर स्पिन गेंद बाज़ी कर सकते थे. तेंदुलकर के आउट होने के बाद जब दो और चोटी के बल्लेबाज़ पवेलियन लौट गए तो हमें दिल ही दिल में अंदाज़ा हो गया कि सब कुछ समाप्त होने वाला है.’
दर्शकों ने मैदान में बोतलें फेंकनी शुरू की
अज़हरुद्दीन बिना रन बनाए पवेलियन लौटे. मांजरेकर को जयसूर्या ने क्लीन बोल्ड किया. जवागल श्रीनाथ को अजय जडेजा के ऊपर प्रोमोट किया गया ताकि वो बाएं हाथ के बल्लेबाज़ विनोद कांबली का साथ निभा सकें. लेकिन वो 6 रन के स्कोर पर रन आउट हो गए.
जडेजा भी 11 गेंद खेल कर बिना रन बनाए पवेलियन लौटे. नयन मोंगिया और आशीष कपूर के आउट होते ही भारतीय पारी का अंत साफ़ दिखाई देने लगा.
तब तक ईडेन गार्डन के दर्शकों का धैर्य जवाब दे चुका था. जब उन्हें अदाज़ा हो गया कि अब भारत के जीतने की कोई उम्मीद नहीं है उन्होंने मैदान में प्लास्टिक और शीशे की बोतलें फेंकनी शुरू कर दीं. उस समय 15 ओवर फेंके जाने बाकी थे और भारत का स्कोर था 8 विकेट पर 120 रन.
भीड़ को शाँत करने की मंशा से दोनों अंपायरों और मैच रैफ़री क्लाइव लॉयड ने दोनों टीमों के खिलाड़ियों को मैंदान से बाहर बुला लिया. आधे घंटे बाद खेल फिर शुरू हुआ लेकिन इससे पहले कि मुथैया मुरलीधरन अपने ओवर की दूसरी गेंद फेंकते भीड़ ने फिर से मैदान में बोतलें फेंकनी शुरू कर दी. हालात इतने ख़राब हो गए कि बाउंड्री पर फ़ील्डिंग कर रहे श्रीलंका के फ़ील्डर पिच के पास आ गए. दर्शक इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि उनकी आँखों के सामने भारत की हार हो. तब रेफ़री ने खेल रोकने और श्रीलंका को विजयी घोषित करने का फ़ैसला किया. दस रनों पर नाबाद विनोद कांबली जब पवेलियन लौट रहे थे तो उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे. भीड़ को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि उनके इस रवैये से देश का नाम बदनाम हो रहा था. इस घटना ने कलकत्ता की खेल परंपराओं को गहरा धक्का पहुंचाया था.
पहले क्षेत्ररक्षण करने का फ़ैसला ग़लत
भारत के महान स्पिनर इरापल्ली प्रसन्ना ने स्थानीय टेलिग्राफ़ अख़बार में लिखा कि भारत को टॉस जीत कर पहले बल्लेबाज़ी करनी चाहिए थी.
भारत का क्षेत्ररक्षण करने का फ़ैसला एक मनोवैज्ञानिक फ़ैसला था जिसे किसी रणनीति के तहत नहीं लिया गया था. कप्तान अज़हरुद्दीन ने मैच के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस में स्वीकार किया कि वो नहीं चाहते थे कि श्रीलंका रनों का पीछा करे.
भारतीय टीम में नवजोत सिद्धू अकेले शख़्स थे जो चाहते थे कि भारत पहले बैटिंग करे, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई. बाद में ग्राउंड्समैन ने भी बताया कि उन्होंने भारतीय कप्तान को सलाह दी थी कि उन्हें पहले बैटिंग करनी चाहिए लेकिन उन्होंने उनकी सलाह पर ध्यान न देते हुए पहले फ़ील्डिंग करनी चुनी.
होटल पहुंच कर संजय मांजरेकर, सचिन तेंदुलकर, अजय जडेजा और दो अन्य खिलाड़ी एक कमरे में इकट्ठा हुए.
संजय मांजरेकर लिखते हैं, ‘तभी कमरे में विनोद कांबली दाख़िल हुए. अजय जडेजा ने उन्हें टीम की हार पर सरेआम रोने के लिए आड़े हाथों लिया. उन्हें कांबली का अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रख पाना पसंद नहीं आया. लेकिन शायद कांबली इस बात से निराश थे कि उनके हाथ से भारत के लिए मैच सेविंग पारी खेलने का मौका चला गया.’
श्रीलंका का विजयक्रम यहीं नहीं रुका. चार दिन बाद उन्होंने लाहौर में फ़ाइनल में आस्ट्रेलिया को हरा कर पहली बार विश्व कप जीता.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.